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दिल से दिल तक

तुम्हें हक है....

तुम मुझसे रुठ जाओ,

तुम्हें हक है।

मेरा क्या है मैंने तो मोहब्बत की है।।

तुम्हे हक है भूलने का,

वो साथ बिताये लम्हों को

तुम्हें हक है मुझे,

यूं छोडकर जाने का,

तुम चाहो तो भूल जाओ,

वो वादे सभी पुराने।

मेरा क्या है मैंने तो मोहब्बत की है।।

तुम्हें हक है कि तुम,

कभी लौटकर न आओ,

तुम्हे हक हैं कि ,

तुम मेरा दिल दुखाओ,

तुम्हें हक है कि ,

तुम हमें रूसवा करो भरे बाजार ,

मेरा क्या है मैंने तो मोहब्बत की है।।

मैं कर नही सकता बंदिशे तुम पर ,

मैं कह नही सकता ,

अपने दर्द-ए-दिल की दास्तां,

मैं सह नहीं सकता ,

कोई तोहमत दामन पर तेरे ,

क्योकि मेरा क्या मैंने तो मोहब्बत की है।

तुम मुझसे रुठ जाओ,

तुम्हें हक है।

मेरा क्या है मैंने तो मोहब्बत की है।।

दिल में एक कसक सी

आज दिल में एक कसक सी हुई हैं मेरे,

शायद आग दोनों तरफ से बराबर लगी,

वो आँखे मिलाकर झुका ले गयी,

पर हमारी आँखे खुली रह गयी,

न जाने ये दिल में कसक क्यों हुई ?

वो मुस्कुराकर धीरे से युं चल दिये ,

जैसे से बादल से बूदें बिछड सी रही,

युं उनका मुस्कुराना गज़ब हो गया ,

पर दिल में मेरे कसक कर गया,

अब तो मुझकों भी लगता यही ,

कि आग दोनों तरफ बराबर लगी।

मुझे भा गयी उनकी ये सादगी ,

जैसे चन्दा में बसती अजब चाँदनी ,

सच कँहू तो क्या कहू मेरे हमऩवा ,

मैं कर नही पाऊँगा शब्दों में बयां,

सच तो यही कि ……

आज दिल में कसक सी हुई है मेरे।

शायद आग दोनों से बराबर लगी।।

मेरा स्वपन

एक दिन सोते हुए,

देखा एक स्वप्न,

बस आँख ही लगी थी ,

और रात का था वक्त,

वो शाम सजी थी चाँदनी से,

वातावरण भी खुशनुमा था,

शायद मैं स्वप्न में,

एक बाग में खडा था ।

फूलो की खुशबू और,

भीनी -२ सी हवा थी,

हो रहा था वक्त शायद,

चाँद भी तभी चढा था,

देखते हुए रास्ता मैं,

ज्यों ही आगे बढ़ा था,

पड़ गयी मेरे कानों में,

एक मधुर वाणी का गान,

पर मुझे नही था,

उसका कोई ज्ञान,

थी लुभावन , मनभावन ,

ज्यों ज्यों मैं बढ़ा रहा था ,

वाणी की ओर,

मन में इच्छा अति घनघोर ,

जब देखा मैंने वाणी का स्त्रोत ,

रह गया मैं अचमभित अबोध,

वो थी एक सुकुमारी कन्या,

ज्यों देखा त्यों मोह गया ,

पूरी रात चली हमारी बात ,

ज्यों ही मेरी आँख खुली,

सच्चाई से बोध हुआ,

थोडा गुस्सा हमको आया पर ,

हँसी ने भी साथ निभाया,

अब तो मैं जागूँ या सोऊ ,

उसकी यादों में ही खोऊ,

पर स्वप्न तो आखिर स्वप्न है।

अब तो बस आशा ही है,

क्योकि स्वप्न तो आखिर स्वप्न है।।

चाहत कम नही होगी

तेरी आँखों के सागर में,

मैं डूबा हूँ तो अच्छा है।

तेरी बातों के भवरों में ,

फसाँ हूँ तो ही अच्छा है।

जमाना कह रहा मुझसे,

कि जीवन व्यर्थ है मेरा,

मगर मैं जानता हूँ कि,

अगर तुम साथ हो मेरे ,

तो जीवन स्वर्ग है मेरा।।

हाँ मुझको याद है मेरी,

तन्हाई वो भी रातों की,

हाँ मुझको याद है तेरा,

युँ जीवन में मेरे आना ।

मैं रहता हूँ बडा ही चुप ,

बिना तेरे यहाँ पर मैं,

सहा है मैनें भी लाखों ,

तोहमते युँ जमाने से ,

मगर सच्चाईयाँ मेरी ,

कभी भी छुप नही सकती।

वो मुझकों रोक ले चाहे,

मंजिले राह में मेरी,

मगर मेरी मंजिलों की ,

ये चाहत कम नहीं होगी।

न मेरे प्यार में सच्चाई,

यु खत्म ही होगी।

मैं देता हुँ विराम,

इस लेखनी को अब,

क्योंकि इससे ज्यादा मैं ,

कुछ लिख नही सकता।

पहला इश्क-एक एहसास

तेरे इश्क की बयां,

क्या में दास्ता करूँ,

दर्द है या खुशी ,

इसे पता कैसे मैं करूँ,

अगर कहूँ की दर्द है ,

तो है बहुत मीठा,

और खुशी है तो ,

जीवन इसी का नाम है।

मैं सजाता हूँ गुलिस्ता ,

बस तेरे अल्फाज से ,

हूँ सजाता सेज तेरे,

हुसन के दीदार से,

बन गई माला मेरी ,

जिस दिन बाहें तेरी।

तुम देख लेना प्यार का,

ऐसा नमूना पेश होगा,

हर राम में तुम मेरी,

में तुम्हारे साथ हुंगा।

हर कदम मैं तुम्हारा साथ दूंगा।

वादा मेरा ये ही है ,

हर क्षण रहूँगा साथ तेरे,

दूर होकर पास तेरे।

न गीत इसको तुम समझना,

दास्ताने दिल लिख रहा हूँ,

यादो के घेरों में बयाँ ,

अपने मैं तुमें कर रहा हूँ,

जिस दिन तुम मिली,

जैसे नया दौर मिल गया,

इस बेसुध जिन्दगी को ,

एक छोर मिल गया।

चाह मेरी है कि डूब जांऊ ,

तेरे प्यार के सागर में,

और कस्ती कोई न हमको मिले।

ये पहला एहसास मेरा,

है मेरे इश्क मेरा प्यार मेरा।।

जब पहली बार मिला तुम से ,

जब पहली बार मिली थी तुम ,

मैं जानता भी न था,

पहचानता भी न था,

जब पह्ली बार किया दीदार तेरा ,

याद है हमको वो पहली मुलाकात ,

जब तुम पहली बार आई थी ,

थोडा सा सकुचाई थी,

थोडा सा घबाराई थी,

पर मुझमे एक उल्लास था,

मिलने का उत्साह था,

एक पल एक साल था,

पर जब मिला तुम से,

सब कुछ भूल सा गया ,

वो घडी कुछ खास थी

क्योकि तुम जो मेरे पास थी,

वो पल बहुत हसीन था,

जब पहली बार मिली थी तुम ,

पह्ले तो मै बस देखता था,

पर तुम मेरे पास थी,

और सब अन्जान था,

थी तुम बिल्कुल,

मेरे ख्वाबो के जैसी ,

इसलिए मैं सजाता हूँ,

हर घडी उन यादों को ,

याद आती है पह्ली मुलाकात ॥

जब पहली बार मिला तुम से ॥

आशा

तुम पा जाओ जीवन की खुशियाँ,

आशा और लगाना क्या।

माना कि तुम हो स्वप्न परी,

पर अब तुमको बतलाना क्या।

तुम हो मेरा रत्न प्रिय ,

पर सांचे में बैठाना क्या।

ये अश्रु तो अनमोल प्रिय,

अब इनको व्यर्थ बहाना क्या।

तुम ही हो मेरा करूण हद्रय,

अब इसकों फिर धडकाना क्या।

जीवन में जो बीत गया,

अब उसकों याद दिलाना क्या।

मैं तो था बस बीता कल,

अब मेरा साथ निभाना क्या।

फिर मेरी क्या है बात प्रिय ,

अब मेरी बात चलाना क्या।।

दिल के एहसास

तुम दूर सही पर पास मेरे,

हर सपने हर एहसास मेरे,

मेरी यादों की बगिया हो तुम,

मेरे भावों की रचना हो तुम,

तुम पुष्प कमल के जैसी हो,

तुम उड़ता बादल नीला हो,

तुम शान्त चाँद की चाँदनी हो,

तुम हो सोच विचार मेरा,

तुम यादों की मलिका मेरी,

तुम हो एक-एक शब्द मेरा,

मैं याद तुम्हें हर पल करता हूँ,

सपनों को हकीकत समझता हूँ,

है सपना मेरा यही कि तुम,

जैसे बसती हो सपनों में मेरे ,

आ जाओ सद्श्य मेरे,

मैं आश यही करता हूँ कि,

सपनें में ही आ जाना ,

क्योंकि ......

तुम दूर सही पर पास मेरे।

हर सपना हर एहसास मेरे।।

क्या हुई ख़ता हम से ,

जो यु रूठ कर चली गई

जो यु रूठ कर चली गयी,

बिना कुछ कहे मुँह मोड़ कर चली गयी,

इस नाजुक से दिल को तोड़ दिया।

क्या हुई खता हमसे ,

जो सारे वादे भुला दिये,

दिल में बसी सारी यादे भुला दिये,

सोचा था होगा मुकम्मल ,

इश्क का ये नगमा,

पर क्या हुई खता हमसे ,

जो मेरे इश्क का इम्तिहा बना दिया,

तुम रूठ कर हमसे इस तरह,

क्या कर रही साबित हो,

मैं तो हुँ नासमझ इतना,

कि तेरी रूसवाईयों को प्यार समझ बैठा,

तेरा नया अन्दाज समझ बैठा,

तेरे हर झूठ को हकीकत समझ बैठा,

पर फिर भी क्या हुई खता हमसे,

जो यु रूठ कर चली गई ।

बिना कुछ कहे मुँह मोड़ कर चली गयी।।