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कबूतर

कबूतर

क़ैस जौनपुरी

एक शहर था, जो बड़ी तेज़ी से तरक़्क़ी कर रहा था. उसी शहर में एक कबूतर का जोड़ा रहता था. शहर में अन्धाधुन्ध बन रही इमारतों की वजह से पेड़ों की कमी हो गयी थी. अब कबूतर इमारतों की खिड़कियों के लिये बने छज्जों पर रहने लगे थे. लेकिन मादा कबूतर छज्जे पर अण्डे नहीं दे पा रही थी क्योंकि उसे डर लग रहा था कि, "पिछली बार की तरह इस बार भी मेरा अण्डा छज्जे से नीचे गिरकर टूट जायेगा."

इसलिये यह कबूतर का जोड़ा, एक ऐसी जगह तलाश कर रहा था, जहाँ उन्हें तसल्ली रहे कि, "हमारा अण्डा सही-सलामत रहेगा." इसके लिये कबूतर के जोड़े ने बहुत कोशिश की, मगर कोई भी ऐसी जगह न मिली, जहाँ वो घोंसला बना सकें और उन्हें अपने अण्डों के टूटने का ख़तरा न हो. सड़क के किनारे भी लोगों का आना-जाना लगा रहता था. दिन-रात आती-जाती गाड़ियों का शोर भी उन्हें डरा देता था.

एक दिन ये कबूतर का जोड़ा, एक खिड़की पर बैठा सोच रहा था कि, "हम किस शहर में हैं? यहाँ तो एक कबूतर के रहने की भी जगह नहीं है. इतने सारे लोग कैसे रहते हैं इस शहर में? और इतनी सारी गाड़ियाँ? कौन घूमता है इन गाड़ियों में? इतना शोर क्यूँ मचाते हैं इस शहर के लोग? इनकी मादायें अण्डे कहाँ देती हैं? इनके बच्चे कहाँ पैदा होते हैं? हमें तो हर जगह सिर्फ़ शोर ही शोर सुनायी देता है. घर के अन्दर भी मशीन लगा रखी है. उसमें भी ऐसा ही शहर दिखायी देता है. रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए लोग नाचते-गाते रहते हैं. कहीं हम पागलों के शहर में तो नहीं?" कबूतर का जोड़ा टीवी की बात कर रहा था.

नर कबूतर ने खिड़की से अन्दर झाँक के देखा. इस घर की मशीन, जिसमें रंग-बिरंगे लोग, पागलों की तरह नाचते-गाते रहते हैं, यानी इस घर का टीवी बन्द था. मादा कबूतर ने कहा, "कोई बात नहीं. यहाँ थोड़ा सन्नाटा है. इस घर के लोग भले दिखायी देते हैं. कम से कम दूसरों की तरह पागल तो नहीं हैं. और यहाँ शान्ति भी है. यहाँ मैं अण्डा दे सकती हूँ. मगर घोंसला कहाँ बनाऊँ?"

तभी मादा कबूतर को, कमरे की अन्दर की दीवार पर, जो उसी खिड़की के कोने पर मिलती थी, एक कपड़ा टाँगने वाला, गोल हैंगर दिखायी दिया. इस हैंगर में सहारे के लिये तीन टाँगे थीं. हैंगर का किनारा गोल था. उसमें नीचे की तरफ़ कई क्लिप्स लटकी हुई थीं, जिनमें कपड़ा टँगा रहता था. इस गोल हैंगर की बनावट, मकड़ी के जाले जैसी थी. कबूतर इसपे बैठ तो सकते थे, मगर अण्डा नहीं दे सकते थे, क्योंकि वैसे तो हैंगर में कई फ़्रेम थे, मगर फ़्रेम बीच-बीच में से ख़ाली था.

मादा कबूतर बार-बार, इधर-उधर हैंगर पे बैठने की कोशिश कर रही थी. मगर उसे अण्डा देने के लिये अभी भी समतल और सुरक्षित सतह नहीं मिल रही थी. नर कबूतर वहीं पास में बैठा सोच रहा था, और मादा कबूतर की रखवाली भी कर रहा था.

तभी कमरे में एक छोटा सा बच्चा आया. उसने देखा कि खिड़की पे दो कबूतर बैठे हैं. उस छोटे से बच्चे ने ख़ुश होकर अपने मम्मी-पापा को बुलाना शुरू कर दिया.

  • "पापा, पापा! देखो, देखो! खिड़की पे चिड़िया बैठी है. मम्मी, मम्मी! आओ देखो!"
  • "क्या हुआ इसू?" छोटे बच्चे के पापा ने कहा.
  • "पापा! देखो चिड़िया" इसू ने चहकते हुये कहा.
  • "ये कबूतर है बेटा" इसू के पापा ने इसू को बताया.
  • "क्या हुआ इसू?" अब वहाँ इसू की मम्मी भी आ गयी थीं.
  • "मम्मी! देखो कबूतर!" इसू ने मम्मी को बताया.
  • इतने में इसू की चहकती हुई आवाज़ सुनकर कबूतर उड़ गये. इसू की मम्मी ने इसू के पापा से कहा, "कबूतर अण्डा देने के लिये जगह ढूँढ़ रहे हैं." फिर इसू के पापा ने उस हैंगर के ऊपर अख़बार बिछा दिया.

    थोड़ी देर बाद कबूतर फिर आये. अब उन्हें लगा कि, "ख़ाली जगह अख़बार से ढँक चुकी है. अब हमारा अण्डा नीचे नहीं गिरेगा." इसलिये कबूतर ख़ुश थे.

    अब कबूतर काफ़ी देर तक बैठे रहते थे. मगर अण्डा देने से पहले दोनों ख़ूब तसल्ली कर लेना चाहते थे.

    एक दिन इसू और उसके पापा, कमरे में बैठे रेडियो पे गाना सुन रहे थे. तभी कबूतर का जोड़ा फिर आया. और उन्हें देखते ही इसू चिल्लाया.

  • "पापा, देखो! कबूतर फिर आ गये."
  • इसू के पापा ने इसू को तुरन्त चुप कराया.

  • "चुप! नहीं तो कबूतर भाग जायेंगे." इसू को पापा ने समझाया.
  • कबूतर के जोड़े ने देखा कि अब इसू शान्त हो चुका है. मगर कबूतर एक पल के लिये भी बेफ़िक्र नहीं होते थे. दोनों अपनी नज़र गड़ाये हुये रहते थे कि, "कहीं कोई हमें पकड़ने या मारने तो नहीं आ रहा है?"

    तभी इसू की मम्मी खाने के लिये गरमा-गरम पराठे लेकर कमरे में आयीं. इसू के पापा पराठा खाने लगे.

  • "आप भी आइये!" इसू के पापा ने इसू की मम्मी को बुलाया.
  • "आप गरम-गरम खाइये! हम आ रहे हैं." इसू की मम्मी ने कहा.
  • इसू के पापा ने सोचा, "क्यूँ न थोड़ा सा पराठा, कबूतरों को भी खिलाया जाये." और इस मक़सद से वो धीरे से उठे और छोटा सा पराठे का टुकड़ा, कबूतरों के पास पहुँचाने की कोशिश करने लगे. मगर जैसे ही पराठा, कबूतरों की नज़र में आया, दोनों फ़ुर्रर्र से उड़ गये.

    इसू के पापा ने कबूतरों के बैठने के लिये थोड़ा और अख़बार लाकर बिछा दिया. उन्होंने देखा कि कबूतर इस बार अपने साथ एक तिनका भी लाये हैं. इसका मतलब था कि अब कबूतरों को इस बात का भरोसा हो गया था कि, "हम यहाँ अण्डा दे सकते हैं." और उन्होंने इसी मक़सद से तिनके जुटाने की कोशिश शुरू कर दी थी.

    आख़िर एक जानवर ने इन्सान की भावना समझ ली थी. दूसरे दिन इसू के पापा ने इसू को गोद में उठाकर वो जगह दिखायी. कबूतर तो उस वक़्त नहीं थे. मगर अब वहाँ दो तिनके आ चुके थे. इसू के मम्मी-पापा को पूरी उम्मीद थी कि, "कबूतर अण्डा देगी."

    कबूतर अब जब-तब आने लगे थे. अब उन्हें इसू का खड़ा होना, उनकी तरफ़ देखकर हाथ हिलाना, इन सब बातों से डर नहीं लगता था. अब तो कबूतर उसी हैंगर पे सोने भी लगे थे.

    कबूतरों ने अब अपना भरोसा जता दिया था. और एक दिन इसू ने अपने पापा की गोद में बैठकर देखा कि कबूतर ने एक बहुत ही ख़ूबसूरत सा अण्डा दिया है.

    कबूतर इसू और उसके पापा की हरकतों को बहुत ध्यान से देखते थे. इसू के पापा इसू को हवा में लहराकर खेल खेलते थे. इसू हँसता था और अपने पापा की पीठ पर चढ़ जाता था. कबूतर अब समझ गये थे कि, "ये सब खेल है." और कबूतर ये भी समझ चुके थे कि, "ये परिवार भी उनकी ही तरह एक छोटा परिवार है."

    कबूतर के जोड़े को ये परिवार बहुत अच्छा लगा. उन्होंने आपस में बात की कि, "हम इस परिवार को छोड़के कहीं नहीं जायेंगे. और इस इसू की हर हरकत अपने होने वाले बच्चे को सिखायेंगे." ये सब इसलिये क्योंकि इसू बहुत ख़ुश रहता था. तो कबूतरों को लगा कि, "अगर हम भी इसू के माँ-बाप की तरह अपने बच्चे की परवरिश करें तो हमारा बच्चा भी इतना ही ख़ुश रहेगा."

    कबूतर के जोड़े ने ये सोच तो लिया मगर ऐसा होने में थोड़ी मुश्किल थी. क्योंकि वो इन्सान नहीं थे. लेकिन यहाँ बात तो सिर्फ़ अपने होने वाले बच्चे को ख़ुश देखने की थी. और ऐसा तो कोई भी सोच सकता है. चाहे वो इन्सान हो या कबूतर.

    कबूतर के जोड़े ने इसू की हर बात सीख ली थी. और इसू के मम्मी-पापा की भी सारी बातें सुनते-देखते रहते थे. जैसे सबसे पहले इसू देर तक सोता है. इसू के मम्मी-पापा उसे प्यार से जगाते हैं.

    कबूतर हर नयी बात पर इन्सान की तरह सोचने लगते थे. वो सोचने लगे कि उनका बच्चा भी सो रहा है और दोनों अपने बच्चे को प्यार से जगाने की कोशिश कर रहे हैं. हाँ, ये बात अलग है कि उनके पास इसू के मम्मी-पापा की तरह प्यार करने के लिये दो हाथ नहीं थे. उनके होने वाले बच्चे के पास इसू की तरह सोने के लिये बिस्तर नहीं था. मगर जब इन कबूतरों ने इन्सानों की तरह सोचना शुरू ही कर दिया था, तो उन्होंने ये भी सोच लिया था कि, "हम अपने बच्चे को हर वो ख़ुशी देंगे, जिस पर उसका हक़ है." और जो वो देखते थे इसू के लिये.

    वो देखते थे कि इसू रोज़ नहाता है. और नहाते वक़्त इसू गाना भी गाता है. इसू की मम्मी ज़बर्दस्ती साबुन लगाती हैं तो इसू रोता भी है. यहाँ कबूतरों को लगता था कि, "ये थोड़ा ज़्यादा हो रहा है. हम अपने बच्चे को रुलायेंगे नहीं." मगर उन्हें ये नहीं पता था कि ये सब इसू के लिये ज़रूरी है.

    और एक दिन उन्होंने देखा कि इसू तैयार हो रहा है, स्कूल जाने के लिये. अब कबूतर का जोड़ा इसू के पीछे-पीछे चल दिया, ये देखने के लिये कि इसू का स्कूल कहाँ है?

    इसू का स्कूल पास ही में था. अब कबूतरों को इसू की पूरी दिनचर्या मालूम हो चुकी थी. इसू कभी-कभी टीवी भी देखता था.

    अब कबूतरों ने सारी इन्सानी बातें सीख ली थीं. और मादा कबूतर इसी दौरान अपने अण्डे को ‘सेती’ भी रही थी.

    एक दिन अण्डे से एक प्यारा सा बच्चा निकला. उस दिन कबूतर का जोड़ा बहुत ख़ुश हुआ. दोनों ने आपस में बात की कि, "इसका नाम क्या रखें?" उन्हें और कोई नाम तो सूझा नहीं, इसलिये उन्होंने फ़ैसला किया कि, "हम अपने बच्चे को इसू कहकर पुकारेंगे." और अपनी ज़बान में वो उसे ‘इऊ’ कहते थे.

    कहते हैं कि बच्चा सबसे ज़्यादा बातें अपनी माँ के पेट में सीखता है. इऊ ने भी अपनी माँ के प्यार और दुलार को समझ लिया था. पहले दिन सभी इन्सानी बच्चों की तरह दुनिया में आने के बाद इऊ भी ख़ूब रोया था.

    एक दिन इऊ सुबह होने के बाद भी सो रहा था. और कबूतर का जोड़ा ख़ुश होकर अपने इऊ के आसपास गोल-गोल घूम रहा था. दोनों ख़ुश थे कि, "हमारा इऊ भी हमारी बात समझ रहा है." वो सोच रहे थे कि, "हमारा इऊ जानबूझ कर देर तक सो रहा है. हमारा इऊ चाह रहा है कि हम उसे प्यार से जगायें."

    और फिर दोनों कबूतरों ने एक साथ अपने इऊ को अपनी छोटी-छोटी चोंच से गुदगुदी करना शुरू कर दिया. और इऊ चहकते हुये उलट-पलट होने लगा. इऊ की मम्मी ने इऊ के पापा से कहा,

  • "चलो, चलो! आप ऑफ़िस जाओ! आप को देर हो रही है."
  • "ओह नहीं! आज ऑफ़िस जाने का मन नहीं है."
  • "अच्छा? तो फिर अपने इऊ को खिलाओगे क्या, कोपर? मैं जा रही हूँ इऊ को नहलाने. आप जाओ कुछ खाने के लिये ले आओ. मेरे इऊ के अच्छे पापा!"
  • इऊ के पापा, न चाहते हुये भी बाहर की दुनिया की तरफ़ सैर करने निकल पड़े. इऊ की मम्मी ख़ुश थी कि, "इऊ के पापा अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं."

    थोड़ी देर बाद ही, इऊ के पापा, कुछ खाने का सामान लेकर लौटे और अपनी चोंच इऊ के मुँह में डाल दी. इऊ ख़ुश हो गया कि, "कुछ खाने को मिला." मगर तभी इऊ के पापा को एक शरारत सूझी. और उन्होंने खाने का सामान अपने पंजों में दबाकर कहा,

  • "नहीं दूँगा, इसे तो मैं खाऊँगा."
  • तब इऊ ने रोने जैसा मुँह बना लिया और अपनी माँ की तरफ़ देखने लगा. इऊ की माँ ने इऊ के पापा से कहा,

  • "आप भी ना... छोटे से बच्चे को तंग करने में कितना मज़ा मिलता है आपको!
  • तब इऊ के पापा ने खाने का सामान इऊ के मुँह में डाल दिया. इऊ ख़ुश होकर अपनी माँ से लिपट गया.

    कबूतर का जोड़ा ख़ुश था कि, "हमारा परिवार, एक सुखी परिवार है."

    ***