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ध फाधर

ध फाधरः पिता-पुत्र के संबंध की नये सिरे से व्याख्या

१९ जुन २०१६ की ‘सिने गो राउन्ड’ लेखमाला (दिव्य भास्कर दैनिक, लेखकः शैलेन्द्र वाघेला) पढकर १९९६ में बनी ईरानियन फिल्ममेकर माजिद मजिदी की फिल्म ‘ध फाधर’ देखने को मजबूर हुआ..। ईन्टरनेट पर Search Operation चालु किया तो यु ट्युब पर यह फिल्म मिल गई..। फौरन देखने बैठ गया..। करीब १ घंटे ३१ मिनट लंबाई की फिल्म कब खत्म हो गई वो पता भी नहीं चला..। फिल्म तो देख ली, मगर उससे पीछा नहीं छूटा..। उठते बैठते वो ही फिल्म जहन में चल रही थी..। फिल्म-रीव्यु करना तो चाहता था, मगर एक ही बार फिल्म देखकर यह काम करना अनुचित था..। तो फिल्म दूबारा देखी..। तिबारा और चोबारा देखी..। अब लगा की मैं माजिद मजिदी की पर्शियन भाषा में बनी फिल्म ‘ध फाधर’ पर कुछ लिख सकता हूं..। जो लिखा वो आपके सामने रख रहा हूं..। jH

कहानीः

‘ध फाधर’ की कहानी चौदह साल के मेहरुल्लाह hHnhjoihoihjoihfewoi(Hassan SadeghiHh) के इर्द-गीर्द बुनी गई है..। उसे मोटर साईकल शीखाते समय अकस्मातवश पिता की मौत हो जाती है..। मां और तीन बहेनों की परवरिश हेतु वो शहर में काम करता है..। कुछ महिनों बाद उन्हे मिलने आता है तब अपने दोस्त लतीफ (Hossein Abedini) से पता चलता है की उसकी मां ने एक पुलिस अफसर से शादी कर ली और उसके बडे घर में रहने चली गई है..। मेहरुल्लाह को यह मंजुर नहीं है, वो मां और बहेनों को वापस लाने के लिये जुट जाता है..। सौतेले पिता (Mohammad Kasebi) को रास्ते से हटाने के मनसुबा बनाता है..। और उसके लिये उनसे बार-बार भीड जाता है..। इन में पत्थर मारकर आधी रात को घर का काच फोडना, बहेनों को चुराकर अपने घर ले जाना, मां से झगडा करना, मां-बहेनों की परवरिश हेतु किये गये खर्च को घ्रुणावश मां और सौतेले पिता को वापस देना और मौका मिलते ही उनकी सर्विस रीवोल्वर चुराकर भाग जाना जैसे प्रसंग सामिल है..।

सौतेले पिता प्रारंभ में मेहरुल्लाह को बच्चा समजकर माफ करता रहता है..। मगर जब स्थिति सर के उपर जाती है तब उसे संभालने आगे आते है..। पिता पद छोड पुलिस बनकर उसका पीछा करते है..। शहर आकर मेहरुल्लाह और लतीफ को पकडते है..। लतीफ को बस में बिठाकर और मेहरुल्लाह को अपनी मोटर साईकल पर लेकर गांव की ओर आगे बढते है..। मौका पाकर मेहरुल्लाह मोटर साईकल लेकर भागता है..। कुछ देर बाद फिर पकडा जाता है..। दोनों फिर आगे बढते है, विरान रणप्रदेश से आगे बढते वक्त रास्ते मैं मोटर साईकल खराब हो जाती है..। पैदल आगे बढते है तब आंधी मैं घिरते है..। पिने का पानी भी खतम हो जाता है..। सौतेला पिता मेहरुल्लाह को चले जाने को कहता है, मगर अब वो नहीं जाता और बेहोश हो चूके पिता की जान बचाता है..। मेहरुल्लाह की नफरत कैसे प्यार में बदलती है..। कैसे..? यह जानने के लिये फिल्म देखना अनिवार्य है..।

कहानी का फिल्म में रुपांतरः

किसी भी कहानी का फिल्म में रुपांतर निर्देशक अपने कहानी कहने के अंदाज और उसे प्रतिपादित करने फिल्म निर्माण के आयामो को कार्यान्वित करके करता है..। ‘ध फाधर’ में निर्देशक माजिद मजिदी ने सीधा और सरल रास्ता चुना है..। मूल कहानी का अमलीकरण कराने हेतु पटकथा, पात्रनिर्माण, संगीत और अभिनय का विनियोग किया है..। कहानी का मध्यसूर मेहरुल्लाह का मां और बहेनों प्रति अनहद प्रेम और दिवंगत पिता के स्थान पर आये सौतेले पिता के प्रति घ्रुणा है..। पटकथा में समाहित भावनात्मक स्थिति-परिस्थिति और उसका प्रतिपादन, कलाकारों के अभिनय और निर्देशक की फिल्म्सर्जन कला का अद्भूत संमिश्रण है..। यहां प्रेम और घ्रुणा ऐसे घुल-मिल गये है की उन्हे अलग-अलग देखना संभव नहीं है..। और यही कहानी का मूल भाव है..।

प्रेम और घ्रुणा का सन्निधिकरणः

शहर से गांव आया मेहरुल्लाह खेत में काम कर रहे दोस्त लतीफ को देख पहले पौधों की आड में छिपकर मुह से पंछी की आवाज निकालकर और बाद में पीछे से आकर उसकी दोनों आंख हाथों से धंककर उससे खेलता है..। जब लतीफ से मां की पुलिस अफसर से शादी की खबर मिलती है तब उसके मुंह पर कसकर तमाचा मारकर चला जाता है..।

मेहरुल्लाह शहर से जो कपडे-गहेने लाया है, वो मां और बेटीयां पहनती है..। मगर जब मेहरुल्लाह पति से बद-तमीजी से बात करता है, उन पर पैसे फेंकता है, वैसा व्यवहार उससे भी करता है तब मां उसे खुब पिटती है..। आखिरकार रोते रोते अपने बच्चे को दुख पहुंचानेवाले को खुदा कभी माफ नहीं करेगा जैसी बद-दुआ खुद को ही देती है..!

अपनी बहेनों के प्रति प्रेमवश मेहरुल्लाह उन्हे चूराकर अपने घर ले आता है..! लतीफ से पता चलता है की सौतेला पिता उन्हे ढूंढने आ रहा है, तो दोनों बहनों को तंदुर पकाने की भठ्ठी में छूपा देता है..!

किल्ले की छतसे गिरकर घायल हुए मेहरुल्लाह को सौतेला पिता और मां अपने घर लाते है..! मां उसकी सेवा और दवा-दारु करती है..! पिता भी मां से उसकी खबर पुछता रहता है..! बहनें भी उसे प्यार-दुलार देती है..! ऐसी स्थिति के बावजुद मेहरुल्लाह एक रात पिता की सर्विस रीवोल्वर लेकर से उन्हे मारने की सोच बनाता है..! मौका नहीं मिलने पर रीवोल्वर चुराकर घर से भागता है..!

पिता पुलिस अफ्सर बनकर मेहरुलाह और लतीफ को शहर से पकडता है..! लतीफ को बस में बिठाकर गांव भेजता है, पर मेहरुल्लाह को अपने साथ मोटर साईकल पर बिठाते है..! रास्ते में पेट्रोल और खाना लेते वक्त कोल्डिंक्स पी रहे पिता मोटर साईकल से बंधे मेहरुलाह को भी कोल्डिंक्स देते है..! वो नहीं पीता तब गुस्से से उसे जमीन पर बहा देते है..!

लौटते वक्त आंधी-तुफान में फंसना और बोटल में थाडा सा पानी होने के बावजुद पिता मेहरुल्लाह को भी पानी पीने देते है..! मोटर साईकल खराब होने की स्थिति में चिढवश उसे पिटते भी है और आंधी-तुफान का जोर बढने पर आंख-मुंह की रक्षा हेतु उसे कपडा भी देते है..! और शक्यतः उसकी देख-भाल भी करते है..!

सौतेले पिता को मारने हेतु मौका ढूंढ रहे मेहरुल्लाह आंधी-तुफान में फंसे और पानी न मिलने के कारण बेहोश हो चूके पिता को न सिर्फ संभालता है, मगर काफी तकलिफ के बावजुद उन्हे छोडकर जाता नहीं..! बलके पानी ढूंढकर उनकी जान बचाता है..!

मूल कहानी को आधार बनाकर लिखि गई पटकथा में समाहित घटना, प्रसंग और परिस्थितिओं को इस तरह बुना गया है की हर पल प्रेम और घ्रुणा एकदुसरे के समांतर चलते हुए भावावेश को प्रगट करते है..! साथ ही दोनों का सन्निधिकरण इस प्रकार किया है की प्रेम और घ्रुणा को अलग-अलग देखना असंभव लगता है..! दोनों विरोधाभासी भावावेश का एकदुसरे में घुल-मिल जाना और फिर भी दोनों का अस्तित्त्व बना रहेना इस फिल्म की खास बात है..!

अभिनय और फिल्म का अनुसंधानः

सामान्यतः अभिनय वैयक्तिक मूल्यांकन का विषय है..! अभिनय के प्रति हरएक का अपना-अपना नजरीया होता है..! मनपसंद कलाकार का अभिनय ज्यादातर अच्छा ही लगता है..! लिहाजा अभिनय का मूल्यांकन कितना भी तटस्थ भाव से किया जाय, उसमें वैयक्तिक भावना, राग-द्वेश या पसंद-नापसंद आ ही जाती है..!

फिल्म ‘ध फाधर’ का अभिनय के द्रष्टिकोण से मूल्यांकन किया जाये तो मेहरुल्लाह hHnhjoihoihjoihfewoi(Hassan SadeghiHh), लतीफ (Hossein Abedini) और सौतेले पिताAURAURAaur (Mohammad Kasebi) को अभिनय दिखाने का मौका मिला है, और उन्हों ने मौके को प्रमाणित भी किया है..! पहली नजर में सहायक किरदार दिखनेवाला लतीफ पात्रनिर्माण (Characterisation) और सहज अभिनय से इतना प्रभाव खडा करता है की मुख्य किरदार को मात दे देता है..! ईसीलिये १९९८ में सोलवे अल किनो फेस्टिवल (16th Ale Kino Festival) में उसे बाल कलाकार की समिति से विशेष पुरस्कार मिला था..!

मेहरुल्लाह की स्वभावगत उग्रता आंख और चहेरे के हावभाव, शरीरभाषा (Body Langauge) और डायलोग डिलिवरी से अभिव्यक्त हुई है..! paTaपटकथा में भी उसके लिये ऐसे घटना-प्रसंग लिखे गये है..! दोस्त को तमाचा मारना, सौतेले पिता के घर की खिडकी का कांच पत्थर मारकर तोडना, मां के मुंह पर पैसे फेंकना, मां से ऊंची आवाज में बात करना, रीविल्वर चुराकर भागना, पैसे के लिये शेठ की तिजोरी तोडने का प्रयास, कांच का दरवाजा तोडकर वहां से भागना और मौका मिलते ही सौतेले पिता (पुलिस) की मोटर साईकल लेकर भागना जैसे द्र्श्य सामिल है..! १४ साल का बच्चा होने के बावजुद सौतेले पिता जो पुलिस अफ्सर भी है उसे भीड जाना उसके मूल चरित्र को प्रतिपादित करता है..!

सौतेला पिता (Mohammad Kasebi) उस विस्तार का पुलिस अफ्सर होने के बावजुद कभी भी अपनी स्थिति का लाभ उठाकर दमन नहीं करता..! मेहरुल्लाह की अनेक बद-तमीजी के बावजुद उसे बच्चा समजकर माफ करना उसके अच्छे स्वभाव को दर्शाता है..! औलाद के लिये दुसरी शादी करनेवाले ईस शख्श को बीवी से ज्यादा बेटीयों से प्यार है..! चहेरे पर बडी मूंछ से सख्त दिखनेवाला यह किरदार अन्डर प्ले के कारण ज्यादा प्रभाव खडा करता है..! जरुरत पडने पर हाथ चलानेवाला पिता कतई क्रुर नहीं दिखता..! मुसिबत के समय सौतेले बेटे को काम आता है, मगर जब उसे समज आता है की वो नहीं बच पायेगा त वो अपनी परवाह किये बिना उसे वहां से चले जाकर अपनी जान बचाने को कहता है..! पिता, पति और पुलिस अफ्सर के किरदार को Mohammad Kasebi ने बखुबी निभाया है..!

ध्वनि और प्रतीक का रचनात्मक विनियोगः

‘ध फाधर”’ में ध्वनि और द्रश्यप्रतीक का विनियोग अत्यंत सहज और सूक्ष्मता से किया गया है..! कुदरती तत्व हवा और पानी के बहाव का ध्वनि सिर्फ आवाज के लिये नहीं पर श्राव्य प्रतीक के रुप में भी प्रस्तुत किया गया है..! पंछीओं की चहचहाट, पात्रो की मनोदशा दर्शाता ध्वनि, बाजार का शोर, वाहनों की आवाजाही का ध्वनि और खासकर मोटर साईकल चलने की आवाज कभी शोर बनकर तो कभी भाषा बनकर कुछ न कुछ बयान करती रहती है..! माजिद मजिदी ने मोटर साईकल को एक किरदार बनाकर पेश किया है, जिसमें उसका ध्वनि प्रमुखता से बोलता है..!

मां और बेटे के संबंध के बीच खडी हुई दीवार को घर के आगे लगी लोहे की तार की बाड के माध्यम से द्रश्यप्रतीक के रुप में दर्शाया है..! फिल्म के आरंभ में गांव की ओर आगे बढ रहा मेहरुल्लाह मुंह धोने बहेते पानी के पास झुकता है तब जेब से गीरकर एक तस्वीर बह जाती है..! फिल्म के अंत में जब वो अपने सौतेले पिता को घसीटकर पानी के झरने के पास लाता है तब उनकी जेब से एक तस्वीर बहकर मेहरुल्लाह के पास आती है..!

आरंभ में बह गई ब्लेक एण्ड व्हाईट तस्वीर में मेहरुल्लाह और उसके पिता थे जो अब हयात नहीं है..! अंत में जो तस्वीर उसके सौतेले पिता की जेब से बहकर उसके पास आती है वो रंगीन है और उसमें नये पिता, मां और तीनों बहेनें है..! बेरंग भूतकाल में अटके मेहरुल्लाह को द्रश्यप्रतीक के माध्यम से जीवंत और रंगीन वर्तमान में ले जाना फिल्म सर्जन की रचनारीति और निर्देशक के कथाकथन का कमाल है..!

उपसंहारः

‘ध फाधर”’ सरलता और सहजता से बनी भावनाप्रधान फिल्म है..! सिनेमा सर्जन के प्रमुख तत्वों का संतुलीत विनियोग और निर्देशक की कथाकथन (Stort Telling) की अदा यहां देखने को मिलती है..! बिन-जरुरी होहल्ला और चमक दमक से दूर रहकर पिता-पुत्र के संबंध की नये सिरे से व्याख्या करती यह फिल्म विश्व सिनेमा और खासकर पर्शियन (ईरानियन) सिनेमा की पहचान है..! vaaवास्तविक सिनेमा और vaaवास्तविक सिनेमा सर्जन को पसंद करनेवाले दर्शको को यह फिल्म जरुर पसंद आयेगी..!

Tarun Banker: Filmmaker, Writer & Actor

Undergoing Ph. D. On Feature Films Based on Literature

(M) 8866175900 / 9228208619 Email:

Blog : http://taruncinema.wordpress.com