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चन्दन

यशवन्त कोठारी

आपने सुनी और पढ़ी होगी रहीम की पंक्ति “चन्दन विष व्यापत नही”, लिपटे रहत भुजंग,”या किसी को चन्दन - सा बदन कहकर पुकारा होगा। भारतीय संस्कृति, साहित्य चन्दन चन्द्रमा और कमल के बिना अधूरा है। क्या आपने कभी चंदन के वन की सैर की है ? रहीम दास जी क्षमा करें यहां पर कहीं भी भुजंग नहीं लेकिन चन्दन वन की खुशबू, सुगन्ध और मलयानिल की गंध से कौन बच सका है। आइए चन्दन के बारें में कुछ और जानकारी ले। मलयालम, संस्कृत और हिन्दी भाषा मे इसे चन्दन कहते हैं।कन्नड़ में श्रीगन्धा और गुजराती में सुकेत। वनस्पति शास्त्री इसे सेंटलम अल्यम कहतें है। जो सेंटलेसी परिवार का सदस्य है। इसकी 20 जातियां और भी होती हैं मगर भारत में पायी जाने वाली चन्दन जाति ही सर्वश्रेष्ट है और व्यापारिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी है काफी समय तक चन्दन का पौधा भारत का मूलवासी माना गया मगर अब वैज्ञानिकों के अनुसार चन्दन इन्डोनेशिया का मूलवासी है। वहां पर तीन प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं।

वैज्ञानिकों ने चन्दन वृक्ष के स्वभाव तथा अन्य बातों की जानकारी प्राप्त कर ली है। यह एक सदाबहार पेड़ है जो मूल रूप से परजीवी होता है। इस पौधे की जड़े हॉस्टोरिया के सहारे दूसरे पेड़ो की जडा़ से जुड़कर भोजन, पानी और खनिज पाती रहती है। चन्दन के परपोषकों में नागफनी, नीम, सिरीस, अमलतास, हरड़ आदि पेड़ों की जड़े मुख्य हैं। वास्तव में चन्दन के पेड़ इन पेडा़ के आस - पास ही उगते हैं। तथा स्वयं चन्दन का वन नहीं होता। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि चन्दन के वन में कोई सुगन्ध या खुशबू नहीं आती है। चन्दन के पेड़ में साल में 2 बार नयी कोपलें, फल और फूल आते है। बरसात के पहले और बरसात के बाद चन्दन के पेड़ फलों और फूलों से लदकर पूरे वन को एक नयी आभा से युक्त कर देते हैं।

चन्दन के हरे पेड़ में खुशबू नहीं होती है। वास्तव में चन्दन के पेड़ की पक्की लकड़ी जिसे हीरा कहा जाता है, में ही खुशबू होती है इसी लकड़ी का प्रयोग विभिन्न कार्यो के लिए किया जाता है। हमारे देश में दक्षिण भारत में चन्दन बहुतायत से पैदा होता है। इसी प्रकार पेसिफिक चन्दन आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैड में पैदा होता है। चीन, मलेशिया और इन्डोनेशिया में भी चन्दन पाया जाता है। वास्तव में चन्दन चार प्रकार का माना जाता है। (1) सफेद चन्दन (2) लाल चन्दन (3) मयूर चन्दन (4) नाग चन्दन।

चन्दन से मिलता जुलता एक और पौधा होता है टेरोकार्पस सेंटलाइनस, मगर यह चन्दन नहीं है। चन्दन का पेड़ कम वर्षा वाली पथरीली जमीन में जल्दी से बढ़ता है और इस जमीन पर लगे पेड़ में हीरा (कठोर लकड़ी) और तेल की मात्रा ज्यादा होती है।

चन्दन की लकड़ी का आसवन करके तेल निकाला जाता है। जड़ो में तने से ज्यादा तेल होता है। लकड़ी में तेल 10 प्रतिशत तक होता है। 1916 में बैंगलोर में चन्दन से तेल निकालने का पहला कारखाना लगाया गया। चन्दन के तेल का निर्यात फ्रांस, अमेरिका, जापान, सिंगापुर, इटली, ब्रिटेन आदि देशों को किया जाता है। भारत में चन्दन का तेल सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, कन्नौज, लखनऊ, कानपुर आदि में खपता है। लगभग सम्पूर्ण तेल सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त होता है। एक किलो तेल लगभग 2000 रूपये में बिकता है तथा निर्यात से प्रतिवर्ष करोड़ो रूपया प्राप्त होता है।

आयुर्वेद में चन्दन को शीतल, शक्तिवर्धक, दंतक्षयनाशक तथा शरीर को शक्ति देने वाला माना गया है। चन्दनासव, चन्दन का शरबत आदि पिया जाता है स्त्रियों के आलेपन, श्रृगांर, सुगंध तथा प्रसाधन हेतु चन्दन का उपयोग ईसा के लगभग 2000 वर्ष पूर्व से ही होता रहा है। संस्कृत साहित्य में चन्दन का अनेकों बार उल्लेख हुआ है।

चन्दन की लकड़ी का उपयोग नक्काशी के सुन्दर काम के लिए भी किया जाता है । नक्काशी से सुन्दर, कलात्मक मूर्तिया, खिलौने, व अन्य सजावटी सामान वर्षो से भारत में बनते और बिकते रहे हैं।

मैसूर, सागर, भरतपुर तथा काठियावाड़ में इस हस्तशिल्प के कारीगर आज भी अपना हस्तकौशल दिखा रहे हैं।

हमारे देश में लगभग 8000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चन्दन की खेती होती है। चन्दन की लकड़ी की तस्करी भी होती है। चन्दन का पेड़, स्माइक रोग हो जाने पर जल्दी मर जाता है। मैसूर के राजा टीपू सुल्तान ने 1792 में ही चन्दन को राज वृक्ष घोषित कर दिया था। वास्तव में चन्दन हमारी संस्कृति का अंग रहा है। इसे सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए।

 

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यशवन्त कोठारी

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