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सेहतमंद बनाती हैं सब्जियां

खानपान/सुनीता सुमन

सेहतमंद बनाती

हैं सब्जियां

शरीर को स्वस्थ, आकर्षक और सुंदर बनाये रखने के लिए संतुलित भोजन में सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में उपयोग बहुत ही आवश्यक है। तरह—तरह की सब्जियां सदियों से यह प्रचूरता के साथ उपलब्ध है, जो मौसम के अनुसार उपजती हैं। कोई पौधे में झूलती हुई, तो कोई लताओं में तो कोई जमीन के नीचे उपजाई जाने वाली साब्जियों के कई प्रकार हैं। कुछ को कच्चा खाया जाता है, तो कुछ को पकाकर। कुछ के पत्ते ही खाए जाते हैं। इनमें मौसमी सब्जियां ज्यादा स्वास्थ्यकर होती हैं। खानपान विशेषज्ञ के मुताबिक किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को प्रति दिन 280 ग्राम सब्जी का सेवन करना आवश्यक होता। इनके उपयोग से हमें रेशे एवं विभिन्न प्रकार के खनिज लवणों में कैल्शियम, फासफोरस,लोहा इत्यादि के अलावा कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, प्रोटीन की प्राप्ति हो जाती है, जो शरीर के निर्माण और सेहतमंद बनाए रखने में आवश्यक भूमिका निभाते हैं।

हरी या रंगीन सब्जियां ने सिर्फ बढ़ते बच्चों के विकास के लिए जरूरी होता है बलकि व्यस्कों में भी पोषण, विटामिन्स और मिनरल्स के लेवल को बनाए रखने के लिए इनकी आवश्यकता पड़ती है। अपने भोजन मैन्यू में न सिर्फ हरी, बल्कि रंगीन सब्जियां को शामिल किया जाना जरूरी होता है। इनसे अगर खाने का स्वाद बढ़ता है और भोजन रूचिकर बन जाता है,तो इनसे शरीर को एंटीऑक्सीडेंट प्रचूर मात्रा में मिल जाता है, जो शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। हरे रंगों वाली सब्जियां हड्डियों के स्वास्थ्य और बालों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। आइये जानते हैं कि प्रमुख सब्जियों में पाये जाने वाले वे कौन से गुण हैं, जिनके इस्तेमाल से स्वस्थ जीवन को सहजता से पाया जा सकता है।

हरी पत्तेदार सब्जियां

पालकः- इसकी सब्जी शीतल, शीघ्र पचने वाली कृमिनाशक है तथा रक्तशोधक, पथरी, स्कैबीज, श्वेतकुष्ठ, पित्त दोष आदि में लाभदायक होती है। इसमें पाए जाने वाले खनिज तत्वों में पोटेशियम, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, लोहा एवं एंटी ऑक्सीडेंट्स आदि पर्याप्त मात्र में होते है विटामिन सी और आयरन मेटाबॉलिज्म ठीक रखते हैं. इससे कैलोरी तेजी से बर्न होती है और वजन नहीं बढ़ता. इसका ग्लाइकेमिक इंडेक्स लेवल कम होता है, जो बॉडी ग्लूकोज लेवल को सामान्य रखने में कारगर है. आंखों की कमजोरी, खून की कमी और बाल झड़ने में भी इसका सेवन काफी लाभदायक है.

बथुआः यह कब्जियत को दूर करने वाला शाक है एवं भूख को बढ़ाता है। पाचन में हल्का होता है। तिल्ली, बवासीर, अजीर्ण आदि रोगों में इसका उपयोग लाभकारी है। इसमें लौह तत्व एवं विटामिन ए पाये जाते हैं।

चैलाई: इसकी तासीर ठंडी होती है और अत्यंत सुपाच्य है। इसके सेवन से भूख बढ़ती है, इसकी

पत्तियों में लौह तत्व एवं विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

सलादः इसकी कोमल तथा रसीली पत्तियों का सलाद के रूप में हरी अवस्था में ही उपयोग किया जाता है। पत्तियों में खनिज पदार्थ एवं विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी पत्तियां मीठी, सुपाच्य, रक्तशोधक, क्षुधावर्धक, पित्तनाशक, हृदय रोग, प्रदर रोग और ज्वर में लाभकारी होती हैं।

मेथीः इसकी हरी पत्तियों से पकाई जानेवाली तरकारी पौष्टिक, वातनाशक और पेचिश की दस्त को रोकने में सहायक होेती है। इसमें खनिज लवण, कैशियम, फाॅस्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, सोडियम एवं विटामिन ए पाये जाते हैं। गठिया के रोगियों के लिए यह काफी लाभदायक है. यह भी आंखों की रोशनी बढ़ाता है. इसके सेवन से अनेक प्रकार के दर्द से छुटकारा मिलता है.

सरसोंः इसकी पत्तियों में सोडियम, फाॅस्फोरस तत्व एवं विटामिन-ए और बी पाये जाते हैं। बथुआ, सरसों एवं पालक तीनों को मिलाकर पकाई जाने वाली शाक बहुत ही गुणकारी होती है।

हरा प्याजः यह पाचक, बलवर्धक, उत्तेजक तथा कफ और ज्वरनाशक होता है। यह लू, गुर्दे व हैजे के रोगियों के लिये इसका सेवन अतिलाभकारी है। प्याज में कैल्शियम, फाॅस्फोरस तत्व एवं विटामिन-सी की मात्रा पाई जाती है। इसका इस्तेमाल मसाले के श्रेणी में किया जाता है।

पुदीनाः गर्मी के दिनों में ‘लू’ से बचने के लिए इसकी पत्तियों का शर्बत अति लाभकारी होता है। इसे चटनी के रूप में भी काफी पसंद किया जाता है तथा यह आंत कृमि को नष्ट करता है। इसके सेवन से हैजे से पीड़ि़त व्यक्ति को भी लाभ पहुंचता है। यह स्वाद और सेहत दोनों लिहाज से फायदेमंद है. दोनों में विटामिन ए भरपूर मात्रा में होता है. पुदीना का अर्क उल्टी-दस्त में लाभदायक है. पुदीने की भाप लेने से जुकाम दूर होता है. पुदीना और तुलसी के पत्ते को पीस कर चेहरे पर लगाने से मुहांसे दूर होते हैं.

फूलगोभीः फूलगोभी में कुछ ऐसे तत्व पाये जाते हैं, जो मानव शरीर की आंतों को साफ करने, चर्म रोग एवं गैस को दूर करने में प्रभावी होते हैं। यह रक्तशोधक के तौर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें खनिज तत्व गंधक, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, प्रोटीन एवं विटामिन-ए व सी उपलब्ध होते हैं।

पत्तागोभीः- यह भी पाचन में सहायक एवं खनिज तत्व गंधक एवं पोटेशियम आदि से भरपूर होता है, एवं उसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह शीतल शीघ्र पचने वाली, हृदय के लिये लाभकारी, कफ, पित्त, बवासीर में लाभदायक होती है।

फल वाली सब्जियां

टमाटरः यह पौष्टिक, अिग्नदीपक, पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला एवं वीर्यवर्धक फल के समतुल्य होता है। इसे कच्चा या पकाकर खाया जा सकता है। स्कर्वी, बेरी-बेरी, रिकेट्स, गुर्दे को ठीक रखने तथा शरीर से विषैला तत्वों को दूर करने में टमाटर का सेवन अतिलाभकारी होता है। इसमें फाॅस्फोरस तत्व के अलावा, विटामिन-बी एवं सी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। चटनी, सूप, साॅस, कैचअप भी टमाटर से तैयार किया जाने वाला रूचिकर व्यंजन है।

बैंगनः यह गर्म, अग्निदीपक एवं कफनाशक होता है। सफेद बैंगन खाने से मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचता है। इसमें गंधक, फॅास्फोरस तथा क्लोरीन तत्वों की बहुतायत होती है।

भिंडीः इसकी सब्जी चिकनी, कफनाशक और पौष्टिक होती है। इसमें खनिज तत्व कैल्शियम, मैग्निशियम, फाॅस्फोरस पोटेशियम एवं विटामिन-ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।

हरी मिर्चीः हरी मिर्ची को सब्जी एवं आचार में प्रमुख रूप से प्रयुक्त किया जाता है। इसमें फाॅस्फोरस एवं कैल्शियम तत्वों के अलावा विटामिन-ए तथा सी भी प्राप्त होते हैं। इसके कई प्रकार हैं, जिसमें शिमला मिर्च का इस्तेमाल केवल सब्जी के रूप में किया जाता है।

परवलः इसकी सब्जी मूत्रवर्धक होती है। यह मस्तिष्क, हृदय एवं रक्त संचार में भी फायदा पहुंचाती है। परवल के तने का काढ़ा बलगम एवं खांसी में लाभप्रद होता है। इसमें 22 किस्म के पोषक तत्व पाये जाते हैं। इसकी सब्जी का सेवन रोगियों के लिए हल्के आहार के तौर पर का कार्य करती है।

चिचिण्डाः इसमें खनिज तत्व कैल्शियम तथा फाॅस्फोरस की मात्रा अधिक होती है एवं यह कब्जियत को ठीक करता है।

सेमः इसकी फली शीतल, मोटापावर्धक, मूत्रावर्धक, दस्तावर, उदारवायु नाशक तथा सूजन में लाभकारी होती है। इसमें प्रोटीन एवं कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, परंतु यह गैस पैदा करती है।

फ्रेंचबीनः- यह एक पौष्टिक सब्जी है। इसमें भी कैल्शियम एवं फाॅस्फोरस होता है।

मटरः इसकी फली मीठा, कसैला, शीतल, मोटापावर्धक, दस्तावर, रक्तशोधक, भूख बढ़ाने वाला, ब्रोंकाइटिस तथा पित्त से उत्पन्न जलन में लाभकारी होती है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, सल्फर इत्यादि खजिन तत्वों की अधिकता होती है।

लोबियाः यह मीठा, कसैला, वायुकारक, भूख बढ़ाने वाला , कफकारक व पित्तनाषक होता है। इसके बीजों में भी फाॅस्फोरस, पोटाशियम एवं विटामिन- बी की मात्रा अधिक होती है।

लौकीः- ये शीतल,शीघ्र पचने वाली, पित्तनाशक और हल्की होती है। इसमें पोटाशियम तत्व की मात्रा पाई जाती है। यह बलवर्धक, कृमिनाशक एवं पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। पीलिया, रक्तविकार,एवं मधुमेह से पीड़ि़त व्यक्तियों केा इसके सेवन से लाभ पहुंचता है। इसमें फाॅस्फोरस, कैल्शियम, विटामिन- ए की मात्रा अधिक होती है। यह डाइजेस्टिव सिस्टम ठीक रहता है. यह भोजन पचाने और पेट साफ रखने में सहायक है. इसमें आयरन भी प्रचुर मात्रा में होता है.

खरबूजाः- इसका फल मीठा, तेलयुक्त, बलवर्धक, मोटापावर्धक, पित्तनाषक, तथा हृदय के लिए बलशाली होता है।

टिण्डाः टिण्डा की सब्जी न केवल स्वादिष्ट, बल्कि पौष्टिक भी होती है। इसका प्रभाव ठंडा होता है। सूखी खांसी तथा रक्तसंचार से पीड़ि़त रोगियों के लिए इसकी सब्जी अत्यंत गुणकारी होती है।

ककड़ीः- यह ठंडी तासीर की होती है। यह शीघ्र पचने वाली सब्जी है। इसमें विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन-सी एवं विटामिन-डी होते हैं।

कंद वाली सब्जी

आलूः यह रक्तपित्त को नष्ट करने वाला, शीतल, भारी एवं मधुर होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं विटामिन-सी की मात्रा अत्यधिक होती है। इसका मुख्य पौष्टिक तत्व स्टार्च है. इसमें कुछ मात्र प्रोटीन की भी होती है. यह शरीर में क्षार की मात्रा नियंत्रित रखता है. इससे ऐसिडोसिस नहीं देता. इसमें सोडियम, पोटैशियम भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं. आलू के हरे भाग में सोलेनाइन नामक विषैला पदार्थ होता है, अत: इसे हटा देना चाहिए. आलू के अंकुरित हिस्से को भी नहीं खाना चाहिए.

अरबीः अरबी बलदायक, कफ को नष्ट करने वाली होती है। इसका स्टार्च आंव पैदा करता है, लेकिन इसमें अजवाइन डाल देने से इसका दोष दूर हो जाता है। देर से पचने के कारण यह रोगी और निर्बल व्यक्तियों के लिए काम की नहीं है। स्वस्थ व्यक्तियों को भी कभी- कभी सेवन करना चाहिए। इसमें पोटाशियम एवं कैल्शियम तत्वों की अधिकता होती है।

रतालूः- इसकी सब्जी अग्निदीपक और रूखी होती है। बवासीर और कफ वालों के लिए लाभ पहुंचाती है।

जिमीकंद(सूरन): यह रूचिकारक, कफनाशक तथा अग्निवर्धक होता है। बवासीर रोगियों के लिए यह अत्यंत लाभकारी है तथा इसमें विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है।

शकरकंदः यह भारी, गर्म एवं पौष्टिक होती है। सब्जी के अतिरिक्त इसका उपयोग हलुआ, आटा एवं अल्कोहल के निर्माण में भी किया जाता है। इसमें फाॅस्फोरस एवं पोटेशियम तत्वों की प्रचुरता होती है।

मूलीः- ठंडी तासीर की होती है। यह हल्की, अग्निप्रदीक, तीक्ष्ण एवं पाचक होती है। कफ, वात विदोही, दाह, शूल आदि का नाश करती है। बवासीर एवं पीलिया के रोगियों के लिये इसका सेवन लाभप्रद है। आंतों के लिये यह एंटीसेप्टिक का काम करती है। पत्तियों एवं जड़ों में पोटाशियम, कैल्शियम एवं फाॅस्फोरस तत्व एवं विटामिन- ए अत्यधिक मात्रा में पाये जाते हैं। यह दांतों को मजबूत बनाता है. इसके पत्तों में विटामिन ए होता है. इसका रस पीलिया के उपचार में लाभदायक है.

गाजरः- कच्ची गाजर खाना अधिक लाभप्रद रहता है। इसमें विटामिन ए सर्वाधिक होता है, जो नेत्र के लिये लाभप्रद है। गाजर पित्त और कफ को नष्ट करने वाली तथा शूल, दाह और तृष्णा को शांत करने वाली है। यह कृमि नाशक एवं गुर्दे के लिये बहुत लाभकारी होती है। इसका रस पीने से शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ती है। इसमें फाॅस्फोरस, पोटेशियम एवं कैल्शियम तत्वों का समावेश होता है।

चुकंदरः- शरीर को शक्ति देने वाला चुकंदर अधिकतर सलाद के रूप में खाया जाता है। पथरी में इसका सेवन करने से लाभ पहुंचता है तथा विटामिन-ए की मात्रा अधिक होती है।

शलजमः यह खून को साफ करती है, परंतु इसे स्वस्थ व्यक्तियों को ही सेवन करना चाहिए। इसे कच्चा या पकाकर दोनों तरह खाया जाता है। इसमें गंधक, फॅास्फोरस एवं कैल्शियम तत्व पाये जाते हैं।

गांठ गोभीः इसमें गंधक, फॅास्फोरस, कैल्शियम एवं विटामिन-सी की प्रचुरता होती है।

मसाले वाली सब्जियां

हल्दीः यह कफनाशक, वादी हरने वाली तथा खून को साफ करने वाली सब्जी है। घाव भरने, हड्डी को जोड़ने और शरीर के रंग को साफ करने के गुण भी इसमें है। इसमें विटामिन-ए पाया जाता है। यह सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला मसाला है।

लहसुनः- खांसी,जुकाम, बुखार, पेट की खराबी, वात रोग इत्यादि में यह अति उपयोगी है। इसकी तासीर गर्म होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के एण्टीबायोटिक्स सत्व पाये जाते हैं। इसको मसाले के रूप में सभी सब्जियों में प्रयुक्त किया जाता है। इसमें फाॅस्फोरस तत्व की मात्रा अधिक होती है।

धनियाः धनिया ठंडी तासीर की होती है। यह पिक्तनाशक, पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला एवं शरीर की गर्मी को दूर करने में सहायक होता है तथा कमजोरी को दूर करता है। हरे धनिये का पानी अपच और उदर रोगों में लाभ पहुंचाता है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन एवं विटामिन-ए की मात्रा अत्यधिक होती है।

अदरकः- इसका उपयोग मसाले के रूप में तथा विभिन्न प्रकार के औषधियों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। पेट के रोग के उपचार में भी इसका सेवन लाभकारी है।

वेजिटेबल सूप

सूप उन लोगों के लिए भी अच्छा विकल्प है, जो कम कैलोरीवाले पेय लेना चाहते हैं। ये सूप विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होने के कारण शरीर को हर प्रकार के पोषक तत्व प्रदान करते हैं। कंपकंपाती ठंड में गरमागरम सूप ऊर्जा देता है, भूख बढ़ाता है। सूप लेने से सर्दियों के कई रोग दूर रहते हैं। इससे डाइजेस्टिव सिस्टम भी मजबूत होता है।

सूप में इस्तेमाल होने वाली सब्जियां:— अक्सर मिक्स वेज सूप बनाते वक्त सब्जियों की मात्राओं के संतुलन का ध्यान रखा जाये, तो ये ज्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ट बनेंगे। मिक्स वेज सूप बनाने वाली सब्जियां इस प्रकार हो सकती हैं:—

हरी सब्जियां- जैसे पालक, मेथी, बथुआ आदि का सूप एक साथ मिला कर बनाएं। इस सूप से रक्तवाहिनियां साफ रहती हैं। मिक्स वेजिटेबल सूप के साथ यदि आप कॉर्न या ब्रोकली मिलाते हैं, तो यह बच्चों का पसंदीदा सूप बन सकता है। पालक, ब्रोकली, हरा प्याज, बंदगोभी, बीन्स, लेमनग्रास आदि कॉम्बिनेशनवाले सूप भी कोलेस्ट्रॉल घटाने में मददगार हैं। डायबिटीज पेशेंट के लिए यह परफेक्ट माना जाता है। टमाटर, प्याज और गाजर को मिला कर बनाये गये सूप से आंखों की रोशनी बढ़ती है। यह हीमोग्लोबिन लेवल भी बढ़ाता है।

कृत्रिम सूप: बाजार में मिलने वाले रेडीमेड सूप में पौष्टिक तत्व नाममात्र के होते है। कोशिश करें कि घर पर ही ताजी सब्जियों का सूप बनाएं। ताजा सूप फाइबरयुक्त होता है, जो कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करता है। यह पौष्टिक तो होता ही है, स्वाद में भी रेडीमेड सूप से बेहतर होता है।

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