Dost ka prem vivah - 2 in Hindi Love Stories by Divana Raj bharti books and stories PDF | दोस्त का प्रेम विवाह

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दोस्त का प्रेम विवाह

दोस्त का प्रेम विवाह

भाग -2

दो साल बाद जब मै जितेन्द्र से मिला तो वो बोला तुम्हे याद है वो लड़की।

मै : कौन लड़की।

जितेन्द्र : वही ठंडा की दुकान वाली।

मै : अच्छा वो मधेपुरा वाली जो विमल की शादी के समय रास्ते मे तुमने देखा था।

जितेन्द्र : हाँ वही उसका नाम जानकी है आज उसकी बहन की शादी है कार्ड आया है चलेगा।

मै : उसकी बहन की शादी का कार्ड तुम्हारे पास कैसे और उसका नाम तुम्हे कैसे पता चला।

जितेन्द्र : चल सब बताता हूँ।

जितेन्द्र अपना बैक निकाला और बोला बैठ। मै : तुमने ये गाड़ी कब खरीदी।

जितेन्द्र : पता है उस दिन जब हम सहरसा से वापस आये। सब अपने कामों पे वापस चला गया लेकिन मुझे अपने कामों मे मन नही लग रहा था। उधर मेरी एमएससी भी कंप्लीट हो गयीं थी तो एक दिन मै घर पे था मै थोड़ा अपसेट लग रहा था तो माँ देख ली अब माँ से कुछ थोड़ी न कोई छुपा सकता है तो मै भी छुपा नही पाया मैनें माँ को सब बात दिया उस लड़की के बारे मे भी। तो माँ बोली मुझे कोई एतराज़ नही अगर तुम अपने मन से शादी करे लेकिन अगर लड़की के घर वाले पूछेंगे लड़का करता क्या है तो उसे हम क्या बोलेंगे। देख तुमने क्या किया इतने दिन क्यो असफल हुआ वो सब भुल जा। अभी तुम जो अच्छा करोगे तो लोगों का ध्यान तुम पे जायेगा। मैने माँ से पुछा फिर तु ही बता मै क्या करूँ। तो माँ बोली देख हर इंसान मे कोई न कोई गुण होता है तेरे अंदर भी है तु एक अच्छा शिक्षक बन सकता है। अब तेरी एमएससी भी कंप्लीट हो गयी है तो कोई कोचिंग क्यों नही खोलता मै तेरी पुरी मदद करूँगी। अभी अपने गांव मे बहुत लड़का है जो इंटर साइंस से करना चाहते है लेकिन यहाँ कोई कोचिंग नही है तो यहाँ कोई कोचिंग खोल। उस दिन मुझे माँ की बाते सही लगी फिर मै भी यही सोचा। अब मै यही खुटोना(बिहार का एक गांव) मे एक अच्छा सा जगह देखा और शुरूआत किया लेकिन मै तो सिर्फ रसायन पढा सकता था तो मैने अपने गांव का दोस्त जो कोई भौतिकी गणित और इंग्लिश मे अच्छा था उससे बात किया फिर वो लोग भी मान गये। तो इसतरह माँ की विश्वास और हम दोस्तों की मेहनत से कोचिंग चलने लगा। शुरूवात मे तो बच्चे बहुत कम थे फिर बढने लगे। कुछ दिन बाद मैने एक ब्रांच दरभंगा मे भी खोल लिया अब मै तीन दिन घर और तीन दिन दरभंगा मे क्लास लेता हूँ। अभी एक साल पहले की बात है बच्चे को एडमिशन लेने के समय बहुत परेशानी होती थी उसे अपनी पसंद का ब्रांच या काँलेज नही मिलता था इंजिनियरिंग या मेडिकल मे पैसे भी फालतू बहुत खर्च हो जाते थे तो मैने एक

कंपनी खोला है जो बच्चे को ये सारी सुविधाएँ देती है। कुछ दिन पहले ही मै ईसी सेमिनार के वजह से मधेपुरा गया तो इत्तेफाक से उसी सेमिनार मे मेरी मुलाकात जानकी से हुई वो अपने भाई कि ऐडमिशन के लिए आयी थी। तो वही से उससे मेरी बात होने लगी मैनें उसे अपनी दिल की बात भी बताया तो वो मान गयी लेकिन वो बोली कि उसके पापा के गुजरने के बाद उसके घर कि सारी जिम्मेवारी उस पे है। इसलिए वो दुकान पे रहती थी अब वो शादी तबतक नही करेगी जब तक सब ठीक न हो जाता तो उसकी समस्या अब मेरी भी हो गयी जब वो मेरी थी। तो पहले उसके भाई का एडमिशन करवाया अब आज उसकी बहन की शादी है फिर हमारी होगी और अबसे वो दुकान उसकी माँ चलायेगी जब तक चला सके।

मै : यार तु तो कमाल कर दिया इतना कुछ हुआ और बताया भी नही और घर वाले मान गये शादी के लिए।

जितेन्द्र : मेरी माँ तो पहले से मान गयीं थी और उसने पापा को मना लिया। उधर जानकी के पापा ही नही थे खिलाफ होने के लिए और किसी माँ को देखा है अपने बच्चे की खुशी के खिलाफ जाते। लेकिन एक समस्या है यार जानकी का केहना है वो शादी मंदिर मे करेगी जिस वजह से तुमलोगों की मस्ती नही हो पायेगी यार।

मै : मस्ती की तु फिक्र मत कर वो तो हमलोग कर ही लेगें। अच्छा तो तुमने शादी भी फिक्स कर ली है कब है शादी और इसके बारे किसीको बताया।

जितेन्द्र : शादी तो परसों ही है दरभंगा के श्यामा मंदिर मे। मैनें सब रिश्तेदारों को तो बता दिया है अब दोस्तों को तु ही सरप्राइज दे दे।

मै : यार तु शादी जल्दी नही कर रहा है।

जितेन्द्र : जानकी की माँ का जिद थी जब करना ही है तो तुमलोगों भी अभी कर लो अभी सभी रिश्तेदार सब भी आये है और मै रिस्क भी नही लेना चाहता था मैने झट से हाँ कह दिया। क्या पता मेरी खुबसूरत जानकी को कोई और छीन ले जाये।

मै : ठीक है अब चल तुम्हारी साली की शादी करवाते है फिर तुम्हारी प्रेम विवाह करवायेंगे।

शादी से वापस लौटने के बाद मैनें सारे दोस्तों को शादी मे बुलाया सब आने को मान गया सब पूछते रहे भाई दुल्हन कौन है किससे कर रहा है जितेन्द्र शादी। मैने बोला लड़की से ही कर रहा है देखेगा तो समझ जायेगा।

शादी का इंतजाम अच्छे से हुआ और दोस्तों को दुल्हन देख के शौक लगा। दोस्तों के लिए इस से अच्छा सरप्राइज तो हो ही नही सकता था। जिसे हम कुछ साल पहले पीछे छोड़ आये थे और आज जितेन्द्र उसे अपने साथ ले आया था।

बस ऐसा ही था हमारे दोस्त का प्रेम विवाह।

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