Khvabo ki kimat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

ख्वाबों की क़ीमत - 3

ख़्वाबों की क़ीमत

पार्ट 3

“अब मैं क्या करूँ..” एक तरफ उसके माँ बाप थे और दूसरी तरफ उसका पति, अवनि सोच रही थी कि किस तरह से इस problem से बाहर आये, उसे कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे और क्या नही.. किसी से कहे या अपने सीने में इस राज़ को दफन कर ले पर नही.. कुछ ना कुछ तो करना था यूँ सौरभ और उसकी फैमली को उनके घिनोने मकसद में कामियाब नही होने देना था तभी उसे अपनी कॉलेज की फ्रेंड रीता का ख्याल आया जिसके पापा वकील है, जो उसे इस मामले में सही सलाह दे सकते थे। उसने झट रीता को कॉल लगायी..

“हेल्लो, कौन”

“रीता, मैं अवनि बात कर रही हूँ”

“यार अवनि, कैसी है.. शादी के बाद तो बिलकुल गायब हो गयी”

“मैं अच्छी हूँ, अच्छा सुन.. अंकल हैं क्या घर पर, मुझे उनसे बहुत ज़रूरी बात करनी है”

“हाँ यहीं हैं, तू ठीक तो है अवनि”

“मैं बिलकुल ठीक हूँ यार, बस ऐसे ही कुछ बात करनी थी अंकल से”

“अच्छा मैं पापा को फोन देती हूँ, वो स्टडी में हैं”

“हेल्लो, नमस्ते अंकल,

“नमस्ते अवनि, कैसी हो बेटा, बहुत दिन बाद याद आयी अंकल की”

“मुझे आपकी हेल्प की ज़रूरत है”

“बोलो अवनि, क्या हेल्प चाहिए तुम्हे”

“असल में अंकल .......”

अवनि ने शुरू से आखिर तक सारी बात उन्हें बता दी...

“हम्म तो ये मसला है, तुम्हारी ससुराल वाले काफी तेज़ मालूम होते हैं”

“जी, मुझे इस सब के बारे में आज ही मालूम हुआ, अंकल क्या ऐसा नही हो सकता कि सौरभ की जानकारी के बिना मैं ये घर वापिस पापा के नाम कर दूँ”

“ऐसा होना मुश्किल है क्यों की trusty सौरभ है तो उसके सिग्नेचर होना भी ज़रूरी है जो वो नही करेगा”

“फिर आप बताये मैं क्या करूँ”

“अगर possible है तो तुम original papers के साथ इंडिया आ जाओ, फिर हम कुछ करते है, कोई ना कोई solution ज़रूर निकल आएगा”

“ठीक है, मैं कोशिश कर के देखती हूँ.. thank you so much अंकल”

“बेटा मेरे लिए तुम भी रीता जैसी ही हो.. thank you वगैरा की formalties में मत पड़ो, इंडिया आ कर मुझसे मिलना”

“ओके अंकल”

रीता के पापा Mr. बंसल से बात कर के अवनि काफी रिलेक्स फील कर रही थी, उसे लगने लगा था अब कुछ ना कुछ पॉजिटिव रिजल्ट निकल आएगा बस सौरभ को किसी भी तरह से मनाना था इंडिया के लिए। अवनि को लग रहा था जैसे उसके साथ बहुत बड़ा धोंका हुआ है, उसके सास ससुर की मिली भगत है सब। “ क्या सौरभ भी इस सब में शामिल है... नही.. अगर शामिल नही तो ये पेपर्स उसके पास क्यों” हज़ारो सवाल उसके मन में उठ रहे थे जिनका जवाब जानते हुए भी वो मानने को तैयार नही थी, इतनी मोहब्बत करने वाला पति उसके साथ ऐसा खेल खेल गया और उसे खबर भी नही हुई।

दूसरी तरफ उसके माँ बाप थे जिन्होंने उसकी खुशी के लिए अपने आपको भी दाव पर लगा दिया, काश उसके माँ बाप उससे इस बात का ज़िक्र करते तो वो मना कर देती इस शादी के लिए.. अमेरिका जाने की ख्वाहिश इतनी बड़ी नही थी कि अपने माँ बाप का घर बिकवा देती, पर जो होना था वो तो हो गया अब उसे इससे आगे का सोचना था.. अपने ख़्वाबों की कीमत चुकानी थी जो उसने देखा तो अकेले था पर खामियाजा उसके माँ बाप और भाई भुगत रहे थे.......

***

इसी उधेड़ बुन में अवनि को शाम हो गयी। दरवाज़े पर बेल हुई “टिंग टोंग”

अवनि ने बेजान कदमो से उठ कर दरवाज़ा खोला..

“अवनि क्या हुआ, ये क्या हालत बना रखी है तुमने, तुम्हारी तबियत तो ठीक है” सौरभ ने परेशान होकर अवनि के माथे को छुवा।

“हाँ मैं ठीक हूँ, बस एसे ही थकन हो गयी थी सफाई करने में” अवनि ने बेदिली से जवाब दिया, उसे सौरभ की फ़िक्र और परेशानी जताना सब एक ढोंग और झूँठ लग रहा था।

“तो इतना काम करने की क्या ज़रूरत है और तुम तैयार भी नही हुई, आज तो हमें डिनर पर बाहर जाना था ना” सौरभ ने सुबह का वादा याद दिलाया।

“मेरा मन नही है, किसी और दिन चले जायँगे.. आज खाना बाहर से माँगा लो, सारा दिन सफाई की तो कुछ बना नही पायी”

“कोई बात नही, बाहर से माँगा लेते हैं.. मुझे तुम्हारी तबीयत ठीक नही लग रही.. तुम आराम करो” सौरभ ने प्यार से अवनि को बेड पर बिठाते हुए कहा।

खाना खाने के बाद सौरभ लैपटॉप पर काम करने लगा और अवनि सोचने लगी किस तरह सौरभ से इंडिया जाने की बात की जाये..

“सौरभ, क्या कर रहे हो आप” अवनि ने बात शुरू की।

“कुछ खास नही, तुम कहो” लैपटॉप से नज़रें हटाइये बिना पूछा।

“आज मैंने घर फोन किया था, माँ की तबियत खराब है”

“ओह तो ये वजह थी तुम्हारी परेशानी की”

“हाँ यही बात थी, सौरभ मैं कुछ दिनों के लिए माँ के पास जाना चाहती हूँ, मुझे उनकी बहुत याद आ रही है”

“लेकिन अवनि ऐसे कैसे जा सकते हैं हम.. कोई दूसरे शहर में तो हैं नही कि मन किया और चले जाये, अमेरिका से इंडिया जाने के लिए कुछ तो वक़्त लगेगा ना तैयारी में”

“मैं कुछ नही जानती, बस मुझे इंडिया जाना है”

“हम अभी नही जा सकते, मेरी कुछ दिनों में बहुत important मीटिंग है और उसकी डेट भी नही आयी अभी”

“तो आप मेरा रेज़र्वेशन करा दें.. मैं अकेले चली जाऊँगी”

“अकेले.... तुम्हे लगता है तुम जा सकती हो अकेले” सौरभ हँसा जैसे कोई बहुत नामुमकिन बात कह दी हो अवनि ने।

“हाँ अकेले... जा सकती हूँ मैं अकेले भी” अवनि कुछ नाराज़ हो कर बोली।

“अच्छा ठीक है, मैं देखता हूँ ऑफिस बात कर के.. मीटिंग की डेट पता चल जाये तो प्लान बनाते हैं इंडिया जाने का” सौरभ ने टालने वाले अंदाज़ में कहा।

कुछ दिन यूँ ही निकल गए सौरभ के जवाब के इंतज़ार में, अवनि ने फिर कहा..

“मीटिंग की डेट का कुछ पता चला”

“नही, अभी नही चला”

“तो मैं अकेले चली जाउंगी, भगवन न करे मेरे पीछे मेरी माँ को कुछ हो गया तो” अवनि ने सौरभ को इमोशनली कहा।

“अच्छा ठीक है, तुम रोना नही प्लीज.. मैं तुम्हारा रेज़र्वेशन करा देता हूँ, काम खत्म हो जाये तो मैं भी आ जाऊंगा.. कुछ दिन वहां रह कर फिर हम दोनों साथ वापिस आ जायँगे अमेरिका” सौरभ ने कहा।

“हुंम्म, ठीक है” अवनि ने आँखों से बहते आंसू साफ़ किये।

***

रेज़र्वेशन कंफर्म होते ही अवनि ने पैकिंग शुरू कर दी। शादी के बाद पहली बार इंडिया जा रही थी तो ससुराल और मायके में सब के लिए कुछ ना कुछ लिया था.. साथ ही साथ सौरभ से छुप कर अपने कपड़ों के बीच कागज़ के टुकड़ों पर लिखा राज़ भी छुपा कर ले गयी। इंडिया जाने की असल वजह यहीं थी, घर के पेपर्स जो रीता के पापा Mr. बंसल को दिखाना था।

सौरभ उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने आया और miss you dear कह कर विदा किया। अवनि जवाब में miss you too भी नही कह पायी बस उसे देखते रही। दिल अजीब कशमाकश में था, अकेले पहली बार इतना लंबा सफर पर दिल में एक मज़बूत इरादा लिए वो प्लेन में बैठ गयी।

इंडिया पुहंची तो अवनि के सास ससुर और उसके माँ बाप उसे लेने आये थे, अवनि पहले अपनी सास के गले लगी फिर अपनी माँ के..

“बेटा बहुत कमज़ोर हो गयी हो” अवनि की माँ ने कहा।

“नही माँ, मैं तो ठीक हूँ” अवनि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अवनि बेटा, हमारे साथ जाओगी या कुछ दिन मायके रहना चाहती हो” अवनि की सास ने पूछा।

“मम्मी कुछ दिन माँ के साथ रहना चाहती हूँ” अवनि में कहा।

“चलो ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी” अवनि की सास ने कुछ बुरा सा मानते हुए कहा जिसे अवनि ने नज़र अंदाज़ कर दिया।

अवनि अपने माँ पापा के साथ घर आ गयी, वो घर पुहंची तो घर को चारों तरफ से देखा उसे यूँ महसूस हुआ कि घर उसे घूर रहा है और कह रहा हो “तू ही है वजह मेरे बिक जाने की, सिर्फ तेरी वजह से हुआ है ये सब”

“आओ अवनि, दरवाज़े पर क्यों रुक गयी” माँ ने टोका तो अवनि अन्दर आ गयी।

“नही माँ, बस एसे ही”

“बेटा अपने घर को एसे देख रही हो जैसे पहली बार आयी हो, ये वही घर है जिसमे तुम खेल कूद कर बड़ी हुई हो”

“पर माँ ये तो आप लोगो ने सौरभ.....” अवनि ने बीच ने ही बात छोड़ दी।

“दामाद जी बहुत अच्छे हैं बेटा, उनका कहना है नाम होने से क्या होता है ये घर आप लोगो का ही है और आप को कहीं जाने की ज़रूरत नही.. आप यहीं रहें अपने घर में”

अवनि अपने माँ बाप की मासूमियत पर हैरान हो गयी.. “वो कितना शातिर इंसान है.. मुझे शक भी नही हुआ और मकसद में भी कामयाब हो गए पर मैं ऐसा नही होने दूंगी, कुछ नही आने दूंगी तुम्हारे हाथ” अवनि ने मन ही मन सोचा।

..To be continue in part 4

Dear readers, apko meri likhi kahani kysi lagi plz feel free to comment.. I’ll take ur comments as feedback.. Thank you..

-Khushi Saifi