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प्रेम और विश्वास

Amrita Shukla

ami11.shukla@gmail.com

भारत ऐसा देश है जहाँ पर विभिन्न धर्म,विभिन्न सस्कृतियों, विभिन्न बोलियोंं का संगम है।सभी व्यक्तियों को अपने धर्म के अनुसार धार्मिक स्थलों पर जाने और पूजा करने का पूरा अधिकार रहता है।हर धर्म कीे पूजन विधियांऔर रीति_रिवाज भिन्न भिन्न होते हैं।किंतु सबका एक ही उद्देश्य रहता है कि प्रत्येक कार्य पवित्रता के साथ प्रारंभ हो और उसकी शुभता बनी रहे,वह श्रेष्ठ बना रहे।हिन्दू अथवा सनातन धर्म संस्कारों पर ही आधारित है। ऐसा माना जाता है कि इन संस्कारों का अविष्कार मानव जीवन को संस्कारवान और पवित्र बनाने के लिए किया गया है।प्रारंभ में इन संस्कारों की संख्या लगभग चालीस थी जो धीरे धीरे घट कर सोलह रह गयी है।ये संस्कार मानव के जन्म लेने के पूर्व से लेकर उसकी अंतिम क्रिया तक सपन्न किए जाते हैं। ये संस्कार इस प्रकार हैं__ _गर्भाधान,पुंसवन,सीमातोन्यन,नामकरण, निष्क्रमण,अन्नप्राशन,मुंडन\\चूड़ाकर्म,, विद्यारंभ कर्णबेध,यज्ञोपवीत,वेदारंभ,केशान्त,समावर्तन,विवाह,अंत्येष्टि या श्राद्ध संस्कार।
इन संस्कारों में विवाह भी एक ऐसा संस्कार है जहाँ पर दो लोग साथ मिलकर एक नया जीवन शुरू करते हैं ।हर लड़का या लड़की को उसके जीवन काल में इस महत्वपूर्ण मोड़ से गुजरना होता है,जब उसे लगता है कि उसे जीवन के सही अर्थ को पाने के लिए तथा पूर्णता प्राप्त करने के लिए ऐसा जीवन साथी चाहिए जो उसे समझ सके और उसकी भावनाओं की कद्र कर सके।प्रारम्भ में जीवन साथी का चुनाव घर के बडे बूढ़े माता पिता के द्वारा किया जाता था। जब घर _परिवार के द्वारा विवाह संपन्न होता है तब वह अरेंज मैरिज कहलाती है।घर परिवार के लोग बहुत सारी बातों को जैसे सामाजिक,आर्थिक जातिगत समानताएं आदि देखने समझने के बाद ही रिश्ता तय करते . क्योंकि यह जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण निर्णय होता है। हमारे माता पिता के ज़माने या शायद उससे भी पहले पूजा पाठ करने वाले पंडित जी के पास शादी योग्य लड़के लड़कियों की जानकारी रहती थी ,फोटो रहती थी।जिसके आधार पर वह शादी के संबंध जोड़ते थे।सब लोगों का उन पर विश्वास भी रहता था ।तभी तो सिर्फ फोटो और परिवार देख कर रिश्ता तय हो जाता था।यदि विवाह में कोई परेशानी हो तो वह लड़की का भाग्य ही माना जाता था और उसे भाग्य भरोसे छोड़ दिया जाता था।समय आगे बढा ,सबकी सोच में बदलाव आया।इसलिए लड़के लड़की की पसंद नापसंद भी जानी जाने लगी और उन्हें मिलने का अवसर दिया जाने लगा ,बैठ कर बात करने की इजाजत मिलने लगी।आजकल रिश्ता ढूँढनेे का यह कार्य इंटरनेट के द्वारा किया जाने लगा है।जहाँ आप अपनी पंसद के अनुसार बेटा या बेटी का रिश्ता तय कर सकते हैं।किंतु हर रिश्ते की भांति यहाँ भी जोखिम भरा होता है क्योंकि ऐसे भी लोग हैं जो गलत जानकारी डा़ल देते हैं।इस प्रकार के गलत विवरण की जानकारी का बहुत बार तो विवाह पूर्व पता हो जाता है ।पर यह बात शादी के बाद पता लगती है तो सबकोे समस्याओं का सामना करना पड़ता है।खासतौर से लड़की और उसके परिवार वालों को।।अंरेज मैरिज में लड़का लड़की विवाह से पहले मिल चुके होते हैं पर विवाह के बाद ही वे एक दूसरे की पसंद नापंसद आदतें रुचियों को अच्छी तरह समझ पाते हैं। ऐसे में दोनों के बीच ज्यादा लगाव ज्यादा नजर आता है।पर जब दो भिन्न भिन्न परिवेश,स्वभाव व रुचियों के व्यक्तित्व साथ साथ रहने लगते हैं तो उनमें शुरुआत में सामन्जस्य न होने के कारण संबंधों में तकलीफ का सामना करना पड़ता है।बहुत बार संबंध टूटने की स्थिति आ जाती है।विवाह को समझौतों का दूसरा नाम समझा जाता है।हरदम विवाह में अंधिकांश महिलाओं द्वारा किया जाने वाला त्याग वस्तुतः अपने वैवाहिक जीवन और भविष्य की सुरक्षा के लिए किया गया समझौता मात्र ही होता है ,समय कोई भी रहा हो। संबंध तोड़ न पाने के पीछे बचपन से मिले संस्कार खड़े हो जाते हैं।थोड़े समझौते से परिस्थिति सुधरे तो अच्छी बात होती है।लेकिन असहनीय और नकारात्मक परिस्थिति होने पर संबधों में अलगाव होना गलत नहीं है ।आज के पालक ऐसी स्थिति में समर्थित दिखते हैं।
आज लड़के लड़कियां साथमें शिक्षा ग्रहण करते हैं ,साथ में संस्थानों में काम करते हैं ।तब ऐसे समय में वे अपने जीवन साथी का चयन करते हैं।जब लड़की लड़के आपस में प्रेम करके विवाह करना चाहते हैं तो वह लव मैरिज होती है।आज भी बहुत घर परिवार ऐसे हैं जो जीवन साथी के चुनाव में बेटे का समर्थन करते हैं पर बेटी के लव मैरिज के निर्णय में हिचकिचाते हैं।यदि कोई लड़की सही चयन करे और आचरण की सीमा में रहे तो उसका साथ अवश्य देना चाहिए। इस विवाह में दोनों पक्ष पहले से एक दूसरे से बहुत अच्छे से परिचित होते हैं और काफी समय एक साथ बिता पाते हैं तो उनमें सामंजस्य करने में परेशानी नहीं होती लेकिन विवाह से पहले वे कल्पनाओं की दुनिया में ज्यादा रहते हैं।अपना प्रेम पुख्ता करने के लिए उपहारों का आदान प्रदान भी करते रहते हैं। परंतु विवाह के पश्चात जिदंगी की हकीकत से सामना होने ,अपनी जिम्मेदारी पूरी करने और कर्तव्य निर्वाह में संबंधों डगमगा भी जाते हैं। इस मैरिज में भी सफलता की गारंटी इसलिए भी कम हो जाती है जो अंरेज मैरिज के समय रहती ।क्योंकि एक पक्ष स्वार्थवश झूठ बोलकर विवाह संबंध बना लेते हैं।जैसे अंरेज मैरिज घर परिवार साथ रहता है।लेकिन लव मैरिज में बहुत बार परिवार वाले इसके खिलाफ होते हैं।इसका कारण वे सामाजिक आर्थिक मुद्दे कमतर होने से वे अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देते।अब यहाँ यह प्रश्न उठता है कि कौन सी मैरिज सही है? अरेंज मैरिज या लव मैरिज।इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि कोई भी मैरिज की जाए तब दोनों ही पक्ष एक दूसरे के प्रति ईमानदारी और विश्वास के साथ सच्चा प्रेम करें तो अटूट संबंध की नींव रखी जाएगी ।दोनों ही विवाह शुभ
हैं।बस इसे शुभ बनाने के निरंतर प्रयास करते रहे।मेर मत में लव मैरिज सहीवस्तुत:प्रेम में निस्वार्थ भाव,त्याग और कर्तव्यबोध हो तो प्रेम अपनी पूर्णता पर पहुँच जाता है। इसी तरह के भाव विवेकानंद जी ने कहे हैं _____सब प्रकार का विस्तार ही जीवन है और सब प्रकार क संकीर्णता मृत्यु है।जहां प्रेम है,वही विस्तार है और जहाँ स्वार्थ है,वहीं संकोच।अतःप्रेम ही जीवन का एकमात्र विधान है।जो प्रेम करता है,वही जीवित है,जो स्वार्थी है,वह मृतक है।अतःप्रेम प्रेम के निमित्त,क्योंकि यह जीवन का एकमात्र विधान है।
अतःयहां यह कहना उचित है कि अंरेज और लव मैरिज दोनों ही शुभ हैं ।बस इसे शुभ बनाए रखने के लिए लड़के लड़की को प्रयास करने होंगे। मेरे मत में सबसे सही तरीका है कि जब लव मैरिज है।इसका निर्णय बच्चे लें तो उनका समर्थन दें और विवाह करवा दें।इसे हम लव अंरेज मैरिज कह सकते हैं।हमें यह सोचना चाहिए कि जीवन साथी का चयन करने वाले वे वयस्क हैं और वे सोच समझ कर ही फैसला ले
लेंगे यह विश्वास बनाए रखना चाहिए। इसलिए उनके फैसले के साथ खुश रहें और उन्हें खुशी दें,आशीष दें।यहाँ पर मैं वही बात दोहराना चाहती हूँ कि विवाह कोई भी हो ,वह ईमानदारी ,प्रेम और विश्वास की नींव पर स्थायित्व को प्राप्त होता है ।जिस प्रकार मकान वही मजबूत समझा जाता है जिसकी नींव मजबूत होती है।।यहाँ पर मै अपनी लिखी कुछ पंक्तियों से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगी ___
प्रेम और विश्वास नींव में ,
मर्यादा की हो दीवार।
आदर्शों की छत के नीचे,
झेल सकें जीवन के वार।
सच्चाई की सरगम धुन पर,
अपनेपन का गीत बजे।
निष्ठावान रहे जीवन में,
दुल्हन जैसी प्रीत सजे।
शक का द्वार बंद रहने दें,
सबको मन की कहने दें।
जब तक सीमा के भीतर हो,
थोड़ी मन की करने दे
केवल रिश्ता ही जुड़ जाना ,
है घर का आधार नहीं।
बने मकान ईंट गारे से,
हो घर का निर्माण नहीं।
धैर्य सुमन है ,जो खिला है,
मन की क्यारी में।
जिसकी महक फैल जाती,
जीवन की फुलवारी में।