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चक्का जाम

                                   (1) 

दिपेश अपनी मोबाइल में कुछ देखने के बाद पत्नी से पूछता है-
दिपेश :-"रानी वो मेरा morning song किधर गया। किसी ने उसे मेरी मोबाइल से डिलीट कर दिया क्या?" 
रानी :-"मुझे तुम्हारे morning song के बारे में कुछ नहीं पता। खुद देख लो, किधर गया। किसी कोने में पड़ा होगा, ढूंढ लो।" 
दिपेश :-"कोने में पड़ा होगा। ढूंढ लो। अरे वो गाना है। कोई कुत्ता बिल्ली नहीं है जो कोने में दुबक कर बैठा होगा और ढूंढ़ लूँ।" 
रानी :-"नीचे नीचे नीचे,आवाज नीचे। ज्यादा ऊंची आवाज मुझे पसंद नहीं। ये तो तुम्हें मालूम है न?" 
दिपेश :-"बहुत अच्छी तरह से मालूम है।sorry! गलती हो गई रानी।" 
रानी :-"तुम बार बार गलती करते हो,फिर sorry बोलकर पतली गली से निकल लेते हो। भगवान् जाने तुम कब सुधरोगे।" 
दिपेश :-"तुम पतली गली की बात करती हो, यहाँ मेरी हालत पतली हो रही है।अंदर का पूरा चक्का जाम हो गया है।"
रानी:-"तो रास्ता ढूंढ लो। जाम से बाहर निकलो और काम पर जाओ। क्यों मेरे दिमाग का भर्ता बना रहे हो।और हाँ। यहां प्रदूषण नहीं फैलाने का।" रानी अपनी नाक बंद कर लेती है। 
दिपेश :-"आइडिया!" दिपेश के बूझे हुए चेहरे पर थोड़ी चमक आ जाती है। 
रानी :-"कौन सा आइडिया?" 
दिपेश :-"एक काम करो, तुम मेरा morning song गाओ और मैं कोशिश करता हूँ। क्योंकि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।" 
रानी :-"ठीक है ठीक है। चलो अंदर जाआे।" 
दिपेश toilet के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लेता है। 
रानी :-"आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा.... इकरार तेरा.... हाँ आजा हाँ आजा हाँ आजा हाँ आजा हाँ आ...आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा........!" 
रानी की आवाज थम जाती है तो थोड़ी देर बाद पसीने से भींगा हुआ दिपेश toilet से बाहर आता है। 
रानी :-"अरे जाम खुला क्या?" 
दिपेश ना में सिर हिलाते हुए -
दिपेश :-"चक्का जाम...रास्ता चोक।" 
रानी माथा पीट लेती है -
रानी :-"ठीक है, अब तुम जाओ स्कूल, टाइम हो गया।" 
दिपेश लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे में चला जाता है और वह अपने पेट को सहलाने लगता है।उसके चेहरे पर पेटदर्द का एहसास साफ दिखाई दे रहा है।बूझे हुए चेहरे के साथ वह अपना सिर नीचे करते हुए साेफे पर बैठ जाता है। 
                                 
                                     (2) 

छात्र और छात्राएं कक्षा में बैठे हुए हैं।उन्हें अध्यापक का इंतजार है।कुछ छात्र आपस में बातचीत कर रहे हैं। 
जय :-"क्या बात है। बीस मिनट हो गए, पर सर अभी तक क्लास में आए नहीं।" 
युवराज :-"कहीं सर अपनी रानी के साथ रोमांस में तो व्यस्त नहीं हो गए।" 
अर्पित :-"अबे सालों। अपनी रोमांस तो वो सामने बैठी है। अब ये सोचो कि अपना टांका कैसे भीड़े। कोई टेक्नीक बता यार।" 
युवराज :-"अबे मेरे पास टेक्नीक होता तो मैं ना कर लेता।तुझे क्यों देता।" 
तभी जय एक कागज का टुकड़ा साक्षी की तरफ फेंकता है। साक्षी उस कागज की तरफ देखती है।युवराज व अर्पित जय की तरफ आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहे हैं- आखिर उसने एक लड़की की तरफ लव लेटर फेक कर हिम्मत वाला काम जो किया था। 

ठीक इसी समय कक्षा में दिपेश सर प्रवेश करते हैं। 
सभी बच्चे एक साथ बोलते हैं:-"गुड मॉर्निंग सर!" 
दिपेश :-"यह हिन्दी का कक्षा है इसलिए हिन्दी में बोलो।" 
सभी बच्चे :-"शुभ प्रभात सर!" 
दिपेश :-"सुप्रभात!" 
दिपेश :-"हां तो आज हमें कबीर दास के दोहे पढ़ने हैं, ठीक।"
बच्चे :-"जी सर" 
दिपेश :-"एक बार कबीर दास के पेट में कब्ज हो गया, तो वे बैद्य के पास गए।जानते हो बैद्य ने क्या किया?" 
बच्चे :-"हमें नहीं पता सर" 
दिपेश :-"इतना भी नहीं पता। अरे बेवकूफ़ों, बैद्य ने कबीर दास को दवा दिया!" 
बच्चे :-"ओह!!!" सभी बच्चे हंसने लगते हैं। 
जय:-"मगर सर हमें कबीर दास की आत्मकथा नहीं, बल्कि कबीरदास के दोहे पढ़ने हैं।" 
अचानक दिपेश के पेट में दर्द उठता है और वह अपने पेट को पकड़ लेते हैं ।
जय:-"क्या हुआ सर??? तबियत तो ठीक है???" 
युवराज :-"सर दवा ले आऊँ क्या???" 
दिपेश :-"नहीं नहीं। मेरी दवा तो बस मेरा मार्निंग सांग है। वो अअ आजा अअ आजा, आजा आजा....कहीं मिलेगा क्या? "
युवराज :-"सर ये गाना तो यू ट्यूब पर मिल जाएगा।" 
दिपेश :-"तो लगा दो। मेरे पेट का रास्ता जाम हुआ पड़ा है। टैक्सी कार वाले बिना मतलब हार्न बजा रहे हैं। प्रदूषण बेवजह फैल रहा है। आ जाओ इधर toilet के पास, आ जाओ।" 
युवराज अपनी नाक बंद कर लेता है। 
युवराज यू टयूब पर गाना बजाता है और दिपेश तिवारी toilet में घुस जाते हैं। 

उधर साक्षी जय के द्वारा फेंके गए कागज को उठाकर पढ़ती है और मुस्कुरा कर जय की तरफ देखती है और एक फ्लाइंग किस देती है।जय खुशी के मारे बेहोश होते होते बचता है।आज का दिन उसके लिए सबसे बड़ा दिन साबित हुआ है।जय और साक्षी एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे हैं। दोनों नैन मटक्का कर रहे हैं जबकि जय के करीब में बैठा अर्पित जल भुन कर राख हुआ जा रहा है।

वहीं यू ट्यूब का गाना खत्म होते ही दिपेश तिवारी मुस्कुराते हुए toilet से बाहर निकलते हैं।चेहरे पर सुकून है, शांति है।आकर अपने चेयर पर बैठ जाते हैं।कुर्सी पर बैठते ही उन्हें झपकी आ जाती है- नींद के आगोश में खर्राटे भरने लगते हैं। 

सभी बच्चे दिपेश सर की तरफ देखकर कुछ इशारा कर रहे हैं फिर माथा पीटकर क्लास से बाहर चले जाते हैं। क्लास बिल्कुल खाली।शांत बटा शन्नाटा।केवल दिपेश की नाकों से निकलता खर्राटा पूरे कक्षा में शोर मचा रहा है। 

अचानक दिपेश की आंखें खुल जाती हैं।दिपेश उठता है अंगड़ाई लेता है और ब्लैक बोर्ड पर जाकर एक दोहा लिखता है -
दिपेश :-"इस दोहे का अर्थ कौन बताएगा???" 
कोई जवाब नहीं। कोई फुसफुसाहट नहीं। 
दिपेश तिवारी विद्यार्थियों की तरफ मुखातिब होते हैं, पर सारे बच्चे गायब।अचम्भित!!! 

                                      (3) 

क्लास के बाहर जय और अर्पित खड़े हैं।दोनों आपस में बहस कर रहे हैं।उनकी बहस का विषय कक्षा की सबसे खूबसूरत लड़की साक्षी है। 
                             
अर्पित :-"जय तुम ठीक नहीं कर रहे हो।" 
जय :-"क्या ठीक नहीं कर रहा हूँ?" 
अर्पित :-"यही कि साक्षी पर तुमसे पहले मेरा दिल आया था। मगर तुमने मेरे साथ धोखा किया है। अच्छा होगा कि तुम उसे भूल जाओ।" 
जय :-"देख भाई हम दोनों दोस्त हैं। एक लड़की के लिए हम आपस में क्यों लड़े।" 
अर्पित :-"वही तो मैं भी बोल रहा हूँ!" 
जय :-"तो ठीक है। दोस्ती की खातिर तुम मेरे और साक्षी के बीच से निकल जाओ!" 
अर्पित :-"अबे मैं क्यों निकलूं। तू निकल ले बेटा। वर्ना...." 
जय :-"क्या वर्ना, आँ क्या वर्ना... तू मुझे मारेगा???" 
अर्पित :-"अबे महाभारत भी एक औरत की खातिर हुआ था। राम और रावण के बीच युद्ध का कारण भी एक औरत ही थी। आज भी 90% हत्याएं औरतों के पीछे ही होती हैं।" 
जय :-"तो इसका मतलब, तू मेरी हत्या करेगा....." 
ठीक इसी समय वहाँ से साक्षी गुजरती है और वह अर्पित व जय की तरफ देखकर मुस्कुराती है और आगे बढ़ जाती है। अर्पित साक्षी के पीछे भागता है -
अर्पित :-"Excuse me" 
साक्षी :-"बोलो" 
अर्पित :-"साक्षी। जय एक नंबर का लफंगा है। उसके झांसे में मत आना। वर्ना वह तुमको बर्बाद कर देगा। अरे मुझे देखो। मैं पढ़ने में होशियार हूँ। फुटबॉल में नंबर वन। क्रिकेट में चौके छक्के की बारिश करता हूँ। बॉलिंग करता हूँ तो क्रिकेट के धुरंधर बल्लेबाज भी पिच छोड़कर अपनी मम्मी की गोदी में जाकर बैठ जाते हैं......."

अर्पित जैसे ही मुड़ता है तो साक्षी गायब। वह इधर-उधर देखता है - दूर खड़ी साक्षी जय के साथ आइसक्रीम खा रही है और जोर जोर से हंस रही है।अर्पित माथा पकड़कर जमीन पर बैठ जाता है।अब तो उसकी रोनी सूरत देखने लायक है।
                         
दूर झाड़ियों के पीछे युवराज खड़ा है।वह अर्पित और जय के बीच चल रहे नयन मटक्के वाले नटखट खेल को बड़े गौर से देख रहा है-जय साक्षी के साथ आइसक्रीम खा रहा है तो अर्पित घुटनों के बल बैठकर अपना माथा पीट रहा है और खुद की किस्मत को कोस रहा है।
ऐसे अवसर पर युवराज कुछ अलग ही सोच रहा है:-"अच्छा मौका है। जय और अर्पित दोनों साक्षी के लिए आपस में लड़ रहे हैं। इस बीच मैं दीया को पटा लेता हूँ।" 

ठीक इसी समय उधर से दीया गुजरती है तो युवराज दौड़कर उसके पास जाता है -
युवराज :-"हाय दीया।" 
और दीया को एक फूल भेंट करता है। दीया फूल को लेती है और मुस्कुराती है।वह एक अदा बिखेरती हुई आगे बढ़ जाती है। 
दूर घुटनों के बल बैठा अर्पित आश्चर्य भरी निगाहों से युवराज की तरफ देख रहा है।

                                      (4) 
                      
एक विशाल पार्क के एक कोने में युवराज व दीया बैठे हुए हैं। दोनों एक-दूसरे की तरफ देख रहे हैं। युवराज शर्मा रहा है। काँपते हाथों से दीया का हाथ पकड़ता है। युवराज के माथे पर पसीने की बूंदें आ जाती हैं। 
युवराज :-"तुम्हारा नाम दीया बहुत प्यारा है।" 
दीया :-"और तुम्हारा नाम अर्पित भी बहुत प्यारा है, lovely ।" 
युवराज :-"मेरा नाम अर्पित नहीं, युवराज है युवराज।" 
दीया :-"क्या ! Sorry... मैं जरा भूलक्कड़ हूँ। तुम्हारा नाम लिख लेती हूँ।" 
दीया युवराज का नाम अपनी मोबाइल में लिख लेती है फिर फोटो लेने लगती है -
युवराज :-"अरे रूको तो सही। एक सेल्फी ले लेते हैं।" 
दीया :-"नहीं ये तो तुम्हें पहचानने के लिए फोटो ले रही हूँ। कई बार मैं लोगों की शकल भूल जाती हूँ।" 
युवराज :-"अपने मम्मी पापा को तो याद रखती हो न।"युवराज मजाकिया अंदाज में बोलता है। 
दीया (शर्माते हुए) :-"हाँ । कई बार मैं मम्मी को पापा और पापा को मम्मी समझ लेती हूँ। बचपन में तो मैं पापा का दूध पीने लगती थी मम्मी समझकर!" 
युवराज :-"क्या!!!"  Surprisingly!  युवराज आंखें फाड़कर दीया की तरफ देख रहा है। 
इसी समय दीया की मोबाइल पर रिंग बजती है...
दीया :-"मम्मी का फोन आ रहा है। अभी मैं चलती हूँ।" 
युवराज दीया की मोबाइल में झांकते हुए -
युवराज :-"दीपक शर्मा... ये तो किसी मर्द का नाम है।"
दीया :-"दीपक किसी मर्द का नाम होता है???" 
युवराज :-"हाँ" 
दीया :-"तो फिर पापा का फोन है। मैं चलती हूँ। कल मिलते हैं। इसी जगह ठीक चार बजे। याद रखना।" दीया तेज कदमों से चली जाती है। 
युवराज सोचता है :-"मुझे तो याद रहेगा। अच्छा होगा कि तुम्हें सब कुछ याद रहे।कहीं कल तक तुम मुझे ही ना भूल जाना।" युवराज रोनी सूरत बना लेता है। 

                                      (5) 
                     
युवराज चलते हुए कहीं जा रहा है तभी अर्पित उसका रास्ता  रोकता है -
अर्पित :-"युवराज!"  युवराज रूक जाता है। 
अर्पित युवराज के करीब आता है -
युवराज :-"बोलो "
अर्पित :-"तुमने तो यार कमाल कर दिया। दीया को कैसे पटा लिया, आँ।" 
युवराज :-"भई ये तो हाथ की सफाई है। मेहनत किया और उसका फल ऊपर वाले ने मुझे दे दिया।" 
अर्पित :-"यार ऊपर वाले ने तुझे तेरी मेहनत का फल दे दिया। जय को उसकी मेहनत का फल दे दिया। मगर ऊपर वाला मेरी मेहनत का फल मुझे कब देगा।" 
युवराज :-"भई। ये तो अपनी अपनी किस्मत है। अब मुझे देखो। मैं कल चार बजे राजा पार्क में दीया से मिलने जाने वाला हूँ।उसने खुद मुझे बुलाया है। अच्छा चलो अब मुझे कल की तैयारी भी तो करनी है ना।" 
युवराज तो वहां से चला जाता है मगर अर्पित किसी गहरी सोच में पड़ जाता  है।

                                      (6) 
                         
युवराज अपने ड्राइंगरूम में ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा है।वह कपड़े पहनकर अपने बालों में कंघी कर रहा है,कपड़ों पर सेंट छिड़ककर बाहर निकलता है तभी उसकी मोबाइल पर अर्पित का फोन आ जाता है -
युवराज :-"बोल अर्पित।" 
अर्पित :-"यार बहुत अर्जेंट है , बस दस मिनट के लिए तालाब के पास आ जाओ ना। हजार रूपए तुमसे ऊधार लिया था वो भी वापस करना था।" 
युवराज :-"क्या बात है मेरी तो नसीब जग गई। डूबा हुआ पैसा मुझे वापस मिल रहा है। हाँ मैं आ रहा हूँ, मेरा इंतज़ार करो।" 

                                     (7) 
                          
उधर पार्क के अंदर दीया एक बेंच पर आकर बैठ जाती है। तभी वहाँ अर्पित पहुँचता है।
अर्पित :-"हाय दीया। How are you.." 
दिया :-"एकदम फाइन।" 
अर्पित :-"टाइम पर पहुँचा ना।" 
दीया :-"हाँ। मगर तुम....." कुछ सोचते हुए। 
अर्पित :-"हाँ मैं युवराज। भूल रही हो क्या? अभी कल तो मिलकर गए हैं यहीं पर।" 
दीया :-"हाँ यस यस। बैठो बैठो।" 
अर्पित दीया के करीब बैठ जाता है और फिर धीरे धीरे खिसकते हुए वह दीया के बेहद करीब चला जाता है। वह अपना एक हाथ दीया के कंधे पर रख देता है। दीया अर्पित के हाथ को अपने कंधे से हटाती है और मुस्कराते हुए बोलती है-
दीया: -"जरा ठहरो तो सही, अभी दो मिनट पहले आए हो और दो सेकंड में शुरू हो गये, दो मिनट बातें तो कर लें। "
अर्पित: -"बात करने का टाइम अपने पास नहीं है, कहीं वो आ गया तो........ "
दीया: -"कौन आ जाएगा? "
अर्पित घबराते हुए बोलता है-
अर्पित: -"कोई भी। आखिर सार्वजनिक स्थान पर हम बैठे हैं। "
दीया: -"तो क्या चाहते हो तुम? "
अर्पित: -"फुल एंड फाइनल.... टाइम नहीं है अपने पास... "
दीया: -"कल तो बोल रहे थे टाइम ही टाइम है मेरे पास। आराम से बैठेंगे और ढेर सारे गप्प सड़ाके करेंगे। "
अर्पित: -"मैने ऐसा कहा था! "
दीया हंस पड़ती है-
दीया: -"वाह, कमाल है। एक दिन में ही सब कुछ भूल गए। तुम तो मुझसे भी बड़ा भूलक्कड़ निकले। "
अर्पित: -"द द दीया दरअसल.. बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेहि...मेरी ये फिलासफी है! "
दीया: -"बड़ी अच्छी फिलासफी है तुम्हारी! "
अर्पित: -"तो शुरू हो जाएं "
दीया: -"थोड़ा इंतजार करना सीखो। क्योंकि धैर्य का फल मीठा होता है। "
अर्पित: -"दीया मेरी बात को समझो। मेरे पास इंतजार का टाइम नहीं है, वैसे भी जब मीठा फल सामने हो तब धैर्य भी तेल लेने चला जाता है....... "
ठीक इसी समय वहाँ युवराज पहुँच जाता है। गुस्से से उसकी आंखें लाल हुई जा रही हैं। वह अर्पित के ऊपर चीखने लगता है-
युवराज: -"क्या इंतजार नहीं हो रहा है तुझसे, हाँ बोल..... "
अर्पित के चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है। उसके हलक से शब्द बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.......दीया कभी युवराज को देखती है तो कभी अर्पित को। उसके माथे पर उभर आईं सिलवटें उसके अंतर्द्वंद को प्रदर्शित कर रही हैं-अर्पित अपने आखिरी दाव को अपनाता है और वहाँ से भाग खड़ा होता है। युवराज अपने दांतों को चबाता हुआ अर्पित को एकटक घूरे जा रहा है जो थोड़ी ही देर में उसकी आँखों से ओझल हो जाता है।