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रौशनी निगल गई....

रौशनी निगल गई....

बदरपुर पहाड़ों पर बसा एक शांत गांव था। गांव के लोगों का जीवन खेती पर निर्भर था। कुछ लोग खेतों के मालिक थे और बाकी उन खेतों में मज़दूरी करते थे।

गांव के अधिकांश मर्दों को दारू पीने की बुरी आदत थी। दिन भर मेहनत कर जो कमाते थे उसमें से एक बड़ा हिस्सा दारू की भेंट चढ़ जाता था। जो थोड़ बहुत बचता था उसमें घर चलाना औरतों के लिए मुश्किल होता था। औरतें जब इस बात की शिकायत करती थीं तो घर के मर्द नशे में धुत उनकी पिटाई कर देते थे।

औरतों ने भी तय कर लिया था कि वह अब चुपचाप मार नहीं सहेंगी। सबने मिल कर शराब के ठेके के सामने धरना देना शुरू कर दिया। उनकी कोशिश होती थी कि मर्द ठेके से शराब ना खरीद पाएं। औरतों की एकजुटता के कारण शराब ठेके का मालिक भी कुछ नहीं कर पाता था। औरतें कुछ हद तक कामयाब हो रही थीं।

औरतों की इस मुहिम की मुखिया थी पार्वती। उसकी निर्भीकता और साहस के कारण ही औरतें एक जुट हो पाई थीं। औरतों में उसकी धाक जम गई थी। लेकिन उसके पति तेजा और देवर जंगी को उसकी यह हरकत फूटी आँख नहीं सुहाती थी। गांव के मर्द तेजा को ताना देते थे कि अपनी लुगाई को भी बस में नहीं रख सका। उसके कारण गांव की और औरतें भी बिगड़ गईं। तेजा पार्वती से नफरत करने लगा था। बात बात पर उसमें नुस्ख निकाल कर झगड़ा करने लगता था।

आठ बरस पहले तेजा पार्वती को बड़े चाव से ब्याह कर लाया था। पार्वती सुंदर थी। घर के कामों में निपुण थी। आठवीं तक पढ़ी थी। तेजा के दोस्त उसकी इतनी अच्छी किस्मत से जलते थे। तेजा पार्वती को सर आँखों पर बिठा कर रखता था। दोनों में बहुत प्रेम था। चार साल में तीन बच्चे हो गए। परिवार बढ़ने से खर्चे बढ़े।

तेजा को शहर में नौकरी का मौका मिला। पर पार्वती को छोड़ कर वह जाने को तैयार नहीं हुआ। पार्वती ने लाख समझाया पर वह नहीं माना। इसी बीच उसका छोटा भाई जंगी जो शहर में चौकीदारी करता था नौकरी छोड़ कर गांव आ गया। तेजा ने तय किया कि दोनों भाई वहीं रह कर मेहनत करेंगे।

कुछ दिन सब सही चला। दोनों भाई जो कमाते थे लाकर पार्वती को दे देते थे। लेकिन एक दिन गांव में शराब का ठेका खुल गया। गांव के मर्द दिन भर मेहनत करने के बाद शाम को वहाँ जमा होने लगे। शुरुआत में तेजा को दारू पीने की आदत नहीं थी। जंगी ज़रूर रोज़ पीकर आता था। किंतु अपने दोस्तों व जंगी के दबाव के कारण तेजा भी पीने लगा।

जब भी वह पीकर आता पार्वती उसे टोंक देती थी। वह समझाती कि दारू पीना अच्छी आदत नहीं है। वह उससे नाराज़ हो जाती थी। तेजा उसकी मनुहार कर प्यार से उसे मना लेता था। जंगी को उसका अपनी औरत से दबना अच्छा नहीं लगता था। उसका मानना था कि औरत को इस तरह सर चढ़ाना अच्छा नहीं है। तेजा के दोस्त भी उसे इसी तरह भड़काते थे।

धीरे धीरे तेजा बदल गया। अब वह पार्वती के गुस्सा होने पर उसे मनाने की बजाय उससे झगड़ा करने लगा था। बात अधिक बढ़ने पर उसे पीट भी देता था। कुछ दिनों तक पार्वती सब चुपचाप सहती रही। पर वह समझ गई कि चुप रह कर सह लेना इस समस्या का अंत नहीं है। फिर यह समस्या गांव की और औरतों की भी थी। उसने इसके खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए औरतों को एकजुट करना शुरू किया। शराब के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।

औरतों का आंदोलन धीरे धीरे असर दिखा रहा था। इसी बीच गांव में एक नई सनसनी फैल गई। गड़रिया भोला अपनी भेड़ें चराने पहाड़ी पर गया था। उसकी भेड़ें तो लौट आईं किंतु वह नहीं लौटा। गांव वालों ने उसे बहुत तलाश किया पर उसकी कोई खबर नहीं लगी। गांव में तरह तरह की बातें फैलने लगीं। कोई कहता कि किसी डायन ने उसे अगवा कर लिया। कोई कहता कि अपनी पत्नी के कारण तंग आकर कहीं भाग गया। कोई कहता कि एक अदृश्य शक्ति है जो लोगों को वश में कर साथ ले जाती है। जितने मुंह उतनी बातें फैल रही थीं।

अभी भोला का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि पार्वती के जीवन में वह हादसा घट गया।

जब से औरतों का शराब विरोधी आंदोलन सफल हुआ था मर्द ठेके पर दारू नहीं पी पा रहे थे। इससे उनमें रोष था। सभी इसके लिए तेजा के ढीले रवैये को दोष दे रहे थे। उसे उलाहना देते थे कि यदि वह अपनी औरत पर काबू कर पाता तो यह दिन ना देखने पड़ते। इससे तेजा के मन में पार्वती के लिए दिन पर दिन गुस्सा बढ़ रहा था। वह उसके हर काम में कमी निकालता था। बात बात पर उसे जलील करता था। पार्वती कुछ कहती तो मारने दौड़ता। इससे झगड़ा बढ़ जाता था।

उस दिन तेजा और जंगी दिन भर मेहनत करके लौट रहे थे। रास्ते में बंद ठेके को देख कर जंगी बोला कि पहले दारू पीकर दिन भर की थकान मिटा लेते थे। अब इन औरतों के कारण वह भी नहीं कर सकते। तेजा भी बहुत थका था। उसे भी तलब लग रही थी। पार्वती के लिए उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। घर पहुँचते ही उसने खाना मांगा। पार्वती ने दोनों की थाली परोस दी। सालन में नमक कुछ अधिक पड़ गया था। पहला कौर खाते ही तेजा ने थूंक दिया। गुस्से में पार्वती को गालियाँ बकने लगा। पार्वती ने भी दो चार खरी खोटी सुना दी। क्रोध में पागल तेजा ने उसे पीट दिया और पैर पटकता हुआ घर से निकल गया। जंगी भी अपने भाई को मनाने के लिए उसके पीछे भागा। रात भर दोनों नहीं लौटे। पार्वती ने सुबह तक इंतज़ार किया। पौ फटते ही दोनों की तलाश में निकल पड़ी। खोजते खोजते पहाड़ी पर जंगी मिला। बौराया हुआ सा था। जब उसने तेजा के बारे में पूंछा तो बहकी बहकी बातें करने लगा।

"उसे रौशनी निगल गई। बहुत तेज रौशनी थी।"

उसकी बात पार्वती समझ नहीं सकी। लेकिन तेजा को बहुत खोजने पर भी वह नहीं मिला। जंगी अब पगलाया सा घूमता है और ऊटपटांग बकता है।

पार्वती घर के आँगन में घुटनों में सर छुपाये बैठी थी। सांझ ढल चुकी थी। दीया बाती का समय हो गया था किन्तु वह अँधेरे में बैठी थी। बाहर से ज़्यादा अँधेरा उसके भीतर था। वह चिंता में थी कि अब अपने तीन बच्चों को कैसे पालेगी। अब गुजारा करना मुश्किल हो गया है। उसे घर की देहलीज़ लांघ कर मेहनत मजूरी करनी पड़ेगी। घर में दो कमाऊ मर्द थे। एक उसका पति तेजा और दूसरा उसका देवर जंगी। पर वो रात उसके जीवन में सदा के लिए अँधेरा कर गई। आज सोंचती है तो अफ़सोस करती है अगर वह खुद को काबू में कर लेती तो शायद ऐसा न होता।

उस रात जो घटा वह सचमुच अचंभित करने वाला था।

जब तेजा गुस्से में घर से निकला जंगी भी उसके पीछे पीछे चल दिया। तेजा भागता हुआ पहाड़ी पर चढ़ा जा रहा था। जंगी उसे पहाड़ी पर जाने से मना कर रहा था। पर गुस्से में तेजा कुछ सुनने को तैयार नहीं था। पहले तो जंगी डर कर रुक गया। लेकिन फिर अपने भाई के बारे में सोंच डर भुला कर पहाड़ी पर चढ़ने लगा। वहाँ पहुँच कर जंगी ने देखा कि तेजा एक पत्थर पर बैठा है। जंगी ने उसकी मान मनुहार की और घर चलने को राज़ी कर लिया। दोनों चलने ही वाले थे कि तेजा ऊपर देख कर बोल उठा।

"देख तो जंगी अकास में ये क्या है।"

जंगी ने देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। एक गोल सी वस्तु आसमान में उड़ रही थी। उसमें से रौशनी निकल रही थी। जैसे जैसे वो धरती के नज़दीक आ रही थी रौशनी बढ़ती जा रही थी। अचानक रौशनी इतनी तीव्र हो गई की उसकी चमक से आँखें चौंधिया गईं। जंगी बेहोश हो गया। जब होश आया तब न तो वह वस्तु थी और न ही तेजा का कोई अता पता था। जंगी इस हादसे से पगला गया और चिल्लाने लगा " निगल गई, उसे रौशनी निगल गई।"

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