Chidiya Rani - (Bal sahitya) books and stories free download online pdf in Hindi

चिड़िया रानी - (बाल साहित्य)

प्रिय मित्रों,

              आज छत के बारजे पर बैठकर आसमान में टकटकी लगाए कुछ देख रहा था कि पंक्षियों का एक समूह छत के दूसरे किनारे पर बैठा, जहां कुछ दाने पड़े थे खाने लगा।

क्या करें दिल तो बच्चा है जी, और खो गया बचपन की उन यादों में...

                १-"चिड़िया रानी"

चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,

लगती हो तुम बड़ी सयानी,

फुदक फुदक कर दाना चुगती,

और पीती हो थोड़ा पानी।।

द्वार मेरे तुम नितदिन आती,

सबके मन को भाती हो,

दाना दाना चुग चुग कर,

मन ही मन तुम गाती हो,

गाँव गाँव और शहर शहर में,

तुम घोसला बनाती हो।

काम स्वयं तुम अपना करना,

भाग्य भरोसे ना तुम रहना,

मेहनत और ज्ञान का दीपक,

यही भाग्य की कुंजी है,

करो परिश्रम नितदिन प्यारे,

सबसे बोले ये मीठी वाणी,

फुदक फुदक कर दाना चुगती,

और पीती हो थोड़ा पानी।।

          २-"रोटी खिली"

रोटी खिली, रोटी खिली

देखो देखो रोटी खिली।

मन ललचाए, रहा न जाए,

भूख लगी अब कहाँ जाएं,

पानी टप टप जीभ गिराए,

गिरकर पानी भूख बढाए,

रोटी चली सब्जी गली,

देखो देखो रोटी खिली।।

चउका बेलन करें परिश्रम,

तावा बाबू हुए गरम,

जौ की रोटी मीठी मीठी,

और गेहूँ की नरम नरम।।

आलू गोभी की सब्जी देख,

मन खिल गई भूख कली,

परवर और करैला सब्जी,

कितनी लगती भली भली।

तुम भी आओ चुन्नू मुन्नू,

रामू और अकिलधर आओ,

गरम गरम और नरम नरम,

सब मिल बाँट के रोटी खाओ।

खाके रोटी पेट दुलारा,

भूख मिटी और हो गया न्यारा,

स्वाद अनूठा, चाव अनूठा,

जो चाहा था मिली मिली,

रोटी खिली, रोटी खिली,

देखो देखो रोटी खिली।।

              ३-"मेरी भैंस"

कितनी प्यारी मेरी भैंस,

सबके मन को भाती है,

प्रतिदिन दुध दही और घी से,

घर मेरा भर जाती है।।

अम्मा, दादी, दादा,भैया,

 उसको मैना बुलाते हैं,

सुबह शाम रोजाना उसको,

दाना खरी खिलाते हैं,

जो कुछ पाती भूसा चारा,

सबकुछ वो खा जाती है,

प्रतिदिन दुध दही और घी से,

घर मेरा भर जाती है।।

दुध लगे अमृत सा उसका,

और दही से मिलता मक्खन,

लस्सी और पनीर मिले,

जो दूर करे गर्मी में तपन,

खोवा और मिठाई जो,

सबके मन को ललचाती है,

प्रतिदिन दूध दही और घी से,

घर मेरा भर जाती है।।

तुम भी आओ मुन्नू चुन्नू,

लट्टू और फकीरा आओ,

मोहन आओ, सोहन आओ,

सब मिलकर ये गाना गाओ,

सेवा करो जो पशुओं की,

घर में खुशहाली आती है,

प्रतिदिन दूध दही और घी से,

घर मेरा भर जाती है।।

             ४-"इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे"

देखो आई हरियाली,

भरी मस्ती की प्याली,

आओ संग मिल वृक्ष लगाएंगे,

इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे।।

है जीवन का अद्भुत किस्सा,

हर साँसें हैं उनका हिस्सा,

हर क्षण है उन्हीं का,

कण कण है उन्हीं का,

गीत उनकी ही छाँव में गाएंगे,

इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे।।

अपनी अपनी जिम्मेदारी,

जन जन की हो भागीदारी,

नए फूल खिलेंगे, 

मन के दीप जलेंगे,

मिल जुल आओ गली चमकाएंगे,

इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे।।

पृथ्वी का अनमोल खजाना,

आओ साथी मिलकर बचाना,

गाँव नगर शहर में,

गली कूचे डगर में,

पेड़ रूपी एक दीप जलाएंगे,

इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे।।

सुन लो चाची, सुन लो बहना,

सच्चे मन से है ये कहना,

याद रखेगा जमाना,

भावी पीढ़ी का तराना,

बन, यादों में हम उनकी बस जाएंगे,

इस धरती को स्वर्ग बनाएंगे।।

           आपका स्नेही-

                            राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"

                              आज़मगढ, उत्तर प्रदेश