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कविता संग्रह

प्रेरणा स्त्रोत

एक दिन जब मैं करके अथक प्रयास ,

थक कर हारा सारी बात,

मैं बहुत उदास हुआ जीवन सें,

मैं खो गया निराशा रूपी कोहरे में,

वो हार बहुत कठिन थी,

जिसमें जीवन को झकझोर दिया,

मन तो इतना विचलित था कि ,

सोचा त्यागू इस जीवन को,

न उस वक्त कोई सहारा था,

न कोई प्रेरक वाणी थी,

पर वो वक्त कुछ अलग सा था,

जब तुमसे आकर में टकराया,

और तुम में एक नया जीवन पाया,

वो वक्त मेरा ऐसा था,

जैसे फसी भवॅर में कश्ती हो ,

और साथ तुम्हारा ऐसा था,

जैसे पत्वार बना सहारा हो,

तुम ने दिखलाई राह नयी,

तुम आयी जीवन में बन उजियारा,

पहले मैं बस सुनता था,

कि सबका कोई प्रेरक है,

पर आज अनुभूति भी कर ली,

और जीवन में फिर आशा आयी,

और मैंने लक्ष्य प्राप्ति पायी।

गुमसुदा बचपन

जाने कहां गुम हो गया ,

वो बचपन पुराना ।

हंसता ,मुस्कुराताऔर खिलखिलाता.

जाने कहां गुम हो गया,

वो बचपन पुराना।

न पहले जैसी चंचलता है,

न मन में उत्सुकता वैसी ,

जाने कहां गुम हो गया,

वो बचपन पुराना।

न मिलता बचपन अब मैंदानों में,

न उपवन बाग या फिर गलियारों में,

जाने कहां गुम हो गया,

वो बचपन पुराना।

अब नहीं हैं स्वतन्त्र बचपन पहले जैसा,

किताबों तले दबता जा रहा बचपन बेचारा,

जाने कहां गुम हो गया,

वो बचपन पुराना ।

इस आधुनिकता की चकाचौंध में,

धुंधला हो गया बचपन,

जाने कहां गुम हो गया,

वो बचपन पुराना।

न रही अब बात वैसी ,

हो गया हो व्यस्त जीवन,

इसलिए गुमशुदा हो गया बचपन।

जाने कहा गुम हो गया,

वो बचपन पुराना।

घर चिड़िया का .....

घर चिड़िया का लगता प्यारा ,

तिनके-तिनके सें ये बनता न्यारा,

लोगों को ये खूब है भाता,

चिड़ियों का सघर्ष दिखाता,

दिन भर जब वो कर के मेहनत,

शाम को घर पर आते हैं,

बने आशियानें का मजा,

फिर वे उठाते है,

वे करे अथक प्रयास निरन्तर,

जोडे एक-एक तिनका और खर ,

कभी- कभी तो ऐसा होता है,

जैसे बनकर आशियाना पुरा होता है,

तूफानों से उसकों लड़ना होता है,

और अन्त उसी का होता है।

वो फिर से बेघर होते हैं,

पर अपनी मेहनत न खोते है,

वो करते है निर्माण पुन: से,

और हमें शिक्षा भी है देते ,

कि क्यों भटक रहे हो,

पथ कार्य से तुम ,

न हो निराश और भयभीत मिली निराशा से,

जीवन को जी लो पूरी आशा से,

मिलता है सब कुछ खोने पर भी ,

बस एक प्रयास जरूरी है।

बस एक प्रयास जरूरी है।।

दिल बहलाता हूँ....

ऐसे मैं दिेल बहलाता हूँ,

जीवन के उन्मादों को सहता जाता हूँ,

कभी-कभी तो डरता और सहमता भी हूँ,

पर ऐसे मैं अपना दिल बहलाता हूँ।

कुछ कई पुरानी बातों से,

कुछ कही पुरानी बातों से,

मैं यूं ही बातें कर जाता हूँ,

ऐसे ही मैं अपना दिल बहलात हूँ।

कभी खुशी में शामिल होकर ,

कभी दुखों में शिरकत करके।

जीवन के सुख दुख को सह जाता हूँ,

ऐसे ही में दिल बहलाता हूँ।

कभी समय जब खाली पाता ,

यूं ही कुछ मैं लिख जाता हूँ।

भावों से अपने मन को समझाता हूँ,

ऐसे ही मैं दिल को बहलाता हूँ।

जब याद मुझे आती है तेरी,

यूं ही न सबको दिखलाता हूँ।

एकांक में जाकर रो आता हूँ,

तस्वीर से तेरी मिल आता हूँ।

ऐसे ही मैं दिल को बहलाता हूँ।।

क्या करोगे तुम..

सब लोग मुझसे पूछते हैं,

आखिर क्या करोगे तुम?

किसी काम में मन लगता नहीं,

क्या परेशान करोंगे तुम?

अब हो गये हो बडे ,

और बिल्कुल ही जवान ,

कब इस जवानी का दम भरोगे तुम?

वो कर रहें हैं फिक्र या मेरी अवहेलना,

मैं न समझ इसको पा रहा ।

अब सोचता हूँ कि था मैं बच्चा.

तब ही था सब अच्छा,

न फिक्र मुझको थी कोई,

न याद मुझकों कुछ भी था।

पर अब ये प्रश्न सुनकर सोचता हूँ,

कि शायद सच ही मैं बडा हो गया।

हो घर या बाहर ,

हो गली या मोहल्ला,

सब देते उदाहरण भिन्न हैं।

और बस यही पूछते,

क्या कुछ करोंगे तुम?

सब लोग मुझसो है बताते ,

देखलो भाई को अपने ,

पढ़ लिखकर काबिल हो गया,

अब तो तुम खुद ही सोचों...

बेटा क्या करोंगे तुम?

गाँव से शहर

मुझे याद है वो दिन,

जब हम गाँव में थे,

मौज में थे माहौल में थे ,

मुधे याद है वो दिन ,

जब बाबा के घर पर सजती थी शामें,

लहराती थी फसलें खिलखिलाती थी बागें।

मुझे याद है वो दिन ,

जब भोर में मुर्गे की बांगे,

और सुनते थे चिडियों की आवाजे,

वो घरों के बाहर अनाजों के ढेर ,

और बागों में पत्ते अनेक ।

मुझे याद है वो दिन ,

वो घरों के बाहर दिवारों पर गेरू से बने चित्र,

और बच्चों के खेल विचित्र,

पर जिन्दगी में हुआ एक परिवर्तन अबोध,

गाँव से किया पलायन और पहुँचा परदेश,

पर वो मुझे तनीक न भाया,

थी वहाँ जिन्दगी इतनी व्यस्त ,

किसी को न था तनीक भी वक्त ,

न थी हवा वहाँ सी ,

न ही खेलने को खलिहान,

इतना कुछ सहा तब जाकर एहसास हुआ,

गलती हुई अब पश्चाताप हुआ,

अब सबसे विनती करता हूँ,

न करो पलायन गाँवों से ....

न करो पलायन गाँवों से ।।

आशावादी कवि...

न विचलित हो प्रार्थी मार्ग से अपने ,

न डरों किसी भी कठिनाई से,

तुम अडिग रहो तुम सकल रहों,

हर मार्ग में तुम सफल रहो,

खुद पर विश्वास बनाओ तुम,

अपना आत्मविश्वास बढाओं तुम,

क्या दुख उन असफलताओं का ,

जो तुमकों है मार्ग दिखाती,

तुम डट जाओं इस जीवन में ,

जैसे हिमालय की चोटी है,

हो गर्मी या सर्दी, बरसात रहे या तूफान ,

है करता कामना कवि यही,

कि तुम रहो समान हर परिस्थितियों में ,

तुम करों सकल प्रयास मार्ग उचित पर ,

व्यर्थ समय को नष्ट करो,

बस आशा यही मैं करूगाँ,

कि तुम कर्म करो....

कि तुम कर्म करो।।

मन...

मन शब्द मात्र में छोटा है,

वास्तव में ये बहुत ही खोटा है,

ये है सूक्ष्म, अदृश्य, अभेद,

कही कही तो शान्त बडा,

पर चंचलता से पूर्ण भरा,

पल भर में यात्रा कराये,

देश दुनिया की सैर कराये,

ये चंचल बहुत ही होता है,

पर मन बहुत जरूरी होता है,

ये इच्छाओं का स्वामी है,

ये स्वयं में एक प्राणी है,

ये मिला न किसी को अभी तक ,

पर प्यारा सबको लगता है,

मन का कोई प्रारूप नही,

पर कोई इससे अनभिग्य नहीं ,

ये दो शब्दों का मात्र है,

पर नहीं कोई व्याख्या इसकी।

मन शब्द मात्र में छोटा है।।