The present Sikh sect is the Kshatriya outline books and stories free download online pdf in Hindi

वर्तमान का सिख पंथ ही क्षत्रिय रुपरेखा



क्या आपको मालूम है कि पहला खालसा राज स्थापित करने वाले बाबा बंदा सिंघ बहादर जी राजपूत थे, आधुनिक खालिस्तान मूवमेंट के संस्थापक जगजीत सिंघ चौहान जी राजपूत थे, बब्बर खालसा इंटरनेशनल के जत्थेदार भाई तलविंदर सिंघ परमार राजपूत थे और आज जो खालिस्तान रेफरेंडम चल रहा है इसके सबसे बड़े प्रचारक जिनकी पिछले साल शहादत हुई वो हरप्रीत सिंघ राणा भी राजपूत थे... आपको किसने कहा कि खालिस्तानी राजपूतों से और राजपूत खालिस्तानियों से अलग है? विप्र ने कहा ताकि हमे बाँट कर लड़ा कर वो हम पर राज कर सके... पर अब और नहीं अब हमे हमारी एकता तोड़ने वालों पर कड़ी नजर रखनी होगी... क्षात्र धर्म हमारा है और राज धर्म ही क्षात्र धर्म है। खालसा परिवार क्षत्रियों का आज के समय में शिरोमणि खानदान है और खालसा राज में क्षात्र धर्म का राज है क्युकी खालसा पंथ ही क्षत्रिय धर्म का अपडेटेड वर्जन है जहां क्षत्रियों की परंपराओं को जिवित रखा गया है चाहे वह शस्त्र धारण करना हो, शस्त्र पूजा करना हो, शस्त्र अभ्यास करना हो, पगड़ी सजाना हो, झटका करना हो, शिकार खेलना हो या राज सत्ता पर अपना दावा ठोकना हो... आज गुरमत में ही क्षत्रिय अपने धर्म को जिवित रख पाएँ है जबकी जिन्होंने ब्राह्मण को गुरु बनाया और विप्र की रीत पर चलना स्वीकार किया आज वो अपनी ही परंपराओं से अपने ही धर्म से दूर हो गए। आज हर क्षत्रिय को ये विचारने की जरूरत है कि क्षत्रियों का ये हाल कैसे हुआ... याद रखना एक क्षत्रिय का गुरु सिर्फ क्षत्रिय ही हो सकता है जो क्षत्रिय परंपराओं को क्षत्रिय गुणों को अपने शिष्यों को सिखाये और आज हम सबको जरूरत है कि हम सब मनमत छोड़ गुरमत को अपनाएँ और अपने आप को फिर से मजबूती से खड़ा करें।
जब एक ब्राह्मण ने गुरु महाराज को कहा था की आप तो हिन्दू हो तो गुरु महाराज ने फरमाया था "क्षत्री को पूत हो बाहमण को नहीं।।" इसलिए क्षत्रियों को समझ जाना चाहिए कि हम हिन्दू नहीं है क्षत्रिय है.... रामायण में कहीं भी श्री राम ने खुद को हिन्दू या सनातनी नहीं कहा और न ही श्री कृष्ण ने गीता में ऐसा कहा बल्कि खुद को क्षत्रिय बताया और कलयुग में क्षत्रियों के धर्म को गुरु महाराज(क्षत्रिय) ने खालसा पंथ के रूप में मजबूती से खड़ा किया।सिखों की परंपरा को "सिख पंथ" कहा जाता है, जिसका मतलब है "गुरु के शिष्यों का समुदाय". सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी के अंत में पंजाब क्षेत्र में गुरु नानक (1469-1539) ने की थी. सिख धर्म में दस गुरुओं की एक वंशावली का सम्मान किया जाता है, जो 16वीं शताब्दी में गुरु नानक से शुरू होकर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के साथ खत्म हुई. सिख धर्मग्रंथ को गुरु ग्रंथ साहिब कहा जाता है और यह सिख परंपरा के भीतर अंतिम अधिकार रखता है. सिख धर्म एक व्यावहारिक धर्म है और सिख एक व्यावहारिक लोग हैं. सिख धर्म में एक गृहस्थ और समाज के योगदानकर्ता सदस्य के रूप में एक सांसारिक, सफल जीवन जीने पर जोर दिया गया है, लेकिन मन को ईश्वर के प्रति जागरूकता के साथ. सिख धर्म जाति, पंथ, लिंग, रंग, नस्ल या राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव नहीं करता.