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मेरा हिस्सा

झमकू सुबह से ही भागी-भागी फिर रही थी। पूरे घर को चमन सा चमका के दुल्हन सा सजा दिया था। इतनी मेहनत के बाद भी उसके माथे पर एक शिकन तक नहीं थी पर आंखों से चमक और होठों से मुस्कान जुदा नहीं हो रही थी। उसे देखकर ताऊजी रोक ना पाए खुद को और पूछ ही बैठे "छोरी कतई रेल क्यों हो रही है?"

झमकू मोती सी मुस्कान देकर इठलाती हुई बोली "ताऊ जी !! आप भूल गए, आज रमकु जीजी पूरे 4 बरस बाद आ रही है, साथ में जीजा और मेरा छुटकू सा भाणंजा भी आ रहा है।"

ताऊजी भी मुस्कुराते हुए मूछों को ताव देकर बोले "रे छोरी इतणी भागदौड़ जीजी जीजा खातर हो रही स,

और सुन.... अब वो रमकु ना रही है ...रमा बण गई है ..रमा!!"

पर झमकू को ताऊ जी से बात करने के लिए फुर्सत कहां ...वह तो, 'पता है ..' बोलकर झठ से निकल गई।

पर ताऊ जी की आंखों के सामने वह 4 साल घूमने लगे।

सुनील उनकी बिरादरी का ही लड़का था। वो रमा (रमकु) को ताड़ने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था। वक्त बीता, रमकु स्कूल से कॉलेज पहुंची और तब तक रमकु और सुनील के चर्चे गांव की चौपाल तक होने लगे थे। और एक दिन ताऊ जी ने ही दोनों को गांव के जोहड़ में प्रेम सागर में गोते लगाते हुए पकड़ ही लिया। अगर खुद की बेटी होती तो ताऊजी वहीं काटकर जोहड़ में बहा देते। पर ताऊ जी ने दोनों को अपने छोटे भाई प्रह्लाद के हवाले करना ठीक समझा। प्रहलाद भी कम न था उसने रमकु की कॉलेज छुड़वा दी और सुनील की इतनी पिटाई की कि वह अधमरा हो गया। फिर सुनील का परिवार गांव की जमीन बेचकर शहर बस गया।

सुनील और उसके परिवार में कोई कमी नहीं थी, छोरा बिरादरी का ही था और गोत्र भी अलग-अलग थी। पर छोरिया गांव के छोरों को ही खसम बना लेगी तब तो गांव में फैल गया प्रदूषण,, ऐसे गांव में फिर कौन संबंध करेगा।

इधर साल भर तक प्रह्लाद जी ने रमकु को घर में कैद करके रखा और उधर सालभर में पढ़ लिखकर सुनील सरकारी मास्टर बन गया। फिर एक दिन भगा ले गया रमकु को अपनी रमा बनाने के लिए। पर सुनील यहीं नहीं रुका अपनी जी तोड़ मेहनत के बल पर वह कलेक्टर बन गया और उसकी पोस्टिंग भी इसी जिले में हो गई। कल तक उस पर थूकने वाला दुखियारा गांव आज अपना काम निकलवाने के लिए उसे अपना सगा बताते बताते नहीं थक रहा ।

हवाओं का रुख बदलने के साथ प्रह्लाद का पत्थर कलेजा भी पसीज ही गया और करवा दी खबर की बेटी दामाद से मिलना है।

***

जिन घरवालों ने बेटी के लिए इस घर को कभी नर्क बना दिया था, आज वही घरवाले पलक पावडे बिछा कर उसके स्वागत की तैयारी कर रहे थे। आखिर रमा.. कलेक्टर सुनील बाबू के साथ कार में सवार होकर आ ही गई। चमचमाती कार से दमकती रमा गोद में नन्हे 'गुनगुन' और आंखों में खुशी के आंसू लेकर उतरी। घर वाले तो उसके रूप को देखते ही रह गए, शायद ये AC की हवा का असर था। रमा अपने घरवालों के गले लग कर खूब रोई और बीती बातों पर मिट्टी डालते हुए सारे गिले-शिकवे दूर किए। कलेक्टर बाबू सिर्फ पानी पीकर,, काम और वक्त का वास्ता देकर निकल लिए। शायद उनके मन की कड़वाहट अभी तक दूर नहीं हुई थी। बातों-बातों में कब दोपहर से शाम हो गई पता ही नहीं चला। शाम को रमा अपनी छोटी बहन झमकू और छोटे भाई घासी के साथ नन्हे 'गुनगुन' को आँगन में यहां से वहां घुमा कर घर को गुलजार कर रही थी।

गर्मियों के मौसम में आंगन में चारपाई डालकर रात को सोने का सुकून ही अलग है, इसी सुकून की याद रमा को अपने शहर में बहुत आती थी। जब उसने मां से बाहर सोने को पूछा तो मां ने मौसम का हवाला देकर मना कर दिया। रात को तीनों मां-बेटी कूलर की हवा में कमरे में ही सोई। रात को गुनगुन बार बार उठ रहा था और रो रहा था। रमा जैसे-तैसे उसे दूध पिलाकर सुलाने की कोशिश कर रही थी। झमकू से रहा नहीं गया और पूछ ही बैठी, " बच्चे होने के बाद एक लड़की की परेशानियां कितनी ज्यादा बढ़ जाती है..."

तो रमा ने गुनगुन को कलेजे से लगाकर दाये बांये झुलाते हुए जवाब दिया, " मां की छाती पर ममता का बोझ जब ज्यादा हो जाता है, तब यही नन्हे फरिश्ते उसे हल्का कर देते हैं.... और किसी का बोझ कम हो.. तब परेशानी नहीं ....सुकून मिलता है।" फिर गुनगुन को आहिस्ते से सुलाकर, उसके माथे और छाती को हल्के से थपथपाते हुए फिर से बोली, " यह नन्ही सी जान मेरे हिस्से का भी रो लेता है, ताकि इसकी माँ की आँखों में कभी आँसू न आये,,, यह हर किसी से डरता है ... केवल इसीलिए ताकि एक डरी सहमी सी लड़की... एक बहादुर मां बन सके.." यह कहते हुए रमा गुनगुन के माथे को चूमते हुए उसे एक खुद से चिपका कर सो गई। झमकू को उसकी बातें खास समझ में नहीं आई.... क्योंकि यह बातें केवल कोई माँ ही समझ सकती है।

***

सुबह गुनगुन के पालने के चारों तरफ पूरा घर महफिल लगा कर बैठा था। हर कोई उससे बात करने की कोशिश कर रहा था और वह भी किसी को निराश नहीं कर रहा था। तेजी से हाथ पैर उछालते हुए हिचकियां लेता हुआ नन्हा गुनगुन सभी को "हूँ... हम्म... किलकारियां मारके...हंसकर ...मुस्कुराकर.. "जवाब दे रहा था। घासी के मन में भांजे से बात करने की तमन्ना कुछ ज्यादा ही थी तो उसने पूछ लिया "दीदी यह बात करना कब शुरू करेगा"

रमा ने मुस्कुराते हुए बताया कि "अभी यह 7 महीने का भी नहीं हुआ है, जब बड़ा होगा तब बातें भी करेगा"

घासी ने फिर से पूछा," यह इतनी जोर जोर से हाथ पांव मार रहा है यह थकता नहीं है क्या"

रमा अपनी भुजा उठाते हुए बोली "थकेगा कैसे आखिर बेटा किसका है?"

अब सवाल पूछने की बारी शायद झमकु की थी तो उसने पूछा," दीदी इसको इतनी हिचकियां क्यों आती है"

रमा ने बैग से अपने कपड़े निकालते हुए जवाब दिया," शायद यह जिस दुनिया से आया है वहां के लोग इसे बहुत याद करते हैं.... अच्छा तुम सभी इसका ध्यान रखना मैं थोड़ी देर में नहा कर आती हूं"

गांव के घर बड़े खुले खुले होते हैं, कपड़े सुखाने के लिए,, घर का कबाड़ रखने के लिए और शादी समारोहों में मिठाई बनाने के लिए घर के पीछे काफी बड़ी जगह छोड़ी जाती है। एक आम ग्रामीण लड़की की तरह रमा को भी नहाने के साथ ही अपने कपड़े धोने की आदत थी। नहाने के बाद जब रमा घर के पीछे बंधी 'तनी' (कपड़े बांधने की रस्सी) पर कपड़े सुखा रही थी तब अचानक से तनी टूट कर जमीन पर गिर गई और उसके कपड़े भी रेत में गिर गए। रमा ने रेत में गिरे कपड़ों को उठाने की कोशिश की लेकिन वह कपड़े बहुत ही भारी महसूस हो रहे थे । जब वह कोशिश करके भी नहीं उठा सकी तो उसके शरीर में एक अजीब सी सिरहन दौड़ गई। तभी रमा की मां वहां पहुंची और ठगोरे दुकानदारों को काफी गालियां देती हुई उसके कपड़ों को फिर से स्नानगृह में रख गई। रमा ने कपड़ों को फिर से खंगालकर छत पर सुखा दिया, पर उसे यह बात बड़ी अजीब लगी कि कपड़े इतने भारी कैसे हो गए थे।

***

बातों-बातों में शाम हो गई और घासी अपने भांजे गुनगुन को चौपाल में घुमाने ले गया। शाम को जब रमा और झमकु को आपस में बैठकर बतिया रही थी तब दोनों को अचानक से किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। दोनों को यही लगा कि जैसे गुनगुन ही रो रहा है। दोनों बड़ी ही चिंता में उसकी आवाज़ का पीछा करते करते घर में यहां वहां उसे ढूंढने लगी।

रमा को न जाने क्यों ऐसा लगा कि आवाज घर के पीछे से ही आ रही है। वह घर के पीछे जाने ही वाली थी कि घासी की गोद में हंसते-खेलते गुनगुन को देखकर उसकी जान में जान आई।

रात को रमा ने फिर से जिद पकड़ ली कि वह चारपाई डालकर आंगन में ही सोएगी। मौसम साफ था तो मां ने भी जिद मान ली क्योंकि परिवार के अन्य सभी सदस्य आंगन में चारपाई डाल कर ही सोते थे।

रमा की चारपाई उसकी मां और झमकू की चारपाई के बीचो-बीच लगाई गई। देर रात तक तीनों मां बेटियां आपस में बातें करती रही। फिर गुनगुन का सर सहलाते सहलाते रमा भी नींद के आगोश में चली गई। आधी रात के बाद झमकु की नींद हल्की सी टूटी। झमकु ने अपने घर के बाई तरफ से किसी परछाई को हिलते हुए देखा। उसे शुरुआत में लगा कि कोई कुत्ता या बिल्ली है, पर जैसे जैसे वह परछाई पास में आई तो उसने देखा कि यह कोई सालभर का बच्चा था, जिसने ढीले-ढाले कपड़े पहन रखे थे और सर पर एक बड़ा सा टोपला (ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शंक्वाकार टोपी पहनाई जाती है जो कंधो तक को ढक लेती है।) पहन रखा था।

वह बच्चा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।धीरे-धीरे वह बच्चा मां की चारपाई को पार करके रमा की चारपाई तक पहुंचा । फिर बंदर की तरह उछल कर चारपाई पर चढ़ बैठा और गुनगुन को बड़े हल्के हाथ से हटाकर, वह बच्चा रमा का दूध पीने लगा। झमकु यह सब देखकर काफी डर गई थी, पर पता नहीं कैसे घनघोर नींद ने उसे घेर लिया। वह कोशिश करके भी अपनी पलके ऊपर नहीं रख पा रही थी।

जब झमकू सुबह उठी तो रात वाली बातें उसके दिमाग से निकल चुकी थी। सुबह रमा को थोड़ा बदन दर्द था और गुनगुन भी बिना किसी वजह रो रहा था। झमकु को रात वाली डरावनी बातें याद तो आई पर सपना समझ कर सभी को बताना सही नहीं समझा।

***

शायद उस घर में अजीब घटनाओं की आहट शुरू हो चुकी थी। दोपहर को जब रमा कमरे में सो रही थी तब उसे लगा कि पास की चारपाई पर कोई जोर जोर से उछल रहा है और इससे चारपाई चरमरा रही है। रमा हड़बड़ा कर उठी और चारों तरफ देखा तो पता चला कि कमरे में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है ।

घर का कोई भी सदस्य घर के किसी भी कमरे को जब बंद करता तो अंदर से किसी बच्चे की आवाज आने का वहम होने लगता था । घर के सभी सदस्य इन घटनाओं को अनदेखा कर रहे थे।

शाम को जब रमा की मां पूजा कर रही थी तब अचानक से बिजली चली गई और तभी रमा की मां को बड़े जोर से पूजा की घंटी बजती हुई सुनाई दी और जब बिजली वापस आई तब रमा की मां ने देखा कि भगवान को लगाया गया प्रसाद बिखरा पड़ा है। सारा दोष आवारा बिल्लियों के सर मढ़ दिया गया।

बीते कल की तरह इस दिन भी रमा, झमकू और उसकी मां उसी क्रम में आंगन में सोई। इस बार झमकू पहले से सतर्क थी। उसने तय कर लिया था कि वह किसी भी कीमत पर नहीं सोएगी और अपनी बहन को उस बच्चे के बारे में बताएगी।

इस बार झमकु को पूरे होशो हवास में थी। रात के करीब 2:00 बजे होंगे उसने देखा फिर से वही लंबी टोपी वाला बच्चा घर की बगल से धीरे धीरे चला रहा है और फिर आकर रमा की चारपाई पर चढ़कर उसका दूध पीने लगा। झमकू तुरंत उठ कर रमा को जगाने ही वाली थी कि अचानक से वह बच्चा गायब हो गया । यह देखकर झमकु के पसीने छूट गए। वह डर के मारे बैठी बैठी कांप रही थी। तभी अचानक से झमकू के बालों को किसी ने चारपाई के नीचे से इतना जोर से खींचा कि उसका सर जमीन को छूने लगा और झमकू ने जैसे ही चिल्लाने के लिए मुंह खोला । एक छोटे से कोमल हाथ ने उसका मुंह कस के दबा लिया और जब उसने आंखें खोलकर देखा तो एक बड़ी ही शैतानी मुस्कान वाला बच्चा जिसकी नीली आंखें चमक रही थी वह उसका मुंह दबा रहा था झमकू उसे देख कर ही बेहोश हो गई।

झमकू की जब आंख खुली तो उसने पाया कि सभी घरवाले उसे, रमा दीदी और गुनगुन को घेरकर खड़े हैं । झमकु बुखार में बुरी तरह से तड़प रही थी । रमा और गुनगुन की तबीयत भी ठीक नहीं थी। झमकू के होश में आने से पहले डॉक्टर साहब घर पर आ चुके थे। उन्होंने बताया कि इन तीनों को वायरल बुखार है और झमकू को कुछ ज्यादा ही तेज है इसलिए वह बुखार में बहक सकती है।

झमकू ने उठते ही रात वाली घटना का जिक्र सबसे किया। रमा उस वक्त सोई हुई थी । घर के सभी सदस्य उसकी बातों में हां में हां मिला रहे थे लेकिन उस पर यकीन किसी को भी नहीं था। सभी यही मांन रहे थे कि उसको वहम हो गया।

पर शाम होते-होते घर के सभी सदस्यों को झमकू की बातों पर यकीन होने लगा था क्योंकि घर के बर्तन रसोई में अचानक से उछल जाते थे। खूंटी पर टंगे कपड़े कमरे में बिखरे मिलते थे और गुनगुन के खिलौने भी अपनी जगह पर नहीं मिलते । आंगन में पड़ी फुटबॉल अचानक इस तरह से उछलती जैसे किसी ने ठोकर मारी हो। घर में हर कहीं पर खौफ पैर पसारने लगा था।

पर इन सब बातों से रमा और झमकू दोनों ही अनजान थी क्योंकि उनके कमरे में ऐसी कोई भी घटना नहीं हो रही थी। दरअसल दोनों बुखार में थी इसलिए घर वालों ने इन घटनाओं के बारे में बताना जरूरी नहीं समझा।

हमेशा की तरह इस शाम भी बिजली गुल हो गई। कूलर के बंद हो जाने से गुनगुन की आंख भी खुल गई थी वह रमा की पीठ पर अपने छोटे छोटे हाथ से मार कर रोने लगा था। रमा अंधेरे में उठी गुनगुन को गोद में उठाया और दूध पिलाते हुए गोद में झुलाने लगी थोड़ी ही देर बाद बिजली वापस आ गई उसने देखा गुनगुन उसके आंचल से खुद को बार-बार ढक रहा है । बीमार होने के बाद भी रमा खुद को गुनगुन के साथ खेलने से नहीं रोक पाई। रमा आंचल खींचती और गुनगुन वापस उसे अपने चेहरे पर कर लेता। तभी अचानक से रमा को अपने ठीक पीछे किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी । जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे गुनगुन सोया था। यह देखकर रमा का कलेजा हलक में आ गया था उसकी इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह गोद में सोए बच्चे को देख सके । लेकिन उस शैतानी बच्चे को तो कुछ और ही मंजूर था। उसने किलकारी मारते हुए अपने चेहरे से आंचल हटाया और एक तिरछी सी मुस्कान देते हुए गोद से उछल कर जमीन पर कूद गया और दीवार के अंदर से आर पार हो गया। रमा की चीख़ से कमरे की दीवारें भी कांप उठी थी और शायद इसी वजह से झमकू भी जाग गई और वह भी रमा को चीखते देखकर डर से चीखने लगी। कुछ ही पल में घर के सारे लोग कमरे में जमा थे। रमा ने डरते-डरते सारी बातें बताई।

डर के मारे घर के सभी सदस्यों ने कमरे में ही हनुमान चालीसा का जाप करना शुरू कर दिया और ताऊ जी को किसी सयाने को बुलाने के लिए भेज दिया। कमरे में हनुमान चालीसा का जाप होने के बावजूद भी यहां वहां से किसी बच्चे के खिलखिलाने व किलकारी मारने की आवाज़ आ रही थी।

थोड़ी ही देर में ताऊ जी अपने एक पुजारी दोस्त को ले आए। जो उनको अक्सर भूतों की पिटाई करने की कहानियां सुनाया करता था। पुजारी जी अपने साथ कलश में गंगा जल और कुछ किताबें लेकर आए थे। पुजारी जी को देखकर घर वालों ने राहत की सांस ली । पुजारी जी मंत्र पढ़ पढ़ कर के गंगाजल को कमरे में यहां से वहां छिड़क रहे थे ।जैसे ही वह गंगा जल छिड़कतें थे, किसी दूसरे कोने से बच्चे की खिलखिलाने की आवाज सुनाई देती और फिर पुजारी जी विश्वासपूर्वक उस कोने में भी मंत्र पढ़कर गंगाजल फेंक रहे थे । तभी अचानक से गुनगुन के पास रखा झुनझुना हवा में झूला और पुजारी जी के सिर पर बहुत जोर से जाकर लगा। फिर एक तेज धक्के से पुजारी जी कमरे के बाहर जा गिरे । पुजारी जी धैर्य खो चुके थे और गिरते-पड़ते घर से बाहर भाग गए। घर के सभी सदस्यों ने चीख-पुकार मचा दी । उसके बाद प्रहलाद और ताऊ जी ने मिलकर घर के सभी सदस्यों को अपने ही पड़ोसी के घर में ले जाके सुलाया। लेकिन सभी की आंखों से नींद गायब थी । अतः जैसे तैसे वे लोग सहमे हुए से नींद की गोलियां लेकर सोए।

***

सुबह रोशनी होने से पहले ही ताऊ जी पास ही के गांव के एक प्रतिष्ठित तांत्रिक को घर पर बुला लाए थे।

रमा झमकु और गुनगुन की तबीयत अब और भी खराब हो चुकी थी।वो अभी तक पड़ोस के घर मे ही थी। नन्हे गुनगुन का चेहरा धीरे-धीरे काला पड़ने लगा था। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे यह भूख से मर जाएगा। सबसे बड़ा झटका रमा को तब लगा जब वह गुनगुन को दूध पिला रही थी, तब वह तेज दर्द से चीख उठी। उसके स्तनों से दूध की बजाय मवाद और खून निकल रहा था। यह देखकर वह बहुत ज्यादा घबरा गई और उसने सुनील को फोन किया । सुनील ने डॉक्टर को घर पर भिजाने का बोलकर यह कहा कि वह देर शाम तक उसे लेने आ जाएगा । तभी ताऊ जी उस पड़ोसी के कमरे में आए और रमा को साथ में घर ले आये। तांत्रिक ने, रमा से एक बर्तन में रखें जल में,,,खुद के बाल भिगोने के लिए कहा। फिर कुछ देर तक तांत्रिक मंत्र बुदबुदाता रहा। फिर अचानक जोर से बोला "कच्चा कलवा....!!! यह उसी की करामात है।"

रमा ने डरते-डरते पूछा "यह कच्चा कलवा क्या है"

तो तांत्रिक ने बताया "भ्रूण अवस्था से लेकर लगभग 9 वर्ष की उम्र तक जब कोई बच्चा मर जाता है तो उसका विधिवत अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। इसके बजाय उसकी लाश को जमीन में दफना दिया जाता है । कुछ दुष्ट तांत्रिक उसकी लाश पर तंत्र क्रिया करके उसकी आत्मा को अपना गुलाम बना लेते हैं और उससे पाप कर्म करवाते हैं । ऐसी आत्माओं कच्चा कलवा कहते हैं।"

यह बात सुनकर ताऊ जी ने डरते हुए पूछा "अगर वह कोई आत्मा थी तब गंगाजल से .... मंत्रों से..... हनुमान चालीसा से क्यों नहीं डरी यहां तक की उसने भगवान के प्रसाद को भी गिरा दिया था।"

तब तांत्रिक ने मुस्कुराते हुए कहा," भगवान का डर तो पापियों में... दुष्टों में होता है । जिस आत्मा ने शरीर के साथ इस दुनिया में कभी कोई पाप ही नहीं किया हो.... पाप पुण्य का अर्थ ही न समझा हो.... वह भला भगवान से क्यों डरेगी ??आमतौर पर कच्चे कलवे मंदिर, पूजा घर और किसी भी अन्य पवित्र स्थान पर बेरोकटोक जा सकते हैं।"

रमा झुंझलाकर बोली "अभी तक उस आत्मा ने जो मेरे साथ और मेरे बच्चे के साथ किया है मेरी नजर में उस से बढ़कर कोई दूसरा पाप नहीं है"

इस बार तांत्रिक थोड़ा गंभीरता से बोला "जिस बच्चे के सिर पर मां के आंचल की ठंडी छाया होनी चाहिए अगर वही बच्चा इस तपती रेत में दफन हो तो क्या उसकी इतनी भी इच्छा नहीं करेगी कि कोई उसे सीने से लगाकर सुलाए.... कोई उसे बड़े प्यार से दूध पिलाएं .....जब वह रोए तो गोद में झूला कर चुप कराएं,,, एक नन्हा बच्चा ही तो है,,उसकी यह इच्छा तो होगी ही। तभी तो वह बच्चा हर किसी प्रसूता में अपनी मां को खोजता है और इसी कारण नवजात शिशु की मां बड़ी आसानी से कच्चा कलवा की शिकार हो जाती है।"

"इस घर में कितने कच्चे कलवे हैं क्योंकि मैंने नवजात शिशु जितना बड़ा कच्चा कलवा देखा जबकि मेरी बहन ने लगभग डेढ़ वर्ष की आयु का कच्चा कलवा देखा?रमा ने कांपते हुए पूछा तो तांत्रिक ने भी हंसते हुए जवाब दिया

"आपके घर में एक ही कच्चा कलवा है लेकिन वह नवजात शिशु से लेकर 8 से 9 वर्ष के बच्चे जितना रूप धारण कर सकता है । जब कोई शिशु शरीर के प्रति आकर्षण को समझे बिना ही मर जाता है तब उसमें अलग-अलग रूप में दिखने की शक्ति भी आ जाती है। कुछ दुष्ट तांत्रिकों ने उसकी आत्मा से पाप करवाकर उसे विभिन्न प्रकार के कपड़े, खिलौने अर्पित किए हैं जिन्हें लेकर वह घूमता रहता है"

तभी बीच में ताऊ जी बोल पड़े, "कुछ भी करो महाराज... लेकिन मेरे परिवार को इस कच्चे कलवे से बचाओ"

तांत्रिक ने एक पन्ने पर कुछ सामग्री लिखकर दी और कहा "इन्हें मंगवा दो। इसके बाद अनुष्ठान किया जाएगा और औतारा लगाकर कच्चे कलवे की आत्मा को चौराहे पर छोड़ दिया जाएगा । फिर जो भी उस चौराहे को सबसे पहले पार करेगा कच्चा कलवा उसी के पीछे हो जाएगा।"

रमा बीच में ही बोल पड़ी "आप उसे मुक्त क्यों नहीं कर देते ऐसे तो वह किसी और को परेशान करने लगेगा"

तांत्रिक ने बड़े धैर्य से बताया "जब तक विधाता द्वारा लिखी गई इसकी आयु पूर्ण नहीं हो जाती, तब तक इसे पुनर्जन्म मिलना या फिर मुक्ति मिलना असंभव है और कच्चे कलवे को कैद करना बच्चों का खेल नहीं है । यह अपने मालिक का खून पीता है इसीलिए मैं इसे कैद करके नहीं रखना चाहता। बस इतना कर सकता हूं कि आप पर और इस घर पर तंत्र रक्षा कवच लगा सकता हूं जिससे यह दोबारा आप पर और आपके परिवार पर हावी नहीं होगा"

***

थोड़ी ही देर में कलेक्टर बाबू के भेजे हुए डॉक्टर घर आ गए और उन्होंने रमा झमकू और गुनगुन का इलाज शुरू कर दिया । सुनील ने फोन पर बताया कि वह देर शाम तक पहुंच पाएगा क्योंकि कुछ शरारती तत्वों द्वारा गोवध कर दिए जाने के कारण जिले में अराजकता फैली है । दूसरी तरफ तांत्रिक का अनुष्ठान जारी था जो रात के लगभग 10:00 बजे तक खत्म हुआ। तांत्रिक ने बताया कि औतारा देने के लिए किसी निडर युवक की आवश्यकता है। इस काम के लिए घासी ने हामी भर ली। रात के लगभग 10:45 बजे ताऊ जी, प्रह्लाद और घासी, तांत्रिक के साथ गांव के बाहर अनारक्षित समपार (रेलवे फाटक) के पास खड़े थे। तांत्रिक के हाथ में एक मिट्टी का बर्तन था । जिसमें बच्चों के खिलौने, कपड़े, दूध,मिठाइयां और कुछ सिक्के रखे हुए थे । तांत्रिक ने वह बर्तन घासी को थमाते हुए कहा, "यहां से सौ कदम दूर जो रेलवे पटरिया है, उनके ठीक बीचोबीच इस बर्तन को रखना है । याद रखना चाहे जो विपदा आए यह बर्तन उस चौराहे से पहले जमीन को नहीं छूना चाहिए और हां एक बात का खास ध्यान रखना बर्तन रखने के बाद जब वापस हमारी तरफ आओ तब भूलकर भी पीछे मुड़कर मत देखना क्योंकि पीछे मुड़कर देखने का मतलब हम सब की मौत है क्योंकि वह कच्चा कलवा बेहद शक्तिशाली है और उसके बाद वह हम में से किसी को नहीं छोड़ेगा"

घासी हाथ में बर्तन लेके रेलवे पटरियों की तरफ चलने लगा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही उसे उस बर्तन का भार बढ़ता हुआ महसूस हो रहा था । जब वह चौराहे से लगभग 10 कदम की दूरी पर था तब उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसने हाथ में अनाज की भरी हुई बोरी पकड़ रखी है । आगे का रास्ता उसने घुटनों के बल घसीट-घसीट कर तय किया क्योंकि उस बर्तन का भार बढ़ता ही जा रहा था। लेकिन घासी ने हिम्मत नहीं हारी और उस बर्तन को ले जाकर चौराहे के बीचो बीच ही रखा। बर्तन को बड़ी सावधानी से रखकर वो पीछे मुड़ गया और तांत्रिक की तरफ आने लगा। तभी अचानक से उसे पड़ोस की ही बुजुर्ग महिला की आवाज सुनाई दी,"बेटा इतनी रात गए यहां क्या कर रहे हो मैं तो खेत से आ रही थी तुम यहां क्या करने आए हो "

तो उसने जवाब दिया, "मैं तो बस यूं ही आ गया"

उसकी आवाज सुनकर तांत्रिक दूर से ही बड़े जोर से चिल्लाया,- "किसी से कोई बात मत करो यह अशुभ है "

लेकिन उस औरत की आवाज लगातार आते ही जा रही थी। अचानक से घासी के शर्ट को किसी ने पीछे से पकड़कर खींचा और वह नीचे गिर पड़ा । अब उसके पीछे से कुत्तों के गुर्राने जैसी आवाज आ रही थी । लेकिन दूसरी तरफ से तांत्रिक भी चिल्ला रहा था,"चाहे जो भी हो जाए पीछे मुड़कर मत देखना"

अब तो घासी के साथ कुछ अलग ही घट रहा था जैसे ही वह कुछ कदम आगे बढ़ाता वैसे ही कोई उसे खींचकर वापस पीछे कर देता । जैसे तैसे रोते-बिलखते वह तांत्रिक के पास पहुंचा और तब तक थक कर अधमरा हो चुका था।

***

घर पर पहुंचने के बाद तांत्रिक ने तंत्र कवच लगाना शुरु कर दिया। तब तक सुनील भी वहां पहुंच चुका था । जब तांत्रिक तंत्र कवच लगा रहा था उसी दौरान पवित्र कलश में रखा गया पानी उछल कर बाहर निकलने लगा । तांत्रिक द्वारा बांधे गए धागे चटक कर टूटने लगे। और घर में आंधी के कारण एक बवंडर सा बन गया था। इन सब को देखकर तांत्रिक भी पसीने से लथपथ हो चुका था और घबराते हुए बोला, "वह कच्चा कलवा हार नहीं मान रहा है ..... वह लड़ रहा है ..... ऐसा लगता है, जैसे कोई गहरा संबंध हो उसका इस घर के साथ .....ऐसा लगता है जैसे बहुत ही गहरा जुड़ाव है उसका रमा के साथ.... वह आएगा... वह सारी बाधाएं लांघ कर आएगा.."

यह सुनकर रमा तो गश खाकर गिरने ही वाली थी कि सुनील ने उसे थाम लिया और तांत्रिक से पूछा, "कोई तो उपाय होगा उसे रोकने का..."

तांत्रिक अपने ताबीज को पकड़कर कुछ बुदबुदाता हुआ बोला, " मुझे ऐसा लगता है.. जैसे उस कच्चे कलवे का शरीर... इसी घर में है ......जब तक उसके शरीर को प्राप्त कर उस का विधिवत अंतिम संस्कार नहीं किया जाता ....तब तक हम उसे हरा नहीं पाएंगे" यह कहते हुए तांत्रिक ने अपने थैले से धातु की दो बड़ी बड़ी सुइयाँ निकाली और उन्हें अपने हाथ में पकड़ कर बोला "जिस तरफ इन दोनों सुइयों का मुंह रहेगा हमें उसी तरफ जाना है और जहां पर यह मेरे हाथ से छूटकर जमीन पर गिर जाएगी वहीं पर हमें गड्ढा खोदना है" यह सुनकर उस धूल भरी आंधी में ही घासी एक फावड़ा लेकर तांत्रिक के पीछे पीछे हो लिया और साथ ही ताऊ जी और प्रह्लाद भी उसके पीछे चलने लगे।

घर में तो मानो भूकंप ही आ गया था घर के सभी बर्तन अपनी जगह पर उछल रहे थे। चाकू-छुरी तक भी अपनी जगह से उछलकर यहां-वहां गिर रहे थे ऐसे नजारे को देखकर घर की औरतों और बच्चों ने चीख-पुकार मचा दी। लेकिन सुनील जैसे तैसे उन्हें संभालने की कोशिश कर रहा था।

इधर दूसरी तरफ घासी, ताऊजी और प्रहलाद सुइयों का पीछा करते हुए घर के पीछे वाले भाग में चले गए। वहां पर एक जगह जाकर दोनों सुइयां गिर पड़ी और गिरने के साथ ही किसी नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज इतनी जोर से हुई कि रमा खुद को रोक न पाई और उसने खिड़की खोल कर कमरे के ठीक पीछे चल रहे नजारे को देखा ।

उसे देखकर रमा बिलख पड़ी ओर बोली, "व.. व.. वो गलत कर रहे हैं.... मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी..."

ऐसा कहते हुए वह सुनील से हाथ छुड़ाकर घर के पीछे वाले भाग में जाने लगी।। सुनील और रमा की मां भी उसके पीछे दौड़ने लगे, "रमा रुक जाओ ..!! वहां मत जाओ.. खतरा है ..." लेकिन रमा पर तो कोई और ही धुन सवार थी । वह वहीं पर चली गई जहां पर घासी ने फावड़े से गड्ढा खोदना शुरू कर दिया था। रमा तेजी से वहां गई । घासी को धक्का मारकर हटाया और उस जगह की मिट्टी को अपने दोनों हाथों में भरकर सीने से लगा कर जोर जोर से रोने लगी । तब उसकी मां आई और बोली, " बेटा अंदर चल क्या कर रही है तू यहां ..." पर रमा ने धक्के से अपनी मां को नीचे गिराया और कहा, "आप क्या सोचती थी.... इतना बड़ा पाप करने के बाद भी आप बच जाएंगे .....वह आपको छोड़ देगा ....नहीं ......कभी नहीं ..... उसकी सजा मिलेगी..... जरूर मिलेगी .....वह देगा तुम्हें सजा .....वह तुम सब को सजा देगा.."

तांत्रिक को रमा की हरकते नागवार गुजरी तो उसने कहा "तुम उस शैतानी कच्चे कलवे को क्यों बचाना चाहती हो..??!!... वह तुम्हारी ही नहीं .... हम सबकी जान ले लेगा"

तब रमा गुस्से से चीखती हुई बोली, "कच्चा कलवा नहीं है वो..... वो मेरा हिस्सा है ..... सुना आप लोगों ने,,, वह मेरे वज़ूद का हिस्सा है ....और मेरे हिस्से को कोई मुझसे जुदा नहीं कर सकता...."

तभी बीच में सुनील बोल पड़ा, " रमा तुम ये कैसी बातें कर रही हो...?"

रमा लगभग बदहवास सी होकर सुनील को पकड़कर घुटनों के बल बैठा कर बोली, "सुनील य.... य ... यह भी हमारा ही बच्चा है"

रमा की बात सुनकर सुनील को सदमा सा लगा और ठिठककर रह गया और इतना ही बोल पाया

".... क्या....."

तब रमा ने बताया "हां सुनील ...! जब ताऊ जी ने हमें जोहड़ में पकड़ लिया था, उसके बाद मुझे घर पर लगभग साल भर तक बंद करके रखा गया था। .... क्योंकि मैं गर्भवती हो चुकी थी। ताऊजी और पापा मुझे मार डालना चाहते थे, पर मम्मी ने मुझे बचाने के लिए .....अपनी बच्ची को बचाने के लिए.... मेरे बच्चे की जान लेने का घिनौना उपाय दिया। मैं 9 महीने तक इसी घर के एक कमरे में कैद रही और मेरा बच्चा मेरे ही घर वालों के ताने खाकर..... जिल्लत झेल कर.... मेरी कोख में पला। मैंने सोचा जब वह पैदा हो जाएगा तो उसे सीने से लगा कर रो लूंगी ....और शायद मेरा गम कुछ कम हो जाएगा..... पर इन दरिंदों को यह भी मंजूर नहीं था ।। उन्होंने मुझे मेरे बच्चे की शक्ल तक ना देखने दी और मेरी ही आंखों के सामने तपती रेत में जिंदा दफना दिया । मैं खिड़की से उसे जिंदा दफन होते देख रही थी और मौत मांग रही थी पर मांगने पर मौत भी नहीं मिलती......"

बीच में ही ताऊजी बोल पड़े, "तू समझती क्यों ना है यह सब तेरे पाप को ही छिपाण वास्ते किया गया था.."

तभी गुस्से से तिलमिलाता हुआ सुनील बोल पड़ा "वह प्यार था मेरा ..... और मेरा प्यार पाप नहीं,, पाक था ......पाप तो तुम लोगों ने किया है...... एक नन्ही जान को दुनिया में आते ही अपनी हैवानियत दिखाई है ....इस पाप को तो गंगा माई भी धोने से इनकार कर दे।" यह कहकर सुनील रमा को अपनी बाहों में भरकर घुटने पर बैठकर दहाड़ मार कर रोने लगा। रमा की आंखें गुस्से और दुख से लाल हो चुकी थी। वह कह रही थी... "हत्यारें है... यह सब के सब हत्यारे हैं .....मेरे ही छोटे भाई ने मेरे ही बच्चे के लिए...... जिंदा बच्चे के लिए..... कब्र खोदी और मेरी मां ने ही मेरी कोख से मेरा बच्चा छीनकर उस कब्र में डाला था और यह ताऊ नहीं शैतान है.... मेरे फूल से नाजुक बच्चे पर इसने भरी दोपहर में तपती रेत डाली थी.... और ये बाप नही हैवान है.... यह मेरे जिंदा बच्चे पर मिट्टी डालने के बाद उस पर खड़ा होकर जमीन समतल कर रहा था ..... मेरे जिंदा बच्चे की कब्र पर खड़ा हो रहा था।...... मैं भी कितनी अभागी हूं अपने ही बच्चे को शैतान समझकर इस तांत्रिक के झांसे में आ गई"

सुनील और रमा दोनों की आंखों में मानो सैलाब सा आ गया था।

तांत्रिक ने दोनों के सर पर हाथ रख कर कहा, "बेटा इन सब बातों के लिए यह सही वक्त नहीं है । औतारे से वापस आई हुई आत्मा बेहद खतरनाक होती है । वह हम में से किसी को नहीं बख्शेगी।... यहां से चलो और अपनी जान बचाने की कोशिश करो।"

रमा बहुत गुस्से में बोल पड़ी "जिन्होंने गुनाह किया है उन्हें सजा तो मिलेगी ही चाहे वह कोई भी हो.."

तब तांत्रिक ने फिर से कहा

"तुम दोनों तो बेगुनाह हो पर वह तुम दोनों को भी नहीं छोड़ेगा । भलाई इसी में है ...,, मेरे साथ इस घर से बाहर बाबा भूतनाथ के मंदिर में चलो । वहां मैं तुम सब को बचा सकता हूं या फिर जितनी जल्दी हो सके उस बच्चे की लाश को बाहर निकालो और उसका अंतिम संस्कार करो।"

सुनील मिट्टी को मुट्ठी में भरकर अपनी छाती पर मारते हुए भर्राए गले से रोता हुआ बोला, "हम गुनहगार हैं .......हम भी सजा के हकदार हैं .....एक मां बाप का सबसे पहला काम अपने बच्चे की हिफाजत करना होता है...... मैं अपने बच्चे के लिए कुछ नहीं कर पाया .....तुम दरिंदों के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया ......मैं गुनाहगार हूं...." यह कहते हुए सुनील ने रमा की आंखों में देखा और रमा ने भी अपनी आंसू भरी हुई आंखों को नीचे करके उसके निर्णय से सहमति जताई।

तभी अचानक से तेज बवंडर उठा हर तरफ से बच्चों के हंसने की आवाजें आने लगी.... किलकारियों की आवाज़ आने लगी,,, पर यह आवाजें बहुत भयानक थी। ताऊ जी ने टॉर्च जलाते हुए कहा, "तुम सब लोग मेरे पीछे आओ.... हम यहां से बाहर बाबा भूतनाथ के मंदिर में चले जाएंगे"

लेकिन जैसे ही उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की उन्हें दो नीले बिंदु 8 से 10 कदम दूरी पर दिखाई दिए। उन्होंने टोर्च की लाइट उस तरफ डाली तो देखा मांस के लोथड़े से बनी हुई नीली आंखों वाली कोई बच्चे जैसी आकृति घुटनों के बल चलते हुए उनकी तरफ बढ़ रही है ।। उस बच्चे जैसी शैतानी आकृति के हाथ में वही खिलौना था जो औतारे वाले बर्तन में रखा गया था। सभी घबराकर अपनी जगह पर रुक गए ।अब दूसरी तरफ से भागने की कोशिश की तब भी टॉर्च की रोशनी में वही बच्चे जैसी पर बेहद भयानक आकृति जमीन पर रेंग कर उनकी तरफ बढ़ती हुई नजर आई। सभी डर के मारे थर थर कांप रहे थे कि अचानक से हवा चलनी बन्द हो गई और घोर सन्नाटा छा गया पर किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपनी जगह से भी हिल सकें । जिस जगह पर घासी हाथ में फावड़ा लेकर खड़ा था वहीं पर मिट्टी जोर-जोर से उछलना शुरू हुई और सभी लोगों ने ऐसा नजारा देखा कि उनकी आंखें डर से फटी की फटी रह गई। मिट्टी निकलने के बाद कुछ मामूली सी हड्डियां अवशेष के रूप में नीचे पड़ी थी। उन हड्डियों पर अचानक से मांस चढ़ने लगा और वह घिनौनी आकृति में बदल गई ।

तभी तांत्रिक जोर से बोला, "अगर इसे अभी भी जला दिया तब भी बच सकते हैं ..." और यह सुनते ही प्रहलाद केरोसिन का डिब्बा लेने भागा और तांत्रिक तंत्र विद्या द्वारा उस कच्चे कलवे को रोकने की कोशिश करने लगा। लेकिन वह बच्चे जैसी आकृति तांत्रिक के पास आई और उसके मंत्रों को बेअसर साबित करते हुए उसे उठाकर इतनी जोर से फेंका कि वह पेड़ से टकराकर वही बेहोश हो गया। ताऊ जी घर के पीछे रखे गए कबाड़ में छिपने की कोशिश करने लगे । रमा की मां और उसका छोटा भाई घासी अलग-अलग दिशाओं में भागने लगे । तभी उस शैतानी बच्चे जैसी आकृति ने अपना हाथ ऊपर किया और ऊपर बंधी हुई तनी जोर-जोर से हिलने लगी। उसका एक सिरा जो घर की पिछली दीवार की छत पर बंधा हुआ था वह कील सहित उखड़कर नीचे आ गिरा और फिर वह तनी सांप की तरह चलते हुए रमा की मां से लिपट गई। जिससे वह बुरी तरह से जमीन पर गिरी। जमीन पर गिरने के साथ ही वह कील जो रस्सी से बंधी हुई थी वो रमा की मां के हाथों के आर पार हो गई। रमा की मां के हाथों से खून निकल रहा था। वह दर्द में रो रही थी और उसके हाथ कांप रहे थे।

जिस मां के हाथ अपनी ही बेटी की औलाद को जिंदा दफनाने के लिए देते वक्त नहीं कांपे आज वही हाथ दर्द से कांप रहे थे ।

तभी छत की दीवार से एक ईंट आ कर रमा की माँ के सर पर गिरी और वह बेहोश हो गई । अब उस कच्चे कलवे ने रस्सी के एक सिरे को अपने हाथ में पकड़ा और रस्सी का दूसरा सिरा अपने आप उछलते हुए घासी की तरफ लपका और घासी के पैरों से लिपट गया । कच्चे कलवे ने रस्सी को झटका देकर खींचा और घासी जमीन पर घसीटता हुआ उस नन्हे से कच्चे कलवे के आगे आ गिरा । घासी डरते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर कच्चे कलवे के सामने माफी मांग रहा था पर कच्चे कलवे ने कुत्ते की तरह गुर्राते हुए उसके दोनों हाथों को पकड़ कर मरोड़ दिया और पास पड़े फावड़े से घासी के मुंह पर वार किया। घासी भी होश खो बैठा।

उस इंसान को अपने हाथों को सलामत रखने का कोई हक़ नहीं है जो अपनी ही बहन के जिंदा बच्चे को दफन करने के लिए कब्र खोदे।

तभी उस कच्चे कलवे को पीछे से ताऊ जी ने बड़े ही जोर से एक लाठी से मारा और कच्चा कलवा उछलकर घर के पीछे रखी हुई लकड़ियों पर जा गिरा । वहीं पे प्रह्लाद खड़ा था। उसने तुरंत केरोसिन से भरा हुआ कनस्तर कच्चे कलवे पर उड़ेल दिया और फिर ताऊजी ने जलती तिल्ली उस कच्चे कलवे की तरफ फेंकी। यह देख कर अब तक मूकदर्शक बने सुनील और रमा की चीख निकल गई लेकिन ताऊ जी और प्रह्लाद ने कच्चे कलवे की ताकत को कम आंक कर गलती की। जो चलती हुई तिल्ली ताऊ जी ने कच्चे कलवे पर फेंकी थी, वह हवा में ही रुक गई और फिर फुर्ती से कच्चे कलवे ने उछलते हुए ताऊ जी को उन लकड़ियों पर पटक दिया। लकड़ियां तुरंत ही जल उठी और साथ ही ताऊजी भी और वह आग लगे हुए कपड़ों में चिल्लाते हुए भागने लगे ।।

तपती रेत में नवजात को दफन करने पर क्या दर्द होता है शायद आज उनको समझ में आ गया था ।।।

तभी कच्चा कलवा पीछे मुड़ा और देखा की प्रहलाद बच कर भाग रहा है तो पास ही पड़ी हुई बबूल की लकड़ियों के ढेर को पकड़ कर जोर से फेंका और प्रहलाद के ठीक आगे जाकर वह लकड़ियां गिरी। प्रहलाद उन लकड़ियों में औंधे मुंह गिर गया । बबूल के कांटे उसके पूरे शरीर को छलनी कर चुके थे । किसी जिंदा बच्चे की कब्र पर पांव रखने वाले का यही हश्र होता है। सभी को अपने अंजाम तक पहुंचाने के बाद कच्चा कलवा गुर्राते हुए बड़े ही गुस्से से सुनील और रमा की तरफ घुटनों के बल रेंगता हुआ आया । लेकिन सुनील और रमा दोनों बाहें फैलाए ....आंखों में आंसू लिए.... उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । उन दोनों को देखकर कच्चा कलवा अचानक से ठिठक सा गया।

उसको रुका हुआ देखकर सुनील रमा को सहारा देता हुआ उसके पास ले जाने लगा ।रमा पांव घसीटते हुए कच्चे कलवे की तरफ बढ़ रही थी और कह रही थी,

"तुम्हारी दी गई हर सजा मुझे मंजूर है... लेकिन एक बार मैं तुम्हें अपने सीने से लगाना चाहती हूं ....तुम्हारा माथा चूमना चाहती हूं .....तुम्हें लोरी सुनाना चाहती हूं..... तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहती हूं,,जिस पर मेरा हिस्सा था... लेकिन कुछ दरिंदों ने छीन लिया ....कुछ दरिंदों ने मेरे प्यार को ही पाप बता कर मेरा हिस्सा मुझसे छीन लिया.... तुम तो मेरे बच्चे हो ....तुम तो नहीं छीनोगे .... मेरा हिस्सा तो मुझे दोगे ही ना.."

यह कहते हुए रमा ने उस मांस के लोथड़े जैसे कच्चे कलवे को अपने सीने से लगा लिया। सुनील भी रमा और कच्चे कलवे से लिपट कर रोने लगा । रमा और सुनील की आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे।

कहते हैं प्यार और पश्चाताप के आंसू गंगाजल से भी पवित्र होते हैं शायद इसीलिए उन आंसुओं की धार से कच्चे कलवे का पाप भी धुल गया था । अब आसमान से काले ख़ौफ़ के बादल छट गए । चमकता चांद नजर आ रहा था और उसी चांद की रोशनी में वह मांस का लोथड़ा जैसा दिखने वाला कच्चा कलवा एक नवजात शिशु में बदल चुका था।

सुनील हैरानी से बोला "रमा ...!! रमा देखो तो ...!!! हमें लड़की हुई थी ...!!! हम तो इसका नाम भी नहीं रख पाए.."

रमा कुछ नहीं बोल पाई बस भरे गले से hmmm की आवाज निकाली और फिर दोनों ने उस नन्ही सी नवजात बच्ची को हथेलीयों पर लेकर अपने चेहरे के पास सटा लिया। दोनों एक दूसरे के आमने सामने थे और उनकी हथेलियों पर लेटी नन्ही नवजात दोनों के चेहरों को छूने की कोशिश कर रही थी मानो पूछ रही हो,

"तेरे बड़े से उजले आँचल में, मेरा हिस्सा क्यों नही है,,,,

तेरी बातों में, सवालातों में, मेरा किस्सा क्यों नही है..

पापा को घोड़ा बनाके .... मुझे भी बैठना था

छोटी छोटी बातों पे मुह फुलाके....मुझे भी ऐंठना था।

मेरी नन्ही सी पीठ पर तेरी हथेली क्यों नही है,

पापा की लायी गुड़िया मेरी सहेली क्यों नही है।

तेरे बड़े से उजले आँचल में मेरा हिस्सा क्यों नहीं है।

तेरी बातों में, सवालातों में,मेरा किस्सा क्यों नहीं है।

मधुर किलकारियां मारती हुई वह नन्ही नवजात रोशनी के एक बिंदु में बदलकर झिलमिलाते तारों के समान आसमान में समा गई । रमा और सुनील के हाथों में केवल अस्थि के अवशेष बचे थे।

बच्चे सचमुच नन्हे फरिश्ते होते हैं। जब एक मां के दिल में नफरत का बोझ बढ़ गया तो ऐसे ही एक नन्हे फरिश्ते ने उस बोझ को हल्का कर के मां को सुकून दिया।

उस नन्ही सी नवजात के सीने में इंसानी दरिंदों से भी बड़ा दिल था । शायद तभी उसने अपने गुनाहगारों की जान बख्श दी थी।

कुछ मुझ सा, कुछ जुदा सा......

तू मेरा ही तो हिस्सा था।

कुछ सच सा, कुछ फरेब सा......

तू मेरा ही तो किस्सा था।

समाप्त।

प्रिय पाठकों:-

मेरे एक बहुत ही करीबी दोस्त के परिवार ने कच्चा कलवा का प्रकोप सहा है । उन्हीं के बताए हुए खौफ के पलों को मैंने एक काल्पनिक कहानी में पिरोया है। यह कहानी सबसे पहले प्रेत को स्तनपान नामक शीर्षक से लिखी गई थी पर मेरी उस कहानी को मेरे दोस्त के परिवार द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया क्योंकि वह कहानी वास्तविकता से भी अधिक भयानक थी।

इसके बाद मैंने कच्चा कलवा शीर्षक से कहानी को नए सिरे से लिखा । परंतु वह कहानी भी अस्वीकृत कर दी गई क्योंकि मेरे दोस्त के परिवार का मानना था कि कहानी का अंत कुछ इस तरह होना चाहिए कि कहानी पढ़ने के बाद में कच्चा कलवा का डर खत्म हो जाना चाहिए।

फिर अंत में कहानी का वर्तमान स्वरूप सामने आया। मुझे खुशी इस बात की है कि यह कहानी उस औरत (*मां ) को भी पसंद आई,,,,जो अपने 2 साल के बच्चे के साथ भी अकेला सोने से डरती है.....

कच्चा कलवा को झरउंटिया या फिर मसान के नाम से भी जाना जाता है इसके बारे में आप Google पर देख सकते हैं अगर आपके पास कोई सच्चे भूतिया अनुभव है तो मुझे इस पते पर मेल करें मैं आपके अनुभव से कहानी लिखने की कोशिश करूंगा।

anokhaankit123@gmail.com

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आपका

अंकित महर्षि