प्लेटफार्म नंबर 16
Part - 2
धीरे धीरे मेरी आसपास की सीटो पे अपने अपने रिजर्ववेशन के मुताबिक लोग बैठ चुके थे... ठीक मेरी बगल की सीट पर एक महिला अपने 6 साल के बच्चे को लिए बैठी थी और ठीक उसके उपर वाली सीट पर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति. और मेरे ठीक बगल में एक बुजुर्ग दंपत्ति. पर मेरे सामने वाली सीट अभी भी खाली थी. मैं दोबारा खिड़की से बाहर देखने लगा की तभी मेरे पैर पर लगे ठोकर ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खीचा.
सामने एक लड़की अपने सामानों को सीट के नीचे खाली जगह में एडजस्ट करने की जद्दोजहद कर रही थी उसे देखने के बाद मैं वापस खिड़की के बाहर देखने लगा... अपना सामान एडजस्ट करके वो लड़की अपनी सीट पर बैठ चुकी थी. घड़ी की तरफ की नजर गई तो 11 बज चुके थे. ट्रेन के चलने का वक़्त हो गया था कुछ देर में ट्रेन का हॉर्न बजा और ट्रेन धीरे धीरे स्टेशन को पीछे छोड़ आगे बढ़ने लगी.... मैं खिड़की के पास अपने अकेलेपन में बैठा बाहर धीरे धीरे दूर जाती पेड़ो और मकानों को देखने लगा. सर्द सफ़ेद कोहरे की चादरों से ढका शहर आज अलग लग रहा था.. धीरे धीरे ट्रेन शहरो को पीछे छोड़ अपनी रफ़्तार से आगे भागने लगी. रह रहकर ट्रेन की खिड़की से आती सर्द हवा का झोका मन को झकझोर कर चली जाती. कुछ देर बाद जब ठंडी हवा चुभने लगी तो मैंने खिड़की के शीशे को नीचे कर दिया..... सामने नजर पड़ी तो मैं कुछ पल के लिए चौक गया. “अरे!! ये तो वही लड़की है जो मुझे प्लेटफार्म पर मिली थी. मैं बहुत देर तक मैं उसे देखता रहा..... लड़की ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया.....
टिकट! तभी अचानक आई आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खीचा. देखा तो काले रंग का कोट पहने और अपने हाथो में सवारियों के नामो की लिस्ट लिए टीईटी मेरी आँखों के सामने खड़ा था. सर अपना टिकट दिखाइए! टीटी ने सख्त लहजे में कहा. मैंने जेब से टिकट निकाली और टीईटी की ओर बढ़ा दिया. मेरी टिकट चेक करने के बाद टीईटी ने टिकट वापिस कर दी|
मैडम आपका टिकट !... टीटी ने सामने बैठी लड़की से कहा. अपना टिकट निकालने के लिए लड़की अपनी बैग टटोलने लगी लेकिन उसे टिकट नहीं मिली....टिकट न मिल पाने की हडबडाहट में लड़की अपनी बैग का सारा सामान को सीट पर बिखेर दिया. कुछ कागज़, नैपकिन, मेकअप का एक किट और कुछ ज़रूरी सामान सीटों पर फ़ैल गया. उनी सामानों के बीच उपेझित सा पड़ा हुआ था वो टिकट..... लड़की ने जल्दी से टिकट उठाकर टीईटी के तरफ आगे बढ़ा दिया...... मिस अनाहिता सिंह!... टीईटी ने टिकट देखते हुए कहा.... जी हाँ!.... लड़की ने बिखरे सामान को समेटते हुए कहा..........
अनाहिता सिंह! उससे मिले हुए सफ़र पर पहली बार उसका नाम सुना था.....टिकट दिखाने की हडबडाहट में बिखरे सामानों में से एक सामान ठीक मेरे पैर के सामने पड़ा था. मैं उस सामान को देख ही रहा था की...उस लड़की की आवाज़ से नजर उसपर गई..जी आप जरा वो सामान पास करेंगे..... उसने मुझसे कहा|. उस सामान को उठाकर उसके सीट पर रख दिया. सारे बिखरे सामान समेटने के बाद उसने अपनी बैग से चादर निकाली और सीट पर फैला दिया...... सीट पर बैठे बुजुर्ग दंपत्ति जिनकी ठीक मेरे ऊपर वाली सीट थी मैंने बुजुर्ग महिला की उम्र और असुविधा को देखते हुए नीचे वाली सीट ऑफर कर दी और मैं एक चादर के साथ बीच वाली सीट पर चला गया.
बीच वाली सीट पर चले जाने के बाद मैंने चादर बिछाई और वही लेट गया....पर आँखों से नींद काफूर थी दूर दूर तक आँखों में नींद के कोई निशान नहीं थे ...इसी बीच न जाने क्यों बार बार मेरी नज़र उस लड़की पर जा ठहरती...... पूरे सफ़र के दौरान मैंने उस लड़की का चेहरा पहली बार गौर से देखा.... गोरा रंग, छोटे घुंघराले बाल, चश्मे के पीछे बड़ी बड़ी आँख और चेहरे पर फैली अलग सी मासूमियत.... मैं उसे बस देखता रहा ......अपने आप को पूरी तरह बाँध चुके आदित्य को इतने दिनों के बाद पहली बार किसी लड़की का मासूमियत भरा चेहरा अपना सा लग रहा था .... ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागती चली जा रही थी.... ट्रेन के हिचकोले के बीच मुझे कब नीद आ गई मुझे पता ही नहीं चला......
अचानक नीचे की सीट पर मची अफरा तफरी के बीच मेरी नींद खुल गई. आँखें खुली तो पता चला की नीचे की सीट पर लेती उस बुजुर्ग महिला की तबियत अचानक ख़राब हो गई है. उस महिला को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. अपनी सीट से नीचे उतरा तो देखा बगल की सीट वाली वही लड़की अनाहिता उस बुजुर्ग महिला को संभालने की कोशिश कर रही थी. उस बुजुर्ग महिला के पति भी अपनी सीट से नीचे उतर आए थे. उस घबराए बुजर्ग व्यक्ति ने तुरंत अपने बैग से अस्थमा को कंट्रोल करने वाली पंप निकाली और उस लड़की को दे दिया..... उस महिला को अस्थमा का अटैक आया था.... वो लड़की चुपचाप वही बैठी रही.....
दवाई लेने के कुछ देर बाद उस महिला की हालत अब सामान्य होने लगी थी.... अब भी वह लड़की उस महिला से सिरहाने बैठी हुई थी. कभी उस महिला के सिर को अपने हाथो से सहलाती, कभी उस महिला के चेहरे पर उभर आए पसीने को पोछती.. ....किसी अनजान के लिए इतनी फिक्र करते हुए मैंने पहली बार किसी को देखा था. किसी के लिए इतनी फिक्र वो भी किसी अजनबी के लिए. आज के जमाने में तो अपने अपनों का साथ छोड़ देते है...... कुछ देर मैं चुपचाप यूँही उसे देखता रहा.. मैंने घड़ी पर नजर डाली तो सुबह के चार बज चुके थे..... ट्रेन शाहजहांपुर पहुँचने वाली थी मैं सामने वही खिड़की पास जाकर बैठ गया. बाहर अभी भी अँधेरा था दूर दूर नजर डालो तो सिर्फ धुंध ही धुंध दिखाई पड़ता.....
ट्रेन अपने रफ़्तार में चली जा रही थी...... और वह बीमार बुजुर्ग महिला अब सो चुकी थी ........”लगता है आपको अकेलापन पसंद है! फैली ख़ामोशी को चीरती हुई आवाज़ मेरी कानो में पड़ी... उस लड़की ने पहली बार मुझसे कुछ पुछा था उसके यूँ अचानक पूछे गए सवाल से मैं झेप गया.
जी नहीं ऐसी कोई बात नहीं है! मैंने थोडा सकुचाते हुए कहा..... जब से मैं आप से मिली हूँ तब से आपने किसी से बात तक नहीं की इसलिए मैंने पूछ लिया. अनाहिता ने कहा. मैं कुछ देर चुप रहा......
दिल्ली में काम करते है?......चुप बैठा मैं आगे कुछ उससे कह पाता है उससे पहले ही उसने दूसरा सवाल दाग दिया.... जी हाँ! मैंने कहा.....और चुप हो गया..... मुझे इस बात का इल्म हो चला था की इतने समय में दोस्ती तो नहीं पर इतनी जान पहचान हो गई है की मैं उससे से बात कर सकूँ.......ट्रेन शाहजहांपुर पहुँच चुकी थी. मैं ट्रेन से नीचे उतरा और पास की स्टाल से चाय ली, और अनाहिता की तरफ बढ़ा दिया.... चाय!...अनाहिता मुझे देखती रही....देखते हुए उसने कहा
और आप?.... चेहरे पर सवाल के भाव थे....... मेरे पास दूसरी चाय है मैंने चाय को आगे करते हुए कहकर धीरे से मुस्कुरा दिया. शाहजहांपुर में ट्रेन मुश्किल से सिर्फ 5 मिनट रूकती थी. हॉर्न बजने के साथ ट्रेन चल दी. मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.
मेरी नजर बार बार उसके चेहरे पर जाकर ठहर जाती…… अचानक उसकी नजर मेरी नजर से टकराई...... मुझे देख अनाहिता मुस्कुरा दी. अगले दो पल के लिए मैं पूरी तरह झेप गया....................
इन 5 घंटो के सफ़र में मैं इतना तो जान गया था की ये लड़की आम लड़की से बिलकुल अलग है समझदार सुलझी हुई... आज के जमाने की सशक्त लड़की है........
लम्बी ख़ामोशी के बाद मैंने भी हिम्मत करके आखिर सवाल पूछ ही लिया.......
आप भी लखनऊ जा रही है?.....
हाँ, मैं दिल्ली में मेडिकल की स्टूडेंट हूँ अब स्टडी ख़त्म हो गई है तो मैं वापस घर! ..इतना कह कर वो मुझे कुछ देर तक यूँही देखती रही.....फिर नजरे खिड़की की तरफ कर लिया....
इन पलों के दौरान मेरे मन रह रहकर यह सवाल उठने लगे थे की यदि उसने मुझसे यही सवाल पूछ लिया तो! मैं क्या कहूँगा.....यही की मैं अपने अकेलेपन से दूर जाने के लिए निकला हूँ वो अकेलापन जो मेरी ज़िन्दगी में जो किसी के चले जाने के बाद था. क्या कहूँगा मैं उससे!!!!...... मैं यूँ ही कुछ देर मैं खामोश रहा........
अनाहिता खिड़की से बाहर देखती रही और मैं उसे................
एक बार फिर से सन्नाटा सा पसर गया हमारे बीच.....पुरानी यादें मुझे फिर से जकड़ने लगी थी उन यादों के धुओं से मेरा दम फिर से घुटने लगा. यादों की भूलभुलैया में मैं गिरने वाला ही था की अचानक आई एक आवाज़ में मेरा हाथ थाम लिया....वो आवाज़ अनाहिता की थी.....
“ज़िन्दगी से किसी के चले जाने से ज़िन्दगी कभी ख़त्म नहीं होती. ज़िन्दगी का सफ़र तो हमेशा चलता रहता है चाहे वो पास रहे या न रहे... बिना मेरे तरफ देखे अनाहिता ने मुझसे कहा....उसकी इस कही हुई बात ने मेरे मन को झकझोर दिया. एक पल के लिए मेरा मन शुन्य की गहराई में खोने लगा...... अजीब से ख्याल मन में घुलने लगे थे और उससे पैदा हुए कई सवाल मेरे मन में उठने लगे......
क्या सोच कर अनाहिता ने मुझसे ये बात कही.... क्या उसने मेरे अन्दर बैठे उस अकेलेपन को पहचान लिया था या महज ये उसके ख़याल थे जो उसने कह दिए.......मैं जानना और उससे पूछना चाहता था की उसने ये बात मुझसे क्यों कही......पर मेरी हिम्मत मेरा साथ नही दे रहे थे.. आखिरकार मैंने सारी हिम्मत जुटा कर उससे सवाल किया.............. उसने मेरी तरफ देखा और बिना मेरी सवालों का जवाब दिए खिड़की से बाहर देखने लगी. उसकी इस ख़ामोशी ने मेरे मन में उठ रहे सवालों को जवाब का एक सिरा पकड़ा दिया था........ उसने मेरे अंदर के अकेलेपन को पहचान लिया, वो अकेलापन जिससे मेरी तरह वो भी गुजर चुकी है. उन कडवे एहसास को जिया है उससे... पर उसने अकेलेपन को कभी अपने उपर हावी नहीं होने दिया..... मैं यूँ ही चुप बैठा रहा... हमारे बीच फैली वो खामोशियाँ अब आपस में बात करने लगी थी.....समय गुजरता जा रहा था....गुजरते समय के बीच ट्रेन लखनऊ पहुँचने वाली थी.....ट्रेन धीरे धीरे होते हुए आखिकार रुक गई....स्टेशन आ चूका था...... पर न जाने क्यों मेरा मन ये नहीं चाहता था की ये सफ़र कभी ख़त्म हो. उस अजनबी लड़की के साथ सफ़र मंजिल से ज्यादा सुकून दे रहे थे....मेरा दिल यही चाह रहा था की... काश! ये सफ़र यूँही चलता रहे...... इस दौरान अनाहिता बुजुर्ग दंपत्ति के साथ अपने सामान को लेकर ट्रेन से नीचे उतर चुकी थी....पर मैं अब भी वही बैठा था.... बस उसे खिड़की से जाते हुए देखता रहा...... मैं जिस अकेलेपन को लेकर इस सफ़र पर चला था शायद वो अपनी सी लगने वाली अनजान अजनबी सी लड़की अपने साथ ले चली थी..... मैं वही बैठा बस यही उम्मीद कर रहा था की एक आखिरी बार मैं उसका चेहरा देख सकू..... पर वो धीरे धीरे स्टेशन की भीड़ में खो गई...... अचानक मेरी नजर धुधला गई... धीरे से मैंने अपनी पलके भीच ली...... तभी मेरी नजर मेरी सीट पर पड़ी उस कागज़ के पन्ने पर गई .....उस पर किसी अनजान लिखावट में कुछ लिखा था....मैंने उस कागज़ के टुकड़े को उठाया....... महीन लिखावट में लिखा था.....ये सफ़र तो ख़त्म हो रहा है......पर तुम्हारे साथ जुड़े इस अजनबी रिश्ते की नई सफ़र की ये शुरुआत है.. सॉरी बिना तुम्हारी इजाजत के तुम्हारी डायरी पढने के लिए. वो अब भी वही उसी सीट पर रखी हुई है ......तुमसे मिलना मेरी किस्मत थी और तुमसे जुड़ना मेरा फैसला...... हम एक बार फिर मिलेंगे उसी जगह उसी प्लेटफार्म पर! प्लेटफार्म नंबर 16..... तुम्हारा इंतज़ार रहेगा......धीरे से आदित्य के होठो पर एक हल्की मुस्कान फ़ैल गई............