Ankaha Rishta in Hindi Love Stories by RK Agrawal books and stories PDF | अनकहा रिश्ता

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अनकहा रिश्ता

अनकहा रिश्ता

"महेश, तुमने प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर ली क्या?" रवि ने पूछा.

"हाँ यार, बॉस को वही सबमिट करने जा रहा हूँ और एक हफ्ते की छुट्टी चाहिए तो उसकी एप्लीकेशन भी दे दूंगा", महेश बॉस के केबिन की तरफ बढ़ गया.

उसने दरवाज़ा खोला. बॉस की कुर्सी का मुह पीछे की तरफ होने की वजह से उसे बॉस का चेहरा दिखाई नही दे रहा था.

"मे आई कम इन सर" उसने पूछा.

कुर्सी पलटी, बॉस की जगह कोई खूबसूरत लड़की बैठी हुई थी. अरे हां, वह तो भूल ही गया था, नरेंद्र ने उसे बताया था की आज बॉस की जगह उनकी बीवी आई है.

सुर्ख सारी पहनी, कंटीले नैन नक्श वाली इस लड़की को वो शायद मिल चुका है पहले.

उसकी आँखों के आगे 5 साल पुराने वो सारे दृश्य किसी फिल्म की रील की तरह चलने लगे. भूल भी कैसे सकता है. कितनी यादें जुडी हैं इस चेहरे से.

वह 5 साल पीछे चला गया.

मुंबई के पॉस इलाके में २ मंजिला घर, बड़ा सा खूबसूरत लॉन और शानदार इंटीरियर.

वह तेज कदमो से उस बड़े से लॉन को पार कर घर के मुख्या दरवाजे तक पहुंच गया था.

कॉल बेल बजाई तो इसी खूबसूरत लड़की ने दरवाजा खोला था.

"जी कहिये"जितनी खूबसूरत वह थी, उतनी ही सुरीली उसकी आवाज.

"मेम, मैं महेश हूँ. मुंबई में एक बड़ी आईटी कंपनी को रिसेंटली ऐज अ सॉफ्टवेयर इंजीनियर ज्वाइन किया है मैंने. मैं यहाँ अपने लिए रहने की जगह तलाश कर रहा हूँ. सामान कुछ मेरे पास है नही और खाना वगेरह बनाते मुझे नही आता. क्या आप मुझे अपने घर पर पेइंग गेस्ट रख सकती हैं?" एक ही सांस में उसनेकेह सुनाया.

छवि, हाँ यही नाम है उसका....छवि ने साफ़ इंकार कर दिया.

"जी, आजतक हमने अपने घर पर कोई पेइंग गेस्ट रखा नही है, न ही हमारा ऐसा कोई विचार है "

कहकर वह दरवाजा बंद करने कोई हुई तभी उसके पापा आ गए. उन्होंने ऊपर सीढ़ियों पर खड़े होकर सारा वार्तालाप सुन लिया था.

"रुको." उन्होंने कहा. "हमने आजतक कोई पेइंग गेस्ट नही रखा इसका मतलब ये नही है कि हम आगे भी नही रखना चाहते. तुम देखने में शरीफ लगते हो. हम तुम्हे पेइंग गेस्ट रख सकते हैं पर एक ही शर्त पर.."

" जी मैं हर शर्त मानने को तैयार " महेश की ख़ुशी का ठिकाना नही था. इतने बड़े शहर में रहने क लिए घर मिलना मुश्किल था. उसकी समस्या हल हो चुकी थी.

"हमारी यही शर्त है कि तुम्हे हमारे घर के सभी नियम कायदे मानने होंगे. सुबह समय पर उठना, रात को वक़्त पर घर आना, मर्यादा का ख्याल रखना और रात का खाना पूरा परिवार साथ खाता है. पेइंग गेस्ट बनकर तुम हमारे परिवार का ही हिस्सा बन जाओगे..तो तुम्हे इन बातों का ख्याल रखना होगा "

महेश इतने अच्छे लोगों को पाकर फूला नही समय था. उधर अवधेश सिंह जी..छवि के पिता की चिंता दूर हो गयी थी.. दरअसल उन्हें अपने आगामी बिज़नेस प्रोजेक्ट के लिए दो महीनों के लिए शहर से बाहर जाना था. वे अपनी पत्नी शीला और बेटी छवि को अकेले छोड़कर नही जाना चाहते थे. पहली मुलाकात में ही उन्हें महेश पर ये भरोसा हो चला था की उनके पीछे वह उनके घर और परिवार का ख्याल रखेगा.

जल्दी ही महेश पूरे परिवार से घुल मिल गया. छवि को वह हमेशा 'मेम' ही बोलता था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एक दूसरे से घुल मिल गए. एक दूसरे के ऑफिस के प्रोजेक्ट्स में भी मदद करने लगे. महेश को पता था कि वह छवि की तरफ खिचने लगा था. वह उस से दूर दूर रहने की कोशिश करने लगा.

............

(3 महीने बाद)

होली का दिन है.सभी मस्ती में सराबोर हैं.कॉलोनी में होली का माहोल है. सभी एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं...शीला जी बहुत खुश हैं पर थोड़ी उदास भी.

"ये शायद मेरी बेटी छवि की इस घर पर आखरी होली है. हम उसकी शादी के लिए लड़के देख रहे हैं. एक लड़का देखा है वो बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी का मालिक है" शीला ने अपनी सहेली रीना को बताया.

"अरे शीला, तुझे इतनी जल्दी क्या है छवि की शादी की. वह तो हूर की परी की तरह खूबसूरत है. कोई भी राजकुमार उस देखकर शादी से मना नही कर सकता" रीना ने मुस्कुराते हुए कहा.

"बात तो तुम सही कह रही हो रीना. पर आजकल अच्छे लड़के मिलते कहाँ हैं." शीला ने कहा

महेश पीछे खड़ा ये सारी बातें सुन रहा था. तभी छवि के दोस्त जो उसके भी दोस्त बन चुके थे. वहां आये और महेश को खीचकर होली खेलने ले गए. उसे मजाक मजाक में भांग वाली ठंडाई भी पिला दी. महेश को भांग पीते ही पता नही क्या हुआ. वह दोनों हाथों में लाल रंग लगाकर छवि के पीछे दौड़ा..''मेम, आज तो मैं आपको रंग लगाकर ही रहूँगा"

छवि घबराकर उस से बचने के लिए घर के अंदर की तरफ भागी.

महेश उसके पीछे पीछे भागा. वह सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे कि तरफ भागी, पर दरवाजा बंद करती उस से पहले ही वही भी आ चुका था. अब छवि डरकर अपने बेड के पास खड़ी हो गयी. महेश भांग के नशे में चूर था. वह दोनों हाथ उठकर उसे रंगने के लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा..और उसके एकदम करीब जाकर रुक गया. छवि को लग अब तो वह उसे रंग लगा ही देगा. छवि को रंगों से एलर्जी थी..इसलिए वह रंग नही लगवाना चाहती थी. उसने आँखें बंद कर ली..पर ये क्या..महेश रंग लगाने से पहले ही लड़खड़ा कर छवि के ऊपर गिर गया. और वह पीछे बेड पर गिर गयी. महेश भी उसके ऊपर गिर गया और बेहोश जैसा हो गया. शायद उसे नींद आ रही थी...वह निढाल हो गया. छवि चुपके से उठकर उसके कमरे से बहार आ गयी. उसे सबकुछ बहुत अजीब और नागवार लग रहा था.

दूसरे दिन महेश की नींद खुली. उसने बेडशीट को रंगा हुआ पाया तो खुद पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई..उसे सिर्फ इतना याद था..वह छवि के पीछे रंग लेकर दौड़ा था..इसके आगे उसे कुछ याद नही था.

छवि उस से दूर दूर रहने लगी थी. महेश समझ गया कुछ तो गड़बड़ हुई है उस दिन. वो छवि के पास गया. उस से माफ़ी मांगकर वह अपने कमरे में सामान बाँधने चला गया था. छवि ने उसे रोकने की कोई कोशिश नही की. महेश जानता था कि उसने कुछ गलत नही किया है..वह सिर्फ छवि से प्यार करने लगा है...पर उसे अवधेश जी की मर्यादा में रहने वाली बात याद थी. वह उनका भाॉसा नही तोडना चाहता था. वही छवि का घर छोड़कर हमेशा के लिए चला गया.

"महेश जी" छवि की आवाज ने उसे वापस वर्तमान के धरातल पर ला पटका.

वह कुछ कहता उस से पहले ही वह बोली, "आपकी छुट्टी की एप्लीकेशन मैंने अप्रूव कर दी है"

इतना कहकर वह चली गयी.

महेश समझ नही पा रहा था कि, छवि को कुछ याद नही है या वह याद करना नही चाहती है..