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हवाओं से आगे - 7

हवाओं से आगे

(कहानी-संग्रह)

रजनी मोरवाल

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ऑपरेशन विजय से अंतिम ख़त

अमानत अली दसवीं पास करने के बाद एक दिन के लिए भी बेरोजगार नहीं बैठा, गरीब माता-पिता की हालत उससे छुपी ना थी | पिता लुहारी मुहल्ले में किराने की छोटी सी दुकान चलाते थे, और माँ ने बैंक से लोन लेकर एक गाय और एक भैंस खरीद रखी थी जिनसे वह अपने बच्चों के लिए दूध-घी का बंदोबस्त कर लेती थी और बचे दूध को बेचकर घर खर्च लायक कुछ पैसे जमा कर लेती थी | अमानत अली जानता था कि आगे पढ़ने की तीव्र इच्छा के होते हुए भी उसका आगे पढ़ पाना मुमकिन नहीं है, उसके आलावा उसके तीन छोटे भाई-बहनों का खर्चा उठाना अकेले उसके पिता के बस में ना था | बस तभी से ही अमानत अली लोहे का सामान बनाने वाले एक कारखाने में काम करने लगा था |

अमानत अली बीस का था और शाहिला अठारह की जब दोनों निकाह के बंधन में बंधे थे, शाहिला अपनी खाला की शादी में शरीक होने अजमेर गई थी और वहीं अमानत अली के अम्मी-अब्बू को वह भा गई थी | यूँ तो शाहिला उनके दूर के रिश्ते में ही लगती थी पर अब वे उसे बहू बनाने का निर्णय कर चुके थे और एक रोज़ बड़ी धूमधाम के साथ वह अमानत अली की ज़िंदगी में शामिल हो गई थी | लाल-लाल लाख की बुंदकियों वाली कलाई भरी चूड़ियों के बीच मशीन कट हीरे वाली हरी-हरी चूड़ियाँ चमकाती हुई शाहिला घर-आँगन में सुबह से शाम तक चक्कर्घिन्नी की मानिंद घूमा करती थी |

अल्ल्सुबह उठकर गाय-भैंसों को चारा डालती तो कभी कुट्टी काटती, कभी बूढ़े सास-ससुर के लिए भोजन परोसती तो कभी मौका पाकर अमानत अली ही उसे अपने पास खींच लेता, वह कहता “शाहिला तुझ पर हरा-नारंगी रंग बहुत फबता है, तू रोज़ इसी रंग के सलवार-कमीज़ पहना कर और इसके बीच में खिलता हुआ तेरा ये उजला रंग मेरे मन को बड़ा सुकून देता है | जब-जब मैं तुझे इन रंगों से सराबोर देखता हूँ तो मेरा सपना और अधिक पुख्ता हो जाता है कि इस देश की फौज को मेरी ज़रूरत है | मेरा देश मुझे पुकार रहा है और मैं तड़प उठता हूँ अपने देश पर मर-मिटने की ख़ातिर.... शाहिला नम आँखों से अमानत को देखती और सिहर उठती, उसकी हथेलियों की नई-नवेली मेहँदी कसककर अमानत के होठों पर जा लगती “खुदा के वास्ते ऐसा ना बोलो | मैं मानती हूँ हमारे देश को तुम जैसे बहादुर युवकों की जरूरत है और मैं तुम्हारे जज़्बे को सलाम करती हूँ, यकीन मानों मैं भी चाहती हूँ कि फौज में भर्ती होने का तुम्हारा सपना जल्द पूरा हो, पर कौन बीबी होगी जो अपने पति को”...शब्द शाहिला के गले में अटक जाते, वह सिसक उठती किन्तु लाड़-चाव और अमानत के दुलार से उसका मन पुनः हरिया जाता था, इसी मनुहार के बीच साल बीतने को आया था |

अमानत अली अब भी सोते-जागते फौज में भर्ती होने का सपना देखता था | वह अख़बारों में सेना-भर्ती परीक्षा के विज्ञापन पर नज़र रखता था, कारखाने जाने से पहले रोज़ सुबह-सुबह दौड़ने जाता था ताकि शारीरिक परीक्षा में 1600 मीटर कुल 5 मिनट 40 सेकंड में एक साथ दौड़ते वक़्त, पूरे 60 नंबर हासिल कर सके | वह बीम पर 10 या अधिक पुल-अप्स करके 40 नंबर तक प्राप्त कर ले जाना चाहता था, उसकी कोशिश रहती थी कि वह इतनी मेहनत करे कि फिटनेस परीक्षा के दौरान उसे किसी प्रकार का तनाव महसूस ना हो, वह अपने सपने को पूरा करने के लिए हर चुनौती का सामना करने को तैयार था | अमानत अली सरहद पर होने वाली हरकतों की अख़बारी कतरने इकट्ठा करता, टीवी पर घुसपेठों की खबरें सुनकर उसका खून उबल पड़ता |

शाहिला समझ चुकी थी कि अमानत अली जुनून की हद तक अपने देश से प्रेम करता था, उसको यह भी यकीन था कि एक ना एक दिन वह फौज में चला जाएगा तब अमानत अली के माता-पिता के साथ-साथ उसे अपने होने वाले बच्चे की ज़िम्मेदारी भी अकेले ही उठानी पड़ेगी किन्तु फिर भी वह अमानत अली की खुशी चाहती थी... उसके सपने को साकार होते देखना चाहती थी | और ऐसा हुआ भी ....शाहिला के पहले बेटे के जन्म के पश्चात कुछ दिनों के भीतर ही अमानत अली सेना-भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण करके अपनी छमाही ट्रेनिंग पर चला गया, वहीं से उसकी पहली पोस्टिंग हैदराबाद हो गई | घर में अमानत अली की तरक्की से सब प्रसन्न थे शाहिला भी....किन्तु फिर भी कहीं कुछ था उसके भीतर जो तन्हा-तन्हा पिघल रहा था...दिन तो यूँ भी उसका घर-गृहस्थी में बीत जाता था किन्तु स्याह रातों के मुहाने अक्सर उसकी आँखें नम कर जाते थे | एक तरफ उसका कर्तव्य था तो एक तरफ उसकी भावनाएँ, शाहिला किसी भी सूरत में कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी |

इधर सुहैल साल भर का होने आया था उसकी प्यारी-प्यारी बाल क्रीड़ाएँ शाहिला के लिए धरोहर थी, अमानत अली को लिखे अपने हर ख़त में वह सुहैल के किस्से बयान करती थी तो उधर ख़तों के मार्फत अमानत अली हर क्षण अपने बच्चे की तुतलाती जुबान के पहले-पहल बोले गए मीठे वाक्यों को महसूस करता....ऐसे ही किन्हीं क्षणों में उसने शाहिला को हैदराबाद बुलवाने का निर्णय कर लिया था, वह अपने बच्चे की अठखेलियाँ अपनी आँखों से देखना चाहता था | आख़िरकार कुछ महीनों के लिए ही सही किन्तु उसे अपने परिवार को साथ रखने की परमिशन मिल ही गई थी | साल भर की हैदराबाद पोस्टिंग वाला वक़्त शाहिला और अमानत अली के लिए बेहद खुशनुमा समय था | इसी दौरान सुहैल पैदल चलने लगा था कि शाहिला ने अनवर को जन्म दिया था, वे दोनों अपनी छोटी-सी दुनिया में खोए रहते थे | वे दोनों अपने साझा भविष्य के सुनहरे ख़्वाब बुनते और उन्हें हकीकत के ताने-बाने में पिरोकर उन्हें एक पुख्ता अंजाम तक पहुंचाने के इतेज़ाम करते | नौकरी पाकर अमानत अली की माली हालत सुदृढ़ हो चुकी थी, पारिवारिक जिम्मेदारियों के तहत वे दोनों जिस मंज़िल तक स्वयं ना पहुँच सके थे उस मंज़िल को अपने बच्चों के कदमों पर चलकर पा लेना चाहते थे |

बड़ा बेटा सुहैल सात बरस का था और छोटा अनवर पाँच का जब कारगिल-द्रास में घुसपेठ शुरू हो गई थी | अमानत अली को तुरंत प्रभाव से कारगिल में रिपोर्ट करने का आदेश आया था, वहाँ परिवार को साथ रखने का निर्देश ना था | अमानत अली और शाहिला चाहकर भी साथ नहीं रह सकते थे, शाहिला अपने शौहर की नौकरी की सीमाओं से अवगत थी बावजूद इसके वह व्यथित थी, वह जानती थी कि फौज की नौकरी में इस तरह के पड़ाव आते रहते हैं फिर भी किसी अनहोनी की बात सोचकर उसकी रूह काँप उठती थी | इसके इतर अमानत अली बेहद उत्साही हुआ जा रहा था, वह कहता “शाहिला अपने देश की सेवा करने का मौका हर किसी को नहीं मिलता, मैं खुशनसीब हूँ जो मेरी माटी को मेरी जरूरत है, एक पत्नी के नाते तुम्हारा फर्ज़ है कि तुम मेरा आत्मबल बढ़ाओ और मेरे अनुपस्थिति में घर-परिवार की देखभाल करो” शाहिला भीतर ही भीतर टूट रही थी किन्तु उसके होठों पर मुस्कुराहट थी | वह अमानत अली की जुनून के आगे कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी, उसका मन तमाम आशंकाओं से भरा हुआ था, बेहद कमजोर क्षणों में भी हँसते हुए उसने अमानत अली को इस वादे के साथ विदा किया कि वह हर हफ्ते उसे एक पत्र लिखेगा और हर सूरत अपने हालातों से शाहिला को अवगत कराता रहेगा |

शाहिला बच्चों के साथ अपने गाँव लौट आई थी और अमानत अली अपने कर्तव्य के मार्ग पर चल पड़ा था, उसे नायक बनाकर कारगिल भेजा जा रहा था, शाहिला जहां अपने पति की तरक्की से प्रसन्न थी वहीं उसे एक अनजान खौफ़ दबोचे जा रहा था | शाहिला अपने सास-ससुर की सेवा करती व अपने बच्चों के साथ जी जान से जुटी रहती, उनका गृहकार्य करवाती उन्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाती, खाली वक़्त में उनके साथ जी भरकर खेलती | अमानत अली की याद में वह पुराने दिनों की स्मृतियाँ सँजोती और उन्हें शब्दों में पिरोकर ख़तों के जरिए उस तक पहुंचाती | मीलों लंबी इस दूरी को नापने का एक यही रास्ता उन दोनों के बीच में कायम था, वह हर हफ्ते बिला नागा अमानत अली के ख़तों का जवाब देती थी |

अमानत अली के ख़तों से ही उसे जानकारी मिलती रहती थी कि सरहद पर दिन-रात गोलीबारी होती रहती है | स्थानीय लोगों को अपने घरबार, मवेशी व खेती-बाड़ी छोडकर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ता है और जो किसी कारणवश अपने स्थानों पर डटे रहते हैं वे दिन-रात अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं या उन्हें सरकारी बंकरों में पनाह लेनी पड़ती थी | अमानत अली अपने व अपने साथियों की कठिन परिस्थियों का ज़िक्र करता तो कभी दुश्मनों की गोलीबारी में छलनी हुए अपने साथियों के साहासिक कारनामें लिख भेजता, जिन्हें सुन-सुनकर शाहिला का मन काँप उठता, वह पांचों वक़्त की नमाजों में इन हालातों के जल्द सुधरने की दुआ मांगती और अमानत अली के अगले ख़त का इंतज़ार करती | मुसीबत की इस घड़ी में अमानत अली के ख़त ही थे जो उसकी कुशलता का संदेश लाते थे, उसके ख़तों के आने से शाहिला का मनोबल बना रहता था | वह बड़े गर्व से अपने बच्चों को उनके पिता की बहादुरी भरे किस्से सुनाती कि किस तरह कारगिल में हिमालय के समान गर्मियों में भी ठंड पड़ती है | सर्दियों में तो उस इलाके में तापमान -48 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है यहाँ तक की चमड़े से बने बूटों के भीतर भी सैनिकों की अंगुलियाँ गलने लगती हैं, निरंतर चलती गोली-बारी के कारण कई-कई दिनों तक सोना भी नसीब नहीं हो पाता, खाना-पानी हेलीकोप्टरों व जीपों की मदद से हफ्ते में एक बार पहुंचाया जाता है, कभी-कभी तो बरफ़ पिघलाकर पीने का पानी बनाया जाता है |

अमानत अली ने अपने 3 मई 1999 के पत्र में लिखा था कि सेना को किसी चरवाहे ने सूचना दी है कि “सरहद पर वे जिन्हें मुजाहिदीन समझ रहे थे दरअसल वह तो एल॰ओ॰सी॰ के पार चल रहे “ऑपरेशन बद्र” के सैनिक थे जिनका उदेश्य कश्मीर-लद्दाख लिंक को तोड़ना है जिससे भारतीय सेना सियाचिन ग्लेशियर से पीछे हट जाए और भारतीय सेना दवाब में आकर कश्मीर मुद्दे पर झुक जाए | अमानत अली को अंदेशा था कि युद्ध के आसार होने लगे हैं और शायद अब वह हर हफ्ते पत्र लिखने का वादा पूरा नहीं कर पाएगा”......और सचमुच अब अमानत अली के पत्र देर से आने लगे थे | शाहिला की बेचैनी बढ़ने लगी थी, माहौल में तनाव तो उसे भी महसूस हो रहा था, आए दिन टी.वी. में आपसी तनातनी की ख़बरों का प्रसारण होता रहता था |

फिर बहुत इंतज़ार के बाद एक रोज़ अमानत अली का पत्र आया था “प्रिय शाहिला.... ख़बर यह है कि कश्मीर के नेशनल हाइवे की ओर के स्थानों पर दुश्मन ने रणनीति पूर्वक कब्जा कर लिया गया है और 10 मई 1999 को सेना की तरफ से जाने वाली टुकड़ी में मुझे भी शामिल किया गया है.... हो सकता है, शाहिला ये मेरा अंतिम पत्र हो.. खुदा ना करे अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बच्चों को अच्छा इंसान बनाना | मेरी मौत के बाद जो भी पैसे मिले उसमें से 2 लाख रुपए में गाँव में मदरसा बनवाना ताकि मेरे बच्चे ही नहीं बल्कि गाँव के अन्य बच्चे भी उसमें शिक्षा प्राप्त कर सकें... मेरे बच्चों को फौज में भेजना यही मेरी इच्छा है | मेरी मौत का गम कभी मत करना बल्कि घमंड करना कि तुम एक शहीद की बीबी हो...., शाहिला मुझे गर्व है कि मैं ‘ऑपरेशन विजय’ का हिस्सा हूँ, मेरी माटी को मेरा सलाम, ज़िंदा रहे तो ज़रूर मिलेंगे |” किन्तु प्रकृति को शायद कुछ और ही मंजूर था, मिलन के बाद हमेशा जुदाई अपना चक्र पूरा करती है किन्तु जुदाई के बाद पुनः मिलन होना या ना होना इस चक्र का जरूरी हिस्सा नहीं होता | विधाता की मर्ज़ी, उसके गुप्त बही-खाते में ही दर्ज होती है, आम इन्सानों को उस बाबत में खुदा अपना फैसला समय-समय पर अवगत कराता रहता है, यहाँ किसी तरह के अधिकार नहीं माने जाते, यहाँ तो बस जिम्मेदारियाँ होती हैं जो उसकी मर्ज़ी की आगे सिर झुकाकर निभानी पड़ती है, सवाल-जवाब का हक़ किसी को भी अता नहीं किया जाता |

26 जुलाई 1999 को 'ऑपरेशन विजय' का औपचारिक रूप से युद्ध विराम हुआ था... जिसके कुछ दिन बाद अमानत अली के कुछ सामान के साथ उसका शव ही वापस आया था | इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की बलि चढ़ाई थी, जिनमें से अमानत अली भी एक था |

शाहिला अब हर वर्ष "विजय दिवस" पर अमानत अली के सभी पत्र पढ़ती है | वह अमानत अली के अंतिम पत्र को उसकी अंतिम इच्छा मानकर अमल कर रही है, अपने बेटों को लिखाया-पढ़ाया ताकि उनके पिता की अंतिम इच्छा पूरी कर सके | अमानत अली की गैरमौजूदगी में शाहिला अपने बच्चों की परवरिश में कमी नहीं आने देना चाहती थी, मदरसे से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त शाहिला अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दी है | बड़ा बेटा सुहैल बी.टेक. करने के बावजूद फौज में भर्ती होकर अपने पिता के नक्शे कदम पर चल पड़ा है, उसकी पोस्टिंग कुपवाड़ा में है | सरकार ने उसके गाँव की एक सड़क और एक स्कूल का नाम अमानत अली के नाम पर रखने की घोषणा की थी जिसके पूरा होने की उम्मीद शाहिला में अब भी बाक़ी है... शहीदों के घरवालों को जो पेट्रोल-पंप देने की घोषणा की गई थी वह पूरी हो चुकी है | अपने हक़ की इस लड़ाई में शाहिला को अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ अकेले ही दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े थे | अमानत अली के जाने के बाद शाहिला ने लाख मुश्किलों का सामना किया फिर भी उसे यह फ़क्र है कि वह एक शहीद की बेवा है और अब एक फौजी की माँ भी |

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