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मजदूर बाजार

भीड़ में हलचल मच गई। सोनेलाल जब भी आता है, सब उसे जिज्ञासा से देखने लगते हैं। मंजरी चहक गई। सुरती ने चुटकी लेते हुए कहा, “देख तेरा यार आ गया” मंजरी ने झिडकते हुए कहा- हट ! तुझे हमेशा शैतानी ही सूझती है। लेकिन मंजरी खुश है।

महानगर के इस चौराहे पर हजारों हजार की संख्या में मजदूरी के लिए लोग खड़े रहते हैं। इनमें मर्द भी होते हैं और औरते भी। मर्द को कुली और औरतों को रेजा बोलते हैं। मजदूरों की इस मंडी में सुबह सात बजे से भीड़ जुटने लगती है। मजदूर भी आते है और उनको काम पर ले जाने वाले लोग भी। मोल-भाव भी खूब होता है। प्रति दिन मजदूरों की कीमत तय होती है, कुछ-कुछ जैसे डीजल पेट्रोल जैसा। वैसे सरकार की न्यूनतम मजदूरी तय है, पर यहाँ तो काम ही मिलना अनिश्चित है।

सब जानते हैं, सोनेलाल किसी से बात नहीं करता है। कहाँ जाना है और क्या करना है, वह सिर्फ मंजरी को बताता है, और मंजरी सभी मजदूरों को। लालपरी बोली, “अरे जाएगी? या चोन्हा लगाएगी?” साथ की सभी रेजा हँसने लगीं। मंजरी इस चुहल का बुरा नही मानती है। रेजा-सब को अक्सर गलत लोगों का सामना हो जाता है। मुंशी और मिस्त्री की नजरें तो हमेशा इनको घूरती ही रहती हैं। पर हद तो तब हो जाती है, जब काम वाली जगह का मालिक नजरों और बातों से नोचने लगते है। लालपरी तो एक बार बुरी तरह आफत में पड़ गई थी। लाट के कुली साथ नही थे। ठीकेदार का मुंशी बोला कि तुम मेरी देह दबाओ। लालपरी ने मना किया तो बोला की इसी का पैसा तुमको मिलेगा, नहीं तो जाओ। लालपरी ने समझदारी से काम लिया और बोली, “मुंशी जी! और कुली सब मजाक उड़ाएगा। मेरी भी इज्जत है, कल हमको सबके साथ मत बोलाईएगा। हम अकेले में तैयार हो के आयेंगे।” मुंशी बात को मान गया. पर दूशरे दिन लालपरी ने उसे ठेंगा दिखा दिया। उसके साथ जाने की कौन कहे, बात तक नहीं की।

सोनेलाल तो कभी कुछ बुरा नहीं बोलता है। गलत का आग्रह नहीं करता है। वह मंजरी को मंजरी जी बोलता है। अपने किसी भी काम की बागडोर मंजरी को ही देता है और सलाह मसबिरा भी करता है। इस बात को लोग गलत अर्थ में लेते हैं। कुछ लोग सोनेलाल की रखैल भी मंजरी को बोलते हैं। पर जो भी हो, सोनेलाल अच्छा आदमी है। सोनेलाल को मंजरी, अच्छी तरह से जानती है और उसके साथ अकेले जाने में भी डरती नहीं है।

सोनेलाल जब मजदूर बाज़ार आता है, तब एक दो नही, कम से कम सौ या इससे ज्यादा मजदूरों की जरुरत पड़ती है। उसके साथ सभी जाने के लिए तैयार रहते है। सोनेलाल काम नही करवाता है, जिंदाबाद और मुर्दाबाद कहवाता है। पूरी भीड़ को पैदल चलवाता है और रुपया देने में खरा है। जितना तय करता है उससे कहीं ज्यादा देता है। सब मिला कर ससम्मान कमाई, इस लिए मजदूर इसके साथ जाने के लिए तैयार रहते है। सोनेलाल राजनैतिक पार्टियों के लिए भीड़ जुटाने का काम करता है।

मंजरी को सोनेलाल यूँ ही मंजरी जी नहीं कहता था। सोनेलाल के लिए मंजरी लक्ष्मी थी। सोनेलाल जब बेरोजगार था, और उसके दिमाग में आया की क्यों न राजनैतिक पार्टियों के लिए भीड़ इकट्ठी करने का काम किया जाये। इस काम को सुन कर दोस्तों और सम्बंधियो ने तो भरपूर मजाक उड़ाया पर फिर भी इस काम को करने के लिए वह आगे बढ़ा। दुविधा की स्थिति में वह मजदूर बाज़ार पहुंचा था। उसने राम रहीम पार्टी के संस्थापक, अध्यक्ष, स्वरुप राय से पांच सौ लोगों की भीड़ जुटाने के लिए पैसा भी ले लिया था। सोनेलाल का यह पहला काम था। स्वरुप राय जी अपनी जाति के स्वयंभू नेता थे। चुनाव हमेशा किसी दल से तालमेल कर के लड़ते थे. बातें लम्बी-लम्बी करते थे। टीवी मिडिया सब मैनेज कर के रखते थे। फिर भी दुसरी पार्टियों पर दबाव बनाने के लिए और अपनी पहचान कायम रखने के लिए उन्हें सम्मेलन और पर प्रदर्शन करते रहना पड़ता था। पिछले सम्मेलन में तीस लाख खर्च कर मात्र पांच सौ लोग को भी उनके कार्यकर्ता नहीं जुटा पाए। उनके कार्यकर्ता उनके आगे पीछे ही मडराते रहते थे और जम के पैसा ऐंठते थे। स्वरुप जी ने ही सोनेलाल को दिमाग दिया था, कहा था, “सोनेलाल इस काम को करो और ध्यान रखना कि दुसरे लोग ये न जान पायें कि ये कार्यकर्ता नहीं, मजदूर हैं। सवरूप जी से प्रति व्यक्ति छ: सौ तय हुआ था। सोनेलाल का ये पहला काम था। सोनेलाल किसी तरह की कमी नहीं रखना चाहता था अपने काम में। अपने व्यवसाय को सफल बनाने के लिए वह नियत दिन से सप्ताह दिन पहले ही मजदूर बाज़ार पहुँच गया मुयायना करने। सोनेलाल को पांच सौ मजदूरों की जरूरत थी. लेकिन पांच सौ मजदूरों को एक जगह इकट्ठा करना उसे सहज नहीं लगा। दो चार मजदूरों से उसनें जब उसने बात की तो इस तरह घूरने लगे जैसे कोई पागल इस मजदूर बाज़ार में आ गया हो?

लेकिन मंजरी ने इस बात को समझा, बोली “थोड़ा समय लगेगा.” सोनेलाल ने उसे बताया कि उसे कब जरूरत है। मंजरी बोली, एक सप्ताह तो काफी अधिक समय है। मैं सबको समझा लुंगी. और सचमुच मंजरी ने मजदूरों में से कुली रेजा मिला कर पांच सौ की संख्या को तैयार कर लिया था. मजदूरों में झिझक थी, कि आखिर ये कैसा काम है? मंजरी ने समझा दिया कि ये भी नये तरीके की मजदूरी है। तुम लोग आजाद पार्क मैदान में जुट जाना, वहां सब कुछ समझा दिया जायेगा।

आजाद पार्क मैदान में सभी मजदूर जुट गए थे। सोनेलाल ने रजिस्टर पर सबका नाम लिख कर हाजरी बनाया। बोला, “भाइयों यह आपलोग के लिए नया काम है. आपलोग घबराइएगा नहीं. कोई पूछे तो यह भूल कर भी नही बताइयेगा कि हम लोग पैसा लेकर सम्मेलन में जा रहे है। जो लोग उल्टा सीधा बोलेगा और मेरे कहे के अनुरूप नही करेगा, अगली बार उसे काम नहीं मिलेगा। मजदूरों को ये भी बता दिया गया कि नारा लगते हुए चलना है। मंजरी जी, जो बोलेंगी उसी को पीछे पीछे बोलना है।

सम्मेलन स्थल में कतार में सलीके से सोनेलाल के लोग नारा लगाते हुए पहुंचे, तो स्वरुप जी का सीना चौड़ा हो गया। अपना कार्यकर्ता तो अभी पहुचे ही नहीं थे, पर कोई बात नहीं, पांच सौ की भीड़ कोई कम नहीं होती है। स्वरुप जी ने भाषण देना शुरू किया। बीच बीच में सोनेलाल के ताली बजाते ही, सभी मजदूर ताली बजाने लगते थे। चाय और खाना भी मिला था। सम्मेलन के समापन पर स्वरुप जी ने सोने लाल को गले लगा लिया था।

सोनेलाल का उत्साह बढ़ गया था। मंजरी भी सूझ बूझ की पकी थी। धरना प्रदर्शन के लिए किसी भी पार्टी के लिए दो सौ लोगो का लिस्ट उसके पास तैयार था। कब क्या बोलना है, और कब क्या करना है, इस बात को सहज ही समझ जाती थी। टीवी वाले अक्सर उल्टा सीधा सवाल पूछने लगते थे। थोड़ा सा चूक हुई कि कब कौन क्या उल्टा-पलटा बोल दे। सनीचरी पिछली बार सब गुड़ गोबर कर देती, अगर सही समय पर मंजरी नही पहुंचती। हुआ ये कि टीवी वाला लौंडा सनीचरी को पकड़ के पूछने लगा, पिछली बार तो आप आरी का प्रचार कर रही थी, इस बार कुल्हाड़ी का क्यों? सनीचरी घबरा गई, “बोली आपको क्या, हम किसी का प्रचार करेंगे।” सनीचरी को क्या पता कि ये लौंडा पूरा देश को उसकी बोली को सुनवा देगा और बता देगा की ये भाड़े के मजदूर थे। पर मंजरी पहुंच गई और बोली, “हम लोग गरीब लोग है। पार्टी जो मेरे लिए काम करेगी, उसके लिए हम लोग काम करेंगे। आरी काम करेगा तो आरी को वोट देंग, कुल्हाड़ी मेरी बात करेगा तो उसका प्रचार करेंगे। ई सब का ध्यान रखना होता था, नहीं रखने पर सब काम गड़बड़ा जाता है। मंजरी का कहने का ढंग ही कुछ ऐसा ही कि सुनने वाले प्रभावित हो जाते हैं।

सोनेलाल के पास इतराती मंजरी आकर खड़ी हो गई। सोनेलाल ने कहा, “मंजरी, सेक्रेट्री साहब को सौ आदमी चाहिए। एक दिन के लिए. मुझे हजार रुपया मिलेगा। तुम्हें सात सौ के हिसाब से दूंगा। तुम पांच सौ के हिसाब से सौ आदमी को ठीक कर लो। लेकिन वैसे आदमी, जिनको खेती बाड़ी का अनुभव हो। जो जरूरत पड़े तो कुछ खेत खलिहान की भी बात कर सके। सब को समझा देना साहब लोग जैसा चाहेगा वैसा बोलना है। साहब के गलत में भी हाँ कहना है और सही में भी।

दरअसल दिल्ली से कुछ बड़े बड़े अफसरान गांव की समस्या और मजदूर और किसानों से बात करना चाहते थे, मगर एक सप्ताह के समय देने के बाद भी मीटिंग में आने वाले ग्रामीणों की लिस्ट नहीं बन सकी। ग्रामीण मजदूर और किसान आते भी तो कैसे? गेहूं की कटनी जो चल रही थी। सेक्रेट्री साहब चिंतित थे, अपने अधीनस्थ पदाधिकारी से बोले, “यार हम लोग सौ लोग को भी नहीं जुटा सकेंगे? कैसे इज्जत बचेगी?” एक पदाधिकारी सोनेलाल को जानता था, बोला, “सर सिर्फ भीड़ जुटाने से काम चल जायेगा तो ओ तो हो सकेगा.” सेक्रेट्री साहब बोले, “और नही तो क्या भीड़ ही तो जुटानी है.” साहब थोड़े सबको पहचानते हैं। अरे बोल दिया जायेगा कि सौ गांवों के प्रतिनिधि है। पदाधिकारी ने सोनेलाल को फोन किया और हजार रूपये के हिसाब पक्का हो गया। सेक्रेट्री साहब ने कह दिया, रात का डिनर कर दो सिर्फ कागज पर और उसी का पेमेंट कर देना। किसी होटल से हज़ार रूपये प्लेट का बिल ले लेना।

राजनैतिक मजदूरी में अब थोड़ा और नयापन लाना चाहता था सोनेलाल। मंजरी से वह अपने नये काम के सिलसिले में मिलने आया था। अगले महीने होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए स्वरुप जी ने उसे एक महीने का काम दिया था। इस में कई तरह के काम थे। एक काम था कि सभा में सौ आदमी ऐसा रहेगा जो भाषण के बीच-बीच में स्वरुप जी जिंदाबाद बोलेगा। ये ऐसे लोग होंगे जो पूरे विधान सभा में घूम फिर करेंगे। आवश्यकता के अनुरूप कार्यकर्ता भी बन जायेंगे। एक टीम लोक गीत गाने वालों की होगी। मजदूर लोगों में बहुत ऐसे लोग हैं जो गाना-बजाना अच्छा करते हैं। उनलोगों की टीम गीत गाएगी। गाने में रेजा का टीम अलग रहेगा और कुली का अलग। औरत और मर्द अलग अलग टीम में प्रचार करेंगे।

काम तो बढियां था। एक महीने का लगातार काम मिलना साधारण बात नहीं है, मजदूरों के लिए और उसमें भी ईंट बालू और गारा सीमेंट से दूर, साल में 365 दिन काम मिलने लगे, तो कभी फांकें की नौबत नहीं आएगी मजदूरों के लिए। बच्चे भी अच्छा से पढ़ लेंगे। सरकारी स्कूल में ही सही। पर 365 दिन काम मिलता कहाँ है। गांव देहात में तो काम की स्थिति और भी बुरी है। खेती बाड़ी करने वाले किसान सिर्फ कहने के लिए किसान हैं। खेती का लागत जोड़ दिया जाये तो मजदूरी भी नहीं निकलती है। जरूरत पर अलग से मजदूर रखते हैं, पर इनकी स्थिति इतनी दयनीय होती है की मजदूरी क्या देंगे। सरकारी योजनायें कागज पर चलती हैं। मनरेगा का सारा काम मशीन लगा कर करा लिया जाता है। कागजी मजदूरों का भुगतान दिखा दिया जाता है। सब फर्जी. नये अधिकारी, पदाधिकारी, इतने गवांर है कि कभी-कभी उनके बुद्धि पर भी तरस आता है। प्रशासनिक आयोग से चयनित लडके साहब तो बन जाते हैं पर संस्कार बिहीन। बूढ़े दादा जैसे लोगों से भी तुम-ताम करते हैं और जाहिल गंवार समझते है। प्रखंड में किसानों की मीटिंग में एक अधिकारी बोल रहे थे, “कृषि से अच्छा कोई काम नहीं है। एक बीज लगाइए, और सौ पाइए। यानि सौ गुना फायदा. इसको कौन समझाए की दाल रोटी चलना भी मुश्किल है खेती से।

सोनेलाल ने मंजरी से कहा, “कुछ बोलना भी सिख लो। माइक पकड़ कर जैसे दिल्ली वाली नेताइन बोल रही थी, उसी तरह। आँख मटका मटका, हाथ चमका चमका। तरह तरह की टीम रहेगी तो पैसा ज्यादा आएगा। मंजरी बोली, “नेता लोग तो अपने माइक पकड़ लेता है तो छोड़ता नहीं हम से कौन बोलवायेगा?” सोनेलाल बोला, “आज कल का ट्रेंड है, यूज एंड थ्रो। इस्तेमाल करो और फेंको।” आम का पेड़ लगाने वाला लगाएगा, लेकिन आम तो वही खायेगा जिसको खाने की औकात है। आज कल बाज़ार में सभी कुछ बिकता है। रिश्ता नाता तक बिकता है। दिमाग है, तो मस्ती में रहोगी, पर हृदय है तो परेशान रहोगी। आज के दिन में दिमाग रखो, हृदय नही। आज के दिन में राजनीति एक दुकानदारी है। सधुगिरी एक दुकानदारी है। समाजसेवा एक दुकानदारी है। सोनेलाल बोल रहा था और मंजरी उसका मुंह देख रही थी टुकुर-टुकुर। सोनेलाल बोलता सच है। बोलने से पैसा बढ़ जायेगा। गीत गाने से पैसा बढ़ जायेगा। मंजरी मजदूरी का रूप ऐसा कभी नही सोची थी, पर आज देख रही थी, स्वयं भी शामिल थी। सभी दल के लोग अब कार्यकर्ता के बल पर नही, पैसा के बल पर चुनाव जितना चाहते हैं। यूज एंड थ्रो। सोनेलाल और मंजरी राजनीति की हर जरूरत को पूरा करेंगे। प्रचार भी करेंगे। भाषण भी देंगे, नुक्कड़ नाटक भी करेंगे, और लोकगीत गा कर जनता को रिझाएंगे भी। राजनीति में जिसने सत्ता पा लिया वह इससे अलग नहीं होना चाहता है। सारा कर्म कुकर्म के बाद भी वह वही बना रहना चाहता है। चुनाव आयोग एक सीमा तक खर्च की इजाजत देता है, पर ये राजनीति के जोंक उससे ज्यादा खर्च कर कर के चुनाव जीतते हैं। चुनाव में सम्विधान तोड़ते हैं। बेशर्मी की हद तो तब होती है, जब ये शपथ लेते है, कि मैं सम्विधान को अक्षुण्ण रखूंगा और बदले की भावना से कोई काम नही करूंगा।

सोनेलाल के कहे अनुसार मंजरी की टीम तैयार है। साठ के आस-पास औरत और चालीस के आस-पास मर्द। औरतों के घर से कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। अकेले रहने पर शायद होता, पर ग्रुप में कोई दिक्कत नही। ढोलक झाल बजा कर जब औरते लोकगीत गातीं हैं तो ऐसा आकर्षक शमां बंध जाता है की देखने वालों की भीड़ लग जाती है।

आज स्वरुप राय जी का सभा है। इस सभा में औरतों की लोकगीत की इतनी शानदार प्रस्तुति रही कि स्वरुप जी बाग बाग हो गये। उन्होंने धीरे से सोनेलाल के कान में कहा, “बहुत सुंदर, चुनाव जीतने दो। तुमको और काम दूंगा। स्वरुप राय जी जानते है, “अपना कार्यकर्ता सब खूब खुशामद करवाता हैं। एक को सम्भालो तो, दुसरा बिधुक जाता है। खर्च भी खूब करवाता है सब। चुनाव तो पैसों का खेल है, पर वैसे दिखाता है सब, जैसे स्वरुप जी उसी सब के बल पर चुनाव जीतते है.” ये मजदूर काम भी जम कर करते हैं और कोई गिला शिकायत भी नही।

स्वरुप जी चुनाव जीत गये। बेशर्मी से शपथ भी लिए। सोनेलाल उनके बहुत करीब पहुँच गया। लेकिन सोनेलाल को तज्जुब हुआ कि सत्ता के गलियारे में यौन मजदूरों की बहुत ज्यादा मांग है। एक मंत्री तो सोनेलाल को यौन मजदूर सप्लाई के लिए पूछ बैठा, “क्या तुम लडकी भी पहुंचाते हो?” सोनेलाल को आज पता चला की इस तरह के मजदूरों की बहुत मांग है, पसंद आने पर मुंहमांगा दाम। सोनेलाल आज भौंचक है। तरह तरह की मजदूरी का रूप देखा था, पर सोनेलाल के लिए ये मजदूरी घिनौनी लगी। वह हर तरह के काम के लिए मजदूर लायेगा अपनी टीम मजबूत करेगा, पर यौन मजदूरों का टीम कभी नही बनाएगा। हर तरह के काम के लिए मंजरी को कहता था, पर इसके लिए कैसे कहेगा?

नैतिकता का आवरण को उतारे बिना सोनेलाल के लिए ये मुश्किल है। उस दिन स्वरुप जी के करीबी नौजवान मंत्री राही जी ने सोनेलाल को एक निजी पार्टी में आमंत्रित किया. लेकिन हिदायत दिया कि इस बात को किसी को भी मत बताना, एकदम गोपनीय पार्टी है।

सोनेलाल गोपनीय पार्टी में गया। मात्र तीन लोगों की पार्टी थी। राही जी, सोनेलाल और राही जी का बिल्डर दोस्त। सोनेलाल को बिल्डर से मिलने का पहला मौका था। राही जी ने परिचय कराया, “नीलू मिलो सोनेलाल से। ये राजनैतिक मजदूरों के सप्लायर हैं. जितना मजदूर चाहिए, तुरत उपलब्ध करा देते है। नीलू मुस्कुराया।

पार्टी शुरू हुई। महंगी विदेशी शराब की बोतल खुली। एक छोटे से स्पीकर पर सेक्सी गाना बजना शुरू हुआ। दुशरे तरफ से कमरे से निकल कर एक युवती लगभग निर्वस्त्र सी नाचने लगी. सोनेलाल के लिए यह नया अनुभव था। सोनेलाल कभी कभी पीने वालों में से था। विदेशी शराब के नशे की खुमारी उस पर भी चढ़ने लगा। फिर उस पार्टी में सब कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिए. शराब शबाब और सब कुछ। बिल्डर नीलू बोला देखो ये भी एक तरह की मजदूरी ही है और जानते हो, इसका सप्लायर एक टीम बना कर सबको देने के बाद एक दिन में लाखों रुपया कमाता है। तुम तो गांव की लडकियों को तैयार करोगे तो तुम्हारा भाव और ऊँचा रहेगा। समझ लो की बोयायलर और देशी चिकेन वाली बात है।

वाकई इस तरह के काम का आइडिया सोनेलाल को एकदम नही था। इस तरह के काम को चुपके चुपके करना होता है। मोबाईल पर ही सब कुछ तय हो जाता है। सोनेलाल के पास मंजरी जैसी सुलझे दिमांग की महिला थी। उसी के टीम में एक से एक युवतियां है. पैसा अगर ज्यादा मिले और एक बार झिझक खत्म हो जाये, तो फिर समस्या क्या है। सोनेलाल मंजरी से कहेगा और एक टीम जरुर बनवायेगा।

मंजरी देख रही थी कि सोनेलाल लगभग रोज मजदूर बाज़ार आता है और मंजरी को बुलाता है। मंजरी पूछती है, “कुछ काम लाये हो क्या? कितने लोगो की जरूरत है? सोनेलाल बोलता है, एकदम नया तरह का काम है। जो इस काम को करेगा, मालामाल हो जायेगा. मंजरी पूछती है पर सोनेलाल कल फिर आते हैं कह के निकल जाता है।

सोनेलाल इस काम को कहने में झिझकता है, वह समझ नही पा रहा है कि वह बात की शुरुआत कैसे करेगा? मंजरी को समझायेगा कैसे। लेकिन मंजरी को आज समझाएगा. मजदूर बाज़ार फिर पहुंचा सोनेलाल। मंजरी ने देखते ही आज तय किया कि वह आज सोनेलाल से पूछ के ही रहेगी। आखिर कैसा काम है। सोनेलाल ने मंजरी को बोला, देखो मंजरी ये काम से पैसा बहुत आएगा। कुछ लडकियों को तैयार करो, रात में काम होगा और सोंच से ज्यादा पैसा मिलेगा, तुमको हमको और उन लड़कियों को। मंजरी समझी नही, “बोलो तो सही रात में क्या करना पड़ेगा? सोनेलाल बोला सिर्फ बड़े बड़े अधिकारी और मंत्रियों के साथ सोना पड़ेगा, और आगे तुम स्वयं समझ जाओ। मंजरी को जैसा बिजली का झटका लगा। अपना जमीर और स्वाभिमान भी कुछ है कि नहीं? पैसा सब कुछ नही है जीवन में। मन कसैला हो गया। पुच् से थूकते हुए बोली, “छि: तुम इतने गिर जाओगे? मैं तो तुम्हारे बारे में इतना सोंच ही नही पाई। मंजरी तेज क़दमों से सोनेलाल की गाड़ी के पास से मजदूरों के बीच में लौट आई।