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कोई लौट आया !

कोई लौट आया !

---- सुमन शर्मा

jahnavi.suman7@gmail.com

कोई लौट आया !

चार वर्ष की ईशा की दुनिया बस उसका छोटा सा घर परिवार ही था। दिनोरात प्यार से सिर पर हाथ फेरती हुई माँ 'सुधा' । कठिन से कठिन परिस्थिति में अडिग खड़े रहने की शिक्षा देते पिता "विक्रम" और बीते हुए कल को आने वाले कल से जोड़ती हुई बूढ़ी दादी।

स्कूल से घर लौटते ही ईशा को लगता था, वह अपने सुखद संसार में लौट आई है और अब उसे किसी से कोई वास्ता नहीं। वह सुधा के पीछे -पीछे घूमती। कभी घर के काम में हाथ बँटाती, तो कभी सुधा के साथ घंटों गुड्डे गुड़ियों का खेल खेलती रहती।

दादी के पास लेटी कहानियाँ सुनती हुई सो जाती और शाम को विक्रम के घर लौटते ही माँ और पिताजी के संग बाज़ार जाती।

लेकिन न जाने ज़िन्दगी हर व्यक्ति के सामने चुनौती बन कर क्यों खड़ी हो जाती है? पूरे परिवार के होंठों पर मुस्कुराहट बिखेर देने वाली ईशा को यह आभास तक नहीं हुआ कि उसकी जिंदगी का ऐसा कठिन अध्याय शुरू होने वाला है, जो पूरे परिवार के होठों से हँसी छीन लेगा।

एक दिन सुधा घर में अकेली थी। दो चोर ,पानी का मीटर जाँचने ने के बहाने घर में घुस गए। घर का सारा कीमती सामन समेट कर ले गए और जाते जाते सुधा को चाकू से घायल कर दिया।

ईशा जब स्कूल से घर लौटी तो माँ को अस्पताल ले जा रहे थे। नन्ही ईशा यह दृश्य देखकर सुबकने लगी तो , सुधा ने प्यार से ईशा के सिर पर हाथ फेरा और कहा , "रो मत मैं शीघ्र लौट आऊँगी ।" ईशा को अपनी माँ द्वारा कही गई हर बात पर पूरा-पूरा विश्वास था । उसने तुरंत अपनी आँखों से आँसू पोंछ लिए ।

माँ को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया।दो दिन तक ईशा दादी की गोद में सिमटी दरवाज़े पर टकटकी लगाए माँ के लौट आने की प्रतीक्षा करती रही। दो दिन बाद माँ तो नहीं , माँ का निर्जीव शरीर घर लौटा , घर में कोहराम मच गया । ईशा की आँखों में आँसू की जगह आशा थी माँ ज़रूर लौटेगी । वह विक्रम की आँखों से आँसू पोंछते हुए बोली ,"पापा आप क्यों रो रहे हो? माँ ने कहा था , मैं शीघ्र लौटूँगी । ' इस पर विक्रम ने सिसकते हुए कहा , 'ईशा बिटिया ! तेरी माँ कभी नहीं लौटेगी। जहाँ तेरी माँ गई है वहाँ से कोई नहीं लौटता । इस पर ईशा ने विक्रम को फिर से समझने की कोशिश की । वह बोली , "नहीं पापा , माँ कभी झूठ नहीं बोलती थी । आप मेरी बात का विश्वास कीजिए माँ, अवश्य लौटेगी ।" इस पर बूढ़ी दादी बोली , 'अरे इस लड़की को कोई रुलाओ वरना ये पागल हो जाएगी । '

माँ को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने का समय आ गया । ईशा दूर तक पुकारती रही, "माँ , 'शीघ्र लौट आना । मैं आपकी प्रतीक्षा करुँगी।

कुछ समय बीता विक्रम ने ईशा की खातिर खुद को सम्भालना शुरू किया । ईशा स्कूल जाने लगी । घर की साफ़ सफाई व खाना बनाने के लिए बाई आने लगी । माली काका फूलों का एक हार बना कर दे जाता , ईशा उसे रोज़ सुधा की तस्वीर पर चढ़ाती और तस्वीर के सामने खड़ी होकर प्रश्न करती, " माँ कब लौटोगी ?"

सुधा की तस्वीर बस मुस्कुराती रहती ।

एक दिन वह माँ की तस्वीर को देखकर बोली याद है न माँ, परसो मेरा जन्मदिन है । परसो तक ज़रूर लौट आना वरना मैं आपसे कभी बात नहीं करुँगी । बूढ़ी दादी यह सब देखती और बिस्तर में मुँह छिपा कर घंटों रोती और पल्लू से अपने आँसू पोंछ कर खुद को संभाल लेती ।

ईशा का जन्मदिन भी आ गया घर में सुबह से ख़ामोशी थी । विक्रम ने ईशा की ज़िद्द पर शाम के लिए केक मँगवा लिया था । शाम पाँच बजे अड़ोस -पड़ोस के बच्चों को एकत्र कर विक्रम ने ईशा से केक काटने के लिए कहा.। ईशा भोलेपन से बोली , ' अरे ! इतनी जल्दी क्या है ? पहले माँ को तो आने दो । '

विक्रम ने लाख समझाया लेकिन ईशा जब ज़िद्द पर अड़ी रही तो विक्रम ज़ोर से चिल्लाया , 'नहीं आएगी वापिस तुम्हारी माँ। ' ईशा रो पड़ी ।

रोते रोते, अचानक वह आँसू पोंछ कर उस मेज़ के पास चली गई जहाँ केक रखा था। वह प्रसन्न होकर बोली, 'देखो माँ आ गई.। " सब लोग आश्चर्य से इधर उधर देखने लगे । ईशा अँगुली से ईशारा करते हुए बोली, " वह देखो केक के पास । सब की निगाहें केक की और मुड़ गई । विक्रम ने देखा , केक के पास एक सुंदर तितली मंडरा रही थी । तितली एक पल केक पर बैठी और उड़ गई । ईशा बोली, "देखा पापा! माँ तितली बन कर मेरा जन्मदिन मनाने आई थी । ' विक्रम ने उसके सिर पर हाथ फेर दिया । ईशा ने ख़ुशी से केक काट दिया । उसने बच्चों के साथ खूब मज़ा किया।

मेहमानों के लौट जाने पर विक्रम ने ईशा को अपने पास बैठा कर समझाया कि , " केक के पास जो मंडरा रही थी वो तितली ही थी। .' इस पर ईशा बोली , 'नहीं तितलियाँ तो फूलों पर मँडराती हैं। जो केक पर बैठी थी ,वह माँ ही थी। '

विक्रम ने कहा , 'अच्छा अब सो जाओ कल बात करेंगे।

ईशा को रात में बहुत अच्छी नींद आई.। सुबह एक पक्षी ने उसकी खिड़की पर आकर अपनी मीठी बोली से उसे उठा दिया । वह उठकर विक्रम के पास गई और बोली ,' आज माँ चिड़िया बनकर खिड़की पर बैठी थी, बस मेरे उठने का इंतज़ार कर रही थी , मेरे उठते ही चली गई । ' विक्रम ने उसे समझाते हुए कहा, 'वो चिड़िया ही थी बिटिया , तुम्हारी माँ नहीं थी । ईशा धीमे स्वर में बोली, 'नहीं , वो माँ ही थी । भगवान जी के घर में ढेर सा काम करती होगी, इसलिए जल्दी वापिस चली जाती है। ईशा दादी के पास जाकर बैठ गई । वह बोली , "दादी ! आप ही पापा को समझाओ वह मेरी बात क्यों नहीं मानते। दादी बस सिर हिला कर रह गई।

एक दिन ईशा स्कूल में थी । अर्ध अवकाश के समय अपनी सखी रीता के साथ टिफिन खोल कर घास पर बैठी थी तभी रीता ने चिल्ला कर कहा, 'अरे ईशा देख तेरा खाना गिलहरी खा रही है। ईशा ने उसे चुप रहने का ईशारा करते हुए कहा , 'वो गिलहरी नहीं है। ' रीता ने पूरे विश्वास से कहा , ' वो तो गिलहरी ही है। ' ईशा ने रीता को समझाते हुए कहा , 'मेरी माँ को आलू के पराँठे बहुत पसंद हैं , मेरी माँ गिलहरी बनकर इन्हें खाने आई है। ' यह सुनकर रीता ने अपना टिफिन भी गिलहरी की ओर बढ़ा दिया। ईशा की पलकें नम हो गई। वह रीता से बोली , 'तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।

एक बार ईशा को बहुत तेज़ बुखार हो गया। वह नींद में बड़बड़ा रही थी , " माँ खिचड़ी बना दो। लाल फूलों वाली कटोरी में नीम्बू का अचार दे दो। " विक्रम ने ईशा की मौसी को जो की उसी शहर में रहती थी , फोन करके बुलाया। मौसी तुरंत आ गई।

विक्रम ने उनसे ईशा के लिए खिचड़ी बनवा ली। मौसी ने प्यार से ईशा को जगाया। खिचड़ी के साथ लाल फूलों वाली कटोरी में आचर परोस कर ईशा को अपने हाथ से खाना खिलाया। थोड़ी देर वहाँ ठहर कर वह अपने घर लौट गई। शाम को ईशा का बुखार उत्तर गया। वह अपनी दादी के पास गई और बोली , ' दादी ! खिचड़ी बनाने माँ आई थी। " दादी उत्तर दिया , "नहीं बेटा ! खिचड़ी मौसी ने बनाई थी। ' ईशा बोली , 'नहीं दादी ! खिचड़ी में मक्खन डला था। बस माँ जानती थी, कि मुझे मक्खन पसंद है। "

इसी तरह एक वर्ष बीत गया। विक्रम पर पुनः विवाह का दवाब बढ़ने लगा। कुछ ही महीनो में घर में नव वधु ने प्रवेश कर लिया। विक्रम की माँ ने भी अपने कंधों को हल्का मासूस किया। विक्रम के चेहरे की रंगत भी लौट आई। ईशा और भी अकेली हो गई।

एक रात वह सुबकते हुए उठी और माँ की तस्वीर के आगे रोने लगी.। वह बोली ,माँ! पापा को नई पत्नी मिल गई , दादी को नई बहु पर मुझे माँ नहीं मिली। तुम लौट आओ माँ। वह रोते हुए बोली , 'जब भी में रोती थी तुम दौड़ कर आ जाती थीं ,क्या तुम मुझे भूल गए। " लेकिन तस्वीरें कब बोलती हैं ? सुधा की तस्वीर मुस्कुराती रही।

कुछ समय और आगे बढ़ा ,लेकिन ईशा को अभी भी माँ के लौटने का इंतज़ार था।

एक दिन वह दादी के पास गई और बोली, "दादी ! मेरे साथ बगीचे में चलो , आपसे बहुत जरूऱी बात करनी है। दादी, ईशा को लेकर बगीचे में निकल पड़ी। ईशा ने दादी से सवाल किया , 'ईश्वर का घर यहाँ से कितनी दूर है ?" दादी ने विस्मित होकर पूछा क्यों ?

ईशा ने कहा , 'मुझे भी वहाँ जाना है।' दादी ने उदास होते हुए कहा नहीं , ऐसा नहीं कहते।" ईशा बोली, "ईश्वर माँ को वापिस क्यों नहीं भेजता। " दादी ने कहा।, "तुम्हारी माँ का शरीर चाकू के वार से खराब हो गया था न , तो ईश्वर तुम्हारी माँ के लिए नया सुन्दर शरीर बना रहे हैं। तुम्हारी माँ नन्ही सी बच्ची बन कर फिर से लौटेगी। '' यह सुनकर ईशा ख़ुशी -ख़ुशी घर लौट आई।

एक वर्ष बाद विक्रम की नई पत्नी ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया। ईशा उसे देखने विक्रम के साथ अस्पताल पहुँची। ईशा ने नवजात कन्या की और देखा तो उसे लगा वह बहुत प्यार से ईशा की और देख रही है।

ईशा, विक्रम के साथ घर लौट रही थी , रास्ते में माली काका दिखाई दे गए.। वह चिल्लाई, 'माली काका ! माली काका !" माली ने कहा , ' क्या बात है , बिटिया रानी!" ईशा बोली, "कल से फूल माला मत लाना। " माली ने हाथ जोड़ कर पूछा ,' क्या मुझ से कोई गलती हो गई?" ईशा बोली, " नहीं काका ! अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं , क्यों कि, माँ लौट आई है । "

सुमन शर्मा

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