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अम्बा-अम्बालिका-अम्बिका

अम्बा
★ काशीराज इन्द्रद्युम्न की तीन कन्याओं में ज्येष्ठ कन्या अम्बा थी। भीष्म ने अपने दो सौतले छोटे भाईयों- विचित्रवीर्य और चित्रांगद के विवाह के लिए काशीराज की पुत्रियों का अपहरण किया था।
★ भीष्म के पराक्रम के कारण वे उन पर मुग्ध थी और उनसे विवाह करना चाहती थीं। किन्तु भीष्म आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा कर चुके थे, अत: यह विवाह सम्पन्न न हो सका।
★ इस अपहरण की घटना के पूर्व इनका विवाह शाल्व के साथ होना निश्चित हो चुका था। परन्तु इस घटना के कारण उन्होंने भी अम्बा से विवाह करना अस्वीकार कर दिया।
★ प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर अम्बा ने कठिन तपस्या की और शिव का वरदान प्राप्त कर आगामी जन्म में शिखण्डी के रूप में अवतीर्ण होकर अर्जुन के द्वारा भीष्म को जर्जर कराकर बदला लिया।
★ भीष्म इस वास्तविकता से अवगत थे।

भीष्म (देवव्रत) को अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य का विवाह करना था। इसके लिए वे क्षत्रिय-कन्याओं की खोज में थे। इसी बीच काशिराज की कन्याओं के स्वयंवर की खबर मिली। ठीक समय पर वे काशिराज के यहाँ पहुँचे और समवेत राजमण्डली को परास्त करके उन कन्याओं को लाकर उन्होंने माता सत्यवती के सुपुर्द कर दिया। कन्याओं का नाम अम्बा, अम्बिका, और अम्बालिका था। अम्बा सबसे बड़ी थी। उसने शाल्व को वरमाला पहनाने का निश्चय कर रखा था। हस्तिनापुर में पहुँचकर उसने अपना उक्त अभिप्राय प्रकट करके कहा कि मैं दूसरे को हृदय से वरण कर चुकी हूँ, अतएव विचित्रवीर्य के साथ मेरा विवाह करना अनुचित है।

भीष्म और सत्यवती ने उदारता दिखलाकर अम्बा को शाल्व के पास जाने की आज्ञा दे दी। किंतु जब वह शाल्व के पास पहुँची तो उसने इसे ग्रहण करना स्वीकार नहीं किया। कह दिया कि तुम तो भीष्म के यहाँ से आई हो तुममें कुछ दोष देखकर ही उन्होंने तुम्हें त्याग दिया है। अम्बा ने शाल्व को सच्चा हाल समझाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु कुछ फल नहीं हुआ। बेचारी की ज़िन्दगी बरबाद हो गई। अब वह भीष्म के यहाँ भी न जा सकती थी। जाती तो वे लोग कहते कि दूसरे पुरुष पर आसक्तरमणी को अपनी गृहिणी बनाने का दायित्व कौन ले। अंत में वह बड़ी दुखी होकर वन में ऋषियों के पास पहुँची। उन लोगों ने सब हाल सुनकर उसको ढाँढ़स बँधाया। एक दिन उसकी भेंट उसके नाना राजर्षि होत्रवाहन से हो गई। उनकी सलाह मानकर अम्बा महात्मा परशुराम जी की शरण में गई। उन्होंने अपने मित्र की नातिन के दुख से दुखी होकर भीष्म के साथ घोर युद्ध किया। इस युद्ध में भीष्म ने बड़ा पराक्रम प्रकट किया। परशुराम जी से उन्होंने धनुर्वेद सीखा इस नाते वे परशुराम जी के शिष्य थे। इस संबंध का निर्वाह उन्होंने उचित रीति से किया। युद्ध आरम्भ करने से पहले उन्होंने गुरु के चरणों की वन्दना करके उनसे युद्ध के लिए अनुमति ली और आशीर्वाद प्राप्त किया तथा क्षत्रिय-धर्म की ओर देखकर डटकर युद्ध किया। बड़ा विकट संग्राम हुआ। कोई किसी से हार नहीं मानता था। अंत में अपने पितरों की आज्ञा मानकर परशुराम को युद्ध बन्द करना पड़ा। यह विजय पाकर भी भीष्म ने किसी प्रकार का अभिमान प्रकट न करके गुरु की वन्दना ही की थी।

अब अम्बा ने परशुराम जी के उपदेश से अपनी मनोरथ-सिद्धि के लिए, महादेव जी की आराधना करना आरम्भ कर दिया। आशुतोष ने प्रसन्न होकर उसे भीष्म के वध करने का वरदान दे दिया। बस, अम्बा ने एक चिता बनाकर अपनी देह को भस्म कर दिया। इसके अनंतर वह राजा द्रुपद के यहाँ कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। उसका नाम 'शिखण्डिनी' था। आगे चलकर वह 'स्थूणाकर्ण' नामक यक्ष से पुरुषत्व का विनिमय करके शिखण्डी नाम से प्रसिद्ध हुई। अंत में इसी को युद्ध में भीष्म का वध करने में सफलता मिली।

अम्बा ने अपने हाथों आपत्ति मोल ली। यदि वह शाल्व की चिंता छोड़ देती तो कौरवों के रनिवास से उसे कौन हटा सकता था। पर कष्ट यहाँ भी रहता। उसकी दोनों बहनों पर जैसी बीती वह प्रकट ही है। भीष्म को अपनी विपत्ति का मूल कारण मानकर वह उन्हें अपना शत्रु समझती थी। उनसे बदला लेने के लिए उससे जितने उपाय बन पड़े, उन सबको उसने किया। इतने बड़े महात्मा परशुराम जी तक को इस झगड़े में घसीटा और सफलता न पाने पर भी उसने आशा नहीं छोड़ी। कठोर तपस्या द्वारा पार्वती पति को प्रसन्न कर उनसे वरदान माँगा। वह चाहती तो भीष्म का वध की क्षमता माँगने के बदले अपने कल्याण का साधन कर लेती, किंतु उसे तो बदला लेना था। इसके आगे उसकी दृष्टि में मोक्ष का भी कुछ महत्त्व न था। इसी को लगन कहते हैं। जिसमें ऐसी लगन होती वह सब कुछ कर लेता है। इतनी तपस्या करने पर भी अम्बा को दूसरे जन्म में पुरुष-शरीर नहीं मिला। पहले कन्या होकर तब विनिमय में पुरुष-शरीर मिला।


अम्बालिका
अम्बालिका काशीराज इन्द्रद्युम्न की कनिष्ठा कन्या थी।

★ सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य इनके पति थे और पांडु इनके पुत्र।
★ पांडु की उत्पत्ति व्यास के द्वारा मानी जाती है।

अम्बिका
अम्बिका महाभारत में काशी के महाराज इन्द्रद्युम्न की पुत्री थी। इसका विवाह शांतनु और माता सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के साथ सम्पन्न हुआ था। अम्बा और अम्बालिका, ये दोनों अम्बिका की सगी बहिनें थीं।

गंगापुत्र भीष्म ने विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजा बना दिया था। उसे राज्य सौंपने के बाद भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई। उसी समय काशीराज की तीन कन्याओं, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। इस स्वयंवर में हस्तिनापुर को निमंत्रण नहीं भेजा गया था। इस अपमान को भीष्म सहन नहीं कर सकते थे। उन्होंने स्वयंवर में जाकर अकेले ही सभी राजाओं को हरा दिया और तीनों कन्याओं का हरण करके हस्तिनापुर ले आये। बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व को प्रेम करती है। यह सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवाया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।

विवाह के कुछ समय बाद ही विचित्रवीर्य की मृत्यु हो गई। इस पर माता सत्यवती हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी को लेकर चिंतित रहने लगीं। माता सत्यवती की भावी उत्तराधिकारी की कामना और उनके कहने पर एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज़ से डरकर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, 'अम्बिका का पुत्र बड़ा ही तेजस्वी होगा, किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा। सत्यवती को यह सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ। अम्बिका का यही पुत्र आगे चलकर हस्तिनापुर का राजा धृतराष्ट्र बना।