Choraha in Hindi Short Stories by Krunal Rajput books and stories PDF | चोराहा

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चोराहा

-: चोराहा :-

रामकिशोर छोटे शहर के सबसे बड़े चोराहे पर डयूटी देते थे | उनका पद तो सीनियर कोन्स्टेबल का था लेकिन चोराहे पर उनका रुतबा वही था जो थाने में दरोगा का रहेता होगा | वे चोराहे पर अपने जूनियर कांस्टेबल के साथ डयूटी देते | डयूटी तो जूनियर कांस्टेबल देता था, वे तो चोराहे के पास लगे नीम के पेड़ के नीचे एक पान के डिब्बे पास छोटी सी खटिया डाल के बैठते थे | नीम के नीचे पान के डिब्बे का मालिक की ही खटिया का सिंहासन बना लेते और पान के डिब्बे के पास बेठे मुफ्त की पान, चाय और सिगरेट का लुत्फ़ उठाते, पानवाले से बतीयाते रहते थे | बैठे बैठे पैरो में जुंजुनी भर आती तब, बीच बीच में चोराहे के चारो कोनो पर चहलकदमी कर लेते | कोई वाहन चालक लायसंस की जाँच से बचने के लिए नजर बचाके तेज रफ़्तार से भाग जाता तो गाली बोलते हुए अपनी कुरसी पर बेठे बेठे ही अपना पुलीसिया डंडा फ़ेक के मारते थे |

कभी कभार जूनियर कोन्स्टेबल भागते हुए वाहनचालको के पीछे दोड़ता और थक के वापस आकर बोलता की "क्या साहब, आप ही के पास से निकल के भागा वो कमीना, आप जरा खटिया से उतर के दौड़े होते तो 50 रूपया ओर ना छाप लेते ! " तब वे जवाब देते "अबे 50 रुपये के चक्कर में सिगरेट का मजा छोड़ कर भागु ? एक भाग गया है तो दूसरा आ ही जायेगा, पूरी सिगरेट का मजा किरकिरा हो गया | मुड बनाने के लिए अब पान खाना पड़ेगा, तू भी चाय-सिगरेट पी ले बाद में डयूटी दे ले ना |"

कभी कोई स्कुल या कोलेज की लड़किया बिना लाइसंस के स्कूटर चलाती पकड़ी जाती तो कह देते "अरे छोटू, जाने दे यार, वार्निंग दे के जाने दे | कल अगर फिर से तीन सवारी दिखाई दे तो चालान बना देना |" जूनियर कोन्स्टेबल लड़कियों को मुह बिगाड़ कर जाने देता और बाद में फ़रियाद करता "एक तो बिना लाइसंस और ऊपर से तीन सवारी | 100 रुपये का जुगाड़ बन जाता, लेकिन आप ने जाने दिया"|

तब रामकिशोर उसे कह देते " छोटू, पढ़ने के लिए स्कूटर ले जा रही है | कहा बस की भीड़भाड में परेशान होती फिरेंगी | वैसे भी साले आजकल के लडके बसों में कमीनापन करते है | इन्ही की उम्र की मेरी भी बेटी है | अभी कोई उच्चक़के लडके निकलेंगे तब 200 का जुगाड़ बना लेंगे | चल सिगरेट पिला और पान वाले की चारपाई ले आ में जरा कमर सीधी करलु | " जूनियर को अपने साब की बाते पसंद नहीं आती थी क्यों की उसे तो कुछ ओर जुगाड़ करने की कसक होती थी |

एक दिन अजीब सा नजारा था | रामकिशोर साहब चोराहे पर सवेरे से ही जूनियर की जगा के सामने वाले कोने पर खड़े हो गए | जो भी गाड़िया, मोटरसाईकिल निकलती उनके कागज, लाइसेंस, नंबरप्लेट इत्यादी एक एक चीज की जाँच करते | तेजी से भागने वाले वाहनों के आगे आ कर के उनका रास्ता रोक लेते | कोई वाहनचालक अगर भाग जाता तो उसके पीछे पीछे भागते | कोई बच निकालने में कामयाब रहेता तो कोई उनके द्वारा या दुसरे कोने पे खड़े जूनियर के द्वारा पकड़ा जाता तो दो-तीन तमाचे जड़ देते | कुछ ज्यादा रकम एठते और फिर से वही कोने पर जाकर सिगरेट पिने लगते | आज तो लड़कियों से भी पैसा एठ लिया |

गर्मी में भाग भाग कर उनकी कमीज़ गीली हो गयी फिर भी वे आराम नहीं कर रहे थे | पान की दुकान के पास उनकी खटिया भी आज सदमे में थी | दोपहर तक उन्होंने 700 रुपये का जुगाड़ कर लिया था इतना तो वो दिन भर में भी नहीं कर पाते थे | दोपहर में पान वाले की चारपाई पर खाना खाते वख्त जूनियर ने पूछ ही लिया " साहब, क्या बात है ? 25 साल की डयूटी में तो कभी किसी के पीछे भागे नहीं अब क्या बात हो गयी ? 52 के हो चुके हो, अब बुढ़ापे में एकदम ही मिल्खा सिंह क्यों बन रहे हो ? "

रामकिशोर का हाथ टिफिन में ही रह गया, कढ़ी के डिब्बे में उनकी उंगलिया डूब गई | नज़रे कुछ गीली हो गयी | गला साफ कर के बोले " कल बेटी का रिश्ता तय कर दिया है, लडके वालो ने डेढ़ लाख रुपिए नगद और कार की डिमांड की है |"

..... टिफिन की कढ़ी में खारे पानी की कुछ बुँदे गिर गई |