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MEDICAL TOURISM IN INDIA

भारत में मेडिकल टूरिज्म का फैलता कारोबार

इंडस्ट्री चेंबर एसोचैम की माने तो भारत में मेडिकल टूरिस्ट का विस्तार तेजी से हो रहा है.इंडस्ट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार सन्‌ 2008 में लगभग 50 लाख विदेशी भारत में अपना इलाज कराने आये थे.आलम यह है कि 2011 में विदेशी सैलानियों की संख्या जहां 980 मिलियन थी वह 2015 में बढ़कर 1.8 बिलियन हो गई. भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ टूरिज्म के आंकड़ों के अनुसार भारत में विदेशियों की रफ्‌तार 2009 में जहां 2.2 फीसदी थी वह 2010 में बढकर 2.7 फीसदी हो गई. और इसकी संख्या 15 फीसदी की दर से बड़ी तेजी से बढ रही है.और दस मिलियन नये जॉब के द्वार खुलने जा रहे हैं.

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1.बहत्तर वर्षीय बुजर्ग ब्रिटिश नागरिक जॅार्ज मार्शल ब्रिटेन के अस्पताल में हार्ट संबंधित समस्या लेकर गये तो एंजियोग्राम के बाद चिकित्सक ने बताया कि उन्हें कॉरोनरी आर्टरी डिजीज है. इसके लिए बाईपास सर्जरी करानी पड़ेगी. ऑपरेशन के लिए जब हामी भरी तो उन्हें बताया गया कि फिलहाल सीट खाली नहीं है. वेटिंग लिस्ट काफी लंबी है. कम से कम छह माह तक इंतजार करना पड़ेगा. प्राइवेट हॉस्पिटल में जब उन्होंने खर्चे की जानकारी ली तो पता चला कि करीब 19 हजार डॉलर खर्च करने होंगे. न तो वे छह माह तक इंतजार कर सकते थे और न ही प्राइवेट अस्पताल में इतनी रकम खर्च करने के पक्ष में थे.

अंत मे उन्होंने इंडिया जाने का फैसला किया. अपने देश से करीब 5000 किमी दूर भारत के बैंगलोर में बोक्‌हार्ड हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्‌यूट जाकर उन्होंने बाईपास सर्जरी करायी जहां ब्रिटेन की तुलना में आधी से भी कम रकम खर्च हुई. आने जाने का एअर—चार्जज भी उसी में शामिल था.

‘‘यहां आने के बाद मुझसे पूछा जाता है कि क्या आप यहां दूसरे ब्रिटिश नगरिक को इलाज कराने के लिए प्रेरित करेंगें तो मैं उनसे साफ साफ कहता हूं कि क्यों नहीं? यहां तो वर्ल्ड क्लास की सारी मेडिकल फैसिलिटीज हैं. यूरोप में,जर्मनी तथा बेल्जियम के अस्पतालों में ब्रिटेन की तुलना में सुपर स्पेशलिस्टों की संख्या काफी कम है. दूसरी बात कि भारत की तुलना में यूरोप काफी एक्सपेंसिव भी है. इसलिए यहां इलाज कराना हर मायने में फायदेमंद और आराम दायक है.''

2.अमेरिकी नागरिक राबर्ट वाल्टर जब भारत के एअरपोर्ट पर लैंड किये तो कमर दर्द,स्टीफनेस तथा अकड़न के कारण चल फिर नहीं पाते थे. पिछले कई सालों से वे इस समस्या से जूझ रहे थे. लेकिन,ठीक 24 दिनों बाद दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल में ‘रेयर हीप रिप्लेशमेंट' कराने के बाद न केवल उन्हें इस परेशानी से छुटकारा मिल गया बल्कि विश्व प्रसिद्ध ताजमहल देखने के लिए उन्होंने आगरा की यात्रा भी की.

राबर्ट के शब्दों में—‘‘मेरे पास ब्रिटेन या बेल्जियम जाने का भी आप्सन था. लेकिन, मैंने इंडिया आना उचित समझा. क्योंकि वहां का ट्रिटमेंट कॉस्ट इंडिया की तुलना में काफी ज्यादा है.'' भारत में उन्हें इसके लिए मात्र 6,600 डालर ही खर्च हुए जबकि यूनाटेड स्टेट में इसका कॉस्ट 24 हजार डॉलर है. ब्रिटेन में जहां इस तरह के ऑपरेशन की शुरूआत कुछ ही साल पहले हुई है,वहां इसकी फीस 12000 पाउंड है.''

मेडिकल टूरिज्म के अंतर्गत जब कोई मरीज इमरजेंसी या इलेक्टिव मेडिकल प्रोसिड्‌योर के लिए विदेशों की यात्रा करते हैं तो उसे मेडिकल टूरिज्म कहते हैं. भारत जैसे विकासशील देश ही नहीं पूरे विश्व में इसका विकास और विस्तार बड़ी तेजी से हो रहा है. और, आज यह पूरे विश्व में मल्टी विलियन—डॉलर इंडस्ट्री का बाजार बन चुका है.

विश्व—बाजार में मेडिकल—टूरिज्म

कोई मरीज क्यों अपना देश छोडकर विदेशों का भ्रमण करता है जबकि उसके देश में विश्वस्तरीय चिकित्सा उपलब्ध होती है? क्यों अमेरिका,इंगलैंड, यूनाइटेड स्टेट्‌स, कनाडा के लोग इलाज के सिलसिले में दूसरे देश की खाक छानते हैं?

इनके अलग—अलग कारण हैं. संयूक्त राष्ट्र के बहुत सारे टूरिस्ट विदेशों में इसलिए जाते हैं ताकि अपने देश की तुलना में एक चौथाई या कई बार दहाई कीमत पर विश्वस्तरीय इलाज हो जाता है. ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र में मेडिकल चिकित्सा दुनिया के कई देशों की तुलना में काफी मंहगी हैं. कनाडा के मरीज अपने देश से इसलिए फ्रस्ट्रेटेड रहते हैं क्योंकि वहां के अस्पतालों में लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है. वेटिंग लिस्ट काफी लंबी होती है सो अलग. ग्रेट ब्रिटेन के मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए इंतजार तो नहीं ही कर पाते, प्राइवेट अस्पतालों में भी मंहगे इलाज के कारण नहीं जा पाते हैं. इसलिए वे विदेशों की ओर रूख करते हैं. कई विदेशी किसी खास देश में अपना इलाज कराने जाते हैं जहां चिकित्सा की बेहतर सुविधाओं के साथ—साथ पर्यटन—स्थल तथा धार्मिक स्थानों की मुफ्‌त सुविधा टुरिस्ट एजेंसियां मुहैय्‌या कराती हैं. बंगलादेश जैसे गरीब देश के मरीज इसलिए विदेश जाते हैंं,क्योंकि वहां पर्याप्त चिकित्सा—सुविधा नहीं होती. बंगलादेश तथा पाकिस्तान के मरीज भी इन्हीं कारणों से दूसरे देशों की शरण में जाते हैं.

संयुक्त राज्य अमेरिका के मेडिकल टूरिस्ट एक चौथाई या एक दहाई कीमत पर इलाज कराने के लिए भारत का रूख करते हैं.कनाडा के अस्पतालों में वेटिंग लिस्ट काफी लंबी होती . ग्रेट ब्रिटेन के मरीज न तो लंबी प्रतीक्षा सूची के कारण इंतजार करने की स्थिति में होते हैं और न ही प्राइवेट अस्पतालों में मंहगी चिकित्सा कराने केा इच्छुक होते हैं

वे देश जो मेडिकल टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के प्रति पूरी निष्ठा और सक्रियता के साथ लगे हैं,उनमें क्यूबा,हंगरी,इंडिया,इजराइल,जॉर्डन,लिथुयानिया,मलेशिया तथा थाइलैंड प्रमख हैं. आजकल बेल्जियम,पोलैंड तथा सिंगापुर भी इस क्षेत्र में कदम रख रहा है. साउथ अफ्रिका भी इसके लिए आजकल आकर्षण केा केंद्र बना हुआ है क्योंकि वहां की एजेंसी जंगली हाथी,श्ेार का दर्शन कराने जैसी सुविधाएं प्रदान कर रही हैंं.

विश्व—पटल पर भारत का उदय

एनडीए की सरकार में वित्तमंत्री श्री जसवंत सिंह ने भारत को पूरी दुनिया का ‘‘ग्लोबल हेल्थ डेस्टिनेशन'' कहा था.‘‘क्योंकि यहां संयुक्त राज्य अमेरिका या ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की तुलना में काफी सस्ती दरों पर चिकित्सा—सुविधाएं उपलब्ध हैं. वहां के काफी मरीज अपना इलाज कराने के लिए भारत आ रहे हैं तो अकारण नहीं.''एक कार्पोरेट हॉस्पिटल के चिकित्सक की बात गौर करने लायक है—‘‘यदि इन कार्पोरेट अस्पतालों के दरवाजे अंदर से बंद कर लें तो ऐसा लगेगा कि आप अमेरीकी अस्पताल पहुंच गये हैं.'' इस सेक्टर में ग्रोथ की स्थिति और संभावनाओं को देखते हुए भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय ही नहीं ,विभिन्न राज्यों कि टूरिज्म बोर्ड के साथ—साथ कई प्राइवेट सेक्टर्स भी यह मानने लगे हैं कि इस क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं हैं.

इंडस्ट्री चेंबर एसोचैम की माने तो भारत में मेडिकल टूरिस्ट का विस्तार तेजी से हो रहा है.इंडस्ट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार सन्‌ 2008 में लगभग 50 लाख विदेशी भारत में अपना इलाज कराने आये थे. आलम यह है कि 2011 में विदेशी सैलानियों की संख्या जहां 980 मिलियन थी, 2015 में बढ़कर 1.8 बिलियन हो गई. भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ टूरिज्म के आंकड़ों के अनुसार भारत में विदेशियों की रफ्‌तार 2009 में 2.2 फीसदी थी जो 2010 में बढकर 2.7 फीसदी हो गई. और इसकी संख्या 15 फीसदी की दर से बड़ी तेजी से बढ रही है.

क्यों दुनिया भर के चिकित्सा सैलानी अपना इलाज कराने के लिए भारत आते हैं या आना चाहते हैं? क्यों भारत के कारपोरेट हॉस्पिटल्स पूरे विश्व में मेडिकल टूरिस्टों का सरताज बना हुआ है? सीधा—सा जवाब है—क्योंकि यह देश ‘‘वर्ल्ड क्लास क्वालिटी मेडिकल ट्रीटमेंट इन वेरी अफोर्डेवुल प्राइस'' में चिकित्सा सुविधा प्रदान करता है.

गार्ज्िायन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में दक्ष, कुशल और हाइली क्वालिफाइड डॉक्टरों की बढती संख्या,लो ट्रीटमेंट कॉस्ट और विश्वस्तरीय चिकित्सा सेवा का द्रुत—गति से विकास इनके उत्प्रेरक हैं. भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा सिस्टम के कारण कंप्यूटर प्रोग्रामर तथा इंजीनियर के साथ साथ प्रति वर्ष 20 से 30 हजार टॉप क्लास के मेडिकल प्रोफेसनल्स तथा नर्सेस भी तैयार हो रहे हैंं. इस कारण भी भारत में चिकित्सा—सेवा के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है.

भारत के कई कारपोरेट अस्पताल अमीर विदेशी मरीजों को कई तरह के आकर्षक पैकेज भी दे रहे हैं. जैसे एअरपोर्ट से हॉस्पिटल तक आने—जाने तथा अस्पताल में इंटरनेट सर्फ करने की व्यवस्था से लेकर खाना बनाने के लिए प्राइवेट सेफ तक शामिल है. आजकल मरीजों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सर्जरी पैकेज के साथ—साथ योग,मेडिटेशन और पर्यटन स्थल,धार्मिक मंदिरों का टूर कराना भी शामिल किया जा रहा है. यही कारण है कि आजकल कई विदेशी बे्रन ऑपरेशन और हिप रिप्लेसमेंट के साथ साथ योग और आयुर्वेद का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए आ रहे हैं.

इसमें दो मत नहीं कि यहां बड़ा से बडा ऑपरेशन अत्यंत कम कीमत पर हो जाता है. भारत के कारपोरेट हॉस्पिटल्स विदेशियों के लिए और भी कई तरह की सुविधाएं प्रदान करता है.यहां के अस्पतालों में आधुनिक टेक्नालॉजी के साथ विश्वस्तरीय मेडिकल फैसलिटीज हैं. चिकित्सकाें की बात करें तो यहां अस्पतालों में उच्च शिक्षा प्राप्त फिजिशियंस,सर्जन्‌स तथा हॉस्पिटल्स स्टाफ की टीम की एक लंबी—चौड़ी श्रृखला चौबीसों घंटे उपलब्ध रहती हैं.उच्च शिक्षा प्राप्त स्टाफ यानी नो लैंग्वेज प्रॉलम. प्राइवेट रूम,ट्रासलेटर,पा्रइवेट शेफ और समर्पित स्टाफ के कारण विदेशी मरीजों को यहां इलाज कराने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती.

जहां तक कीमतों की बात है तो विदेशों के डोमेस्टिक प्राइवेट हेल्थ केयर की तुलना में काफी कम कीमत पर बड़ी से बड़ी सर्जरी की जाती है. इन अस्पतालों में नार्थ अमेरिका तथा संयुक्त राष्ट्र की तुलना में 60 से 80 फीसदी कम कीमत पर इलाज की सुविधाएं उपलब्ध हैं.यहां इलाज के लिए कोई वेट्रिग लिस्ट नहीं होती यानी मरीज को थोड़ा भी इंतजार नहीं करना पड़ता.

किफायती इलाज

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां के अस्पतालों में एशिया के दूसरे अस्पतालों की तुलना मेंख् ार्चा लगभग एक तिहाई होता है. कुछ आपरेशन्स के चार्जो की तुलना करें तो सारी बातें समझ में आ जायेगी. सबसे पहले बात हार्ट सर्जरी की. संयुक्त राष्ट्र में इसका चार्ज 1.3 लाख अमेरिकी डॉलर है,थाइलैड में 22 हजार और खाड़ी देशों में करीब 41 हजार. लेकिन भारत के कारपोरेट अस्पतालों में मात्र 7 हजार डॉलर में ही यह ऑपरेशन हो जाता है. उसी तरह हिप रिप्लेसमेंट की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र संघ में जहां 57 हजार डॉलर खर्च करने पड़ते हैं वहीं खाड़ी देशों में 46 हजार और मलेशिया में 12 हजार,जबकि भारत में यह आपरेशन महज 7 हजार में ही हो जा रहा है. यू एस ए में बोन मैरो ट्रांस प्लांटेशन की कीमत 2.5 लाख डॉलर है तो भारत में 50 से 60 हजार डालर में ही यह ऑपरेशन हो जा रहा है.

लीवर ट्रांसप्लांटेशन अमेरिका में 3 लाख डॉलर में होता है पर भारत में 70 से 80 हजार डॉलर में ही हो जा रहा है.इस कारण ब्रिटेन और यूनाइटेड स्टेट्‌स के अमीर मरीज भी खिंचे आते हैं.यूरोप में लीवर ट्रांसप्लांट का चार्ज 60 से 70 लाख रूपये है.संयुक्त राष्ट्र में इसके दुगना से भी ज्यादा. हैदराबाद के ग्लोवल अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांट 15 से 20 लाख में संपन्न हो जाता है. चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप में लगभग दो लाख में ही ओपेन हार्ट सर्जरी आजकल हो जा रही है.यही कारण है कि भारत में आजकल विदेशी पर्यटक खासकर अंग प्रत्यारोपण,घुटने बदलवाने,ओपेन हार्ट सर्जरी तथा दूसर ऑपरेशन के लिए भारत बहुत बड़ी संख्या में आते हैं.एक अनुमान के अनुसार मुंबई के लीलापती,जसलोक,ब्रीच कैंडी,हिंदुजा,अपोलो,बोंबे होस्पिटल तथा बोकार्ड जैसे टॉप हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों में करीब 12 फीसदी विदेशी होते हैं.

आपरेशनों के चार्ज का तुलनात्मक व्योरा—भारत और विदेशों में,;अमेरिकी यू एस डालर मेंद्ध

आपरेशन्स स्ंयुक्त राट्र संघभारतथाइलैंडसिंगापुरमलेशिया साउथ कोरियामैक्सिको कोस्टारिकाखाड़ी देश

बाइपास सर्जरी—

133,0007,00022,00016,30012,00031,70027,00024,10040,900

हार्ट बाइपास विथ वाल्व रिप्लेसमेंट140,0009,50025,00022,00013,40042,00030,00030ए00050,600

हिप रिप्लेसमेंट 57,0007,02012,70012007,50010,60013,90011ए40046,000

नी— रिप्लेसमेंट 53,0009,20011,5009,60012,00011,80014,90010ए70040,200

च्ेाहरा उपर उठाना16,0004,8005,0007,5006,4006,60011ए3004,900

गैस्ट्रिक बाइपास सर्जरीे52,0009,30013,00016,50012,7009,30011,000——

कोई प्रतीक्षा सूची नहीं

भारत की तुलना में अमेरिका और इंगलैंड में मरीजों के इलाज की प्रतीक्षा सूची काफी लंबी होती है.

नेचर आफॅ आपरेशन्स संयुक्त राट्र अमेरिका और इंगलैंड में प्रतीक्षा सूची माह में

ओपेन हार्ट सर्जरी 9 — 11

क्रेेनियो —फेसियल सर्जरी 6 — 8

न्यूरो सर्जरी12 — 14

जटिल स्पाइनल सर्जरी9 .—11

सामान्य स्पाइनल सर्जरी9 — 11

बे्रन ट्‌यूमर सर्जरी

6 — 8

हिप रिप्लेसमेंट 9 .—11

अमेरिका,ब्रिाटेन कनाडा आदि देशों के अस्पतालों में मरीजों की इतनी भीड़ होती है और ऑपरेशन करानेवालों की लिस्ट इतनी लंबी होती है कि गंभीर से गंभीर ऑपरेशन के लिए भी महीनोें इंतजार करना पड़ता है. यह लिस्ट छह माह से डेढ—दो साल लंबी होती है. लेकिन, भारत के कारपोरेट अस्पतालों के साथ ऐसी बात नहीं है. यहां के अस्पतालों में लगभग शून्य वेटिंग लिस्ट होती है. संयुक्त राष्ट्र में ओपेन हार्ट सर्जरी,हिप रिप्लेसमेंट और साधारण और कम्पलेक्स स्पाइन सर्जरी के लिए कम से कम नौ से ग्यारह महीने तथा न्यूरो सर्जरी के लिए एक साल से डेढ साल तक मरीजों को इंतजार करना पड़ता है. छोटे मोटे ब्रेंन ट्‌यूमर या क्रेनियो—फेसियल सर्जरी के लिए ‘भी 6 से 8 माह तक बाट जोहना पड़ता है. ऐसी स्थिति में वैसे मरीज जिनको तकलीफ ज्यादा रहती हैै और जो अपनी तकलीफ से जल्द से जल्द निजात पाना चाहते हैं, वे तो विदेश जायेगं ही। ऐसी स्थिति में भारत के कार्पोरेट अस्पताल उनके लिए वरदान सावित हो रहे हैं.

इतना ही नहीं, भारत में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए और भी कई साधन उपलब्ध हैं. जिसमें प्राचीन वैकल्पिक चिकित्सा जैसे—आयुर्वेद,यूनानी,योगा, मेडिटेशन और थिरैपुटिक मैसाजेज आदि शामिल है. इसके अतिरिक्त यहां सैलानियों के लिए वे सारी चीजें हैं जो दुनिया के किसी भी देश में नहीं है. जैसे—प्राचीन गुफा,पहाड़,प्राचीन मंदिर,धार्मिक,दर्शनीय स्थल,कास्मोपोलिटन सीटीज आदि, जिसे देखकर मन को शांति और सुकून मिलता है. यहां का इतिहास,कला,संस्कृति काफी संबृद्ध है जिसे देखकर शारीरिक—मानसिक सुकून मिलता है. यानी यहां आने वाले मेडिकल टूरिस्टों को आधुनिकता और प्राचीन संस्कृति का संमिश्रण भी देखने का मिलता है.