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Bahadur beti Chapter - 8

बहादुर बेटी

(8)

आतंकी अड्डे पर आरती.

आनन्द विश्वास

यूँ तो जब से प्रधानमंत्री के ड्रीमलाइनर विमान के हाईजैकिंग और उसके मुक्त कराने की घटना घटी, तभी से आतंकी आकाओं की हिट-लिस्ट पर आ गई थी आरती। और आतंकवादियों का मेन टारगेट ही बन गई थी। अतः वे आरती को या तो उड़ा ही देना चाहते थे या फिर हाइजैक करके सरकार और व्यवस्था के सामने अपनी मनमानी शर्तों के साथ, अपने पकड़े हुए आतंकी साथियों को सरकार के चंगुल से रिहा करा लेना चाहते थे। पर आरती के विषय में अभी तक उन्हें कुछ भी पता न चल सका था।

लेकिन जैसे ही *बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा समाचारपत्रों और मीडिया में दिए गए चैरिटी-शो के विज्ञापन में आरती का फोटो और नाम आते ही सरकारी-तंत्र दौड़ता हो गया था। ठीक उसी तरह से आरती की यह खोज-खबर आतंकवादी आकाओं तक भी पहुँच चुकी थी। अब तो आरती के ठौर-ठिकाने से आतंकवादी आका भी अछूते नहीं रहे थे।

इतना ही नहीं, सरकार के द्वारा तीन आतंकवादियों के ऊपर धोषित एक-एक करोड़ के तीन इनाम, शाल और प्रशस्ति-पत्र का आरती को प्रदान किया जाना, आतंकवादी आकाओं के गाल पर करारा तमाचा ही माना जा रहा था और इतना ही नहीं आरती की पीएम से विशेष मुलाकात ने तो दहकती आग में घी का काम कर दिया था। जल-भुन कर राख हो गए थे आतंकवादी संगठनों के बेताज बादशाह।

और यही कारण था कि आतंकवादी संगठनों के आकाओं ने आरती को किडनैपिंग करने का प्लान बना लिया था और अब वे उसकी सभी दैनिक गति-विधियों पर नज़र रखे हुए थे। मसलन आरती का घर से बाहर आना-जाना कब-कब होता है। वह अपने स्कूल के लिए कैसे आती-जाती है, उसके साथ और कौन-कौन होता है। उसका स्कूल कितने बजे का है। इत्यादि, इत्यादि।

और इधर, आरती को इस विषय में कोई जानकारी भी नहीं थी और ना ही उसकी कोई सुरक्षा व्यवस्था ही की गई थी। ना तो सरकार की ओर से ही और ना ही पुलिस की ओर से ही। और वैसे भी किसी को इस प्रकार की घटना की कोई शंका भी तो नहीं थी।

ऐसे में *हिज़बुल रब्बानी* जैसे खतरनाक आतंकवादी संगठन के लिए एक अदना-सी लड़की को उठा पाना बड़ा ही आसान था और हुआ भी कुछ ऐसा ही।

एक दिन शाम को स्कूल से छूटकर घर आ रही थी आरती। तभी अचानक पीछे से तेज गति से आती हुई कार का दरवाजा खुला और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, कार से उतर कर दो आदमियों ने आरती को कार के अन्दर धर दबोचा। आरती का विरोध कुछ काम न आ सका। साइकिल वहीं पर पड़ी रह गई और आरती कार के अन्दर।

उसकी सहेलियों ने और रास्ता चलते लोगों ने चिल्लाया भी और शोर भी मचाया। कुछ लोगों ने तो दौड़कर कार का पीछा भी किया, पर सारे के सारे प्रयास कुछ काम न आ सके। तेज गति से दौड़ती हुई कार भीड़ में कहीं ओझल हो चुकी थी। आरती अब आतंकवादियों के कब्ज़े में आ चुकी थी।

यूँ तो आरती चाहती तो उन दोनों आतंकवादियों से तुरन्त ही मुक्त भी हो सकती थी और उनको अच्छा-खासा मज़ा भी चखा सकती थी। वह अदृश्य भी हो सकती थी और आतंकवादियों को भी अदृश्य कर सकती थी। वह उन्हें बेहोश भी कर सकती थी। और इतना ही नहीं यदि वह चाहती तो पल भर में उन सबका ही कार सहित किडनैपिंग भी कर सकती थी। वह उन्हें इस लोक में ही नहीं किसी दूसरे लोक में भी पहुँचा सकती थी। पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और उसका कारण भी था।

उसे अपने मित्र रॉनली के कहे हुए वे शब्द याद थे जब उसने कहा था-“जब आप सामान्य जनता के बीच में हों तब आपको अपनी इन दैवीय चमत्कारिक शक्तियों का उपयोग नहीं करना है। हाँ, यदि कोई विशेष असाधारण परिस्थिति उत्पन्न हो जाय तब आप अपनी दैवीय चमत्कारिक शक्तियों का उपयोग परोपकार और आत्मरक्षा के लिए कर सकते हैं।”

और वैसे भी उसे अभी कोई ऐसा विशेष संकट तो नहीं ही दिखाई दे रहा था। साथ ही उसको उसकी *विल-पावर* की डिवाइस ने आगे आने वाले सभी संकटों और उपलब्धियों के विषय में ज्ञान करा दिया था। अतः उसने आतंकवादियों का कोई भी विरोध नहीं किया और वह उनके द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार ही आचरण करने लगी।

वह जानती थी कि कुछ ही समय के बाद उसे आतंकवादियों के बड़े-बड़े आकाओं के सामने, उनके अड्डे पर ले जाया जायेगा और फिर उससे उसके बारे में ढ़ेर सारे प्रश्न भी पूछे जाऐंगे और भी बहुत कुछ जानने का प्रयास किया जाएगा। इतना ही नहीं, उसे बन्धक बनाकर, सरकार और व्यवस्था से कुछ सौदेबाजी भी की जाएगी।

पर वह वहाँ की सभी गतिविधियों को और वहाँ पर उनके सभी अड्डों को भी देखना चाहती थी। उनकी कार्य-शैली और उनकी शक्ति का भी पता चलाना चाहती थी, ताकि वह उनको और उनके सभी अड्डों को आसानी से तहश-नहश कर सके।

क्योंकि आतंकवाद को जड़ से समाप्त करना भी तो उसके मिशन का एक भाग ही था और आज मुसीबत अपने आप सामने से चलकर उसके पास आई है। सच ही तो कहा गया है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की ओर ही भागता है।

कुछ समय के बाद कार शहर की भीड़-भाड़ वाली मुख्य धारा को छोड़कर सूनसान सड़क की ओर चल पड़ी थी। हाई-वे पर सड़क से थोड़ा हटकर बने हुए एक फार्म-हाउस में आरती को ले जाकर रखा गया। फार्म-हाउस में चौकीदार के अलावा दूसरा कोई भी तो नहीं था वहाँ पर। रास्ते भर दोनों आतंकवादी फोन पर किसी के साथ सम्पर्क में थे और वे फोन पर उनके द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे थे।

दोनों आतंकवादियों का आचरण आरती के प्रति सकारात्मक था। शायद उनका उद्देश्य आरती को किसी प्रकार से आहत करना नहीं था। क्योंकि यदि उनका उद्देश्य ऐसा रहा होता तब तो वे आरती को कब का ठिकाने लगा चुके होते। बीच बाज़ार में गोली मारकर भाग निकलने में देर ही कितनी लगती उनको। हो सकता है कि उनके हाई-कमाण्ड का यही आदेश रहा हो, पर उद्देश्य के विषय में तो अभी भी अनिश्चितता ही बनी हुई थी।

रात भर आरती को फार्म-हाउस में ही रखा गया था। और फिर दूसरे दिन आरती को फार्म-हाउस से नकली पास-पोर्ट, वीज़ा और नकली नाम की सहायता से किसी महिला के साथ पहले उसे किसी अरेबियन कन्ट्री में ले जाया गया और फिर वहाँ से अपने किसी गोपनीय सुरक्षित अण्डर-ग्राउण्ड स्थान पर।

यहाँ पर आरती को जिस स्थान पर रखा गया था वह कोई गैस्ट-रूम जैसा ही लग रहा था। जिसमें पलंग, सोफासैट, कुर्सी, टेबल, टीवी और टेलीफोन आदि की सभी सुविधाऐं उपलब्ध थीं। साथ ही उसके खाने-पीने की हर सुविधा का ख्याल भी रखा जा रहा था। साथ ही उसे किसी भी प्रकार से कोई हाँनि पहुँचाने का प्रयास भी नही किया जा रहा था।

पर यहाँ पर उसकी हर एक्टिविटी पर नज़र रखी जा रही थी। वह कहाँ, क्या और किससे सम्पर्क करने का प्रयास कर रही है या फिर कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं है जो उससे सम्पर्क करने का प्रयास कर रहा हो।

पर पास ही के एक बड़े हॉल के एक कमरे में गतिविधियों का बाज़ार गर्म था। हर किसी के चेहरे पर विजय का उत्साह और आँखों में चमक दिखाई दे रही थी। शायद कोई किला ही फ़तह कर लिया हो। शायद वे आश्वस्त थे कि अब उनके वे सभी साथी जो जेल में बन्द हैं, वे आजाद हो सकेंगे और साथ ही एक बहुत बड़ी धन राशि भी उनके हाथ लग सकेगी।

आते-जाते लोगों से आरती ने वहाँ के विषय में कुछ जानकारी प्राप्त करना चाहा पर किसी ने कुछ भी न बताया और तभी उसे वह महिला दिखाई दे गई, जो कि उसे अपने साथ यहाँ तक लेकर आई थी। आरती ने उसे अपने पास बुलाकर पूछा-“मेडम, क्या आप मुझे बता सकेंगे कि मुझे यहाँ पर क्यों लाया गया है।”

पहले तो वह महिला थोड़ा मुस्कुराई और फिर हँसते हुए बोली-“यहाँ पर किसी को न तो बोलने का अधिकार है और न आदेश देने का। यहाँ पर केवल एक ही व्यक्ति बोलता है और एक ही व्यक्ति आदेश देता है। और वह व्यक्ति है हमारे आका हिज़बुल रब्बानी जी।”

“तो क्या आप उनसे पूछकर हमें कुछ जानकारी दे सकेंगे?” आरती ने महिला से कहा।

“आका के पास तक पहुँच पाना हम में से किसी के भी वश की बात नहीं है। उनसे बात करना और पूछना तो बहुत दूर की बात है।” महिला ने आरती को बताया।

“तब फिर मुझे और कितने दिनों तक यहाँ पर रहना होगा।” आरती ने जानना चाहा।

“आका हिज़बुल रब्बानी जी का जो भी आदेश होगा, खलीफा अपने आप आपको आकर बता देगा।” ऐसा कहते हुए वह महिला चली गई।

अब आरती समझ चुकी थी कि उसकी समस्या का समाधान यहाँ रहने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं ही करने वाला है। क्योंकि यहाँ पर आका के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति कुछ भी बताने वाला नहीं है और आका उससे फिलहाल मिलने वाला नहीं है।

अतः उसने इस स्थान से बाहर निकल कर, अपने आसपास के स्थान और माहौल के निरीक्षण करने का अपना मन बना लिया। क्योंकि वह समझ चुकी थी कि अब उसे अपने आप ही यहाँ के विषय में सब कुछ पता चलाना होंगा, यहाँ पर उसकी सहायता करने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं है।

प्रातःकाल के इन्तजार में रात भर न सो सकी, आरती।

***