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पर-कटी पाखी - 6. पुलिस की तफ्शीस

6. पुलिस की तफ्शीस

-आनन्द विश्वास

माननीय न्यायालय के आदेश का तत्काल असर से पालन किया गया और सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की मौत की गुत्थी को सुलझाने और अपराधियों को पकड़कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे तक पहुँचाने की महत्व-पूर्ण जबाबदारी पुलिस-विभाग के सीनियर कर्तव्य-निष्ठ पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को सौंपी गई और साथ ही विभाग द्वारा उन्हें हर प्रकार की सुविधा, सहायता और सहयोग भी प्रदान किया गया।

घटना-स्थल से प्राप्त सभी आवश्यक सामिग्री,तथ्य, सबूत, फ्लॉरेंसिक साइन्स लेबोरेटरी से प्राप्त फिंगर-प्रिंटस्की रिपोर्ट आदि का अध्ययन करने के बाद पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने यह उचित समझा कि यदि किसी प्रकारसे बाइक-चालक के पास तक पहुँचा जा सके तो उसके माध्यम से कार-चालक तक पहुँचने में आसानी रहेगी और काफी हद तक उसे उसके मिशन में सफलता प्राप्त हो सकेगी।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर का ऐसा अनुमान था कि शायद उसे गेट नम्बर तीन के आस-पास से बाइक-चालक का या फिर कार-चालक का और भी कोई सुराग, सबूत या फिर अता-पता मिल सकता है। क्योंकि गेट नम्बर तीन से ही तो निकलकर कार-चालक भागा था और उसे अपनी बाइक पर बैठाकर ले जाने वाले बाइक-चालक ने भी तो वहीं पर अपना काफी समय बिताया था। यही सोचकर पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने गेट नम्बर तीन पर पहुँच कर वहाँ का मुआइना करना उचित समझा।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने गेट पर जाकर देखा कि गेट के पास ही एक चाय की दुकान है और उसके बगल में ही एक छोटी-सी एक पान की दुकान भी है। और उसके आगे सूनसान सड़क जो आगे जाकर हाई-वे की ओर चली जाती है।

एकान्त, सूनसान और हाई-वे से जुड़ी सड़क को ध्यान में रखते हुये ही, शायद इस गेट का चयन किया गया हो, उन शातिर पेशेवर अपराधी तत्वों के द्वारा।

चाय की दुकान वाले आदमी से तो कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी, क्योंकि घटना के समय वह वहाँ पर मौजूद भी नहीं था और ना ही उसकी दुकान उस समय पर खुली ही हुई थी।

पर हाँ, पान की दुकान वाले आदमी ने बताया कि सुबह-सुबह लगभग छः, सवा छः बजे का समय रहा होगा, मॉर्निंग-वॉक पर आने-जाने वाले कुछ लोग आ-जा रहे थे। सुबह का समय होने के कारण भीड़-भाड़ भी अधिक नहीं थी। बस, इक्का-दुक्का लोग ही वहाँ पर मौजूद थे।

एक आदमी जिसके पास बाइक थी, उसने अपनी बाइक को मेरी दुकान के सामने ही खड़ा कर दिया था और किसी के आने का इन्तजार कर रहा था। उसने मेरी दुकान से एक पान भी बनवाया था और एक सिगरेट भी ली थी। उस बाइक वाले आदमी ने मुझे सौ रुपये का नोट दिया था जिसमें से सिगरेट और पान के पैसे काटकर बाकी के पैसे मैने उसे वापस कर दिये थे।

जब मेंने उस नोट को ध्यान से देखा तो उसका नम्बर 786 से शुरू होता था इसलिये उस नोट को मैंने परवरदिगार अल्हा-ताला की मेहरबानी समझकर अपने पॉकेट में सम्हालकर रख लिया। उस दिन वह मेरा पहला ही ग्राहक था। मैं अपनी दुकान खोल ही पाया था तभी उसने मेरी दुकान पर आकर मुझसे एक पान लगाने को कहा था और साथ ही सिगरेट भी माँगी थी। उस दिन वह मेरी पहली बौनी थी।

 “क्या वह नोट अभी भी तुम्हारे पास में ही है।” पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने पान की दुकान वाले आदमी से बड़ी ही आतुरता के साथ पूछा।

“हाँ, मेरे पॉकेट में ही रखा है वह सौ रुपये का नोट। अगर यह नोट आपके किसी काम आ सके तो मुझे वह नोट आपको देने में बहुत ही खुशी होगी। शायद अल्हा-ताला की ऐसी ही मरज़ी हो।” यह कहते हुये उस पान की दुकान वाले आदमी ने तुरन्त ही अपने पॉकेट से वह सौ रुपये का नोट निकाल कर पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर की ओर बढ़ा दिया।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने सौ रुपये के उस नोट को लेकर बड़ी सावधानी-पूर्वक प्लास्टिक की थैली में रखवा दिया और फिर पान की दुकान वाले आदमी को आश्वासन देते हुये कहा, “फिलहाल यह नोट शायद हमारे कुछ काम आ सके, इसे हम अभी अपने पास में ही रखते हैं और दो-चार दिनों के बाद यही नोट तुम्हें वापस कर दिया जायेगा। तुम्हारा यह नोट मेरे पास पूर्ण-रूप से सुरक्षित ही रहेगा।”

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने बाइक वाले आदमी के विषय में पान की दुकान वाले आदमी से जब और अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाही तो पान की दुकान वाले आदमी ने बताया कि उस बाइक वाले आदमी की उम्र लगभग तीस-बत्तीस साल की रही होगी, उसके बाल काले घुँघराले थे और उसके मूँछें भी थीं। अगर वह आदमी अभी भी मेरे सामने आ जाये तो मैं उसे तुरन्त ही पहचान भी सकता हूँ।

 पान की दुकान वाले आदमी ने पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को बताया कि उसकी बाइक का नम्बर1617 था और वह नम्बर इसी शहर का ही था। उसकी बाइक में साइड की डिग्गी स्टील की थी और लैफ्ट साइड का पीछे का साइड-इन्डीकेटर टूटा हुआ था। मैं उसकी बाइक को भी पहचान सकता हूँ।

पान की दुकान वाला आदमी आश्वस्त था और उसे इस बात की खुशी थी कि वह किसी नेक काम में पुलिस को अपना सहयोग दे पा रहा था।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के लिये बाइक का नम्बर एक ऐसी कड़ी थी जिसके माध्यम से बाइक-चालक तक आसानी से पहुँचा जा सकता थाऔर हुआ भी ऐसा ही। पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने आर.टी.ओ. के ऑफिस से सम्पर्क करके बाइक-चालक के घर का पता चला लिया।

 पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने पुलिस-फोर्स को अपने साथ में ले जाकर बाइक वाले आदमी को उसके घर पर ही धर दबोचा। उसे निकल कर भागने का कोई भी मौका न मिल सका। बाइक भी वहीं खड़ी हुई थी। उसका वही नम्बर था जो कि पान की दुकान वाले आदमी ने बताया था।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर की दूर-दर्शिता, कार्य-शैली और पान की दुकान वाले आदमी के सहयोग से बाइक-चालक को पकड़ा जा सका। पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर की यह पहली सफलता थी।

पुलिस-डॉग्स्, स्मेंलिंग-प्रोसिस और फिंगर-प्रन्टस् की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी। अतः पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने पान की दुकान वाले आदमी से लिया हुआ 786 सीरीज़ का वह सौ रुपये का नोट, उसे सधन्यवाद वापस कर दिया। जिसे पाकर पान की दुकान वाला आदमी बहुत खुश हुआ और फिर उस नोट को उसने अपने पॉकेट में सम्हालकर रख लिया।

पान की दुकान वाले आदमी की शनाख्त और अन्य पुख्ता सबूतों के आधार पर बाइक-चालक को अरैस्ट कर लिया गया। पहले तो बाइक-चालक ने अनजान बनकर कुछ भी न जानने का नाटक किया, पर पान की दुकान वाले आदमी को देखते ही उसे समझने में देर न लगी।

फिर भी कार-चालक के विषय में कुछ भी बताने में पहले तो वह आना-कानी करने लगा और तरह-तरह के बहाने बनाने लगा। पर जब पुलिस ने अपने ढ़ग से पूछा, तो पोपट की तरह से सब कुछ बताता चला गया और उसने कार-चालक का घर का पता और मोबाइल नम्बर भी बता दिया।

कार-चालक के घर का पता और मोबाइल नम्बर पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को मिल गया, पर अब उनके सामने दो ही रास्ते थे मुख्य अपराधी कार-चालक तक पहुँचने के।

एक तो कार-चालक के घर पर ही दबिश की जाय और उसे पकड़ लिया जाय। पर यदि वह घर पर नहीं मिला तो उसे सब कुछ पता चल जायेगा और फिर उसे भागने का मौका और समय मिल जायेगा। फिर उसे पकड़ने में अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है और मुश्किल भी बढ़ सकती है।

दूसरा यह कि बाइक-चालक के द्वारा उसी के मोबाइल फोन से कार-चालक को, किसी आवश्यक कार्य के लिये या कोई अन्य सन्देश देने के बहाने से किसी निश्चित स्थान पर बुलवाया जाय और वहाँ पर उसे अरेस्ट कर लिया जाय।

यह बात पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के सहयोगियों को भी उचित लगी और यह आसान भी थी। पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को भी यही रास्ता अधिक उचित लगा।

अतः बाइक-चालक को स्पष्ट चेतावनीदी गई और कहा गया कि वह किसी भी प्रकार की कोई होशियारी बताने का प्रयास न करे और कार-चालक को अमुख स्थान पर बुलाने के लिये फोन करे।

 साथ ही पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने बाइक-चालक को यह भी समझाया कि तुमने कोई मर्डर या अपराध नहीं किया है और ना ही तुम कोई अपराधी ही हो। यदि तुम पुलिस को सहयोग करोगे तो तुम्हें कम से कम सजा होगी या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तुम्हें छोड़ ही दिया जाय।

पता नहीं बाइक-चालक के मन में क्या हुआ होगा, ये तो वो ही जाने, पर कुछ पल सोचने के बाद वह सहयोग देने के लिये तैयार हो गया और उसने कार-चालक के अत्यन्त गोपनीय स्थान का पता पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को बता दिया, जहाँ से कि कार-चालक इस प्रकार की सभी गतिविधियों का संचालन किया करता था। और वह समय भी बता दिया, जिस समय पर वह वहाँ होता ही था।

फोन करके बुलाने के लिये उसने साफ मना कर दिया और कहा कि ऐसा करने पर वह नहीं ही आयेगा। क्योंकि उसे मेरे पकड़े जाने की सूचना निश्चत रूप से मिल चुकी होगी। अतः ऐसा करना उचित भी नहीं रहेगा।

बाइक-चालक के द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने पुलिस-फोर्स के साथ बताये गये स्थान पर बड़ी सावधानी और कुशलता से छापा मारा।

कार-चालक उस समय वहाँ पर मौजूद ही था। बड़ी आसानी से कार-चालक को पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया। कार-चालक का मोबाइल फोन, अन्य दो मोबाइल फोन, उसकी पर्सनल-डायरी और अनेक कागज़ात भी वहाँ से बरामद कर लिये गये। पुलिस ने उस स्थान को सील करके अपने कब्जे में ले लिया।

पुलिस की प्रारम्भिक पूछतास के दौरान कार-चालक ने बताया कि कार के ब्रेक फेल हो जाने के कारण ही वह गाड़ी से कन्ट्रोल गुमा बैठा था और कार का ऐक्सीडेन्ट हो गया। पिटने के डर की वजह से ही वह वहाँ से भाग निकला था। पर जब उससे पूछा गया कि तुमने ऐक्सीडेन्ट के होने की सूचना पुलिस-थाने में  क्यों नहीं दी, तो वह निरुत्तर हो गया।

साथ ही कार की आर.सी. बुक तथा अन्य दस्तावेज़ भी वह प्रस्तुत नहीं कर सका। क्या तुम इस कार के ड्रायवर हो और इस कार का मालिक कौन है। तुम कहाँ काम करते हो इत्यादि अनेक प्रश्नों के उत्तर वह नहीं दे सका था या नहीं देना चाहता था। साथ ही अनेक बातों को वह छुपाने का प्रयास भी कर रहा था।

उसके द्वारा दिये गये उत्तरों से पुलिस सन्तुष्ट नहीं थी और वह पुलिस को पूछतास में सहयोग भी नही दे रहा था वल्कि इधर-उधर की तर्क-हीन, अनर्गल बातें करके पुलिस को गुमराह करने का प्रयास कर रहा था। पहले तो दोनों से अलग-अलग कुछ प्रश्न पूछे गये फिर दोनों को एक साथ बैठा कर प्रश्न पूछे गये। अनेक प्रश्नों में विरोधाभास पाया गया।

अतः पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने कोर्ट से पुलिस-रिमाण्ड लेना ही उचित समझा। पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के द्वारा कार-चालक के ऊपर *हिट एण्ड रन* और बाइक-चालक के ऊपर इस अपराध में सहयोग देने के लिये भिन्न-भिन्न धाराओं के अन्तर्गत एफ.आई.आर. दाखिल कर दी गई।

इधर दूसरी ओर कार-चालक और बाइक-चालक की ओर से शहर के एक नामी वकील ने केस की पैरवी करना स्वीकार कर लिया। जो कि अपने आप में आश्चर्य का विषय था।

दूसरे दिन कार-चालक और बाइक-चालक को पुलिस के  लॉक-अप में से कोर्ट में ले जाया गया। जहाँ पुलिस ने माननीय न्यायालय से दस दिन की पुलिस-रिमाण्ड की मंजूरी माँगी। साथ ही कार-चालक और बाइक-चालक की ओर से, उनके वकील द्वारा अदालत में जमानत की अर्जी पेश कीगई।

कार-चालक और बाइक-चालक की जमानत की अर्जी को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया और पुलिस द्वारा माँगी गई पुलिस-रिमाण्ड की अर्जी को स्वीकार करते हुये पाँच दिन की पुलिस-रिमाण्ड की अर्जी को मंजूर कर दिया।

साथ ही पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने न्यायालय से कार-चालक के डीएनए टैस्ट कराने के लिये निवेदन किया। जिसे अदालत ने स्वीकार कर डीएनए टैस्ट कराने की अनुमति दे दी।

 पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने यह कदम बड़ा सोच समझ कर उठाया था क्योंकि वह जानती थी कि इस डीएनए टैस्ट की रिपोर्ट और वह रिपोर्ट जब कि कार-चालक, डॉक्टर गौरांग पटेल के हाथ को दाँतों से काट कर भागा था, हाथ के उस भाग के डीएनए के सैम्पिल की रिपोर्ट से यदि मेल खा जाती है। यानी रिपोर्ट पॉज़िटिव आती है तो हत्यारे कार-चालक को कोई भी ताकत सजा दिलाने से नहीं बचा सकेगी।

पुलिस-रिमाण्ड की मंजूरी लेने के बाद कार-चालक और बाइक-चालक का मेडीकल टेस्ट कराया गया और फिर पुलिस दोनों को पूछतास के लिये अपनी कस्टडी में ले गई।

कार-चालक के पास अत्यन्त आधुनिक कीमती मोबाइल फोन था जिसमें होने वाली बातचीत को टेप करने का सॉफ्टवेयर डाउनलोड किया हुआ था। अक्सर लोग इस प्रकार का सॉफ्टवेयर अपने फोन में रखते ही हैं। इस मोबाइल को कार-चालक ने छुपाने का भी प्रयास किया और वह इस फोन को पुलिस को देना नहीं चाहता था। पर पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर की तत्परता और कुशलता के कारण वह ऐसा न कर सका और मोबाइल फोन पुलिस के हाथों में आ गया।

कार-चालक और बाइक-चालक, दोनों के मोबाइल फोनस् को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया। पुलिस-विभाग द्वारा दोनों के मोबाइल फोनस् के कॉल डिटेल्स की जाँच करने पर अनेक चौंका देने वाली जानकारियाँ सामने आईं।

हैरत की बात तो ये थी कि अधिकतर कॉल्स् इलाके के दबंग नेता लाखन सिंह के व्यक्तिगत मोबाइल फोन के नम्बर के लिये की गईं थीं, कुछ उनके पी.ए. के मोबाइल नम्बर के लिये थीं और कुछ उनके साले तेजपाल सिंह के लिये और बाकी कार-चालक के मित्र और अन्य रिस्तेदारों की थीं।

और इन सभी नम्बरस् पर इन-कमिंग और ऑउट-गोइंग दोनों के ही कॉल-डिटेल्स मौजूद थे। इतना ही नहीं बातचीत का समय-काल भी काफी-काफी समय के थे। बातचीत के टेप को भी आसानी से सुना भी जा सकता था।

इसी मोबाइल की सहायता से पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को, लाखन सिंह और कार-चालक के बीच के सम्बन्ध, उन दोनों के बीच होने वाली बातचीत के फुटेज़ प्राप्त हो गये थे। जो सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की हत्या करवाने के प्रमाण के रूप में पर्याप्त थे। इसमें कुछ जगह पर साले तेजपाल सिंह का भी जिक्र मिला।

कॉल-डिटेल्स से एक बात तो स्पष्ट थी कि कार-चालक का सम्बन्ध दबंग नेता लाखन सिंह और उनके सगे साले तेजपाल सिंह से भी था। शायद कार-चालक इनके यहाँ काम करता था और नेता जी का भरोसे का आदमी था।

सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की मौत की गुत्थी को सुलझाने की दिशा में पुलिस को यह एक बहुत बड़ी सफलता मिली थी।

साथ ही लाखन सिंह, उनके सगे साले तेजपाल सिंह के खिलाफ सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की हत्या करवाने का एक बहुत बडा ठोस सबूत भी पुलिस के हाथों लग चुका था। मोबाइल फोन के टेप में लाखन सिंह और कार-चालक के बीच होने वाले सम्वादों को स्पष्ट सुना जा सकता था। साथ ही पैसे के लेन-देन के सम्बन्ध में भी अनेक सम्वाद पाये गये।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने कार-चालक के मोबाइल फोन से सभी आवश्यक कॉल्स को और लाखन सिंह और कार-चालक के बीच होने वाली बातचीत के फुटेज़ को लैपटॉप में सेव कर लिया और फिर उसे पैनड्राइव में स्टोर करके सुरक्षित स्थान पर रख लिया। ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसका उपयोग सबूतों के रूप में किया जा सके।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने नेता लाखन सिंह, उसके सगे साले तेजपाल सिंह और कार-चालक की वॉइस टेस्टिंग कराना उचित समझा। जो सटीक प्रमाण के लिये अत्यन्त आवश्यक था।

चूँकि नेता लाखन सिंह जी वर्तमान सांसद थे अतः नेता जी से पूछतास करने की अनुमति प्राप्त करने के लिये प्रशासन तथा विभाग से निवेदन किया गया। जिसे कुछ समय के बाद प्रशासन और विभाग की ओर से अनुमति प्राप्त हो गई। अतः जाँच प्रक्रिया की सारी रुकावटें भी दूर हो गईं थीं।

कार-चालक और बाइक-चालक के द्वारा पुलिस थाने में लिखाये गये बयानों में उन्होंने अपने-अपने अपराधों को स्वीकार कर लिया था। साथ ही दबंग नेता लाखन सिंह तथा उनके साले तेजपाल सिंह से परिचय की बात भी उन्होंने कबूल कर ली थी।

इतना ही नहीं, उसने बताया कि लाखन सिंह के कहने पर ही उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया गया था। और इसके ऐवज़ में उन्हें एक बहुत बड़ी रकम भी दी गई थी। जिसमें कुछ पैसा पहले ही मिल गया था और कुछ पैसा मिलना बाकी था।

अतः पुलिस पूरी तरह आश्वस्त थी, अपनी सफलता पर और अपनी कार्य-प्रणाली पर।

पुलिस-रिमाण्ड के पाँच दिन पूरा होने के बाद जब पुलिस कार-चालक और बाइक-चालक को लेकर कोर्ट-परिसर में पहुँचीं तो नियमानुसार कुछ देर के लिये पुलिस के संरक्षण में कार-चालक और बाइक-चालक को अपने वकील से मिलने का समय दिया गया। जो कि कानूनी प्रक्रिया का ही एक भाग होती है।

अपने वकील से मिलने के बाद कार-चालक और बाइक-चालक दोनों ने ही न्यायाधीश के समक्ष अपने बयानों को बदल दिया और उन्होंने इस घटना से जुड़े होने से साफ इन्कार कर दिया। 

उनका कहना था कि पुलिस हमें जान-बूझ कर फँसा रही है, हमें तो इस घटना से या इस एक्सीडेन्ट से कुछ भी लेना-देना नहीं है और ना ही हम सिविल-लाइन्स की ओर कभी गये ही थे। ऐसे बयान देने के लिये पुलिस ने हमें मजबूर किया गया था और हमें तरह-तरह की यातनायें भी दी गईं थी।

कार-चालक और बाइक-चालक द्वारा कोर्ट में दिये गये बयानों से तो ऐसा लग रहा था कि ये सब कुछ वे नहीं बोल रहे थे, वे तो मात्र शतरंज के मोहरे ही थे। उनके पीछे तो कोई और ही शक्ति थीजिसके आदेश का वे पालन कर रहे थेया फिर उनकी कोई मजबूरी भी हो सकती थी।

कार-चालक और बाइक-चालक के द्वारा न्यायाधीश के समक्ष दिये गये बयानों से तो पुलिस और पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर सकते में ही आ गये थे। अब तो उसके सामने एक नया चेलैंज ही आ गया था। पर वह उसके लिये भी तैयार थी।

यूँ तो ऐसा अक्सर होता ही रहता है। ये कोई नई बात तो थी नहीं। कोई भी अपराधी आसानी से तो अपना अपराध कब स्वीकार करता है। वह तो हर प्रकार से अपने आप को निर्दोष साबित करने का प्रयास करता ही है।

पर अपराध और अपराधी अपने पीछे सबूत तो जरूर ही छोड़ जाता है और वे सबूत ही उसे अपराधी साबित करने के लिये पर्याप्त होते हैं।

कार-चालक और बाइक-चालक के वकील द्वारा दोनों की जमानत की अर्जी कोर्ट में दी गई जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने सांसद लाखन सिंह, कार-चालक और उनके साले तेजपाल सिंह की वॉइस टैस्टिंग कराने की अनुमति के लिये माननीय कोर्ट से निवेदन किया। जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर वॉइस टैस्टिंग कराकर, रिपोर्ट को अगली तारीख तक प्रस्तुत करने के आदेश जारी कर दिये।

पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के द्वारा कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किये गये प्रमाण, मोबाइल फोनस् के कॉल डिटेल्स और गवाहों के बयान आदि को ध्यान में रखते हुये दोनों आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और केस की अगली सुनवाई की तारीख दे दी।

एक सच को, दिन के उजाले-से साफ सच को, अनेकों गवाहों और सबूतों के बीच से, वकीलों की ज़िरह और दलीलों के बीच से, कानून की ढ़ेर सारी मोटी-मोटी किताबों के पन्नों के बीच से, कानून की भिन्न-भिन्न धाराओं और पेचीदगियों के बीच से होकर गुजरना होता है।

तब कहीं जाकर कानून की प्रक्रिया पूरी हो पाती है। और इस प्रक्रिया में प्रत्येक पक्ष को ऐढ़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ता है, अपनी बात को प्रमाणित करने के लिये, अपनी बात को को सच्चा सिद्ध करने के लिये। तब कहीं जाकर न्याय की प्राप्ति हो पाती है न्यायालय से, न्याय के पावन मन्दिर से।

सबूतों के नाम पर ढ़ेर सारे सबूत थे पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के पास।फ्लॉरेंसिक साइन्स लेबोरेटरी की रिपोर्ट थी, कार से प्राप्त कार-चालक की फिंगर-प्रिन्टस् की रिपोर्ट थी, कार-चालक और डॉक्टर गौरांग पटेल के हाथ से प्राप्त डी.एन.ए. टैस्ट की रिपोर्ट थी, मोबाइल फोन के कॉल-डिटेल्स्, वॉइस टैस्टिंग की रिपोर्ट भी थी पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के पास।

लाखन सिंह और कार-चालक दोनों के बीच होने वाली बातचीत के टेप, अपने आप में काफी थे हत्यारों को सजा दिलाने के लिये।इतना ही नहीं गवाह और प्रत्यक्षदर्शियों की भी कोई कमी नहीं थी पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के पास। सब कुछ तो था पर्याप्त मात्रा में, पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के पास।और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर के पास एक बुलन्द हौसला था, इच्छा-शक्ति थी और था कानून, न्याय और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित-भाव।

और दूसरी ओर कुछ भी तो नहीं था इन अकाट्य तथ्यों को झूँठा साबित कर पाने के लिये। आखिर सत्य के सामने झूँठ कब तक और कितना टिक सकता था।

फ्लॉरेंसिक साइन्स लेबोरेटरी के निष्णातों के द्वारा कार से प्राप्त कार-चालक की फिंगर-प्रिन्टस् की रिपोर्ट को कैसे नकारा जा सकता था, कार-चालक द्वारा।

डॉक्टर गौरांग पटेल के हाथ से प्राप्त डी.एन.ए. टैस्ट की रिपोर्ट और कार-चालक के डी.एन.ए. टैस्ट की पॉज़िटिव रिपोर्ट को कैसे नकारा जा सकता था, कार-चालक के द्वारा।

मोबाइल फोन के कॉल-डिटेल्स् और वॉइस टैस्टिंग की पॉज़िटिव रिपोर्ट को कैसे नकारा जा सकता था, दबंग नेता लाखन सिंह के द्वारा।

दबंग नेता लाखन सिंह, अपने और कार-चालक के बीच होने वाली बातचीत के टेप को कैसे झुठला सकते थे। जब कि वॉइस टैस्टिंग की रिपोर्ट पॉज़िटिव थी।

सब कुछ तो विपरीत था दबंग नेता लाखन सिंह के, कार-चालक के और उनके सगे साले तेजपाल सिंह के।

कुछ भी तो कहते नहीं बन सका था दबंग नेता लाखन सिंह को, कार-चालक को, बाइक-चालक को और उनके सगे साले तेजपाल सिंह को। सत्य के सामने झूँठ का आड़म्बर तार-तार हो गया था। भीगी बिल्ली बने खड़े थे दबंग नेता लाखन सिंह, उसके सालेतेजपाल सिंह और कार-चालक ,कानून के कटघरे में।

हर सबूत, हर गबाह और हर रिपोर्ट, सभी तो चींख-चींख कर कह रहे थे कि...

ये ही तो हैं ईमानदार सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट के हत्यारे।

ये ही तो हैं निष्ठावान सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट की मौत के जिम्बेदार।

ये ही तो हैं, वे हत्यारे, जिन्हें या तो जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिये या फिर फाँसी के फन्दे पर।

और हुआ भी कुछ ऐसा ही। सभी सबूतों, कॉल-डिटेल्स्, फिंगर-प्रिन्टस् की रिपोर्ट और सभी गबाहों के बयानों के आधार पर माननीय न्यायालय ने दबंग नेता लाखन सिंह, कार-चालक और उसके सगे साले तेजपाल सिंह को सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट की मौत के जिम्बेदार माना गया।

माननीय न्यायालय द्वारा भिन्न-भिन्न धाराओं के अन्तर्गत कार-चालक को सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट की इरादतन ऐक्सीडेन्ट करके हत्या करने का दोषी मानते हुये उसे सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुना दी। और बाइक-चालक को हत्या करने में सहयोगी मानते हुये दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।

साथ ही लाखन सिंह और उसके साले तेजपाल सिंह को सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट की हत्या के लिये प्रेरित करने का दोषी मानते हुये सश्रम सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

यूँ तो लाखन सिंह और उसके साले तेजपाल सिंह ने हाई-कोर्ट में और फिर सुप्रिम-कोर्ट में भी गुहार लगाई पर वहाँ भी निचली अदालत के निर्णय को ही मान्य रखा गय़ा।

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