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इंतजार


मिस्टर खुराना के घर मातम का पांचवा दिन था, कारण था पुत्र का प्रेम विवाह।उनके पुत्र आकाश ने साथ में पढ़ने वाली पिंकी से प्रेम विवाह कर लिया, मां-बाप को पता तक नहीं। पिंकी और आकाश दोनों साथ में एमबीबीएस कर रहे थे आकाश की मां पुत्र स्नेह से भरे हुए वह पल याद कर रही थी जब आकाश का जन्म हुआ था, ऐसा लगता था जैसे घर में सोना बरसा हो ।पूरे गांव में मिठाइयां बांटी थी,नाच गानों से तो घर की चौखट धूल में बदल गई थी और वाद्य यंत्रों की आवाज से धरती कांप उठी थी । शादी के दस साल बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। खुशी मनाना लाजमी था ।आकाश धीरे-धीरे बडा होता गया । बचपन में मां-बाप की आंखों का तारा था , मां बाप ने हर जिद को शौक से पूरा किया । आकाश की मां सपना भी देखने लगी थी की आकाश के लिए संस्कारी बहू ढुढूंगी और धूम धाम से शादी करूंगी और बहू को बहुत सारे जेवर पहनाऊंगी । ऐसे नित्य सपने बुनती और तोड़ती थी । लेकिन प्रेम विवाह की यह घटना आकाश की मां के ह्रदय पर बज्रपात सा हुआ।

बचपन से किशोरावस्था तक तो आकाश , श्रवण कुमार था, हर शब्द को आज्ञा मानता था, लेकिन जवानी ने ऐसा भीषण प्रहार किया कि आकाश लड़खड़ा गया और लड़खड़ाते कदमों का साथ पिंकी ने दिया । दोनों प्रेम की कश्ती पर सवार थे । मां की झुर्रियों की जगह पिंकी की चमक ने ले ली।, मां की ममता की जगह पिंकी के इश्क की । समझो कि मां की ममता , स्नेह और प्यार सब इश्क के आगे जलकर भष्म हो गये । आकाश ने रीति रिवाज से शादी करने के लिए बोला लेकिन पिंकी ने एकाकी जीवन में रहने की शर्त थोप दिया। हवाला दिया की मुझे गांव का जीवन पसंद नहीं, इसलिए कभी तुम्हारे मम्मी पापा के साथ नहीं रह पाऊंगी । आकाश पिंकी के मोहपास में जकड़ चुका था अतः शर्तो की लक्ष्मण रेखा तोड़ने की हिम्मत नहीं कर सका । कल का श्रवण आज मजनू बन जाएगा ऐसी उम्मीद नहीं थी । शादी के बाद दोनों खुश थे सारी दुनिया से बेखबर ।अपने मां बाप, परिवार की फिक्र और भावनाओं की जैसे तिलांजलि दे दी हो ।

उधर मिस्टर खुराना पीलिया का शिकार हो गए सही वक्त पर इलाज न मिलने से मृत्युसैया पर लेट गए ।अब मिसेज खुराना यानी आकाश की मां पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा पछाड़े खा खाकर कर कभी बेटे के नाम पर रोती तो कभी पति पर । बेटे आकाश का तो अभी कहीं पता भी ना था उसने बाप का मां बाप का कभी हाल भी नहीं पूछा ।बेटे का सुख तो आकाश ने पहले ही मां से छीन लिया बची कुची जिंदगी का सुख मिस्टर खुराना की मृत्यु के साथ जलकर राख हो गया ।आकाश की मां की जिंदगी में कुछ बचा था तो पुत्र मिलन की आशा ।अकेले में बैठकर यही सपने बुनती कि कभी मेरा बेटा नई नवेली दुल्हन के साथ आएगा तब वह कितनी खुश होगी। एक पल के लिए वह स्वप्न लोक में खो जाती और प्रफुल्लित हो जाती। लेकिन स्वप्न टूटते ही अकेलापन घर लेता ओर खुशियां बादल की तरह उड़ जाती , आंसू आंखों में सूखकर रह जाते ।

समय बीतता गया वर्षो गुजर गए लेकिन आकाश की मां पुत्र बिरह में दुखी होकर रोती रहती । अचानक एक दिन विचार आया , जो पुत्र अपने मां-बाप के विचारों को नहीं समझा तो स्नेह के लायक नही होता है । अब मां की पथराई आंखों में आसूं नही थे। दृढ़ निश्चय किया ह्रदय सख्त कर पुत्र को आशा छोड़ने का प्रयास करने लगी।

आंखो मे वर्षो बाद चमक आई थी पुत्र मोह से पीछा जो छूटा था ।कहा भी गया है कि समस्त दुखों को जड़ मोह ही होता है जो आशा के भ्रमजाल में व्यक्ति कुढ़ता रहता है । लेकिन मां तो मां होती है उसका हृदय मक्खन की तरह होता है पुत्र स्नेह की गर्मी से पिघलते देर नहीं लगती। अब मिसेज खुराना का वक्त पुत्र स्नेह की विरह पालने में झूल रहा था । वक्त बीतता गया एक दिन मिस्टर खुराना के परम मित्र गोपाल जी आकाश की मां से मिलने आए ,गोपाल जी और खुराना बचपन के मित्र थे दोनों की मित्रता परम विश्वसनीय और स्नेहपूर्ण थी। मिस्टर खुराना गांव में रहना चाहा और गोपाल जी को मुंबई में जाकर नौकरी करना चाहा।गोपाल जी को नौकरी मिल गई और मुंबई में रहने लगे,गोपाल जी ने हाल पूंछा। मिसेज खुराना की हालत गोपाल जी से देखी न गई। और उन्होंने कहा आप मेरे साथ चलिए वहां पर मेरे बेटों के बीच रहेगी तो आपका मन भी लगेगा , बाद में जब चाहे आप आ जाना । मिसेज खुराना सोच में डूब गई , मैं कैसे घर को छोड़ दूं जहां मेरे बेटे की बचपन की किलकारियां बस रही हो । गोपाल जी ऐसे धर्मसंकट को समझ रहे थे और ध्यान भंग करते हुए पुनः आग्रह करते हुए समझाया कि यहां आप अकेले परेशान होती रहेंगी। आप मेरे साथ जाने के लिए कल तैयार रहना । गोपाल जी चले गए और एक दृढनिश्चय की अग्नि परीक्षा के लिए आकाश की मां को छोड़ गए। लेकिन आकाश की मां को गोपाल जी का सहयोग डूबते को तिनके का सहारा था । सुबह हुई सूरज नया उमंग लेकर आकाश पर तेजपुंज की तरह चमक रहा था , धरती को प्रकाशमान कर रहा था। और सुबह की नई किरण के साथ जैसे आकाश की मां भी नए सफर के लिए तैयार थी।आखिर वह वक्त आ ही गया जब आकाश की मां को गोपाल जी के साथ जाना था। आकाश की मां ने अब आकाश के मिलन की आशा को तिलांजलि दे घर छोड़ चली गई एक नई दुनिया की ओर। बस साथ में थी तो के घर की यादें। सफर के साथ जिंदगी के सफर की यादें जब मिसेज खुराना दुल्हन बनकर आई थी और उनके संसार में खुशियों की बरसात थी और कैसे उनकी खुशियों पर ग्रहण लग गया।

अब गोपाल जी का घर आ चुका था। आकाश की मां को अपने परिवार से अपने पुत्रों से मिलवाया , सब ने उनका स्वागत किया।गोपाल जी के घर पहुंचकर आग्रह किया कि मुझे कुछ काम मिलवा दो चाहे किसी के घर खाना बनाने का ही क्यों ना हो आकाश की मां दूसरे के घर खाना बनाने का काम करके व्यस्त रहने लगी वक्त बीतता गया लेकिन आकाश के मां का मन अभी भी अधूरा था उनका पुत्रस्नेह पीछा नहीं छोड़ रहा था।

आज गोपाल जी के घर उनके नाती का जन्मदिन था।घर सजाया जा रहा था, पकवान बन रहे थे सभी सज धज कर जन्मोत्सव के लिए तैयार हो रहे थे अकाश की मां को भी सजाया गया ।पीआर वह अभी भी इस भीड़ में अकेली थी सूनापन उनके ह्रदय को कचोट रहा था।नए नए मेहमान ,रिश्तेदार सब से ताल मेल मिठना आशा लग रहा था। तभी अचानक गोपाल जी ने कहा आओ भाभी जी मैं किसी से मिलवाता हूं। पीछे मुड़कर देखा तो जैसे स्वप्नलोक में उतर आई हो,आंखो पीआर भरोसा नहीं हो रहा था क्योंकि जिसके लिए इतनी तड़प थी,जिसके इंतजार में कई वर्ष गुजरे थे,जिसके लिए किवाड़ की साकार की खनक से ऐसा लगता की मेरा बेटा आया क्या दौड़कर जाती, पर निराशा हाथ लगती ।वह पुत्र आकाश आज सामने था। गोपाल जी ने अपने डॉक्टर पुत्र के प्रयास से उसके डॉक्टर पुत्र आकाश को ढूंढ निकाला ।

दृश्य देखकर उनकी आंखों में चमक की लहर दौड़ गई बदन में स्फूर्ति दौड़ गई और एक बार फिर से जैसे युवावस्था में प्रवेश कर गई । वात्सल्य उमड़ने लगा, क्योंकि आकाश सामने था और सहसा जोर से आवाज निकल पड़ी बेटा आकाश ! अकाश का जैसे भ्रमजाल टूटा हो मातृत्व प्रेम में वह भी भावविभोर हो मां को गले से लगा लिया। शायद मां की ममता के आगे उसके सारे अस्त्र निस्तेज हो चुके थे । पूछा मां कैसी हो?

मां संभलते हुए बोली क्या करोगे जान कर कितने दिन......। सॉरी मां मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। कोई बात नही बेटा तुम खुश रहो बस। पापा कहा है? ऐसा विस्फोटक प्रश्न के आगे नतमस्तक हो गई और अश्रुधारा बह चली , संभलते हुए बोली जब तू चला गया था उसके एक साल बाद वो नही रहे। अकाश कांप गया ह्रदय पर जैसे गाज गिरी हो। पितृत्व प्रेम में खो गया ,शोक मुद्रा में सिर पीआर हाथ रख सोफे पर बैठ गया । फिर अचानक संभलते हुए सख्त होकर क्रोध में भरकर पिंकी का गला अपने दोनो हाथो से घोटते हुए बोला इसकी वजह से हुआ सब,मैं इसे जान से मार दूंगा। तभी गोपाल जी ने छोड़वाते हुए बोले, अकास क्या तुम बच्चे हो मां बाप की परवरिश,त्याग सब भूल गए और दोष दूसरे को देते हो और पिंकी तुम ! तुमने एक बार भी नही सोचा की जैसे तुम्हारे मां बाप है वैसे किसी और के भी है , उन्हें भी अपने परिवार के बीच रहना अच्छा लगता है,तुम इतनी स्वार्थी हो चुकी हो,याद रखना एक दिन तुम भी मां बनोगी और तुम्हारे साथ भी ऐसा ही होगा । तुम दोनो को धिक्कार है। पिता स्वर्गवासी, विधवा मां घर पर अकेले ,कोई सहारा नहीं, ऐसी औलाद को तो मर जाना बेहतर।और अगर मेरा बेटा इतनी मशक्कत नहीं करता तो तुम तो जीते जी अपनी मां को मार चुके थे। अकाश और पिंकी एक अपराधी की तरह खड़े सुन रहे थे। अकाश मां आगे हाथ जोड़ बिनती करने लगा , मां मुझे माफ कर दो,अब हमारे साथ हमारे घर चलो। बीच में गोपाल जी टोकते हुए अकाश के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले अभी नहीं, कल सुबह ले जाना और हां अब कोई गलती नही करना । आज पार्टी एंजॉय करो। जन्मोत्सव हुआ पार्टी आधी रात तक चलती रही फिर सभी अपने घर चले गए।

सुबह हो चुकी थी, चिड़िया चहक रही थी, कलियां खिलकर फूल बन रही थी,सूरज की तपिश धरती पर फैलने लगी। तभी गोपालजी के घर पर गाड़ी रुकी, अकाश मां को लेने आया था।गोपालजी ने अकाश की मां को विदा किया और बोले भाभी जी आते रहिएगा।

अब मां अकाश के घर पर थी, पूछा बेटा बहू नही दिख रही? अकाश ने बोला मां मैने उसे तलाक देने के लिए बोला है और वह अपने मां के यहां है। अरे बेटा क्यों ?

मां उसने मुझे तुमसे अलग रखा। वाह बेटे गलती अगर की है तो तुम दोनो ने ,लेकिन अब सुधरने की जगह फिर से गलती। चलो अभी चलो मुझे अपनी बहू से मिलना है।

लेकिन मां..

कुछ नहीं मेरा कहना मानो और चलो।

ओके मां ।

दोनो पिंकी के घर गए । मां ने पिंकी से पूछा बहू अगर तुम अकाश के साथ ही रहना चाहती हो तो कोई बात नही मैं गांव चली जाऊंगी।बस तुम दोनो खुशी रहो,यही मेरी कामना है।

पिंकी की आंखों में आसूं थे,बोली मां ऐसा नहीं है मैं गलत थी अब मुझे माफ कर दो। मुझे कोई दिक्कत नहीं आप हमारे साथ रहेंगी तो अच्छा लगेगा।

मां ने बहू को गले लगा लिया।

मां इतनी खुश थी जैसे घर में स्वर्ण वर्षा हुई हो ,वही खुशी जब आकाश का जन्म हुआ था।और सोचने लगी अकाश के पापा होते तो कितने खुश होते।