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हमे भी जीने दो!

प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

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Prashant subhashchandra Salunke publication

लेखक : प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है. कहानी को रोमांचक बनाने के लिए लेखक ने अपनी कल्पनाओ का भरपूर इस्तमाल किया है, इसलिये इस कहानीको सिर्फ एक कहानी के रूप में ही पढे. इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है. इस कहानी का बहुत ही ध्यान से प्रुफ रीडिंग करने के लिए में मेरे भाई अनुपम चतुर्वेदी का तहेदील से शुक्रिया करता हुं

सुचना : इस कहानी में लिए गए सभी पात्र काल्पनिक है. इनका किसीभी जीवित या मृतुक व्यक्तिसे कोई सबंद नहीं है और अगर एसा होता है तो वो महज एक इत्तफाक है

कहानी : हमे भी जीने दो!

मे मेरे कुछ दोस्तो के साथ बेठा था। इधर उधर की बातें हो रही थी। हम सडक से गुजरते लोगो की विचित्र व्यव्हार का लुफ्त उठा रहे थे। एक इंसान मस्ती से आगे चल रहा था, उसके पीछे उसकी बीवी सामन की थेली उठाये थकीहारी सी चल रही थी, बंदा अपनी बीवी की तकलीफों को नजर अंदाज किये हुवे आसपास से गुजर रही दूसरी औरतो को देख रहा था! तभी बस स्टेंड पर कब से खड़ा एक इंसान सामने आए पान के गल्ले के पास गया. वहा जाकर उसने एक सिगरेट खरीदी, उसे सुलगा कर वह धुवा उड़ाने का मजा ले रहा था, तभी बस आई वह इंसान सिगरेट को फेंक कर बस की और भागा पर बस छुट गई और वह बंदा उसको पकड़ने दौड़ने लगा, पर व्यर्थ आखिर वह लाचारी से फिर बस स्टेंड पर आकर खड़ा रहा. हम सब हसने लगे. अचानक सड़क किनारे से एक गाड़ी गुजरी। मेरा एक दोस्त उसे देखकर बावलासा हो गया और बुरी तरह से भौकते हुए उस गाड़ी के पीछे भागा। हम सबको उसका व्यवहाँर विचित्र लगा! हम कुत्ते है! पर इतना तो जरूर समझ सकते है क्या सही है क्या गलत। तभी गाड़ी रुकी उसमे से एक इंसान बाहर आया। नीचे झुककर उसने पत्थर मेरे दोस्त की और दे मारा पर होशियार मेरा दोस्त निशाना चुकाकर वहाँ से भागा। उस इंसानने कुछ पत्थर हमारी और भी दे मारे मुझे आश्चर्य हुआ हमने तो कुछ नही किया था। फिर हम पे हल्ला क्यो? वहाँ से भागते हुए मैने अपने दोस्त से कहा "पगले तु क्यो गाड़ीयो के पीछे भागता है?"

जवाब मे उसने कहा "जब में छोटा था। तब मेरे दो भाई भी हुआ करते थे। बड़े मासूम से थे वे दोनो। उस दिन माँ ने हमे ठंड से बचने के लिए हमे ऐसी ही एक गाड़ी के नीचे रखा। हम दुबकर वही सो गए। रात की शीतल हवा में मुझे बहोत गहरी नींद आ गई थी। अचानक करीबन सुबह के 4 बजे मुझे कुछ गीला गीला महसूस हुआ मैने आँख खोलकर देखा तो मेरे दोनो भाई के सिर कुचले हुए थे! उनमे से खून बह रहा था। मैने उन्हें चाटा पर व्यर्थ। मैने देखा माँ ने हमे जिस गाड़ी नीचे रखा था वो भी गायब थी! मेरे भाइयो का कत्ल कर वह वहाँ से भाग गई थी! मे बहोत रोया मे अपने भाईयो के साथ रहना चाहता था पर तभी एक खिड़की खुली उसमे से एक औरत बाहर आई और मुझे पत्थर दिखा के वहाँ से भगा दिया। मे ढंग से अपने भाइयो की मौत पे रो भी नही पाया!

तभी सामने से एक इंसान आलशेशियन ब्रिड का कुता लेकर वहाँ से गुजरा जिसे देख मेरा दूसरा मित्र बोला। "ये देख ये विदेशी कैसे हमारे देश में आकर हम पर ही रौब झाड़ते है!" इन विदेशियो को तो मे छोड़ूँगा नही" मैने कहा “अरे रुक” पर वह कहा मानने वाला था?" वह उस विदेशी कुत्ते के पास दोड़ गया। तभी उसे लेकर निकले उस इंसानने एक पत्थर उठाके मारा जो सीधा मेरे दोस्त के पैरो पे लगा वह बुरी तरह से चिल्लाया" उसके जख्मो से खून बहने लगा। वो ठीक से चल भी नही पा रहा था। हम दौड़कर उसके पास गए। उसके जख्मो को चाटने लगे। मेरे कुछ दोस्त तो इतने डर गए की वे तो रोने ही लगे। तभी पास से गुजर रहे एक बंदे ने हमे धुत्कारा बोला "चलो, भागो यहाँ से, नाक मे दम करके रखा है। इन आवारा कुत्तोने!" हम जैसे तैसे वहाँ से भागे। और एक सलामत जगह पर आए। मे उसके जख्म चाटने लगा। मेरा जख्मी दोस्त बोला " गाड़ी हो या विदेशी कुत्ता हम जब भी हमारे दुश्मनो पे हमला करने जाते है ये इंसान क्यो बीच में आते है? आखिर हम उनको तो कुछ नही करते? फिर ये क्यो हमारे फटे मे टांग डालते है?” तभी एक आदमीने हमारी और पथ्थर दे मारा। हम सब डर के मारे वहा से भाग खड़े हए। मेरा एक दोस्त बेहद परेशान होकर बोला “इन इंसानों ने हर जगह पर अपना कब्ज़ा कर रखा है। जो इनके काम का है वह भी इनका और जो काम का नहीं वह भी इनका आखिर हम जाए तो कहा जाए?”

जो जख्मी हुआ था उस दोस्त के पैरो से अभी भी खून निकल रहा था, पर हम मजबूर थे, क्या कर सकते थे? मेने मेरे दोस्त के पैरो को चाट कर उसकी तकलीफों को कम करने की कोशिश की पर जख्म गहरा था उसमे से काफी खून बह रहा था. इन्सान पथ्थर मारते वख्त यह बिलकुल सोचता नहीं है की हम में भी जान है, हमें भी चोट लगती है, कितनी निर्दयता से वह पथ्थर फेंकते है? आखिर जिस भगवान को यह पूजते है उसीने ही तो हमे बनाया है फिर उसी भगवान् की रचना से इतनी नफरत क्यों?.

मेरे जिस दोस्त को पथ्थर लगा था उसे बेहद तकलीफ हो रही थी उसने तडपते हए कहा “यह इन्सान इतने जालिम क्यों है? क्यों यह हमसे इंतनी नफरत करते है? आखिर हमने इनका क्या बिगाड़ा है? जब भी किसी इंसान को हमारे भाइयो पर जुल्म करते देखता हु, जब भी किसी इंसान को हमें धुत्कातरे हुवे देखता हु, जी करता है इन सबको नोच डालू काट खाउ।"

तभी पास वाले घर का दरवाजा खुला एक छोटी बच्ची उसमे से बाहर आई। उसके हाथ मे दूध और बिस्कुट थे। उसने हमे वो बड़े प्यार से खिलाए मेरे दोस्त के जख्मो को देख वो रो पड़ी। दौड़कर अंदर गई और कुछ दवाइया ले आई मेरे दोस्त के पैरो को उसने मलहम पट्टी की और प्यार से हाथ घुमाके अंदर चली गई। मेरे दोस्त ने अपने पैरो पर सर रखकर आँखे बंध करते हुए बोला "ऐसे लोगो के लिए ही में अपने बदले की भावना को भुला देता हुं!"