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Bahadur beti Chapter - 10

बहादुर बेटी

(10)

आतंकी आका और आरती.

आनन्द विश्वास

आज बड़े सबेरे ही कैदखाने के एक सिक्योरिटी इन्चार्ज ने, जो कि देखने में तो बिलकुल ब्लैक-कमाण्डो जैसा ही लग रहा था, आरती को आकर बताया कि कुछ ही समय के बाद तुम्हें हमारे सरगना आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी के पास में जाना होगा। आज वहाँ पर तुम्हारी पेशी होने वाली है।

पर जैसे ही आरती ने उस सिक्योरिटी इन्चार्ज की ओर गौर से देखा तो उसका चेहरा तो खलीफा के उस फोटो से बिलकुल मेल खा रहा था जिस फोटो को अम्मीज़ान ने उसे अपने घर पर सन्दूक से निकालकर दिया था। तो क्या यह आदमी ही तो वह खलीफा नहीं है जिसके नाम से यहाँ के सभी लोग थर-थर काँपने लगते हैं, क्या इसी जल्लाद ने यहाँ पर आतंक मचाया हुआ है।

क्या यही है वह आदमी जिसने अम्मीज़ान की बेटी आलिया को सरेआम बीच बाजार में, चौराहे पर गोलियों से छलनी-छलनी कर दिया था। बिलकुल भी विश्वास नहीं हो पा रहा था, आरती को। अतः अपनी शंका का समाधान करने के लिए आरती ने बड़ी ही निडरता के साथ, बिना किसी झिझक के, उस सिक्योरिटी इन्चार्ज से पूछ ही लिया-“क्या मैं आपका नाम जान सकती हूँ।”

“ऐ लड़की, मेरा नाम जानकर क्या करेगी तू। फिर भी अब तूने जब मेरा नाम पूछ ही लिया है तो मैं बताता हूँ। सुन, मेरा नाम अब्दुल जब्बारी है और यहाँ के सभी लोग मुझे खलीफा के नाम से जानते हैं। इस इलाके के सभी लोग मेरे नाम से थर-थर काँपते हैं। मेरी इच्छा के खिलाफ यहाँ का एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है, क्या समझा।” उस सिक्योरिटी इन्चार्ज खलीफा अब्दुल जब्बारी ने बड़े गर्व के साथ आरती से कहा।

शंका अब सच में बदल चुकी थी। खलीफा का नाम के सुनते ही आरती का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया था। क्रोध के मारे उसका चेहरा तमतमाने लगा और सुर्ख लाल हो गया। उसकी आँखों से अँगारे बरसने को लालायत थे।

उसके मन में तो आया कि वह नौंच डाले इसके नाक, कान, चेहरा और इसके बालों के झुंड को। इसकी दाढ़ी के एक-एक बाल को और लोहू-लुहान कर दे इस अहंकारी दढ़ियल जल्लाद को। फोड़ ही डाले इसकी काली-काली बटन जैसी दोनों आँखों को और काट ही डाले इसकी जहर उगलती विषैली बद-जुवान को।

पर कुछ सोचकर, उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। क्योंकि वह जानती थी कि ऐसा करने से उसका मिशन आधा-अधूरा ही रह जाएगा। उसे तो उसके आका तक पहुँचना होगा। इस दढ़ियल को ही नहीं, बल्कि इसके आका के और ऐसे ही दूसरे आतंकवादियों के पूरे नैट-वर्क को और उनके सभी ठिकानों को तहस-नहस करना होगा। उसके द्वारा की गई जरा सी भी लापरवाही, उसका सारा का सारा बना-बनाया खेल भी बिगाड़ सकती है और उसकी मौत का कारण भी बन सकती है। अतः उसने ऐसी परिस्थिति में अपने दिल और दिमाग पर काबू रखना ही उचित समझा।

अपने उद्वेलित मन को विश्रान्त करते हुए, उसने शान्त भाव से उस दढ़ियल खलीफा से पूछ ही लिया-“क्या मैं जान सकती हूँ कि तुम लोग मुझे यहाँ पर लेकर क्यों आए हुए हो और इतने दिनों से मुझे इस कैदखाने में बन्दीं बनाकर क्यों रखा हुआ है। कोई मुझे कुछ भी बताता क्यों नहीं है, क्या चाहते हो तुम सब के सब लोग मुझसे। आखिरकार मुझे भी तो कुछ पता चले।” आरती ने आतंकवादियों के अगले कदम के विषय में जानना चाहा।

“इस विषय में हम तुम्हें कुछ भी नहीं बता सकते हैं और ना ही हमें इस विषय में कोई जानकारी ही होती है। हमें तो ऊपर से जो भी आदेश मिलता है हम सब उसका पालन करते हैं।” दढ़ियल खलीफा बड़ी ही बेरुखी से आरती को यह कहकर चला गया।

दढ़ियल खलीफा के जाने के बाद आरती ने अपनी ऐनी ऐंजल को ऐक्टीवेट करके पूछा-“ऐनी, अब इस परिस्थिति में मुझे क्या करना चाहिए। क्या इस विषय में मेरा रॉनली से सम्पर्क करना उचित रहेगा।”

“नहीं आरती, इस विषय में अभी फिलहाल रॉनली से सम्पर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं ही तुम्हारी सभी समस्याओं का समाधान कर दूँगी। अभी कुछ ही समय के बाद यह दढ़ियल खलीफा तुम्हें अपने *हिज़बुल रब्बानी आतंकवादी संगठन* के आका हिज़बुल रब्बानी के पास लेकर जाएगा और यह आदमी हिज़बुल रब्बानी का बिलकुल खास विश्वासपात्र आदमी है। इतना ही नहीं, इसे यहाँ के बारे में सब कुछ मालूम भी होगा पर ये हमें कुछ भी बताने वाला नहीं है।” ऐंजल ऐनी ने आरती से कहा।

“ऐनी, मुझे मेरे फ्यूचर प्रिडिक्टिंग डिवाइस के नेट-वर्क से बार-बार यही संकेत मिल रहे थे कि मेरा जीवन संकट में है और मेरे ऊपर प्राणघातक हमला भी हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में, सुरक्षा की दृष्टि से मुझे किस प्रकार से और कैसे सावधान रहना होगा। और अभी तो मुझे उन खूँख्वार आतंकवादी आकाओं का भी सामना करना होगा।” आरती ने ऐंजल ऐनी से जानना चाहा।

फ्यूचर प्रिडिक्टिंग डिवाइस के प्रिडिक्शन को ध्यान में रखते हुए ऐनी ने आरती को समझाते हुए कहा-“आरती, अपनी सुरक्षा की दृष्टि से आका हिज़बुल रब्बानी के पास जाते समय तुम्हें अपना अदृश्य सुरक्षा-कबच पहनकर जाना चाहिए और अपने बाल-यान को भी अदृश्य रूप में अपने साथ लेकर जाना चाहिए। यह अदृश्य सुरक्षा-कवच आग, पानी, बम्ब-विस्फोट, गोली आदि के हमले से तुम्हारी रक्षा कर सकेगा। साथ ही कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर बाल-यान तुम्हें किसी भी तहखाने या अण्डर-ग्राउण्ड स्थान से सुरक्षित रूप से निकालकर बाहर ला सकेगा। बाल-यान के लिए दीवार, दुर्ग आदि सभी कुछ पारदर्शी भी होते हैं और यह किसी भी दीवार आदि के आर-पार आसानी से आ जा सकता है।”

“हाँ, यही व्यवस्था ठीक रहेगी। पर, ऐनी तुम भी वहाँ पर अदृश्य रूप में मेरे पास ही मौजूद रहना। ताकि आवश्यकता पड़ने पर मुझे तुम्हारा मार्ग-दर्शन भी मिलता रहे।” आरती ने कहा।

“आरती, तुम बिलकुल निश्चिन्त रहो और इसकी तुम जरा भी चिन्ता मत करो। मैं हर पल तुम्हारे साथ में ही रहूँगी और जरूरत पड़ने पर तुमसे बिना पूछे ही आवश्क कदम भी मैं अपने आप ही उठा लूँगी। तुम पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी। तुम मुझ पर पूरा भरोसा रखो, तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होने वाला है।” ऐंजल ऐनी ने आरती को आश्वासन देते हुए कहा।

और कुछ ही समय के बाद दढ़ियल खलीफा आरती को बुलाने के लिए आ पहुँचा। अब तक तो आरती हर परिस्थिति का सामना करने के लिए पूर्णरूप से तैयार हो चुकी थी। अब वह पूर्णरूप से सुरक्षित थी। इससे पहले कि वह दढ़ियल खलीफा आरती से कुछ भी कह पाता, आरती ने सामने से ही उस दढ़ियल खलीफा से कहा-“चलो, कहाँ चलना है मुझे।”

वह दाढ़ी वाला खलीफा अब्दुल जब्बारी आरती के इस प्रकार के साहसिक व्यवहार को देखकर आश्चर्यचकित ही रह गया। जिस आतंकवादी आका हिज़बुल रब्बानी के नाम से ही अच्छे-अच्छे लोग थर्रा जाते हैं, भय के मारे काँपने लगते हैं और उनके पसीने छूटने लगते हैं। फिर भी आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी के सामने जाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते हैं। उसी खूँख्वार आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी के सामने जाते हुए यह छोटी-सी अदना लड़की, लेशमात्र भी भयभीत नहीं हो रही है।

आरती की निर्भयता और आत्म-विश्वास को देखकर दढ़ियल खलीफा के ही पसीने छूटने लगे। वह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर इस छोटी-सी लड़की में इतनी सौलिड विल-पावर कहाँ से आ गई, इसका रहस्य क्या है।

भय या विषाद की कोई हल्की-सी लकीर भी तो दिखाई नहीं दे रही है इसके दमकते तेजस्वी चेहरे पर और ना ही शान्त-मन पर लेशमात्र भी चिन्ता का कोई चिन्ह। मन भी है बिलकुल शान्त सागर-सा, और हर एक कदम आत्म-विश्वास से लवरेज़। पर क्या यह सुनामी से पहले की शान्ति तो नहीं थी। बबंडर उठने से पहले वातावरण भी तो कुछ समय के लिए शान्त हो ही जाता है।

भयभीत दढ़ियल खलीफा को लग रहा था कि क्रोध या आवेश में आकर कहीं इसने मेरे ऊपर ही दो-चार घूँसे जड़ दिए, तो मेरा क्या होगा? सोचते ही कँप-कँपी सी छूट पड़ी थी उसकी और पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था।

असल में आतंकवादी गलियारे में आरती ‘घूँसे वाली लड़की’ के नाम से विख्यात हो गई थी। क्योंकि जितने भी आतंकवादियों ने ड्रीमलाइनर विमान की उस घटना के वीडियो-क्लिपस् को देखा होगा या फिर टेलीविज़न पर आरती को घूँसा मारते हुए देखा होगा, वे सभी आतंकवादी लोग आरती के घूँसे से तो अवश्य ही परिचित हो गए होंगे। क्योंकि आरती का एक-एक घूँसा लगते ही तीनों के तीनों आतंकवादी हाइजैकर ढ़ेर हो गए थे। ऐसा क्या था उसके घूँसे में, जो उसके एक ही घूँसे को बहादुर और कठोर से कठोर ट्रेनिंग पाने वाले आतंकवादी भी सहन न कर सके।

शायद यही कारण रहा होगा, जिसकी वजह से वह बहादुर दढ़ियल खलीफा आरती के साथ-साथ तो चल रहा था पर आरती से अच्छी-खासी दूरी बनाकर ही चल रहा था। भय तो उसके मन में भी बैठा हुआ ही था। आखिर जान तो जान ही होती है और सभी को प्यारी भी होती है तो फिर उसको क्यों नहीं होगी।

आरती को जिस कैदखाने में रखा गया था, उसी के नीचे वाले भाग में ही एक दूसरा गुप्त तहखाना था। जहाँ के विशाल पैसेज़ में आतंकवादियों को तरह-तरह की ट्रेनिंग दी जा रही थी। लोगों को तरह-तरह की यातनाऐं भी दी जा रहीं थीं। शायद हो सकता है कि यह सब भी उनकी ट्रेनिंग का ही कोई हिस्सा रहा हो। तो कहीं पर मनोवैज्ञानिक ढंग से भोले-भाले नव-युवकों का ब्रेन-वॉश कर उसमें नफ़रत और हिंसा के जहरीले जेहादी बीज बोए जा रहे थे। हिंसा और बेरहमी के पाठ पढ़ाए जा रहे थे।

इसके नीचे के एक तीसरे गुप्त तहखाने में आरती को ले जाया गया। इसी गुप्त तहखाने में आतंकवादी आका हिज़बुल रब्बानी ने अपना गुप्त ठिकाना बनाया हुआ था। यह स्थान पूर्ण-रूप से अति आधुनिक सुविधाओं से युक्त और वातानुकूलित भी था।

और इसी स्थान से आतंकवादी आका हिज़बुल रब्बानी अपने आतंकवादी संगठन का नैट-वर्क चलता था। यहाँ पर उसके कुछ खास विश्वास-पात्र आदमियों का आना-जाना रहता होगा, ऐसा आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था।

इसी स्थान पर काफी बड़े-बड़े हॉल बने हुए थे जिनमें उन्होंने तरह-तरह के हथियारों का एक बहुत बड़ा ज़खीरा, गोला-बारूद, बम्ब, हैन्ड-ग्रेनेड, एके 47 और ढ़ेर सारी रायफल्स आदि के रखने का स्थान बनाया हुआ था। गोला-बारूद का बहुत बड़ा ज़खीरा भी रखा हुआ था यहीं पर।

हिज़बुल रब्बानी और *हिज़बुल रब्बानी आतंकवादी संगठन* के ही नहीं दूसरे आतंकवादी संगठनों के भी कई आतंकवादी आका आरती के पहुँचने से पहले ही वहाँ पर मौजूद थे। हर किसी आका के पास अपने-अपने बॉडी-गार्ड थे और हर किसी के पास अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में अत्यन्त आधुनिक हथियार भी थे।

हो सकता है कि उन्हें अपने साथियों पर ही भरोसा न हो और इसीलिए हर आतंकवादी आका के पास में अपने ही हथियार थे और हर कोई अपने ही बॉडी-गार्ड को अपने साथ ही लेकर चल रहा था। सच ही तो है, लोगों को परायों से कम डर होता है डर और खतरा तो अपनों से ही होता है। सैल्फ-सर्विस का कितना सुन्दर समन्वय यहाँ देखने को मिल रहा था। अपनी रक्षा अपने आप करने के लिए कटिबद्ध थे सभी आतंकी आका।

आरती के वहाँ पर पहुँचते ही आका हिज़बुल रब्बानी ने बड़े प्यार भरे लहज़े में आरती से कहा-“आओ बेटी, इधर इस कुर्सी पर बैठ जाओ। क्या नाम है तुम्हारा।”

आरती का मन तो पहले से ही क्रोध और आक्रोश से अटा पड़ा था और ‘बेटी’ शब्द को सुनकर तो उसकी सहनशीलता की सीमा ही टूट गई। उससे न रहा गया और वह उस दढ़ियल आतंकवादी आका से पूछ ही बैठी-“आका, एक ओर तो आप मुझे ‘बेटी’ शब्द से सम्बोधित कहते हो और दूसरी ओर आपने अपनी उसी ‘बेटी’ को अपने कैदखाने में इतने दिनों से बन्द करके रखा हुआ है। आका, क्या आपके यहाँ पर बेटियाँ को कैदखाने में बन्द करके रखा जाता है। ‘बेटी’ जैसा पावन और पूज्यनीय शब्द आप जैसे व्यक्ति के मुँह से शोभा नही देता है, आका।”

आरती के पहले ही सबाल का जबाव देते नही बन पा रहा था, आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी को। अपनी खीस उतारते हुए उसने झल्लाकर आरती से कहा-“मेरे इकलौते बेटे, शौकत अली रब्बानी और उसके अन्य चार साथियों को जेल में बन्द करके रखा हुआ है, तुम्हारी सरकार ने। क्या यह सही है।”

“बिलकुल सही है, मेरी सरकार का यह कदम। बीच बाजार में बम्ब-विस्फोट करा के निर्दोष और निःहत्थे लोगों की जान ली है, तुम्हारे बेटे शौकत अली रब्बानी ने और उसके चारों साथियों ने। तुम्हारा बेटा हत्यारा है निर्दोष लोगों का, भोले-भाले छोटे-छोटे दुध-मुँहे बच्चों का। क्या यह सच नहीं है। आका, उसकी जगह तो जेल नहीं, उसकी जगह तो फाँसी का लटकता हुआ फन्दा है। उसे तो फाँसी लगनी ही चाहिए और उसे तो फाँसी लगकर ही रहेगी। आप और आपका आतंकी संगठन चाहे कितनी भी नाक रगड़ ले, फिर भी नहीं बचा सकेगा उसे फाँसी के फन्दे से, आका हिज़बुल रब्बानी।” निडर होकर निर्भीक बहादुर बालिका आरती ने कहा।

तिलमिलाकर रह गया वह दढ़ियल, आतंकवादी संगठन का बेताज बादशाह आका हिज़बुल रब्बानी। तभी एक दूसरा चतुर आतंकी आका बीच में ही बोल पड़ा-“अब हम तुम्हें यहाँ से तब तक छोड़ने वाले नहीं हैं जब तक कि तुम्हारी सरकार हमारे सभी आतंकवादी साथियों को हमें नहीं सौंप देती है और हमें मुँह-माँगी रकम नहीं दे देती है।”

“यदि आप जीवनभर भी बन्धक बनाकर मुझे अपने कैदखाने में कैद करके रखोगे, तब भी आपका बेटा और उसके दूसरे आतंकी साथी आजाद नहीं हो सकेंगे। हमारे यहाँ कानून सर्वोपरि होता है और कानून तो अपना काम करेगा ही। और सच तो यह है आका, कि आपके बेटे और उसके दूसरे साथियों को फाँसी के फन्दे से अब कोई भी नहीं बचा सकेगा।” आरती ने दृढ़ता के साथ कहा।

साँप-सा सूँघकर रह गया सभी आतंकवादी आकाओं का और आका हिज़बुल रब्बानी का। सभी आतंकवादी आका एक-दूसरे की ओर तिरछी, चोर नज़र से देखने लगे। उन्हें लगा कि अब ऐसे आसानी से काम बनने वाला नहीं है। ये लड़की सीधी नहीं है और ना ही यह चतुर लड़की उनकी बातों में आने वाली है।

और अब तो वे अपनी लोकल-लेंग्वेज और अपने आतंकवादी कोड-वर्डस् में एक-दूसरे बातें करने लगे। शायद वे नहीं चाहते थे कि उनकी आपस में होने वाली बात-चीत को आरती समझ सके।

उनमें से एक आतंकी सरगना ने अपनी प्रादेशिक कोड-वर्डस् वाली भाषा में कहा-“ये लड़की बहुत शातिर दिमाग की है, अपनी सीधी बातों से मानने वाली नहीं है ये। अब तो इसका कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। तभी मानेगी ये चालाक लड़की।”

“हाँ, अब तो टेढ़ी उँगली से ही घी निकालना पड़ेगा। सीधाई का तो आजकल जमाना ही कहाँ रहा है, हाफिज़ मियाँ। हमारी शराफत और सीधेपन का नाज़ायज फायदा ही तो उठा रही है, ये चालाक लड़की।” तभी दूसरे आतंकी आका ने परामर्श दिया।

“अच्छा तो यह रहेगा कि सरकार को ही एक कड़क धमकी भरा पत्र लिखकर भेजा जाय कि आरती नाम की लड़की, जिसने पीएम के ड्रीमलाइनर विमान को हाईजैक होने से बचाया था, वह लड़की अब हमारे कब्जे में है। यदि तुम और तुम्हारी सरकार उसे जिन्दा वापस पाना चाहते हो तो तुरन्त हमारे सभी आतंकवादी साथियों को रिहा कर दो, नहीं तो आरती की लाश आपके पास तक पहुँचा दी जाएगी।” एक आतंकी आका ने अपनी राय दी।

तभी एक वयोबृद्ध आतंकवादी आका ने कहा-“इस लड़की को तो प्रधानमंत्री भी अच्छी तरह से जानते हैं और वे इसका सम्मान भी करते हैं। इसने ही हमारे तीनों आतंकी साथियों को जिन्दा पकड़वाकर तीन करोड़ रुपए का इनाम भी सरकार से प्राप्त किया है। और अब तो ये गरीब बच्चों के वैलफेयर के लिए चैरिटी-शो भी कर चुकी है। इस लड़की से ही कहा जाय कि ये ही पीएम से इस विषय में सीधे फोन पर बात-चीत करे। इसकी आवाज को सुनते ही पीएम का मन निश्चित रूप से पिघल जाएगा। और जब पीएम को इस बात का पता चलेगा कि यह लड़की हमारे कब्जे में है तब तो वे हमारी माँगों को तुरन्त ही पूरा कर देंगे।”

और तभी आरती ने मुस्कुराते हुए उन आतंकियों को उन्हीं की लोकल-लेंग्वेज और उन्हीं के कोड-वर्डस् का प्रयोग करते हुए कहा-“आपके मन की ये मैली-मुराद कभी भी पूरी होने वाली नहीं है, आकाओ। न तो मैं ऐसा कोई फोन करने वाली हूँ और ना ही पीएम मेरी बात को मानने वाले हैं। हमारे यहाँ पर तो कानून और सिर्फ कानून ही अपना काम करता है। और वह अपना काम करेगा ही। हमारे यहाँ तो हर किसी को कानून के दायरे में रहकर ही काम करना होता है फिर चाहे वह पीएम ही क्यों न हों।”

आरती के इस प्रकार के उत्तर को सुनकर सभी आतंकी आका सकते में आ गए। वे सब के सब हक्का-वक्का ही रह गए। वे सब तो यह समझ रहे थे कि इस लड़की को उनकी लोकल-लेंग्वेज की कोई जानकारी नहीं होगी और इसीलिए वे खुलकर अपनी-अपनी बातें कह रहे थे। पर यहाँ तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा ही हो गया। ऐसा तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।

इधर आरती को उनकी आपस की बातों को समझने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी, क्योंकि आरती की लैफ्ट-हैन्ड की रिस्ट पर अदृश्य रूप में रॉनली के द्वारा दी गई विल-पावर की डिवाइस सैट थी और उसमें लेंग्वेज-कन्वर्टर भी लगा ही हुआ था। और यही कारण था कि आरती को आतंकवादियों की आपस में होने वाली सभी बातें आसानी से समझ में आ रहीं थीं।

बात को बिगड़ता हुआ देखकर आतंकवादी संगठन के बेताज बादशाह आका हिज़बुल रब्बानी ने बात को सम्हालते हुए बड़े ही विनम्र भाव से आरती से कहा-“अब तुम्हीं बताओ बेटी, हमें क्या करना चाहिए जिससे कि मेरा बेटा शौकत अली रब्बानी और उसके चारों आतंकवादी साथी जेल से छूट सकें।”

“आप उन्हें क्यों बचाना चाहते हैं, आका। जब आप जानते हैं कि उन सब लोगों ने मिलकर बीच बाजार में बम्ब-बिस्फोट करा के अनेक निर्दोष लोगों की हत्या की है, शान्ति-प्रिय जनता में भय और आतंक का वातावरण पैदा किया है। ऐसे में तो उनको अपने किए की सजा तो मिलनी ही चाहिए।” आरती ने आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी को नीति-नियम की बातें समझाते हुए कहा।

“नहीं बेटी, इस सबका असली गुनहगार तो मैं ही हूँ। मैंने ही उसे आतंकवादी संगठन में जुड़ने के लिए दबाब डाला था। वह तो जेहाद और जेहादियों से हमेशा ही दूर रहता था और शान्तिमय जीवन गुजारना चाहता था। पर मैं ही पैसे और ज़न्नत के लोभ में आ गया और आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया। इतना ही नहीं मैंने जबरन अपने इकलौते बेटे शौकत अली रब्बानी को भी अपनी जेहादी टोली में शामिल कर दिया।” और ऐसा कहते-कहते पुत्र-प्रेम में व्याकुल आतंकवादी संगठन के बेताज बादशाह आका हिज़बुल रब्बानी की आँखों से आँसू ढ़ुलक पड़े।

रब्बानी की आँखों से बहता हुआ आँसुओं का खारा सागर भी आरती की आँखों के तप्त क्रोध के अंगारों को बुझाने के लिए पर्याप्त नहीं था। पश्याताप और प्रायश्चित की शीतल हिम-शिला भी आरती के आक्रोश के अंगारों का शमन करने में असफल रही।

वह और अधिक उत्तेजित होकर बोली-“आका, आपके अपने बेटे को फाँसी की सजा हो जाएगी, केवल ऐसा समाचार सुनते ही आप काँप गए और पानी-पानी हो गए। हजारों निर्दोष, निरीह लोगों का कत्लेआम करके खून की नदियाँ बहाते समय आपके हाथ नहीं काँपे, आपका दिल नहीं पसीजा। आका, खून की नदियाँ बहाना तो बहुत ही आसान होता है पर आँखों से बहते हुए खारे समुन्दर को समेंट पाना बेहद ही मुश्किल होता है। आपको और आपके उन आतंकवादी साथियों तो जितनी भी कड़ी से कड़ी सजा दी जाय, वह कम ही होगी।”

“मैं अपने किए पर शर्मिन्दा हूँ, बेटी।” आँखों से बहते खारे समुन्दर को अपने दोनों हाथों से समेंटने का असफल प्रयास करते हुए आका हिज़बुल रब्बानी ने अपनी गलती का एहसास करते हुए कहा।

“आपके शर्मिन्दा होने या न होने से अब क्या फर्क पड़ने वाला है, आका। जो अल्लाह को प्यारा हो गया, अब तो वह वापस आने से रहा। जिस सुहागन की माँग उजड़नी थी वह तो उजड़ ही चुकी, जो दुधमुँए बच्चे यतीम होने थे, वे तो हो ही चुके और जो नुकसान होना था, वह भी तो हो ही चुका। अब और क्या बचा है, आका। आपने तो पूरी मानवता को ही शर्मसार कर दिया है। अब आपको तो अल्लाहताला भी माँफ नहीं करेगा।” आरती के मन में तीब्र आक्रोश शान्त होने का नाम ही न ले रहा था।

“अब जो होना था वह तो हो ही चुका है, बेटी। पर अब मुझे अपने किए पर पछतावा हो रहा है। अब तो मेरा मन ही मुझे कचोट रहा है। मैं खुद ही गलत लोगों के बहकावे में आ गया था, उन सब लोगों ने मुझे गुमराह कर दिया था। मेरी तो बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई थी जो मैं उनके कहने में आ गया।” आका ने अपनी सफाई देने का प्रयास किया।

“अब क्या हो सकता है, आका। आप ही बताइए न।” आरती ने सब कुछ आका के ऊपर ही छोड़कर जानना चाहा कि आखिर ये चाहते क्या हैं। क्या वास्तव में इनका हृदय-परिवर्तन हो गया है या फिर इनकी कोई नई चाल है।

“मैं अपने किए हुए आपराधिक कर्मों का सच्चे मन से प्रायश्चित करना चाहता हूँ, बेटी। मुझे अपनी गलती का अब एहसास हो रहा है।” अत्यन्त गम्भीर होकर आका हिज़बुल रब्बानी ने कहा।

इधर आरती की विल-पावर की डिवाइस यह संकेत दे रही थी कि आका के मन में कोई छल-कपट या धोखा देने की भावना नहीं है और अब वे अपने सच्चे मन से प्रायश्चित करना चाहते हैं। और अब ये खून-खराबी और हैवानियत के घिनौने आतंकवादी रास्ते को छोड़कर शान्ति, अमन और चैन के रास्ते पर चलने का मन बना चुके हैं।

विल-पावर की डिवाइस के संकेत पाकर आरती ने आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी से कहा-“आका, अगर वास्तव में आपको अपनी गलती और अपने किए हुए गलत काम का एहसास हो रहा है तब तो मैं अवश्य ही आपकी सहायता करूँगी। पर आका, मैं भी चाहती हूँ कि आप मुझे एक बचन दें।”

“वह क्या है, बेटी।” आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी ने आरती की इच्छा को जानना चाहा।

“आका, आपको एक बचन देना होगा कि आप अब इस खून-खराबी के घिनौने आतंकवादी रास्ते को छोड़कर हमेशा शान्ति, अमन और चैन के रास्ते पर ही चलेंगे।” आरती ने आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी के सामने अपनी शर्त रखी।

“मुझे तुम्हारी ये क्या, हर शर्त मंजूर है बेटी, मैं अपने इकलौते बेटे शौकत अली रब्बानी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।” हिज़बुल रब्बानी ने आरती को बचन देते हुए कहा।

“आका मैं दूसरे आतंकवादियों के विषय में कुछ भी नहीं कह सकती पर आपके बेटे शौकत अली रब्बानी को रिहा कराने का प्रयास तो जरूर ही करूँगी।” आरती ने थोड़ा गम्भीर होकर कहा।

आरती और आका हिज़बुल रब्बानी के बीच होने वाली बातों को दूसरे आतंकवादी संगठन के आका भी सुन रहे थे। उन्हें इन दोनों के बीच होने वाली बातें बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रहीं थी। अब वे समझ चुके थे कि हिज़बुल रब्बानी ने अपने बेटे शौकत अली रब्बानी को रिहा कराने के लिए तो बात पक्की कर ली, पर अपने दूसरे साथियों का क्या? क्या आका हिज़बुल रब्बानी को दूसरे साथियों के विषय में भी बात नहीं करनी चाहिए थी। और अब वे संगठन को छोड़ देने की बात भी कर रहे हैं।

आतंकवादी आका हिज़बुल रब्बानी में अब दूसरे आतंकवादी संगठनों के आकाओं को एक गद्दार नज़र आने लगा। तभी उनमें से एक आतंकवादी ने क्रोध भरे लहज़े में चिल्लाकर कहा-“अरे मिंया हिज़बुल रब्बानी, अब तुम ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। क्या तुम नहीं जानते कि तुम क्या करने जा रहे हो।”

“नहीं अफज़ल मिंया, मैं अपने बेटे के बगैर नहीं रह सकता हूँ और उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।” हिज़बुल रब्बानी ने आतंकी आका अफज़ल मिंया को दो टूक जबाव देते हुए कहा।

“तो तुम अपने बेटे के लिए हमसे गद्दारी भी कर सकते हो, मिंया हिज़बुल रब्बानी। हमें तुमसे ऐसी उम्मीद तो न थी कि तुम अपने वायदे से ऐसे मुकर जाओगे और हमें बीच मँझधार में ही छोड़ दोगे।” अफज़ल मिंया ने हिज़बुल रब्बानी से कहा।

“इसमें मेरी वादा-परस्ती कैसे हुई अफज़ल मिंया, बताओ तो सही। ये तो मेरा मन है कि मैं संगठन में रहूँ या न रहूँ, मैं उसके लिए काम करूँ या न करूँ। इसमें मुझ पर कोई बन्धन तो है नहीं और ना ही कोई वादा-परस्ती।” हिज़बुल रब्बानी ने कहा।

तभी दूसरे आतंकी आका मुल्ला फजलुल्लाह ने क्रोधित होकर चिल्लाकर कहा-“इस गद्दार हिज़बुल रब्बानी को तो हम बाद में भी देखते रहेंगे, पहले तो गद्दारी की जड़, इस शातिर लड़की को ही ठिकाने लगाए देते हैं अभी। और वैसे भी इसका यहाँ से जिन्दा निकलकर बाहर जाना हम सभी के लिए खतरे से खाली नहीं होगा। और अब ना रहेगा बाँस और ना ही बजेगी बाँसुरी।”

और ऐसा कहने के साथ ही उसने और उसके बॉडी-गार्डस् ने आरती के ऊपर एके 57 से गोलियों की बौछार ही शुरू कर दी।

पर ये क्या एके 57 रायफलस् से निकलने वाली हर गोली आरती के अदृश्य सुरक्षा-कबच से टकरातीं और फिर रिफ्लैक्ट होकर दूसरी दिशा में चली जाती। कुछ गोलियाँ तो उसके आस-पास खड़े लोगों को लगी और वे या तो बुरी तरह से घायल हो गए या फिर चल बसे। साथ ही कुछ गोलियाँ पास में ही रखे हुए गोला-बारूद के जझीरे से और बम्बों से जाकर टकरा गईं।

और फिर देखते ही देखते सारा गोला-बारूद आग के हवाले हो गया। फट-फट करके बम्ब दिवाली के पटाखों की तरह फूटने लगे। दिवाली थी या खून की होली हो रही थी, यह तय कर पाना बेहद मुश्किल था। एक के बाद एक, एक से बढ़कर एक, अनेक बम्बों के सीरियल ब्लास्ट होने लगे। पूरा अण्डर-ग्राउण्ड तहखाना आग के गोलों में बदल गया। सब के सब लोग अचम्भित रह गए। कोई कुछ भी समझ नही पा रहा था कि ये क्या हुआ।

पूरे तहखाने में केवल आग ही आग और काला धुँआ ही नज़र आ रहा था। विस्फोट पर विस्फोट हो रहे थे। अनेक मानव अंगों और तमाम सामान के परखच्चे उड़े पड़े थे चारों ओर। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया था।

कहाँ पर कौन-सा बम्ब फट पड़ेगा और उस बम्ब का विस्फोट कितना शक्तिशाली हो, किसी को कुछ भी पता नहीं था। सबको अपनी जान की पड़ी थी। अपनी जान बचाने के लिए लोग इधर से उधर भागे भागे फिर रहे थे। हर ओर आग ही आग थी और हर ओर मौत ही मौत।

अब आतंकवादी आका मुल्ला फजलुल्लाह को अपने किए हुए पर पछतावा हो रहा था। क्रोध और आवेश में आकर वह यह तो भूल ही गया था कि जिस स्थान पर खड़ा होकर वह मूर्ख फाइरिंग कर रहा था वह स्थान तो गोला-बारूद और अत्यन्त आधुनिक हथियारों के एक बहुत बड़े जझीरे से भरा पड़ा था। पर अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुँग गईं खेत। अपनी और अपने आतंकवादी संगठन की बरबादी की कहानी अपने आप ही लिख दी थी मूर्ख आतंकवादी आका मुल्ला फजलुल्लाह ने।

इससे पहले कि आतंकवादी आका हिज़बुल रब्बानी आग की प्रचण्ड लपटों में घिर पाते, उससे पहले ही आरती ने उनके हाथ को पकड़ कर खींच लिया और अपने बाल-यान के अन्दर बैठा लिया। बाल-यान के अन्दर आरती और ऐंजल ऐनी के साथ में आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी पूर्णरूप से सुरक्षित थे।

आतंकवादी मुल्ला फजलुल्लाह, अफज़ल मिंया, फारुक अली और दढ़ियल खलीफा अब्दुल जब्बारी आदि अनेकों आतंकवादियों को आग की लपटों में झुलसते हुए और अपनी जान बचाने के लिए घिघियाते हुए, तड़फते हुए और चिल्लाते हुए देखा गया। पर उन्हें बचाने वाला कोई भी नहीं था वहाँ पर और उन्हें देखने वाले बचाना भी नहीं चाहते थे ऐसे पापी हत्यारों को।

आग की लपटों में घिरा हुआ आतंकी दढ़ियल खलीफा अब्दुल जब्बारी अपनी जान को बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ ही रहा था तभी सामने से एक हैन्ड-ग्रेनेड उसके सिर पर आ गिरा और देखते ही देखते उसके शरीर के परखच्चे ही उड़ गए। उसकी लाश तो पहचानने के लायक भी न रह गई थी।

पाप का घड़ा जब भर जाता है तब ऐसे ही तो फूटता है। आज आतंकवाद का एक बहुत बड़ा ठिकाना पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका था। उसकी दहकती आग के आगोश में आ चुके थे अनेक आतंकवादी जेहाद की ट्रेनिंग देने और लेने वाले गुमराह जेहादी भी और उनके संस्कारों में नफरत, हिंसा और जेहाद का ज़हर घोलने वाले आतंकी आका भी।

आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी का आतंकवादी संगठन और उसका पूरा नैट-वर्क पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका था। अनेक खुँख्वार आतंकवादी भी जलकर खाक हो चुके थे।

बाहर खड़ा हुआ लोगों का हुज़ूम आग की ऊँची-ऊँची लपटों के अम्बार को देख रहा था। अन्दर क्या हुआ और कैसे हुआ, बाहर खड़े हुए सभी लोगों में यह जानने की आतुरता तो थी। पर आग की प्रचण्ड लपटों के बीच अन्दर जाने की हिम्मत किसी में भी न थी और बाहर निकलकर कोई आ नही पा रहा था।

आरती, ऐनी ऐंजल और आका हिज़बुल रब्बानी बाल-यान में बैठकर तहखाने से सकुशल और सुरक्षित बाहर आ गए। हिज़बुल रब्बानी को छोड़कर ऐसा कोई भी आतंकवादी नहीं था जो कि तहखाने से जिन्दा निकलकर बाहर नहीं आ सका हो।

आरती और आतंकवाद के मुख्य सरगना हिज़बुल रब्बानी को आग की लपटों में से सकुशल बाहर निकलते देखकर सभी को आश्चर्य भी हुआ और अन्दर क्या हुआ, आग कैसे लगी, इतने सारे बम्ब-विस्फोट कैसे हुए, यह सब कुछ जानने की इच्छा भी हुई।

और जब मीडिया को इस बात का पता चला कि यह लड़की तो वही देश की बहादुर बेटी आरती है जिसने अभी कुछ दिन पहले ही पीएम के ड्रीमलाइनर विमान को हाईजैक होने से बचाया था और उसी का इन आतंकियों ने अपहरण कर रखा था।

उसी बहादुर बेटी आरती को अपने सामने देखकर मीड़िया-कर्मियों में तो रिपोर्टिंग की होड़ ही लग गई। अब तो आरती के ऊपर अनेक प्रश्नों की बौछार ही होने लगी। पर आरती ने किसी भी रिपोर्टर को निराश नहीं किया और सभी ऐंकर्स, रिपोर्टर्स और मीडिया-कर्मी को सन्तोषजनक उत्तर भी दिए।

“आतंकवादियों से मुकाबला करते समय आपको किसी प्रकार का डर तो नहीं लगा।” एक पत्रकार ने पूछा।

“इसमें डरने की क्या बात है। जिसके पास विल-पावर होती है उसके लिए किसी से भी डरने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता है और वह अपने हर लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है।” आरती ने उत्तर दिया।

“आतंकवादी संगठन ने आपका किडनैपिंग करके सरकार और व्यवस्था से क्या-क्या माँग रखी थी।” एक पत्रकार ने पूछा।

“आपके इस प्रश्न का उत्तर या तो आतंकवादी संगठन के लोग दे सकते हैं या फिर सरकार के प्रतिनिधि और प्रवक्ता। मुझे तो इस विषय में कुछ भी नहीं मालूम है।” आरती ने कहा।

“आतंकवादियों ने आपको बन्धक बनाकर क्या कोई गलती तो नहीं की।” एक रिपोर्टर ने प्रश्न किया।

“नहीं, मुझे बन्धक बनाकर उन्होंने कोई भी गलती नहीं की और उनके इस सहयोग के लिए मैं उनकी आभारी हूँ।” आरती ने कहा।

“वह कैसे” आश्चर्यचकित होकर रिपोर्टर ने पुनः पूछा।

“यदि वे मेरा किडनैपिंग करके मुझे बन्धक नहीं बनाते, तो मैं उनके आतंकवादी संगठन के मुख्य केन्द्र तक कभी भी नहीं पहुँच सकती थी। अपने संगठन के मुख्य केन्द्र तक पहुँचाकर उन्होंने मेरी ही नहीं वल्कि सम्पूर्ण मानवता की सहायता की है।” आरती ने हास्य का सम्पुट देते हुए कहा।

“मैं समझा नहीं, विस्तार से बताऐं।” रिपोर्टर ने पुनः किया।

“दुनियाँ भर के अनेक आतंकवादियों को आतंकवादी संगठन के मुख्य केन्द्र पर एकत्र करके उन्होंने मेरे काम को बहुत ही आसान कर दिया था। और फिर वे अपने ही कर्मों से विस्फोटक सामान के साथ स्वाहा हो गए। यहाँ पर रखे हुए गोला-बारूद, बम्ब, हैन्ड-ग्रेनेड आदि के इतने बड़े जखीरे का यदि यहाँ खात्मा न हुआ होता तो इन सबके प्रयोग से लाखों निर्दोष लोग मारे गए होते। और पता नहीं, न जाने कितने मन्दिर-मस्जिद और चौराहे कब्रिस्तान बन गए होते।” आरती ने गम्भीरता पूर्वक कहा।

“तहखाने के अन्दर लगभग कितने आतंकवादी रहे होंगे।” एक रिपोर्टर ने आरती से जानना चाहा।

“तहखाने के अन्दर केवल आतंकवादी ही नहीं, आतंकवादियों के ट्रेनिंग-कैम्प भी चलते थे। और इस ट्रेनिंग-कैम्प में लड़के और लड़कियाँ दोनों ही काफी संख्या में शामिल थे। हजारों की संख्या में युवा लड़के और लड़कियों का ब्रेन-वॉश कर उन्हें आतंकवाद और जेहाद की ट्रेनिंग दी जाती थी।” आरती ने बताया।

“तब तो इन लोगों का बहुत बड़ा नैट-वर्क चलता होगा, यहाँ से।” रिपोर्टर ने आश्चर्यचकित होकर कहा।

“पर इतना अच्छा हुआ कि कोई भी आतंकवादी इस तहखाने से बाहर नहीं निकल सका। सब के सब अन्दर ही जलकर स्वाहा हो गए। जो जीवित निकलकर बाहर आ सके हैं वे हैं आतंकवादी संगठन के मुख्य सरगना आका हिज़बुल रब्बानी। और अब वे मेरे साथ, मेरे मिशन पर काम करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने मुझे अपनी बेटी भी बना लिया है।” आरती ने रिपोर्टर को बताया।

“अब आपका अगला मिशन क्या होगा और क्या आप अपने अगले मिशन के विषय में हमें कुछ बताना चाहेंगे।” रिपोर्टर ने पूछा।

“यूँ तो हम लोग अपने यहाँ पर बाल-मजदूरी, नारी-शिक्षा और सुरक्षा, बचपन-बचाओ, घर-घर पहुँचे कलम-किताब जैसे बाल-कार्यक्रमों को बड़ी ही सफलता पूर्वक चला रहे हैं। बेटियों के लिए अनेक स्कूल और कॉलेज भी खोले जा रहे हैं। पर आतंकवादी संगठन ने हमें अपने आप बैठे-बिठाए आतंकवादियों के खात्मा करने का यह श्रेय भी दे दिया। सच तो यह है कि यदि आतंकी लोग मेरा किडनैपिंग करके मुझे यहाँ पर न लाए होते तो शायद यहाँ के आतंकवादी संगठन के मुख्य केन्द्र का और विश्व के एक बहुत बड़े आतंकी नैट-वर्क का सफाया न हो पाता।” आरती ने रिपोर्टर से कहा।

“क्या आप अपने यहाँ के मिशन के विषय में कुछ और कहना चाहेंगे।” रिपोर्टर ने पूछा।

“पर्दा-प्रथा यहाँ की सबसे बड़ी ज्वलन्त समस्या है। और इस प्रथा को समाप्त करने के लिए अब हमें सबसे पहले कदम उठाना होगा। पर्दा-प्रथा ही समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक है साथ ही देश और समाज की प्रगति में बाधक भी है। दूसरा हमें लड़कियों के हाथों तक कलम और किताब पहुँचानी होगी। क्योंकि जब समाज में शिक्षित बेटियाँ होंगी तभी तो शिक्षित परिवार और शिक्षित राष्ट्र बन सकेगा। शिक्षित होकर ही लड़कियाँ समाज के विकास की मुख्य धारा में शामिल होकर अपना सही ढंग से योगदान दे सकेंगी।” आरती ने रिपोर्टर को बताया।

“आपके इस कदम का घाटी में निश्चित रूप से विरोध होगा। साथ ही घाटी के लोग आपकी इन सब बातों को स्वीकार भी नहीं करेंगे। क्योंकि उनकी धार्मिक परम्पराऐं उन्हें ऐसा करने की इज़ाजत नहीं देतीं हैं।” रिपोर्टर ने शंका व्यक्त करते हुए कहा।

“हमारा काम यहाँ के लोगों को इस विषय में समझाना है और इसके दूरगामी अच्छे परिणामों से उन्हें अवगत कराना है। मेरा मन कहता है कि वे हमारी बातों को समझेंगे भी और मानेंगे भी।” आरती ने आत्मविश्वास भरे शब्दों में कहा।

“पर मैं नहीं मानता कि वे आपकी बात को इतनी आसानी से मानने के लिए तैयार हों जाऐंगे।” रिपोर्टर ने पुनः शंका व्यक्त की।

“घाटी के लगभग सभी लोग आका हिज़बुल रब्बानी जी को अपना सर्वेसर्वा मानते हैं। वे उनका सम्मान भी करते हैं और उनके आदेश का पालन भी करते हैं। मेरी उनसे बात हो चुकी है और वे मेरे साथ काम करने का मन भी बना चुके हैं। उनका आदेश घाटी के लोगों के लिए पत्थर की लकीर जैसा ही होता है। उनका आदेश घाटी के सभी लोगों के लिए मान्य भी होगा।” आरती ने रिपोर्टर को इस रहस्य को समझाते हुए कहा।

“यदि आका हिज़बुल रब्बानी जी का सहयोग आपको प्राप्त होगा तब कोई भी समस्या आपके सामने आने वाली नहीं है।” रिपोर्टर ने आश्वस्त होकर कहा।

“आका हिज़बुल रब्बानी इस अभियान में मुझे केवल सहयोग ही नहीं देने वाले हैं वल्कि वे ही इस अभियान का संचालन करने वाले हैं। यह अभियान उन्हीं की देख-रेख में चलेगा।” आरती ने रिपोर्टर को समझाते हुए कहा।

इसके बाद आरती ने रिपोर्टर से कहा-“और कुछ ही दिनों में घाटी में होने वाले अकल्पनीय विकास के गज़ब के परिवर्तन की रिपोर्टिंग करने के लिए, घाटी को और घाटी की जनता को आप सभी का इन्तज़ार रहेगा।”

“अवश्य, घाटी के विकास और इसके अकल्पनीय परिवर्तन का हमें इन्तज़ार रहेगा और इसकी पहली रिपोर्टिंग मेरी होगी। ये मेरा आपसे वादा है।” पत्रकार ने खुश होकर आरती से कहा।

और फिर एक रिपोर्टर ने आतंकवादी संगठन के मुख्य सरगना आका हिज़बुल रब्बानी की ओर अपना माइक करते हुए उनसे पूछा-“क्या आप इस घटना के विषय में कुछ कहना चाहेगें।”

“मुझे इस घटना से कोई भी दुःख नहीं हुआ है बल्कि प्रसन्नता ही हुई है। पहले तो मैंने सोचा था कि आरती का किडनैपिंग करके मैं अपने बेटे शौकत अली रब्बानी को सरकार के चंगुल से आजाद करा लूँगा, पर आरती से मिलने के बाद अब मैंने निश्चय कर लिया है कि अब मैं अपने हत्यारे बेटे को आज़ाद कराने का प्रयत्न नहीं करूँगा और आरती को ही अपनी बेटी मानकर अपनी सारी सम्पत्ति उसके नाम कर दूँगा। और अपने शेष जीवन को जनता की सेवा करने में समर्पित कर दूँगा।” और ऐसा कहते-कहते उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े।

“यहाँ पर आतंकवाद का मुख्य केन्द्र था, अनेक आतंकवादी भी इस तहखाने के अन्दर थे। वे सब के सब अब मारे जा चुके हैं। इस विषय में आप क्या कहना चाहेंगे।” एक रिपोर्टर ने आका हिज़बुल रब्बानी से प्रश्न किया।

“ऊपर वाला अल्लाहताला जो कुछ भी करता है, अच्छा ही करता है और अच्छा ही होगा।” आका हिज़बुल रब्बानी ने कहा।

“आतंकी अड्डे के तहस-नहत हो जाने के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे।” इस विषय में रिपोर्टर ने हिज़बुल रब्बानी के मत को जानना चाहा।

“आतंकी अड्डे का तहस-नहत हो जाना, घाटी के विकास के लिए शुभ संकेत है। इस अड्डे के कारण ही घाटी का विकास नहीं हो सका।” आका ने अपना मत स्पष्ट किया।

“घाटी में आप क्या-क्या परिवर्तन करना चाहेंगे।” रिपोर्टर ने आका हिज़बुल रब्बानी से पूछा।

“पर्दा-प्रथा को नाबूद करना और लड़कियों के लिए आधुनिक सुविधाओं से सुसज्ज स्कूल, मदरसे और कॉलेजों को खोलना मेरी प्राथमिकता रहेगी।” आका हिज़बुल रब्बानी ने बताया।

मीडिया और प्रेस के सभी प्रश्नों का सन्तोष-जनक उत्तर देकर और सभी को धन्यवाद कहते हुए आरती अम्मीज़ान के घर की ओर चल पड़ी और उसके साथ थे आतंकवाद के बेताज बादशाह आका हिज़बुल रब्बानी भी।

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