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अधूरी कहानी

अधूरी कहानी

वाह !!! वो बचपन ! ये बचपन भी बहुत खास होता है ना ? बहुत कुछ यादों के रूप में दे जाता हैं। जिनमें से कुछ तो ऐसा होता है जिनको हम चाहकर भी अपने ज़हन से नहीं मिटा सकते।

बात बचपन की हो रही तो शुरुआत बचपन से ही करते हैं। हलांकि हर बच्चे का अपने ननिहाल से खासा लगाव रहता है। मेरा भी वैसा ही था। हम २ साल में एक बार अपने नानी के घर राँची जाया करते थे। बात तब की है जब मैं इतनी छोटी थी कि अगर कोई मुझसे मेरी उम्र पूछ ले तो शायद ही मैं सही बता पाती।

नानी के घर मेरा मन तब से लगने लगा, जब से नानी के घर के सामने वाले घर में मेरी ही उम्र का एक लडका मेरे साथ खेलने आने लगा। मैं भी उसके घर अक्सर खेलने जाया करती थी। वो मेरी माँ की दोस्त का लडका था। हमारे घर के बीच की दूरी मात्र एक पतली सी सड़क ही थी। उसके घर में लगे गुलाब के फूल मुझे बहुत आकर्षित करते थे। जो मुझे वहाँ तक खींच ले जाते थे।

समय ऐसे ही बीतता रहा और हम कक्षा 8 में पहुँच गये। हमारी दोस्ती अभी भी काफी अच्छी थी। जब मैं 10वीं में पहुँची तो मेरी नानी हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चली गयी थी। तब हम राँची गये थे। तब मेरी उम्र इतनी हो गयी थी कि मैं अपनी दोस्ती को आगे बढाने की समझ रखने लगी थी । हलाँकि तब भी हम दोस्त ही थे। पर वो मुझे बेहद पसन्द था। क्योंकि वो पढने में अच्छा था, उसकों भी क्रिकेट का बहुत पसन्द था और सब से खास बात ये थी कि मैंने उसकी तारीफ बहुत सुनी थी। शायद यही कारण थे जिनकी वजह से मैं उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी ।

जब मैं 11वीं में थी तो मैंने फेसबुक पर अपनी आ.डी. बनाई और उसको जोड लिया जिससे हमारी दुरी कुछ कम सी होती लग रही थी । उस समय वो पूरी तरह से ये प्यार, इश्क, मोहब्बत जैसी चीजों को जान गया था। उसने एक दिन मुझे बातों-२ में बोल दिया कि " मैं तुम से प्यार करता हूँ ।" इस खुशी को मैं किसी भी हद तक जा करके भी बय़ा नही कर सकती और बाद मैंने उसकों वो सब कुछ कह दिया जो कि एक लड़की का किसी लड़के को कहना बहुत कठिन होता है। उस रात में शो नही पाई और कम से कम 50 बार उसी एक मैसेज को पढ़ती रही और खुश होती रही । पर अगली ही सुबह मेरी खुशी मायूसी में बदल गयी, जब उसने मुझसे ये कहा कि वो सब बस एक मज़ाक था। हमारी बात ऐसे ही चलती रही। हाँ, ये बात जरूर थी कि वो मुझे कुछ समझता नही था। कभी इतना प्यार और कभी अचानक से ही बदल जाता था ।

फिर 12 अप्रैल को मैंने बात बात में बताया कि मैं राँची आ रही हूँ तो उसने बड़े ही चाव से पूछा कि कब? उसने मुझसे मेरी पसन्द नपसन्द के बारे में काफी कुछ पूछा और जब वहाँ पहुँची तो उसने मुझे मेरी ज़िन्दगी के सबसे खास पल दिये । जिनको आज भी मैं अपनी यादों में संजोकर रखती हूँ। हमने साथ में घर पर ही 'आशिकी-२' फिल्म देखी और काफी समय साथ बिताया । फिर जब हमने 'ये जवानी है दिवानी' फिल्म देखी तब उसने मुझे नैनी और मैंने उसे बन्नी नाम दिया। उस समय मेरा हाल कुछ ऐसा था जिनके मैं इन पंक्तियों में बय़ा करती हूँ-

ये प्यार है मेरा ,

या फिर मेरी खुमारी।।

सर चढ़कर बोलती है ,

तेरे इश्क की बिमारी ।।

मैं पडी हूँ अभी भी भ्रम में,

या स्पष्ट मेरा इरादा है।

ये तेरे लिए चाहत है,

या दिललगी का वादा है।।

जब भी सोचती हूँ ऐसा लगता है कि काश वो पल फिर से दोहराया जाए और बार –बार दोहराया जाए। पर कहते है न कि खुशी की घड़ी के पल ऐसे कट जाते है जैसे कोई तेज हवा । न चाहते हुए भी वो पल सामने आ खड़ा हुआ था जिसको शायद कोई भी पसन्द न करे।

मेरा लखनऊ आने का समय हो गया था। तब उसकी तबिय़त कुछ खराब थी। मेरे वापस आने की ख़बर सुनकर उसके आँसुओं ने उसके आँखों से बगावत कर दिया, वो रो पड़ा और बोला कि -ख्यालों में मैं तेरे खोता रहा हूँ,

इन्ताजार में तेरे रोता रहा हूँ,

शायद ये ख़ता किस्मत की है,

वरना सपने मैं तेरे सजोता रहा हूँ।

इतना होने के बाद मैं वापस आ गयी और अपनी पढाई में व्यस्त हो गयी। उधर वो भी अपनी जिन्दगी को जी रहा था। लेकिन रिस्तों को दूरियाँ शायद ज्यादा पसन्द आ जाती है । दूरी बढ़ी और हमारे बीच भी जैसे दूरियाँ आने लगी थी। पढ़ाई के कारण मैं भी ज्यादा समय नही निकाल पाती थी। उस साल मैं राँची नहीं जा पाई। फिर मैं भी अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कॅालेज में एडमिशन ले चुकी थी और उसने कोलकत्ता के एक कॅालेज में दाखि़ला ले लिया। इस बीच हमारी बात भी नहीं होती थी। हमारी अगली बात तब हुई जब उसने अपने पहले साल में सीए की परीक्षा पास कर ली थी।

वहीं से दूरियों ने शायद हमारे रिस्ते से और करीबी कर ली। वो अपने कॅालेज में व्यस्त हो गया और मैं यहाँ उसकी यादों को लिए अपना जीवन आगे बढ़ाने लगी। उसकी यादों का आलम इन लाइनों में लिखती हूँ-

न जाने क्यों याद तेरी,

मुझकों यूं सताती हैं।

मैं कितना चाहूँ भूलू तुमकों,

पर याद मुझे फिर आती है।।

एक दिन हमारी बात हुई और उसने मुझे जो बताया वो सुनकर मेरा सन्तुलन ही खो गया। मेरी हालत वैसी थी जैसे -प्यास भी लगी हो, पानी भी हो। पर न पीया जा रहा है, न छोड़ा जा रहा है। उसने मुझे बताया कि मेरी जिन्दगी में किसी और ने अपनी जगह बना ली है। हलाँकि उसने ये भी कहा कि उसे इस बात का बुरा लगा रहा है कि उसने मुझे ये बात नही बताई । शायद ये वहीं दूरी थी जो हमारे रिस्ते से करीबी बना रही थी । उसने मुझसे वादा किया कि वो धीरे-२ उस दूरी को कम करने की कोशिश करेगा।

उस साल जब मैं राँची गयी तो उसके लिए एक घड़ी लेकर गयी पर उसने उसकों लेने से मना कर दिया और बोला कि जब मैं लखनऊ आऊँगा तब लूँगा सभाल कर रखना । वापस आने के बाद हमारी बात पूरे साल में एक या दो बार ही हुई होगी। मुझे इसका बुरा लगता था पर आ़लम कुछ ऐसा था कि –

क्या फायदा गुस्सा कर,

जब कोई मनाने वाला नही।

हम रूठकर बैठ भी जाएँगे तो क्या,

जब कोई हसाने वाला नहीं।।

पिछले साल जब मैं राँची गयी थी तो वो भी तीन दिन के लिए आया था । पर फिर उसे किसी काम से वापस जाना था तो मुझसे नही रहा गया और मैं भी रो पड़ी। उसके बाद लखनऊ आ गयी और जो थोड़ी बहुत बात होती थी वो भी बन्द होगी। अब तो बस इन्ताजार! इन्ताजार! इन्ताजार!

न जाने कैसी घड़ी आ गई है,

इंतजार की अनोखी कड़ी आ गई है,

रातों को सोते हुए आँखों में मेरे ,

आपके यादों की लड़ी आ गई है।।

मुझे ये नही पता कि वो मुझे मेरे जितना याद करता है या नही पर मैं उसे हमेशा यही कहूँगी-

तुम भूल भी जाओगे,

फिर भी मैं याद रखूँगी।

तुम कभी न आओगे,

फिर भी मैं याद रखूँगी।

तुम मुझे सताओंगे,

फिर भी मैं याद रखूँगी।

तुम मुझे रुलाओगे,

फिर भी मैं याद रखूँगी।

तुम मुझे न चाहोगे,

फिर भी मैं याद रखूँगी।

और कहानी को खत्म करते हुए यही आशा करती हूँ या कहुँ तो मुझे विश्वास हैं कि —

हम मिलेगे हमे विश्वास है,

उस मुलाकात की मुझे आस है.

तुम करते रहो वादा आने का,

मुझे भी अपनी जीत का प्रयास है।।

***