Hawao se aage - 5 in Hindi Fiction Stories by Rajani Morwal books and stories PDF | हवाओं से आगे - 5

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हवाओं से आगे - 5

हवाओं से आगे

(कहानी-संग्रह)

रजनी मोरवाल

***

जोगिया-छबीली

(भाग 2)

इन दिनों सावन का महिना चल रहा है और ये महिना इन लोगों के लिए खास माना जाता है, यह माह घर के पुरुषों के लिए खास कमाई करने का होता है क्योंकि इसी माह में नाग-पंचमी का पर्व आता ही | ये लोग साँपों को पिटारे में डालकर छोटे-बड़े गाँव-कस्बों में चले जाते हैं और घर-घर जाकर बीन बजा-बजकर साँपों के खेल दिखाते हैं | भारतीय संस्कृति में साँपों को शिव का प्रिय माना जाता है इसीलिए नाग-पंचमी के दिन कालबेलियों को विशेष दान-दक्षिणा दी जाती है | नए-पुराने कपड़े अन्न-धान्न्य और रुपए-पैसे से इनकी अच्छी आमदनी हो जाती है | इन दिनों कालबेलिया पुरुष विशेष रूप से सजते हैं, वे नए धोती-कुर्ता पहनते हैं और सिर पर गोल पगड़ी या साफ़ा पहनते हैं, हाथ में लोहे या ताँबे का कडा इनकी खास पहचान होती है | सावन के महीने में कालबेलिया स्त्रियाँ भी बड़ी कलात्मक व आकर्षक पोशाक पहनती हैं, ओढनी के नीचे लंबी चोली और साथ में चटखदार लहँगा पहनती है, ये स्त्रियाँ अपने लहँगे के नाड़े से काजल की एक छोटी-सी डिबिया बांधे रखती है | ये स्त्रियाँ अमूमन कौड़ी, सीप और सफ़ेद मोतियों के बने आभूषण पहनती हैं, भाल पर हरे या काले रंग की बिंदियाँ लगाना इनकी खास पहचान होती है किन्तु जोगिया को लाल बिंदिया पसंद है ...लाल सुर्ख बिंदिया, वह कहता है “छबीली तू सिर्फ लाल बिंदी लगा, देख तो तेरे चौड़े भाल पर मेरे नाम की ये लाल बिंदी कैसे जँचती है ? तू सुहागिन नज़र आती है, ऐसा कर तू मुझसे ब्याह कर ले और मेरी गृहस्थी जमा, मैं बाहर काम करूंगा और तू मेरे बाल-बच्चों को पालना” छबीली अक्सर धत्त कहकर भाग जाती है और जोगिया हो-हो करके देर तक हँसता ही रहता है | छबीली को जोगिया के साथ अपना भविष्य निश्चिंत लगता है, वह जानती है कि जोगिया के साथ वह खुश रहेगी, जोगिया इतना तो कमा ही लेगा कि उनकी गृहस्थी बड़ी अच्छी तरह से गुज़रेगी |

छबीली का बापू डेरे का मुखिया है, लोग उसकी इज्ज़त करते हैं किन्तु कुछ लोग उसके रुतबे से चिढ़ते भी हैं, यही लोग कुछ दिनों से छबीली और जोगिया को लेकर कानाफूसी भी करते हैं किन्तु कोई भी खुलकर इस बात का ज़िक्र नहीं करता, छबीली को किसी की परवाह कहाँ ? वह तो इन दिनों उन्मुक्त हवा पर सवार किसी रंगीन तितली की तरह अपनी मस्ती में यहाँ-वहाँ उड़ती रहती है, हवाओं का साथ ने उसके रंगीन पंखों को एक नई रवानी दी है, अब वह किसी के वश में कहाँ ? वह तो दूर-दूर तक उड़ना चाहती है...नई दुनिया की सैर करना चाहती है, उसे न किसी का दर है न हया...वह प्रेम में है और प्रेम में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है...प्रेम में डूबा व्यक्ति आत्मा से परे और देह से मुक्त किसी और ही लोक का विचरण करता है, वह बुदबुदाती है “मैं तुमसे मोहब्बत करती हूँ इसलिए नहीं कि तुम क्या हो, पर इसलिए कि जब मैं तुम्हारे साथ होती हूँ तो मैं क्या हो सकती हूँ, मुझे तुमसे इसलिए प्रेम नहीं है कि तुमने खुद को कैसा बनाया है, बल्कि इसलिए प्रेम है तुम मुझे कैसा बना रहे हो, मैं तुमसे उन बातों के लिए प्रेम करती हूँ जो तुम मेरे ही अन्तर्मन से निकाल लाते हो” छबीली कुछ ऐसी ही रूहानी यात्रा पर थी इन दिनों |

डेरे में हर रात मजमा जुटता है जिसमें डेरे के लोग अपनी रोज़मर्रा की बातें साझा करते हैं, हर शाम डेरे के स्त्री-पुरुष अफीम और शराब की संगत में ही अपनी परेशानियाँ निबटाते हैं, बस छबीली को यही बात नहीं सुहाती क्योंकि जोगिया हर शाम इस मजमे में आ जुटता है और जी भरकर शराब पीता है और जब वह अधिक पी लेता है तो बहकने लगता है, आएँ-बाएँ बकने लगता है, कभी-कभी तो वह सबके सामने ही छबीली से मसखरी करने लगता है | छबीली यूं तो किसी से नहीं डरती किन्तु जोगिया कालबेलिया होकर भी उसकी जाति से निम्न जाति का माना जाता है, दरअसल जोगिया की माँ ने दूसरी जाति के पुरुष से ब्याह किया था, जोगिया का बापू अपने प्रेम की खातिर कालबेलियों के कुनबे से आ जुड़ा था और तमाम ज़िंदगी वह उन्हीं के साथ रहा फिर भी कालबेलिए उसे अपने से नीची जाति का समझते हैं और एक यही डर छबीली को सताता है | छबीली को अपनी बिरादरी के नियम मालूम है वह जानती है कि अगर कोई कुंवारी लड़की अपने से निम्न जाति के लड़के से प्रेम करे तो लड़की के पिता को भरी पंचायत में माफी मांगनी पड़ती है और जुर्माने की तगड़ी रकम भी भरनी पड़ती है, इतना ही नहीं पूरे डेरे वालों को भोजन के साथ-साथ शराब भी परोसनी पड़ती है | छबीली जानती है कि उसका बापू कितना कडक है वह कभी नहीं मानेगा और यदि मान भी जाएगा तो क्या भरोसा कि साल भर जोगिया को परखकर भी वह उसे कबूल करेगा कि नहीं ? छबीली को तो अपने यहाँ विवाह के नियम भी तो अजीब लगते हैं, जोगिया को एक हज़ार दिनों के लिए अपने माँ-बाप को छोड़कर छबीली के घर आकर रहना होगा, इस बीच उसकी कमाई पर भी छबीली के घरवालों का हक़ होगा, इस पूरी अवधि के दौरान जोगिया अपनी क्षमताओं से छबीली के घरवालों को खुश करने का भरपूर प्रयास करेगा, इस बीच छबीली के घरवाले उसे भलीभाँति जांचेंगे—परखेंगे और यदि वे संतुष्ट हो जाएंगे तभी छबीली से जोगिया की सगाई की जाएगी अथवा छबीली का बापू पंचायत के सामने छबीली से जोगिया की सगाई तोड़ दी जाएगी और साथ ही बापू एक निर्धारित जुर्माना देकर जोगिया को घर से निकाल भी सकता है | छबीली अपने जोगिया के साथ सारी ज़िंदगी गुज़ारनी चाहती है महज़ एक हज़ार दिनों का साथ उसके लिए पल-पल का इम्तेहान होगा, उसने जोगिया से प्रेम किया है उसकी जाति से नहीं किन्तु बापू को कैसे समझाए ? डेरे के लिए नियम-कानून बनाता बापू उसे अपना पिता कम डेरे का मुखिया ज्यादा लगता है | छबीली को अपने बापू से बड़ा खौफ़ है, उसका बापू डेरे के दूसरे लोगों के प्रति इतना सख़्त रहता है कि मजाल है जो कोई भी सदस्य समाज के नियमों के विरुद्ध जाए | छबीली जानती है बापू अपनी इज्ज़त के खातिर कुछ भी कर सकता है, वह अपनी बेटी छबीली से भी नरमाई नहीं बरतेगा वरना डेरे के अन्य लोग भी उसकी खिलाफत में खड़े हो जायेंगे | बापू चाहता है कि वह छबीली का ब्याह दूसरे डेरे के मुखिया के लड़के से करे, उन्हें तो छबीली और जोगिया के प्रेम के बारे में कोई भनक भी नहीं, बापू ने उसके दहेज़ के लिए कुत्ता, गधा तीतर, सूअर और साँप एकत्रित करके रखे हैं |

जोगिया ये सारे कायदे अच्छी तरह जानता-समझता है फिर भी उसकी मसखरी नहीं जाती “मैं जब तुझे पटा सकता हूँ तो तेरे बापू को भी पटा ही लूँगा, तू नाहक चिंता करती है मेरी छबीली, तू मुझे एक बार हज़ार दिन के लिए अपने घर में तो आने दे, मैं सब ठीक कर दूंगा, अपनी मेहनत से मैं तेरे बापू का क्या तेरे पूरे खानदान का मन मैं जीत ही लूँगा” छबीली कहती है “और उस जुर्माने का क्या ? जो मुझे तुझसे प्यार करने के एवज में जुर्माने के तौर पर बापू को भरनी पड़ेगी ?” जोगिया अपने जेब में हाथ डालकर नोटों के गड्डी निकालता है और छबीली के हाथों में सौंपता हुआ ठहाका लगाता है फिर फिल्मी धुन पर टेर बनाने लगता है “उसका भी इंतज़ाम मैंने कर रखा है जानेमन, अब तू हाँ कर या ना कर तू है मेरी छब्बो...तू है मेरी छब्बो” छबीली अपने प्रति जोगिया के समर्पण भाव को जानती है, जोगिया दिनभर जी तोड़ मेहनत करता है और उसके साथ के अन्य लड़कों की बनिस्बत होशियार भी है, जोगिया पूँगी और बीन भी बड़ी करामाती बजाता है कि कोई न कोई साँप उसकी गिरफ्त में आ ही जाता है, उसके दोस्त भी उसकी इस कला से ईर्ष्या करते हैं, जब भी वह जंगल जाता है बिना साँप पकड़े घर नहीं लौटता | उसमें बस एक ही एब है कि शराब सामने आए तो वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता और जब पी लेता है तो उसे अच्छे-बुरे का होश नहीं रहता |

जोगिया और छबीली प्रेम में एक साथ बह रहे थे और प्रेम की तासीर बिलकुल पानी की तरह होती है, पानी जब अपना मुहाना तोड़कर बहने पर आ जाए तो कोई बंधन या कोई अवरोध उसे रोक नहीं पाता, वह अपना मार्ग या अपना निकास तलाश ही लेता है, ठीक उसी तरह प्रेम जब बहता है तो फिर किसी भी गहराई, ऊँचाई और चौड़ाई को पार कर जाता है...प्रेम वहाँ तक पहुँच जाता है जहां तक देह की पहुँच हो न हो किन्तु आत्मा की पहुँच होती है तो उसे फिर किसी और की तलाश कहाँ ?...जहां दो आत्माएँ एकाकार हों वह सफर निहायत पवित्र और सूफियाना होता है | वे दोनों हाथ थामे एक ऐसे ही सफर की ओर बढ़ चले थे जिसकी मंजिल का उन्हें न कोई इल्म था न ही ख़्वाहिश ...वे तो सफर को ही अपनी मंजिल मान बैठे थे |

सावन की पहली रात को जोगिया ने छबीली के बापू को अपना फैसला सुनाया था, वह बापू के सामने न डरा, न गिड़गिड़ाया न ही झुका ...उसने बड़ी ठसक के साथ बापू के सामने पाँच साँपों का एक बड़ा सा पिटारा और जुर्माने की रकम रख दी थी फिर उसने सिर उठाकर कहा था “मैं तुम्हें शराब की बोतल नहीं दूँगा और न ही तुम्हें दंड स्वरूप ही डेरे को शराब पिलाने दूंगा क्योंकि आज से मैंने छबीली की कसम खाई है कि न मैं शराब पीऊँगा और न डेरे के नौजवानों को ही पीने दूंगा, इन बुरी आदतों की वजह से ही आज तक कालबेलिया जाति ख़ानाबदोश है, मैं छबीली और मेरी संतानों को पढ़ाऊंगा ....बापू मुझे इस प्रयास में छबीली का साथ दे-दे, मैं एक हज़ार दिन तक तेरे घर की चौखट पर पड़ा नहीं रह सकता पर मैं वादा करता हूँ कि पूरी ज़िंदगी तेरे घरवालों की ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर होगी, जब तू बूढ़ा हो जाएगा तो मैं तेरी देखभाल करूंगा ठीक वैसे ही जैसे एक बेटा अपने बाप की देखभाल करता है |” बापू हतप्रभ था, उसकी अनुभवी आँखें बूझ चुकी थी जोगिया का छबीली के प्रति निश्चल प्रेम, वह जानता था कि अगर वह जोगिया की बात मान लेता है तो डेरे के नियम भंग हो जाएँगे, बल्कि वह तो इन नियमों के टूटने की आहट भाँप रहा था...इस टूटन में एक बदलाव की आँधी हिलोरे ले रही थी जिसके भीतर भयंकर हलचल दिख रही थी किन्तु यह बदलाव किसी अच्छे परिणाम का संकेत भी दे रहा था |

बापू कुछ घंटों के लिए अपनी झोपड़ी में कैद हो चुका था, वह मौन था और जब उसने झाँपा (दरवाजा) खोला तो उसके साथ छबीली भी थी...जोगिया समझ चुका था कि अब उसके वादों को निभाने का समय आ चुका है, वह प्रसन्न था साथ ही दृढ़ निश्चयी भी ...उसी शाम उसने डेरे के सभी नौजवानों को इकठ्ठा करके सभा बुलाई, एक बेहतर कल की नींव रखने से पहले उसने रूपरेखा तैयार कर ली थी, उस शाम पहली बार डेरे में शराब की कोई बोतल नहीं खुली थी, कहीं कोई लड़ाई-झगड़े का शोर सुनाई नहीं दिया था | उस रात बुजुर्गों ने एक करवट में ही सारी रात चैन से गुज़ारी थी, छबीली जैसी कितनी ही कुंवारी लड़कियों ने आईने में नहीं बल्कि जोगिया जैसे प्रगतिशील लड़कों के बुलंद इरादों में अपना अक्स देखा था, अपने काजल को गाढ़ा करके वे जी भर खिलखिलाई थीं, उधर कई जवान सीनों में जोश धड़का था और रेगिस्तान में दूर तलक नौजवानों की बीन में से सुनहरे भविष्य की स्वर लहरियाँ लहराती रही थीं ...उस रात आसमान साफ था और ठंडी रेत यूं चमचमा रही थी जैसे तारों ने खुश होकर धरती पर अपना डेरा जमाया हो |

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