Samaj Sevi Sanp Ji in Hindi Comedy stories by Prem Janmejay books and stories PDF | Samaj Sevi Sanp Ji

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Samaj Sevi Sanp Ji


समाज सेवी सांप जी!

प्रेम जनमेजय

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इन दिनों हमारे राधेलाल जी पर समाज सेवा का भूत सवार है । वैसे तो समाज सेवा का भूत हमारे समाज सेवकों के दिल में चुनावी मौसम को देखकर जागता है । यह मौसम है ही ऐसा बेईमान कि अच्छे से अच्छा संत और बुरे से बुरा असंत ,समाज सेवा के लिए चुनावी दंगल में कूद जाता है । कहते हैं कि जब वसंत आता है तो आम पर बौर आता है तथा आम आदमी बौरा जाता है । वैसे इन दिनों आम भारतीय आम पर आए बौर के कारण नहीं बौराता है, अपितु आम की महंगाई के कारण बौराता है । महंगाई के कारण बौराना आम आदमी की नियति हो गई है ——— कभी वह प्याज के कारण बौराता है तो कभी आलू की महंगाई के कारण । इस महंगाई ने पति— पत्नी के संबंधों को बहुत मधुर कर दिया है । अब पत्नी पति की उपरी कमाई को देखकर ग्लानि का भाव नहीं लाती है अपितु गर्व का अनुभव करती है तथा इस कुरुक्षेत्रा में युद्ध करने के लिए पति को प्रेरत करती है । आजकल उपरी कमाई का सबसे श्रेष्ठ साधन राजनीति है । नौकरी के लिए तो पढा— लिखा होने की शर्त होती हे , इसके लिए वह भी नहीं ।

मैंनें पूछा ————‘‘ राधेलाल जी यह अचानक आपको मुहं पर कालिख लगा राजनीति की दलदल में घुसने की अचानक क्या सूझी ? आप तो जानते ही हैं कि यह काज़र की कोठरी है और इसमें दाग लागे ही लागे ।''

राधेलाल ईमानदार व्यक्ति सा मायूस होकर बोला ——‘‘ आप नहीं जानते हैं प्रेम भाई आजकल काजर का यह दाग कितना महत्वपूर्ण हो गया है । इस काजर की कोठरी में घुसकर हर प्रगतिकामी दाग लगवाने को उत्सुक है । काजरी धन का दाग जितना बड़ा होता है, उतना ही बडा़ सम्मान दिलाता है । काजरी पद का दाग लगने से सगे संबंधियों का अपनत्व बढ़ जाता है । चाहे जितना बड़ा अफसर हो पर वह काजर की कोठी में नहीं बैठा है तो लड़की वाले भी दहेज कम देते हैं । काजर की कोठरी में बैठा क्लर्क ,ईमानदारी के महल में बैठे अफसर से श्रेष्ठ होता है । आप देखते नहीं हैं , चुनाव के मौसम में कितने काजर — भक्त इस दाग को लगवाने के लिए न अपनी जान की परवाह करते हैं और न दूसरे की ।

— पर राधेलाल दाग लगने से समाज में इज्जत घटने का खतरा रहता है।

— पर प्यारे इससे पब्लिसिटी खूब मिलती है। जिना बड़ा दाग लगता है उतना बड़ा फोटो अखबार में छपता है। जो जितना बड़ा दागी है वो उतना ही सम्मानित है। ''

मैंने देखा जो राधेलाल हर समय सफेद कमीज पहने घूमता था आज काली कमीज पहने हुए था।

मैंने कहा — राधेलाल, एक समय था तूं खादी के चकाचक दूध जैसे सफेद कुर्ते पहनता था, ये काली कमीज क्यों धारण कर ली।''

राधेलाल ने मुस्कराते हुए कहा — प्यारे, किसी समय प्रतियोगिता चला करती थी कि तेरी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे। आदमी सफेदी की ओर भागता था। कितने ही डिर्टेजेंट का इस्तेमाल करता था, सफेदी पाने के लिए। पर अब प्रतियोगिता बदल गई है। आजकल तो तेरी कमीज मेरी कमीज से अधिक काली कैसे की प्रतियोगिता चला रही है। वैसे भी सफेद कमीज पर छोटा—सा भी दाग बड़ा दिखता है, पर काली कमीज पर दाग को ढूंढते रह जाओगे। डिर्टेजेंट का खर्चा कितना बचता है !'' इसके बाद मेरे कान में फुसफसाते हुए —सा राधेलाल ने कहा ,‘‘ आप तो हमारे छोटे

वाले बेटे को जानते ही हो । पढ़ने लिखने में ससुरेे का दिल नहीं लगता है, इस छोटी इस उम्र में खुद तो थाने गया ही है,मुझे भी थाना दिखला दिया है । अब पढ़ना लिखना इसके बस का है नहीं, इसे कोई बिजनेस करवा सकूं इतना रुपया पैसा अपने पास है नहीं । सोचता हूं इसे राजनीति में ही डाल दूं , आजकल ये धंधा बहुत जोरों पर चल रहा है । एक बार कहीं मंत्री बन गया तो समझोे रुपए पैसे की झिकझिक खत्म हो जाएगी ।''

—— पर राधेलाल जी, राजनीति के लिए भी तो बहुत काबलियत चाहिए होती है , पूरे देश का नेतृत्व करना होता है । उसमें कुछ योग्यता — श्योगता है कि नहीं ? ''

यह सुनकर राधेलाल जी की मायूसी गधे के सिर से सींग या फिर नेता के जीवन से आत्मसम्मान की तरह गायब हो गई । वह बहुराष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी पाए भारतीय से चहक कर बोले,‘‘ काबलियत तो उसमें बहुत है । आप जानों मोहल्ले का हर बदमाश उसका चेला है । चाकू ऐसे चला लेता है कि बडे से बडा बदमाश उसका लोहा मानता है । अभी कॉलेज के फर्स्ट ईयर में है और दस बारह लडकियों से एक साथ चक्कर चल रहा है । निडर इतना है कि दो बार कॉलेज के प्रिंसीपल को और एक बार किसी मास्टर की धुनाई लगा चुका है । सभी मास्टर उससे ऐसे थर थर कांपें है , जैसे मैं तुम्हारी भाभी से कांपूं हूं ।''

यह कहकर राधेलाल जोर जोर से हंसने लगा और मैं असमंजस में पड गया कि राधेलाल किस पर हंस रहा है । हंसते समय राधेलाल की आंखें के किसी कोने में आंसू भी छिपे हुए मुझे दिखाई दे रहे थे ।

हंसकर अपना बोझ हल्का कर लेने के बाद राधेलाल पुनः बोला ,‘‘ प्रेम भाई , तुमने भी अपने बचपन में यह गाना सुना होगा , —— इस दुनिया में सब चोर चोर कोई छोटा चोर कोई बडा चोर । आज इसी तर्ज पर दलितों के मसीहा ; आपके सामान्य ज्ञान के लिए बता दूं कि राधेलाल दलित नहीं है पर जनसेवा के लिए हो गया हे । द्ध, इस राधेलाल ने एक गाना बनाया है —— इस प्रजातंत्रा में सब सांप — सांप, कोई छोटा सांप कोई बडा सांप । एक समय था कि हम नेताओें से कहते थे कि तुम जनसेवक नहीं सांप हो और वो बडी मासूमियत से गांधी बाबा की खादी पहन कर कहते थे हमसे बढकर देशसेवक कौन । आज हम कह रहें कि तुमसे बढकर नेता कोई नहीें , बेचारा सांप तो तुम्हारे काटे जाने के डर से छिपा फिर रहा है। आजादी के पचास वर्षों में हमने इतनी प्रगति कर ली है कि सांप आदमी की नेताई फसल से डरने लगा है । जहर उगलने में बेचारा बहुत पीछे छूट गया है । आदमी को काटने से डरने लगा है ——न जाने किस भेस में बाबा नेता मिल जाए अेौर अपना काम तमाम हो जाए । सांप तो बेचारा सांप है , वन इन वन , केवल सांप और सांप के अतिरिक्त अेौर कुछ नहीं । हमारे नेता हैं अपार गुणों के स्वामी —— गिरगिट , दीमक , जोंक ,भेडिया , लोमडी , बगुला , और न जाने किन किन आत्माओं का इनमें वास है । इसलिए आज के युग में अच्छा नेता बनना बडे श्रम और योग्यता का काम है, और मेरे सुपुत्रा में यह योग्यताएं अभी से मौजूद हैं । आम सपूतों के पांव पालने में दिखाई देते हैं , और राजनीतिक सपूत के पांव थाने में दिखाई देते हैं ।

एक समय था सांप आस्तीनों में पला करते थे । जब आम जनता को इसकी पहचान हो गई तो उन्होंनें ससंद के गलियारों में पलना शुरू कर दिया । आजकल सांप अपने बिलों में ताले लगाकर ससंद के एयरकंडीशंड उपवन में मुक्त भाव से, सांपिनों के साथ विचरण करते हैं । '' यह कहकर राधेलाल न जाने क्यों किसी हत्या के प्रत्यक्षदर्शी गवाह की तरह मौन हो गया ।

मैंने राधेलाल का मौन तोडते हुए पूछा ,‘‘ राधे भाई यह तो ठीक है कि अपने कैरियर के लिए तुम्हारा सपूत राजनीति में जाने की तैयारी कर रहा है,परन्तु तुम क्याें इस काजर की कोठरी में प्रवेश पाने को उत्सुक हो ?''

—‘‘ प्रेम भाई , ये वो काजर की कोठरी है जिसमें हर सफेदपोश जाने को तैयार बैठा है । जिसके एक बार यह कालिख लग गई , समझो उसकी सात पुश्तें तर गईं । घोटाले की एक कालिख

जिंदगी भर का दलिद्‌दर देर कर देती है । अब रही मेरी बात आने की । वैसे तो राजनीति में जाने के लिए किसी उम्र और किसी क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती है —— सोलह साल की छोकरिया हो या अस्सी साल का बूढा , पढा लिखा जेंटलमैन हो या अंगूठा छाप लालबुझक्कड , ईमानदार महापुरुष हो या हत्यारा जेलपुरुष —— सभी एक नाव के सवार होते हैं । एक दांव बुढापे में मैं भी खेलकर देख लेता हूं । दांव लग गया तो मेरा बुढापा आराम से कट जाएगा और बेटे को लगी लगाई दूकान मिल जाएगी ., नहीं लगा तो मेरा अनुभव बेटे के काम आ जाएगा । ईश्वर की कृपा से हैलो , हैलो टेस्टिंग के लिए चुनाव भी आने वाले हैं ।''

‘‘ चुनाव लड़ने की तो तुम ऐसे कह रहे हो जैसे हर पार्टी हाथ मेंं टिकट थामें तेरा ही इंतजार कर रही हे । इतना आसान न है । चुनाव लड़ने के लिए या तो गांठ में पैसा हो या फिर हाई कमांड से गांठ जुड़ी हो । मैं तेरी वंशावली जानता हूं, दूर — दूर तक इसमें किसी नेता का साया नहीं दिखाई देता है । और रहा पैसे की बात , वह तेरी गांठ से ऐसे ही गायब है जैसे तेरे जीवन से ईमानदारी । ''

मेरी बात सुनकर राधेलाल जोर से हंसा , बोला,‘‘ पार्टी का टिकट पाने के ये हथियार पुराने हैं । जवानी से भरी देश की गरीब युवा पीढ़ी अब भी सोई हुई है। उसे मैं जगता हूं, उसका मूल्य चुकाता हूं। मेरे देश की राजनीति उससे खिलवाड़ करती है और मुझे मेरा देेय मिल जाता है । कुछ समझे प्यारे !''

मैं बहुत आम भारतीय नागरिक की तरह बहुत नासमझ हूं। मुझे राजीनति से दूर रहना ही अच्छा लगता है। पर तब मुझे लगा कि यदि मैं राजनीति को कीचड़ समझ दूर रहूंगा तो न जाने कितने राधेलाल इसे और कीचड़ बना देंगें।

मैंनें देखा राधेलाल का चेहरा दुमुंहें सांप का हो गया था जिसके एक मुंह पर खादी की टोपी लगी थी और दूसरे पर भयानक विषदंत चमक रहे थे । उसकी चमड़ी खाकी रंग की थी और जुबान में ज़हर का काला रंग सुशोभित हो रहा था । वह प्रभु की तरह एक था पर अनेक रूप में भासित हो रहा था ।

मैंने राधेलाल को दूध पिलाने का वायदा किया और अपनी गली चला आया। राधेलाल ने दूध पीने का वायदा किया और अपनी बिल, संसद, की ओर चल दिया।

प्रेम जनमेजय

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