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मंजिल प्यार की

"   शिवम अरे आ भी जाओ ना यार... क्या हो गया तुम्हारी आंखों को..."
   
" आज पता नहीं क्या हुआ ..."


" रुको तुम यह सेहरा लगा के देखो "  शिवम की आंखें लाल थी और वह शेरवानी पहने हुए आंखों में जैसे समंदर को थाम रहा था।

" सॉरी बेटा तुम्हें परेशान किया ...वो क्या है कि रोनित की कदकाठी हमारे घर में और किसी से मैच नहीं करती इसलिए तुम्हें यहां पर लाना पड़ा..... सुरभि बहुत लकी है जो उसे तुम्हारे जैसा दोस्त मिला .....वरना इतनी जिम्मेदारियां कौन सा दोस्त सम्भालता है  ..." सुरभि की मां ने शिवम की पीठ थपथपाते हुए कहा।

शिवम ने आज तक जिसके सपने देखे वह सुरभि ही थी... आंखें खोलकर भी जिसे देखना चाहा... हमेशा जिसे नजरों में बसाया .....वह भी सुरभि ही थी ।  लेकिन आज वह सुरभि के लिए एक पुतला बनकर खड़ा था।  क्योंकि उसकी बॉडी का शेप सुरभि के होने वाले *NRI* पति रोनित की बॉडी से मिलता जुलता है। 

" सच में पूरे दूल्हे लग रहे हो ....चलो इसी बात पर एक सेल्फी हो जाए" सुरभि शिवम के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली। एक आंख बन्द कर नाक फुला और जीभ को लम्बा बाहर निकाल उसने सेल्फी ली, उसकी इस हरकत पर दीवारें भी मुस्कुरा उठी पर शिवम जस का तस बना हुआ था।

" रोनित इसमे अच्छा लगेगा ना..!" सेल्फी में शिवम की जगह रोनित की कल्पना करते हुए सुरभि बोली।

शिवम की आवाज कम्पकम्पा रही थी। जैसे आज वह बोल नहीं पायेगा उसने जैसे तैसे सम्भालते हुए बोला "बहुत...अच्छी लगेगी"

सुरभि को शिवम की आवाज कुछ अजीब लगी उसने पूछ लिया, "आंखों में ज्यादा दर्द हो रहा है, .... देखो ये कितनी लाल हो गई है.."
शिवम ने बस हां में गर्दन हिलाई और आंसू की बून्द ढुलक गई।

"चलो जल्दी से कपड़े चेंज कर लो ,  मैं यही पैक करवा लेती हूँ,,, और नहीं देखेंगे,,,, चाहे रोनित को पसन्द आये या नहीं" सुरभि एक सांस में ही सब बोल गई।
                          बातें ही निकली क़ातिल यार की,
                          अब कैसे मिले मंज़िल प्यार की।

कपडे बदलकर वह आंख धोने के लिए वॉशरूम आ गया। उसकी आंखों से आंसू थम नहीं रह थे। पानी को हथेलियों में भर कर जैसे ही आंख में डाल रहा था,,, अतीत की हर खट्टी मीठी याद उसके आंसुओं से झड़ रही थी।

5 साल पहले वो इसी घर आया था, किराए पर रहने के लिए। उसका सपना था आई .आई. टी .  में जाना , पर सभी इतने किस्मत वाले नहीं होते कि जो चाहे वो मिल जाए।पर एक नया परिवार मिला वो क्या कम था। उसे याद आ रहा था जब रूम लेते वक्त उसे घर के रूल समझाये जा रहे थे, तब बीच में सुरभि बोल पड़ी थी, पोछा लगाने के बाद जब तक सूख न जाए तब तक जमीन पर पांव रखना मना है। तब वहां सभी ने बताया था कि ये एक ही काम करती है और कोई उसे खराब नहीं कर सकता।
ऐसी ही थी सुरभि , कैमरे को देखते ही उसकी शक्ल बिगड़ने लगती थी। फोटो को बर्बाद करने में उसे पीएचडी हासिल थी, पर कुछ भी कहो वो जितनी शक्ल बिगाड़ती उतनी ही प्यारी और मासूम सी लगती थी। 
पानी की हर बून्द के साथ हर वो लम्हा शिवम को याद रहा था जो उस एक साल में सुरभि के साथ बीता था। 
खुद की पतंग कटने पर भी *वो काटा* चिल्लाना,  सुबह ब्रश करने के बाद आंखे भेंगी करके जीभ साफ करना, जब क्रिकेट  मैच आने पर उसका फेवरेट tv सीरियल नहीं देख पाती थी तब बोलती थी...आज इंडिया पक्का हारेगी.." जब सचमुच इंडिया हार जाती फिर उन सभी भाई बहनों में इतनी ठनती कि सुरभि को रोकर ही सोना पड़ता, जब शिवम के ज्यादा पढ़ने पर औऱ उसके बिल्कुल नहीं पढ़ने पर घरवाले ताना मारते तो बोला करती, "शिवम इतना मत पढा कर... ज्यादा पढ़ने से दिमाग खराब हो जाता है" उसे इडली खाने का तगड़ा चस्का था, पर बनाना कुछ नहीं आता था, इसीलिए अक्सर अपनी बड़ी बहन के कपड़े भी धोती थी। ये सब बातें शिवम ने उस वक्त कभी नोटीस ही नहीं की, पर जब आई आई टी  प्रवेश परीक्षा में पास नहीं हुआ तो उसने बीएससी करना तय किया। तो उन तीन वर्षों में उसने महसूस किया कि उसे कोई लड़की कभी पसन्द आ ही नहीं सकती है क्योंकि इस दुनिया में कोई भी लड़की सुरभि जितनी खूबसूरत नहीं है, उसके जितनी मासूम नहीं है, और दिल जितना सुरभि का सुंदर है उतना तो किसी का हो ही नहीं सकता।
शायद यही हर लडके के साथ होता होगा जब वो प्यार में होता है। सुरभि के घरवाले बड़े मिलनसार थे। छोटे बड़े फ़ंक्शन में शिवम को याद करना नहीं भूलते थे। शिवम भी हर बार उनका दिल रखता था। अब तो धीरे धीरे सुरभि को भी दिल में रखने लगा था। 

पिछले साल शिवम का बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर में चयन हुआ तो किस्मत से  वो एक बार फिर अपनी सपनो की शहजादी से मिल गया। एक बार फिर शिवम उनके घर पेइंग गेस्ट था।तब सुरभि की बड़ी बहन स्वाति की शादी थी, और अपनी नई नोकरी की परवाह न कर शादी की जिम्मेदारियां सम्भाल कर शिवम ने भी सुरभि के परिवार वालों के दिल में खासी जगह बना ली। सुरभि का छोटा भाई निर्देश भी शिवम की देखरेख में पढ़ने लगा। इस एक साल में शिवम के दिल में सुरभि की जगह कुछ ज्यादा ही हो गई थी।

सुरभि की सगाई जब से हुई, तब से शिवम के दिल में एक ख़ौफ़ सा रहता था। कहे भी तो कैसे, सुरभि की माँ बेटा बोलती थी उसे, और सुरभि के पापा तो निर्देश से ज्यादा शिवम पर भरोसा करते थे। सुरभि भी तो शिवम को अपना बेस्ट फ्रेंड मानती थी। पिछले महीने जब से सुरभि की सगाई हुई तब से शिवम की जिंदगी आसुंओ की ऐसी दास्तान बन गई जो शिवम के अलावा किसी ने नहीं सुनी।

सब आँसू धो डाले और दिल को कड़ा करके शिवम मुहं पोंछ कर फिर से अभिनय करने को तैयार हो गया। उसने सारे सामान को कुली की तरह उठाकर गाड़ी में रखा। फिर उन्हें घर लाकर चुपचाप अपने कमरे में चला गया। मन बहलाने के लिए उसने व्हाट्सएप स्टेटस देखने शुरू किये...किसी ने राधाकृष्ण tv सीरियल की क्लिप स्टेटस लगा रखी थी। जिसमे भगवान कृष्ण बोल रहे थे  "जब तक कोई अपने प्रेम को पाने के लिए अपने सम्पूर्ण प्रयास नहीं करता है, तब तक मैं स्वयं भी उसकी मदद नहीं करता हूँ। मैं उन्हीं की मदद करता हूँ जो खुद की मदद खुद करते हैं।"

शायद अभिनय का जादू था या कुछ और... शिवम ने यह क्लिप बार बार देखी,, उसे यह सचमुच भगवान की वाणी सी महसूस हुई। उसने तय किया वह अपने प्यार को इतनी आसानी से न जाने देगा। अपनी हर सम्भव कोशिस करेगा,वो भी इतनी कि भगवान को भी साथ देना पड़े।
आज वो सुरभि को अपने दिल की बात हर हाल में कहेगा चाहे अंजाम जो भी हो ऐसा उसने निश्चय किया।

इस बात के रोमांच ने शिवम का सारा दुःख भुला दिया अब उसका ध्यान केवल इतना ही था कि कैसे वह उसको अपने दिल की बात बताएगा। 
सुरभि रात को खाने के लिए बुलाने के लिए आई , इसी बहाने सुरभि ने आंखों के हाल के बारे में भी पूछा तो बातों बातों में  उसने सुरभि को कहा "अच्छा सुन....मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ.."

सुरभि :- बोलो

शिवम :- वो क्या है कि...मुझे तुम्हे ये बताना था..वो मैं..वो मैं भूखा हूँ ... खाना खा के बात करें..."
शायद सिट्टी पिट्टी गुम होना इसे ही कहते हैं। कुछ बातें दिल में रहने की इतनी आदी हो जाती कि जुबां तक आना ही नहीं चाहती है।
सुरभि की मम्मी को भी कुछ अजीब लगा क्योंकि फरवरी में न तो इतनी गर्मी होती है कि कोई पसीना आये और न ही इतनी सर्दी होती है कि किसी को कम्पकम्पी छूटे। शिवम के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा था। उसकी जुबान में कम्पकम्पी छूट रही थी पर माथे से पसीना बह रहा था । फिर से श्री कृष्ण की वाणी को मन ही मन दोहराकर वापस कमरे की तरफ जाते हुए उसने सुरभि को आवाज लगाई।
जब सुरभि बाहर आई तो एक बार फिर शिवम की कम्पकम्पी शुरू हो चुकी थी, पर इस बार वो निश्चय पर दृढ़ था। "सुरभि... मर्ज भी तुम हो तो मलहम भी तुम हो...मैंने सुना है...हमारा मन उपजाऊ मिट्टी सा होता है, और भावनाएं बीज की तरह... आज तक मैंने दिल में कुछ नहीं छिपाया,, जो दिल में होता है वही मेरी जुबां पर होता है... बस एक बात छिपा गया... इस दिल में तेरे प्यार के बीज दबा गया..  उन बीजों को आँसुओ से सींचकर मैंने वृक्ष बना दिया है...बहुत...बहुत प्यार करता हूँ तुमसे... जबसे तुम्हारी सगाई हुई है तब से मेरी आँखों में नींद नहीं, आंसू ही रहे है। मुझे लगता था कि तुम्हारी यादों के सहारे जी लूंगा,, पर अब पता चल गया है कि तुम्हारे बिना मैं नहीं जी पाऊंगा, इतनी दूर जा रही हो कि कभी देख भी न पाऊँ..." कहते कहते शिवम रो पड़ा था।

सुरभि बेहद समझदार और सुलझी हुई लड़की थी उसने कहा , "शिवम  . ... मैंने तुम्हे हमेशा सबसे अच्छा दोस्त समझा.. तुम्हे लेकर मेरे मन में ऐसे विचार न पहले थे और न ही अब है।  मैंने अपनी जिंदगी का ये फैसला अपने पापा को दे रखा था, पर तुम तो प्यार करते थे ना. .. तुम्हे बताना चाहिए था, अपने परिवार को.... मेरे परिवार को...  शायद तुम्हारी चाहत सबकी मर्जी ...सबकी खुशी बन जाती ...  शादी करके अपनो से इतनी दूर हो जाऊंगी... सोच कर ही मन घबराता है..  अगर रोनित की जगह पापा तुम्हे चुनते तो ओर भी खुशी होती मुझे.... पर अब... पांच दिन बाद मेरी शादी है... कार्ड बंट गए हैं.. कितनी रस्मे निभाई जा चुकी..  अब तुम्हे ये सब बताना ही नहीं चाहिए था... अब एक दुःख हमेशा रहेगा........... कि मैंने अपने सबसे अच्छे और सच्चे दोस्त को रुलाया है। सच बताऊं तो मैं प्यार ... लव मैरिज इन सबको समझती ही नहीं... बस इतना समझ सकती हूँ की तुम्हारी आंखों में आंसू.... मेरी वजह से तो कभी नहीं होने चाहिए।"

सुरभि जितना समझा सकती थी उतना उसने समझाया पर टूटे दिल को कब चेन आता है। शिवम ने रोनित के नम्बर लिए ... फेसबुक एकाउंट पे भी जुड़ा... रोनित के ब्लॉग भी पढ़े... जो बड़े गहरे प्यार की भावनाओं से भरे हुए थे... रोनित के ब्लॉग पर उसकी हर कविताओं, और कहानियों  पर अपनी तरफ से जवाब दिए, जो शायद उसके टूटे दिल की गवाही थे। रोनित ने सुरभि से भी शिवम के बारे में सुन रखा था, इसलिये उसने अच्छा रिसपॉन्स दिया... फाइनली 2 दिन में व्हाट्सअप से वीडियो कॉल भी उन दोनो ने की। पर शिवम इतनी हिम्मत नहीं कर पाया कि रोनित को सब सच बता सके क्योंकि पूरे खानदान के सम्बन्ध बिगड़ जाते।
बस अंत में उसने राधाकृष्ण सीरियल की वही छोटी सी क्लिप शिवम ने रोनित को भेज दी... "मैं इसे दिन में कम से कम दस बार देखता हूँ.. तुम भी देखना"
मैसेज को भेजते हुए शिवम यही सोच रहा था, 
अगर दो परिवारों  के आंखों के आंसू   मेरी खुशी की वजह है तो मुझे जिंदगी भर रोना मंजूर है ... मेरे जो बस में था वो मैंने किया...अब मैं उस परिवार की इज़्ज़त को दांव पे नहीं लगा सकता जिसने मुझे सबसे ज्यादा इज़्ज़त दी। कान्हा मेरे बस में अब कुछ भी नहीं..क्योंकि इससे ज्यादा मैं कुछ भी करूँगा.    .... तब मेरा प्यार दूषित होकर स्वार्थ बन जाएगा... इस दिल को सुरभि के लिए धड़कना है... इस मन को सुरभि के लिए तड़पना है... शायद इन आंखों को अब सुरभि के नाम के आंसू ही बहाने है... कान्हा अब मेरे बस में कुछ भी नहीं... शिवाय सुरभि को प्यार करने के... अब सब तेरे हवाले।
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शादी वाला दिन

सुरभि के पिता बृजमोहन जी ने अपने जिंदगी भर की कमाई अपनी बेटी की शादी में लगा दी थी, कहीं आवभगत में कोई कमी न रह जाए इसलिए सबको सम्भाल रहे थे। एक पिता सबसे ज्यादा विनम्र तब होतें हैं , जब उनकी बेटी की शादी होती है। एक पिता हमेशा दीवार से मजबूत दिखते हैं, हमेशा सख्त लगते हैं... पर उनकी आंखों से भी आंसू झरते हैं जब उनकी बेटी की विदाई होती है।
रोनित के परिवार और बारातियों को भी एक होटल में  ठहराया गया था। वहां जब बृजमोहन जी सबको सुखसुविधा के लिए पूछने गए तो वहां का माहौल बड़ा ही अजीब लगा जैसे उनसे कुछ छिपाया जा रहा है।

उधर दूसरी तरफ शिवम ने भी शादी की ज्यादातर जिम्मेदारियां सम्भाल रखी थी, मेहमानों की आवभगत से लेकर हर छोटा बड़ा काम वह  देख रहा था जैसे कोई वेडिंग प्लानर हो। एक काला बड़ा चश्मा, बहते आंसूं, झूटी सी मुस्कान, आंख खराब होने का बहाना उसके साथी थे।

सुरभि को भले ही प्यार न था पर अपने दोस्त की ऐसी हालत उससे बर्दास्त नहीं हो रही थी, शायद उसके हिस्से के कुछ आंसू वह अपनी आंख से भी गिरा रही थी ताकि शिवम को बार बार आंख खराब होने का बहाना न करना पड़े। हालांकि सुरभि के आँसुओ के पास बहाना भी था, इसीलिए आसुंओ को बहाना भी था। पर उन आँसुओ पर विदाई की नहीं शिवम के प्यार की मोहर लगी थी।

इधर होटल में रोनित के पापा देवीप्रसाद जी  बृजमोहन जी के सामने हाथ जोड़े खड़े थे। बृजमोहन जी की हालत ऐसी थी जैसे काटो तो खून नहीं । रोनित की आंखों से आंसू बह रहे थे और वो बृजमोहन जी के पांव पकड़ कर माफी मांग रहा था। बृजमोहन जी ने जैसे तैसे खुद को सम्भाल कर शिवम को फोन कर तुरन्त होटल बुलाया।

शिवम जल्दी आने के लिए बाइक लेकर आया। बृजमोहन जी के चेहरे पर आंसू देखकर पूछ बैठा, अंकल सब ठीक तो है ना... आपकी आंखों में आंसू कैसे??? हेलमेट पहनने के लिए जैसे ही शिवम ने चश्मा उतारा तो उसकी आंख को देखकर बृजमोहन जी भी पूछ बैठे "तुम्हारी आंखों में आंसू कैसे..."


"मेरी तो आंख खराब है " शिवम ने रटी रटाई लाइन बोली।

"औऱ मेरी क़िस्मत" बृजमोहनजी ने आंसू पोंछते हुए जवाब दिया।

बृजमोहनजी  आधे घण्टे तक कमरे को बन्द कर सुरभि और उसकी मां से बात करते रहे।
बृजमोहन जी जब बाहर आये तो उनके चेहरे पर सुकून था।उन्होंने शिवम से कहा, "बेटा मुझे वापस  होटल छोड़ दे और हां जो टेलर को शेरवानी फिटिंग के लिए दी थी वो भी शाम को होटल ले आना बाद में"
जिस तरह का माहौल था,  शिवम कुछ पूछ भी नहीं पाया। शाम को शिवम के भी मम्मी पापा  आने वाले थे। जब उनको लेने गया तो  मिनी बस को देख कर थोड़ा हैरान हो गया
"कमाल है... आप ताऊ जी , चाचा , बुआ... सारी फैमिली को ले आये... किसी को नहीं छोड़ा... "
शिवम की मम्मी  ने हंसते हुए जवाब दिया, "रणथंभौर का फैमिली टूर था... सोचा थोड़े राशन के पैसे बचा ले....   इसीलिए आ गए सब के सब.. वेसे भी तू शादी में काम कर करके कितना दुबला हो गया है... इतना हक तो हमारा बनता ही है।"
शिवम का परिवार बहुत ही मिलनसार स्वभाव वाला था, वे लोग कहीं भी जाए महफिले जमा लेते थे, ऐसा ही कुछ सुरभि की शादी में भी उन्होंने कर दिया।
इधर शिवम जल्दी में टेलर से शेरवानी लेकर होटल पहुंचा, वहां उसने देखा रोनित पहले से ही शेरवानी में ही था।
"ये अमेरिका से लाये थे..."   शिवम ने पूछा

"हां " रोनित ने शीशे में निहारते हुए कहा।

शिवम ने रोनित के कंधे पर हाथ रख के कहा ,"ये जच तो बहुत रही , पर तुम्हे पहननी तो वही पड़ेगी जो मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ"

रोनित ने मुस्कराते हुए कहा, "ये तुम्हे ही पहननी है"

शिवम आंसू छिपाते हुए ," नहीं मैं नहीं पहन सकता"

रोनित ने अपने फोन का व्हाट्स अप दिखाया जिसमे उसने इस शेरवानी में एक फोटो सुरभि को भेजी थी, सुरभि को ये शेरवानी ज्यादा पसन्द आई ओर उसने इसी को पहनने के लिए कहा ओर पुरानी वाली शिवम को पहननें के लिए लिखा था। 

रोनित हंसते हुए बोला, "देख लो ..... क्या लिखा है मोहतरमा ने.... आराम से न पहने तो जबरदस्ती पहना देना और आपकी नहीं सुने तो फोन पर मेरी बात करवा देना।।  अब पहननी तो पड़ेगी ही।"
शिवम ने हारकर चुपचाप ड्रेस पहनी। फिर रोनित की फैमिली को गाड़ियों में लेकर होटल से मैरिज गार्डन पहुंच गए। रोनित ने शिवम को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा, उसे अपने साथ रखा। लेकिन शिवम को तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब मैरिज गार्डन में कुछ अजीब देखा  ,"दो दो घोड़ियां... ये सब इंतज़ाम तो मैं ही सम्भाल रहा था इतनी बड़ी गलती कैसे.."

रोनित ने तुरन्त कहा, "जब दूल्हे वाले कपड़े पहने ही है तो घोड़ी भी तो चढ़ना पड़ेगा।"

शिवम के समझ कुछ नहीं आया, "ये सब क्या है..?"
तभी शिवम की मां ने शिवम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..."आज मेरे बेटे की शादी जो है।"

शिवम का मुँह आश्चर्य से खुला ही रह गया।
उसने बड़े असमंजस में पूछा.."किसके साथ..??!!! मेरी मर्ज़ी के बिना ही.."

एक आवाज पीछे से गूंजी वो शिवम के पापा थे , " तुम्हारी मर्जी से ही हो रहा है..." ये कहते हुए शिवम के पापा ने सामने एक बड़ी से एल इ डी की तरफ इशारा किया। जिसपे नाम लिखा था, "सुरभि संग शिवम" फिर वो सब फोटोग्राफ्स भी आये जो उस दिन मॉल में शेरवानी खरीदते वक्त सुरभि ने शक्ल बिगाड़कर लिए थे। शिवम को कुछ समझ नहीं आ रहा था तब रोनित ने हाथ पकड़ा और कहा, "शिवम मेरे भाई... कुछ चीजों पर हमारा वश नहीं होता है, पर इसका मतलब ये नहीं कि हम कोशिश करना छोड़ दे। एमा ...मेरी क्लासमेट... हम बेस्टफ्रेंड से कुछ ज्यादा थे... मैं काफी पसन्द करता था उसे.... मुझे लगा कि मेरे ओवर ट्रेडिशनल परिवार में वह कभी फिट ही नहीं हो पायेगी... और न ही कभी पापा इस रिश्ते को स्वीकार पाएंगे... जो बात दिल में थी... उसे दिल में ही दफन करने की ठान चुका था... पर वो बात निकली मेरी कलम से... मेरे गीतों से.. मेरी शायरियों से... लोगों को  लगता था कि मेरे ब्लॉग में सच्चे प्यार की महक है... और एमा शायद जानती भी थी कि ये सब उसी के लिए है.. अपनी सब रचनाओं के इंग्लिश ट्रांसलेशन बस उसी के लिए किये.... मैं जिंदगी भर इस गम में जीने के लिए खुद को तैयार कर चुका था कि जिस लड़की से इतना प्यार करता था... हर सांस में जिसे याद करता था.. उसे कभी पता भी नहीं चलेगा कि मैं उसके बारे में क्या सोचता हूँ.... फिर तुमसे पहचान हुई। तब लगा कि  हमारी बॉडी शेप ही नहीं..सोच और समझ भी मिलती है... ओर हालात भी... तुम्हारी भेजी गई उस राधाकृष्ण की वीडियो क्लिप को देखकर लगा कि बहुत गलत कर रहा हूँ मैं... दिल में उपजी ये सुंदर भावनाएं शायद भगवान का सबसे खूबसूरत तोहफा है... जिसके कारण पूरी दुनिया ही खूबसूरत दिखने लगती... और मैं पागल इन्हीं का गला घोंटने चला था... एक कोशिश भी नहीं की.... मैंने उस क्लिप को बार बार देखा... फिर एमा को अपने दिल की बात बता ही दी... वो पगली भी मुझसे उतना ही प्यार करती थी जितना की मैं.... बस उस पगली के पास वो वीडियो नहीं पहुंचा था... मैंने अपने प्यार के लिये लड़ना तय किया...मेरी आवाज को मेरे दोस्त... मेरी बहन.... यहां तक कि मेरी माँ ने भी दबाने की कोशिश की.... पर आखिर में मैं पापा को यह समझाने में कामयाब हो ही गया.. कि मैं किसी और के साथ प्यार की कल्पना तक नहीं कर सकता... आपका एक सख्त फैसला जो झुटे अभिमान और शान के लिए लिया गया है वो तीन जिंदगियों में आंसू भर देगा.. पापा समझ गए... उन्होंने बृजमोहन जी को हाथ जोड़कर सब सच बताया... उन्होंने कहा कि मैं भी एक बेटी का बाप हूँ... सुरभि मेरी बेटी जैसी है मैं नहीं चाहता कि सुरभि जिंदगी भर उस प्यार के लिए तरसे जिस पर उसका हक है। मैंने भी बृजमोहन जी से माफी मांगी... पापा ने मेरे दो कजिन्स को शादी के लिए तैयार किया जिनको मेरी जगह शादी करने पर कोई आपत्ति नहीं थी....लेकिन इतने बड़े निर्णय को वो अकेले नहीं ले सकते थे फिर बृजमोहन जी को तुम घर ले गए जहां उन्होंने सुरभि से इस बारे में उन्होंने बात की.... तुम जानते हो सुरभि तब सुरभि ने क्या कहा...??"

शिवम पूरे ध्यान से रोनित की बात सुन रहा था "क्या कहा सुरभि ने"

सुरभि ने कहा... पापा क्या मेरी शादी के लिए लड़का NRI होना जरूरी है?? क्या मेरा किसी और से शादी करना आपके संस्कारों के ख़िलाफ़ है??"
बृजमोहन जी :- "बेटा तुम्हे कोई पसन्द हो तो बताओ... तुम्हारी शादी उसी से होगी..."
सुरभि :- हां मुझे पसन्द है... मुझे आप सब पसन्द हो... मैं चाहती हूँ कि जब आपको खांसी भी आये तो फोन पर हालचाल पूछने की बजाय दवाई देने खुद आ जाऊं... मम्मा की बनाई दीवाली की मिठाई भी सबसे पहले मैं चख के बताऊं..मैं आप से इतना दूर जाना नहीं चाहती... पापा आप जानते हो.. ये शिवम है ना... बहुत प्यार करता है मुझसे ..  शायद उतना ही जितना आप करते हो.. जब से मेरी इंगेजमेंट हुई है... तब से उसने रो रोकर अपनी आंखे खराब कर ली है... वो अपने दिल पर पत्थर रख सकता है, वो खुद की जिंदगी नर्क बना सकता है, वो आंखे खराब भी कर सकता है,,,,,,,,,,,,,,,,,, पर मेरी शादी के मौके पर ऐसी बात आपके सामने करके आपका मूड खराब नहीं कर सकता है... शायद मुझे इतना प्यार करने वाला... आपकी इतनी इज़्ज़त करने वाला कोई और लड़का नहीं मिलेगा... किसी अनजान के साथ इस बन्धन में बंधने से अच्छा है मैं शिवम से शादी करूँ"
फिर क्या था सुरभि के मम्मी पापा दोनो राजी हो गए। उन्होंने ने तुरन्त तुम्हारे घर फोन किया.... कान्हा की कृपा देखो..तुम्हारे घरवालों ने बिना कोई सवाल किये सुरभि की बात तुरन्त मान ली... और सुरभि और तुम्हारे घरवालों ने मिलकर आगे सब प्लान किया"  रोनित ने शिवम को सब सच सच बता दिया।

"मतलब वो व्हाट्सऐप के msg वगैरह .....सब प्लान था.." शिवम की आंखों से अब खुशी के आंसू बह निकले थे।

रोनित ने कान पकड़ते हुए कहा , "वो सुरभि का प्लान था"

शिवम ने चोंकते हुए "पर तुम दूल्हे के वेश में....शादी तो मेरी है ना..."

यह सुनकर तो रोनित मुस्कुरा दिया, "मेरी भी है....एमा के साथ.. बृजमोहन जी जब वापस आये थे ना तुम्हारे साथ..... तो उन्होंने कहा कि शादी सुरभि की भी होगी और रोनित के भी... पर सुरभि की शादी शिवम के साथ होगी और रोनित .....यानी की मेरी शादी एमा के साथ होगी...  उन्होंने पापा से पूछा "अगर आपको आपत्ति नहीं हो तो क्या में एमा का कन्यादान कर सकता हूँ??" पापा और मैं  कुछ बोल ही नहीं पाए, बस उनसे गले लग के रो लिए।"

शिवम :- "तुम एमा को लेकर आये थे..."

रोनित आंसू  पौंछते हुए "जिस तरह से सुरभि की शादी में सारी जिम्मेदारी तुम उठा रहे थे ठीक उसी तरह मेरी शादी में सब जिम्मेदारियां वही सम्भाल रही थे।"

शिवम के चेहरे पर काफी दिनों बाद मुस्कुराहट दिखी, "यार वो तो मेरी ही बहन निकली?"

"ठीक है साले...साहब?? अब मुँह धोकर तैयार होकर आ जाए, वरना शादी के अल्बम का कबाड़ा हो जाएगा।"


शिवम का मन कर रहा था जैसे चिल्ला चिल्ला के भगवान को शुक्रिया कहे, पर उसने अपने दिल पे हाथ रखा और बस इतना ही कहा Thanks कान्हा 

शिवम ने बाथरूम में मुहं धोकर जैसे ही आईने में देखा तो उसकी आंखे फ़टी की फ़टी रह गई, आईने में श्रीकृष्ण दिख रहे थे। शिवम कुछ भी नहीं बोल पाया बस हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। शायद ये शिवम के अंतर्मन का ही कोई अक़्स था या कुछ और... इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता। भगवान शिवम को देखकर मुस्कुराए और बोले , "डरो मत .....तुम खुद को ही देख रहे हो शिवम... और खुद को ही सुन रहे हो... जब इंसान अपने दिल की सुनने लगता... मतलब वो मुझे सुनने लगता है... मुझे शिकायत है आजकल की पीढ़ी से... क्योंकि वो मुझसे शिकायत करती है कि भगवान हमे प्यार क्यों हुआ..... जिस खूबसूरत भावना के लिए कृतज्ञतापूर्वक धन्यवाद कहना चाहिए.... उसी के लिए शिकायत करते हैं। प्रेम से सुंदर कोई भाव नहीं... मुझे जानने का कोई दूजा मार्ग नहीं... अगर मुसीबत दी है तो तुम्हे काबिलियत भी दी है ।    एक बार प्रयास तो करो... तुम्हारा प्रेम अगर निर्दोष हुआ ... तुम्हारा प्रयास अगर सच्चा हुआ तो यकीन मानों मैं कभी तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा। खुद को बदकिस्मत बताना ...मुझे कोसना.... ये सिर्फ तुम्हारे मन की दुर्बलताएँ हैं और कुछ नहीं... .. तुम्हे लग रहा होगा कि तुम्हारी कहानी कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गई है... ऐसा हकीकत में कैसे हो सकता है... पर जब प्रेम निर्दोष हो ... ओर सच्चे मन से कोई प्रेम की राह पर चले... प्रेम को पाने का प्रयास करे...तब मैं खुद उसकी किस्मत में लिख देता हूँ मंजिल प्यार की। राधे राधे।।"

शिवम ने जब हाथ जोड़ कर राधे राधे कहा तो आईने में  खुद को पाया। आज शिवम ने शायद सब पा लिया था। कुछ पाने की इच्छा नहीं बची थी। शिवम ने कोशिस की ,, बिना इस बात की चिन्ता किये कि वो सफल होगा या असफल .... बस सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया ओर अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी ऐसी ही कहानी एमी ओर रोनित की भी थी, इस निर्दोष प्रेम को मंज़िल दिलाने के लिए कभी कभी असल में भी फिल्मों जैसा हो ही जाता है।

            

                तू तबियत से कोशिश तो कर
                  तेरी किस्मत में मैं लिख दूँ
                        मंजिल प्यार की।


प्रिय पाठकों??

              ये कहानी उन लोगों से शेयर जरूर करें जो किसी से प्यार करते हैं। अगर आप भी किसी से प्यार करते है तो दिल का हाल उनको सुना जरूर दे, कहीं देर न हो जाए। क्योंकि भगवान उसी की मदद करता है जो खुद की मदद करता है।