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पुनर्जन्म

पुनर्जन्म

आज देश ही नहीं, बल्कि विश्व के कई वैज्ञानिक बड़ी उलझन में हैं। वहीं बहुत सारी धार्मिक मान्यताओं में से एक मान्यता अब वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने लगी है। ये धार्मिक मान्यता है, पुनर्जन्म की। वैज्ञानिक अब तक इसे पूरी तरह से नकार रहे थे, इसके लिए उनके पास तमाम दावे भी थे। पर अब वे आशंकित नजर आ रहे हैं, क्योंकि अपने ही पुराने आधारों के कारण वे पुनर्जन्म को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, वही नई वैज्ञानिक शोधो को वे नकार नहीं पा रहे हैं, इसलिए वे इस पर कुछ बोलना भी नहीं चाहते। दूसरी ओर पुनर्जन्म की मान्यता को कई वैज्ञानिक अपना समर्थन दे रहे हैं। इससे उनकी उलझन और बढ़ गई है।एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या ? भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपड़े बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या ख़राब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। क्रिशचैनिती, इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके, इसलिए इसे क़ानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है।

पुनर्जन्म (Reincarnation) का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता।मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्यआदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है।

हिन्दुओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूँ, लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर आत्मा इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है।

वैज्ञानिक तथ्य

पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली है। विज्ञान कहता है कि इस सृष्टि में पुनर्जन्म जैसी कोई व्यवस्था नहीं है और चिकित्सा विज्ञान कहता है कि पुनर्जन्म होता है। अधिकांश धर्मों में भी पुनर्जन्म की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। लेकिन कुल मिलाकर यह अभी भी समझना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं ? हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक पुनर्जन्म होता है लेकिन कोई भी व्यक्ति मरने के तुरंत बाद ही दूसरा जन्म ले यह संभव नहीं है। अगर हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायु मंडल में ही चलायमान होती है। स्वर्ग-नर्क जैसे स्थानों पर घूमती है। लेकिन उसे एक न एक दिन शरीर ज़रूर लेना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र इस बात को ज़्यादा मज़बूती से रखता है। धर्म में जिसे प्रारब्ध कहा जाता है, यानी पूर्व कर्मों का फल, वह ज्योतिष का ही एक हिस्सा है। इसलिए ज्योतिष की लगभग सारी विधाएं ही पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं। इस विद्या का मानना है कि हम अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उनमें से कुछ का फल तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ हमारे प्रारब्ध से जुड़ जाता है। इन्हीं कर्मों के फल के मुताबिक जब ब्रह्मांड में ग्रह दशाएं बनती हैं, तब वह आत्मा फिर से जन्म लेती है। इस प्रक्रिया में कई साल भी लग सकते हैं और कई दशक भी।

चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुड़ी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी चीज़ें आती है या ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो होती तो पहली बार हैं लेकिन हमें महसूस होता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान इसे हमारे अवचेतन मन की यात्रा मानता है, ऐसी स्मृतियां जो पूर्व जन्मों से जुड़ी हैं। बहरहाल पुनर्जन्म अभी भी एक अबूझ पहेली की तरह ही हमारे सामने है। ज्योतिष, धर्म और चिकित्सा विज्ञान ने इसे खुले रूप से या दबी जुबान से स्वीकारा तो है लेकिन इसे अभी पूरी तरह मान्यता

Kalindi vyas

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