Kalavti - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

कलावती - भाग 2

पुजारी यानी की नकली ड्राइवर के बिलकुल बगल में तांत्रिक सिंघाड़ा खड़ा था जिसे देखकर वो थर थर कांपने लग गया और बदन जवाब देने लग गया था।
सिंघाड़ा जिसकी उम्र लगभग दो सो साल की होगी।
बेहद ही मोटा और गठीला शरीर, बड़े बड़े जटाधारी लंबे बाल, पूरे शरीर पर राख लेपी हुई थी जिसके कारण उसका पूरा शरीर राख से सफ़ेद नज़र आ रहा था।
बड़ी बड़ी ढाड़ी मूंछ और बेहद ही डरावनी सफेद आंखें जो की किसी को भी डरा दे,
हाथों और पैरों के बड़े बड़े नाखून और काला लंगोट पहने हुए था।
उसे देखकर पुजारी क्या? अगर कोई और होता तो वो भी डर ही जाता।
पुजारी थर थर कांप रहा था, डर के कारण उसने अपनी पेंट में ही काम कर दिया था, दिल उसका किसी ट्रेन की स्पीड से धड़क रहा था।
पुजारी डरते हुए पीछे दीवार से जा लगा।
सिंघाड़ा बस गुस्से से उसे ही घूरे जा रहा था।
अगले ही पल सिंघाड़ा बिलकुल उसके पास में आ गया और बेहद ही डरावनी और मोटी आवाज में बोला ,"कौन है तूं? और क्या लेने आया है जहां?"
ये सुनकर पुजारी थर थर कांपने लग गया और बदन उसका जैसे सूखकर कांटा ही हो गया था।
पुजारी के मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी जुबान को लकवा ही मार गया हो।
सिंघाड़ा जोर से चिलाते हुए बोला ,"मैने पूछा कौन है तूं? क्या लेने आया है जहां? सुनाई नहीं देता है क्या?"
ये सुनकर पुजारी तो बुरी तरह डर गया।
इतने में बिराज भागकर वहां आया और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला ,"गुरुदेव ये.... ये मेरा ही आदमी है। ड्राइवर है ये।"
ये सुनकर सिंघाड़ा थोड़ा सा दूर हट गया और अंदर जाने लगा।
विराज पुजारी को घूरते हुए बोला ,"ड्राइवर के बच्चे मैने तुझसे कहा था ना की बाहर ही इंतजार करना मेरा? फिर अंदर क्या लेने के लिए आया है? अभी मरवा देता ना मुझे?"
इतना कहकर विराज गुस्से से सिंघाड़ा के पीछे चला गया।
पुजारी भी डरते हुए धीरे धीरे दबे पांव उनके पीछे चलने लगा।
काफ़ी आगे जाने के बाद में पुजारी ने देखा की गुफ़ा सच में बेहद ही बड़ी थी और चौड़ी भी।
अंदर कई और तांत्रिक भी बैठे हुए थे।
एक और आग जल रही थी और हर जगह कुछ किताबें , कहीं खून तो कहीं खोपड़ियां बिखरी हुई थी।
हर और काली शक्तियों के मंत्र लिखे हुए थे।
सिंघाड़ा ने एक खोपड़ी उठाई और उसे आग में दे मारा और फिर गुस्से से चिलाया ,"वो जो लड़का आया था वो शिव मंदिर से आया था। वो कौन था? इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं लेकिन हां वो कलावती को लेने ही आया था। समझ में आया।"
विराज अपने दोनों हाथ जोड़कर डरते हुए बोला ,"गुरुदेव उसे पकड़ने का कोई तो रास्ता होगा ना?"
सिंघाड़ा गुस्से से बोला ,"डर मत। जो डर गया समझो की वो मर गया। इसलिए डरना बंद कर दे।"
ये सुनकर विराज बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया और अपने डर पर काबू करने की कोशिश करने लग गया।
एक और छिपकर खड़ा पुजारी ये सारी बातें सुन रहा था।
सिंघाड़ा वहीं आग के पास में चक्कर काटते हुए कुछ सोचने लगा और फिर अपनी आंखे बंद करके कुछ मंत्र पढ़ने लगा और थोड़ी देर बाद में अपनी आंखें खोलते हुए बोला ,"उसका गुरु तुम लोगों के साथ में घुस चुका है। वो वेश बदलकर घुसा है। कौन है बस यही पता नहीं चल रहा है?"
ये सुनकर एक और खड़ा पुजारी बुरी तरह डर गया और थर थर कांपने लग गया।
विराज बड़ी बड़ी आंखों से सिंघाड़ा को देखते हुए बोला। ,"कौन है गुरुदेव वो? बताइए ना? मैं अभी उसकी गर्दन पकड़कर आपके सामने ले आऊंगा?"
सिंघाड़ा अपनी आंखें बंद करते हुए बोला ,"शिव उसके साथ है। उसे पकड़ पाना इतना आसान काम नहीं है। वो कौन है इसका भी पता नहीं चल पा रहा है। कोई बात नहीं कब तक बचेगा वो हमसे। मैं जल्द ही उसका सारा पता लगा लूंगा। सिंघाड़ा से कोई नहीं बच सकता है और ना ही कोई सिंघाड़ा को धोखा दे सकता है।"
ये सुनकर विराज अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और वहां से चला गया।
पुजारी भी उसके साथ में वहां से निकल गया।

इधर हवेली के बाहर एक कार आकर रूकी और उसमें से अवनी बाहर निकली और ग्राउंड की और चली गई तभी अचानक से उसे किसी के हाथ अपनी छाती पर महसूस हुए।
ये देखकर अचानक से अवनी घबरा गई और उसने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो अचानक से विराज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला ,"कहां गई थी मेरी प्यारी सी बेबी?"
अवनी अपना मुंह बनाते हुए बोली ,"चलो कम से कम तुम्हें मेरी फिक्र तो है? वरना मुझे तो लगा था की तुम मुझे भूल ही गए हो?"
विराज उसके होठों को चूमते हुए बोला ,"बहुत फिक्र होती है मुझे तुम्हारी और तुमने ये बात भला सोच भी कैसे ली की मुझे तुम्हारी फिक्र नहीं होगी।"
इतना कहकर विराज ने अवनी को अपनी गोदी मे उठा लिया और उसे गार्डन में एक और काउच पर अपनी गोदी में लेकर बैठ गया और उसकी गर्दन को पागलों की तरह चूमते हुए बोला ,"डरो मत कोई नहीं है जहां? हमें देखने वाला। ओके। इसलिए डरते नहीं है बेबी।"
अवनी ने अपनी आंखें बंद कर ली और नशीली आवाज में बोली ,"मैं तुम्हें इतनी ही अच्छी लगती हूं तो शादी कर लो मुझसे?"
विराज उसके होठों पर किस करते हुए बोला ,"मुझे शादी में कोई बिलीव नहीं है। बस तुम ये समझ लो की हमारी शादी हो चुकी है। अब तो तुम हमारे बच्चों के नाम सोचना शुरू कर दो।"
ये सुनकर अवनी की आंखें बड़ी हो गई और वो उसे घूरते हुए बोली ,"ओह ! विराज बाबू जी आप ना प्लीज अपनी लिमिट में रहिए। शादी से पहले आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। लोग क्या सोचेंगे?"
विराज हंसते हुए बोला ,"मुझे लोगों से फर्क नहीं पड़ता है। उन्हें जो कहना है उन्हें वो कहने दो। यू आर माइन। ओके।"
अवनी अपना मुंह बनाते हुए बोली ,"मुझसे अगर शादी कर लोगे तो भला तुम्हारा क्या चला जायेगा?"
विराज हंसते हुए बोला ,"ओके मेरी डार्लिंग। कर लेंगे शादी। मैं पूछ लूंगा घर पर। लेकिन एक बार जहां का काम खत्म हो जाए और हम जहां से चले जाएं फिर ओके।"
अवनी विराज की आंखों में देखते हुए बोली ,"तुम सच कह रहे हो ना?"
विराज उसके माथे पर किस करते हुए बोला ,"मुझ पर यकीन नहीं है?"
अवनी हंसते हुए बोली ,"बिलकुल भी नहीं है।"
विराज उसे घूरते हुए बोला ,"ठीक है मत करो यकीन। तुम्हारी मर्ज़ी है।"
इतना कहकर विराज ने अपना मुंह घुमा लिया।
अवनी उसके गाल पर किस करते हुए बोली ,"अरे ! मजाक कर रही थी तुम तो बुरा मान गए हो?"
इतने में विराज की नज़र एक जगह जाकर टिक गई और उसकी आंखें डर के कारण बड़ी हो गई।।

सतनाम वाहेगुरु।।