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क्या करूँ मैं व्यंग

विषय सूची
1.क्या करूँ मैं व्यंग
2.तोते ने किया जगरात(अवधी हास्य)
3.आल आउट
4.नक्शेबाजी(अवधी हास्य-व्यंग)
5.राम राज्य
6.नई दुल्हन(अवधी हास्य)
7.शिव भोले 
8.इन्शान परेशान है 
10.ईशक़बाजी(अवधी हास्य)
11.मोहब्बत की कश्ती(अवधी हास्य)
12.गूगल जी ढूंढना
13.चिल्लपों
14.स्वप्न में स्वर्ग

(यह काव्य संग्रह कवि के व्यक्तिगत विचारों और मन में उठने वाले प्रश्नों का प्रतिफल है । कवि का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति सम्प्रदय की भावनाओं को ठेस पंहुचना बिल्कुल भी नही हैं । यदि काव्य में कही गई किसी बात या प्रश्न से किसी को कोई तकलीफ होती है तो कवि क्षमा प्रार्थी है । काव्य में शाब्दिक त्रुटियों के लिए भी क्षमा याचना है । पाठकों के सुझावों का कवि सहृदय स्वागत करता है । कवि को उम्मीद है कि यह काव्य संग्रह पाठकों को आनंदित करेगा -पन्ना की कलम से)


(क्या करूँ मैं व्यंग)

क्या करूँ मैं व्यंग ?  हूँ मैं दंग ।
देखकर इस दुनिया के ढंग ।
आदमी पत्थर में खुश है ।
प्यार के चक्कर में खुश है ।
फंस गया जो जाल में , व्याह के जंजाल में ।
है बड़ा वह तंग ।
क्या करूँ मैं व्यंग ?  हूँ मैं दंग ।
देखकर इस दुनिया के ढंग ।
नफरतों की भीड़ में आदमी है खो गया ।
देख आके गौर से सिंह गीदड़ हो गया ।
है बड़ा हैरान ओ ! चौखट पे कुत्ता रो गया ।
हाय ! ये क्या हो गया ?
जब से कुत्ता रो गया वह फिर रहा मतंग ।
क्या करूँ मैं व्यंग ?  हूँ मैं दंग ।
देखकर इस दुनिया के ढंग ।
कर रहा जगरात वह , मात को बुला रहा ।
जन्म देके पाला जिसने , उस माँ को है रुला रहा ।
बछड़ों का दूध छीनकर , सर्पों को है पिला रहा ।
सर्पों से भरे हुए उसके आस्तीन हैं ।
इसलिए ही उसको है डस गया भुजंग ।
क्या करूँ मैं व्यंग ?  हूँ मैं दंग ।
देखकर इस दुनिया के ढंग ।
फ़टे खोपड़ी काग जो बैठे ।
बिल्ली रस्ता काट गई ।
शनि देव की माया देखो , सबकी किस्मत चाट गई ।
मजहबों की आड़ में सब लड़ रहे हैं जंग ।
क्या करूँ मैं व्यंग ?  हूँ मैं दंग ।
देखकर इस दुनिया के ढंग ।

( तोते ने किया जगरात )

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।
उल्लू पंडित बनिकै आए उइ अगड़म – बगड़म गाय रहे ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

भक्त जनों की टोली निकली , एक कौआ धूम मचाय रहा ।
कोई सबको बैठाय रहा , कोई हवन सामग्री लाय रहा  ।।

तोते ने किया जगरात ,  चिरैया आज सबै देखन आईं ।

पाण्डे पान भंडार खोलि ,  तलकौआ पान लगाय रहा ।
गौरैया मोम्फली लेहे बैठि ,  कठफोड़वा भाव लगाय रहा ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

बगुला एंड पार्टी आर्केस्टा आवा , उइ चों- चों गाय रहें ।
कोयल लेडी सिंगर आई , ओ मीठे स्वर में गाय रही ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

दुइ ठो हंस तमाशा देयखैं ,  उइ पण्डित का बिजलाय रहे ।
नाइटिंगल इलेक्ट्रिक हॉउस वाले , दप – दप बलफ जलाय रहें ।।
तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

कोइली बैठी तम्बू नीचे , मन ही मन मुस्कियाय रही ।
कोयल के संग वहू देखि लेव , फ़टे बाँस जस गाय रही ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

कोई लुफ्त ले रहा गाने का , कोई दिल की प्यास बुझाता है । 
 कोई चुनरी बाँधे उधर से बोला ,  क्या तफरी लेने आता है ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

जब नींद सताती पण्डित को ,  धीरे से पलक झुकाते हैं ।
सब विभोर हो रहे गाने से , ओ निद्रा का लुफ्त उठाते हैं ।।

तोते ने किया जगरात  , चिरैया आज सबै देखन आईं ।

कैसा है यह खेल हो रहा , पन्ना को नही सुहाता है ।
कोई इधर पड़ा कोई उधर सो रहा , शायद यही आज जगराता है ।।-3

{आल आउट}

ओ रजाई से निकलने की हिमाकत न कर सकें ,
रात बेगम नें उनकी कमाल कर दिया ।
पिछले दरवाजे से आये थे उसकी नींद उड़ाने को ,
उसने अकेले ही सबको परेशान कर दिया  ।।

ओ रजाई से निकलने की हिमाकत न कर सकें ,
रात बेगम नें उनकी कमाल कर दिया ।

ओ बेख़ौफ़ सोये थे न जाने किसके ख़्वाबों में ,
उनकी बेगम ने कईयों को बेहाल कर दिया ।
अपने शौहर की नींद उसने टूटने भी न दी ,
बिना ख़ंजर के ही सैकड़ों को हलाल कर दिया ।।

ओ रजाई से निकलने की हिमाकत न कर सकें ,
रात बेगम नें उनकी कमाल कर दिया ।

ओ ख़्वाबों की मौज में सफर कर रहे थे शायद ,
उनकी बेगम ने यहाँ कत्ल-ए-आम कर दिया ।
हाँ परेशान हो चुकी थी उनकी रोज भिनभिनाहट से ,
आल आउट लगाकर उसने काम तमाम कर दिया ।।

ओ रजाई से निकलने की हिमाकत न कर सकें ,
रात बेगम नें उनकी कमाल कर दिया ।

(नकसेबाजी)

भइया की जब भई शगाई , तिलक म पीली पल्सर आई ।
भइया पल्सर स्टार्ट किहिन जब ,पहिला गीयर डारि चले जब।
पहिले तौ उइ 20 चले , फिरि एक्सिलिटेर खींच चले ।।
आंधी का एक झोंका आवा , भइया का कुछ नही सुझावा ।
गाड़ी बिगड़ी खन्तिम घुसिगै , नकसेबाजी उही म घुसिगै ।।
गांठी ग्वाड़ फोरि सब डारिन , घरमा पहुंचे बप्पा मारिन ।।
भइया की जब भई शगाई , तिलक म पीली पल्सर आई ।
भदुइ दिन तक तौ सेकिन साकिन , बप्पा डॉट के घरमा राखिन।।
तिसरे दिन उर्राय गये उइ , बप्पा से गुर्राया गये उइ ।
कहिंन का अबहिउ है लरिकाई , गिरे रहन जौ आंधी आई ।।
पल्सर लइके निकरि गये उइ , अब तौ भइया बिगर गये उइ ।
अबकिल अस पल्सर दौड़ाये , देखिन नाही दाएँ बाँये ।।
लड़ा सांड दाहिने से आये , मुँह भल गिरे दांत बिखराये ।
अम्मा कहिंन इउ करम कमावा , जौ थूथुन फोरि के घरका आवा।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)

(नई दुल्हन)

 पाहिले जब उइ ससुरारि गईं तब बहुतै लाड - दुलार भाव ।
बड़की भाभी छोटकी भाभी सब मुह देखिन उपहार दिहिन ।
महीना दुइ चारि न काम पड़ा ,
खेलिन कूदिन खटिया तूरिन ।
नंदन से हँसी – ठिठोली औ देवरन संग छेड़म – छाड़ भवा ।
दुलहा उनका आइस मिला जो याकौ न टेढि जुबान कहै ।
सासु मिली उनका ऐसी जो गायिउ से ज्यादा सीधी है ।
सब दिन न कबहु समान होति जब समय बीत तब काम पड़ा ।
लाड-प्यार तब से भइया सब ख़ाक होइ गवा चूल्हे म ।
तब से उनके भइया – दादा कुछ दर्द होइ गवा कूल्हे म ।।

(शिव भोले जरा बताना)

शिव भोले जरा बताना ,  एक बात मुझे समझाना ।
डिग्री कहाँ से लाए भोले , कहाँ सीखी शल्य चिकित्सा ।।
शिव भोले ………
महिमा तुमरी बड़ी निराली ,  पी जाते विष का प्याला ।
नामुमकिन को कैसे तुमने , मुमकिन है कर डाला ।।
शिव भोले ………
कैसे हाथी शीश प्रभू , मानव गर्दन पर शिल डाला ।
कैसे भूल गए भोले तुम ,उस हाथी में जीव पिलाना ।।
शिव भोले ………
राजा दक्ष का शीश काट , क्यों बकरा मुण्ड लगाया ।
हवन कुण्ड में जली सती को , क्यों मुश्किल पड़ा जिलाना ।।
शिव भोले ………
जालन्धर राक्षस कैसे था , भोले अंश तुम्हारा ।
एक पुत्र क्यों ईश कहाया , क्यों दूजा रक्त पिपासा ।।
शिव भोले ………
कौन संकरण विधि खोजी , कि प्रकृति को छल डाला ।
कैसे मोर मुरैलों के घर , कार्तिकेय जन डाला ।।
शिव भोले ………
पार्वती माता से पूछूँ ,  मैं हो गया सयाना ।
मैल छुड़ाकर पुत्र बनाने , की विधि मुझको बतलाना ।।
शिव भोले ………
अष्टविनायक भगवन मुझको , एक बात बतलाना ।
कैसा अन्न दिया मूसक को , कैसा दिया चव्याना ।।
शिव भोले ………
कैसे नन्हे मूसक ने प्रभु , भीमकाय सह डाला । 
क्यों न टूट गयी मुसक की , रीढ़ प्रभू समझाना ।।
शिव भोले ………
तुमरी सेवा में भोले क्यों ,  भूत पिशाच बताना ।

शिव भोले ………
काहे भगवन तुम्हे न आई , लाज शर्म बतलाना ।
शिव संभू तुम भगवन पूरे ,  क्यों पड़ गया लिंग पूजाना ।।
शिव भोले ………

 (इन्शान परेशान है)

हर तरफ मन्दिर शिवाले , हर तरफ भगवान हैं ।
घण्टों की टन टन हर पहर , और हर पहर अजान हैं ।।
वेद और पुराण यहाँ ,  और यहाँ कुरआन हैं ।
फिर भी हिंदुस्तान में , इंशान परेशान हैं ।।

हर तरफ मन्दिर शिवाले , हर तरफ भगवान हैं ।
फिर भी हिंदुस्तान में , इंशान परेशान हैं ।।

शक्ति स्वरूपा दुर्गा काली , यहाँ सरस्वती महान हैं ।
बल बुद्धि व विद्द्या देने वाले , महाबली हनुमान हैं ।।
फिर क्यों लुटती आबरू , क्यों उड़ रहा तेजाब है ।
जल रहीं हैं बेटियां , बेरोजगार नौजवान हैं ।।

हर तरफ मन्दिर शिवाले , हर तरफ भगवान हैं ।
फिर भी हिंदुस्तान में , इंशान परेशान हैं ।।

जहाँ त्रिलोकी शिव शंकर का , दूध दही स्नान है ।
वहाँ घर में बूढ़े मात पिता , बिन पानी के हलकान हैं ।।
बकरे की अम्मा कहो यार , अब कैसे खैर मनाएगी ।
जहाँ मन्दिर मस्जिद बने हुए , उस बकरे के श्मशान हैं ।।

हर तरफ मन्दिर शिवाले , हर तरफ भगवान हैं ।
फिर भी हिंदुस्तान में , इंशान परेशान हैं ।।

ईश्वर अल्लाह एक है , फिर बोलो कौन महान है ।
जाति धर्म के नाम पर , क्यों बंटे हुए इंशान हैं ।।
सूदखोर खा रहें मलाई , हलधर का बिका मकान है ।
मानवता जहाँ पल पल मरके , झेल रही अपमान है ।।

हर तरफ मन्दिर शिवाले , हर तरफ भगवान हैं ।
फिर भी हिंदुस्तान में , इंशान परेशान हैं ।।

(इश्कबाजी)

का कही इश्कबाजी मैहा , बहुतै बड़ा बवाल भवा । 
कपड़ा लत्ता सब चिट्टी होइगे , पिछवाड़ा तक लाल भवा ।।
तबहो न छूटि ढिठाई यह , जेब से सारा माल गवा ।
गई हशीना भागि केहू संग , बहुतै बड़ा कमाल भवा ।।
का कही इश्कबाजी मैहा , बहुतै बड़ा बवाल भवा । 
कपड़ा लत्ता सब चिट्टी होइगे , पिछवाड़ा तक लाल भवा ।।
हमारी वहिकी ताका - ताकी का , चर्चा चारिउ धाम भवा ।
डंडा लइकै हाकिम आए , तब थाने म सम्मान भवा ।
जूता - चप्पल चले ऐस , कि खोपड़ी क एक एक बाल गवा ।
रिस्ते -नाते तक थू -थू होइगै , घरहु म बड़ा धमाल भवा ।।
का कही इश्कबाजी मैहा , बहुतै बड़ा बवाल भवा । 
कपड़ा लत्ता सब चिट्टी होइगे , पिछवाड़ा तक लाल भवा ।।

(मोहब्बत की कश्ती)

ओ जब से मोहब्बत की कश्ती में सवार हो गए ।
 इश्क़ के बुखार से ओ ,  बीमार हो गए ।।
बड़े शेर बनते फिरते थे , मोहल्ले में तन के चलते थे ।
उसने घूर के देखा उनकी तरफ , तो ओ सियार हो गए ।।

ओ जब से मोहब्बत की कश्ती में सवार हो गए ।
 इश्क़ के बुखार से ओ ,  बीमार हो गए ।।

पहले तो कभी - कभार निकलते थे रंगीन शाम को ।
अब तो दर बदर फिरने लगे हैं , उसकी तलाश में ।।
जब से काटा है उसके कुत्ते ने , पिछवाड़े पर उनके ।
तब से ओ मोहल्ले में , भीगी हुई बिलार हो गए ।।

ओ जब से मोहब्बत की कश्ती में सवार हो गए ।
 इश्क़ के बुखार से ओ ,  बीमार हो गए ।।

सुन - सुन के वफ़ा न रास आई  , हम भी परेशान हो गए ।
कानों में ठूंस के ईयरफोन की खूंटी , ओ अताउल्लाह खां हो गए ।।
एक रोज उसके मोहल्ले के लौंडों ने , जम के कूट दिया ।
तब से ही ओ बिगड़ा हुआ , सितार हो गए ।।

ओ जब से मोहब्बत की कश्ती में सवार हो गए ।
 इश्क़ के बुखार से ओ ,  बीमार हो गए ।।

(गूगल जी ढूंढना-हास्य काव्य)

जिसका वजूद खो गया गूगल जी ढूंढना ,
क्या आदमी है आदमी ,
गूगल जी ढूंढना ।
जिसका ……-2
मेकअप के पीछे कौन है
 गूगल जी ढूंढना ।
ओ कृष्ण है कि राधिका गूगल जी ढूंढना ।
जिसका ……-2
ये उम्र का असर है कि ब्लीचिंग का रिऐक्शन ।
क्या वाकई बुजुर्ग है ?
गूगल जी ढूंढना ।
जिसका ……-2
बालों का रंग देख के हैरान बहुत हूँ ,
असली है कौन रंग ,
ये गूगल जी ढूंढना ।
जिसका ……-2
कानून खत्म हो गया मर्जी जो ओ करें ।
बीबी है कौन मर्द है ,
गूगल जी ढूंढना ।।
जिसका ……-2

(चिल्लपों-हास्य काव्य)

कैसी चिल्लपों मची ये कैसा शोर है ।
सुन रहा हूँ चौकीदार भी तो चोर है ।।

कैसे फ़ैसला ये हो किसकी जमीन है ।
सारे तो कह रहे हैं ये जमीन मोर है ।।

लाठी थी जिसके हाथ में उसी की भैंस थी ।
लाठी का है दावा की अब ये भैंस मोर है ।।

अब लोमड़ी की दाल भी गलती नही कहीं ।
क्योंकि हुनर का बोलबाला चारो ओर है ।।

पन्ना कहें कि मुल्क में मिल बांटकर रहो ।
अब तोर मोर न करो ये दौर और है ।।

(स्वप्न में स्वर्ग-हास्य काव्य)

एक रात अपने स्वप्न से मैं स्वर्ग में गया ।
एक सन्त ने वहाँ भी मुझसे जाति पूँछ ली ।।
मैंने कहा प्रभु हिअयूँ का जाति अब चली ।
बोले किधर है भेजना कइसे पता चली ।।

मैंने कहा अन्तर्गयाई चेहरे से भाँप लो ।
क्रोधित हुए कहने लगे बत्तीसी झांप लो ।।
जाति धर्म बोल दो जल्दी से वत्स तुम ।
वरना यहाँ से खिसको अपना रस्ता नाप लो ।।

मैंने कहा बेधर्म हूँ , मैं बेजात हूँ प्रभू ।
बोले अगर बेजात हो धरती पे ही रहो ।।
धरती पे जाके नास्तिक वहीं पे रोक दो ।
जो जाति-धर्म कर रहें सब स्वर्ग भेज दो ।।

जितने हैं नास्तिक यहाँ उधम मचा रहे ।
पीकरके सारे देवता हैं गम भुला रहे ।।
मैंने कहा कि नास्तिक प्रमाण खोजते ।
साधू हमारे देश में झगड़ा करा रहे ।।

विनती किया भेजो नही मुझे प्रभू धरा ।
वहाँ तो राजनीति में बवाल है धरा ।।
बोले यहाँ भी राजनीति डाँवाँडोल है ।
ढोल वही बज रही जिसमें की पोल है ।।