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आई तो आई कहाँ से - 4

बाल उपन्यास

आई तो आई कहाँ से

  • (4)
  • मंदिर और झाड़ियां
  • छुट्टियां समाप्त हो गईं और स्कूल प्रारम्भ हो गए l सुबह जल्दी उठकर आरुषि तैयार हो गई l फटाफट बैग चैक किया l माँ ने टिफिन लगाया, आरुषि की सुन्दर चोटी गूँथ दी l कक्षा चौथी का आज पहला दिन था l स्कूल में प्रवेश उत्सव हो रहा था l पूरा विद्यालय साफ़ - सुथरा दिख रहा था l सभी शिक्षक और छात्र - छात्राएं उत्साह से भरे हुए थे l शिक्षक कक्षा एक के नन्हें - मुन्ने विद्यार्थियों का तिलक लगाकर स्वागत कर रहे थे l टीना मीना मीनाक्षी एक दूसरे से खिलखिलाकर मिल रही थीं l अभी विद्यालय में प्रार्थना के लिए दस मिनिट शेष थे तब तक सब दोस्त आपस में मिल रहे थे l प्रिंस ने आरुषि से कहा -

    ‘ का कड़ी कदम कड़ी ‘ लैंड ‘ कड़ी मध्ये, का कड़ी कदम्ब कड़ी ‘ गे ‘ कड़ी मध्ये l

    आरुषि ने होंठों पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया - सर आ रहे हैं l तभी प्रार्थना प्रांगण में सारे बच्चे इकट्ठे होने लगे l प्रिंसपाल सर टोपनानी, स्पोर्ट्स टीचर मगनानी, साइंस टीचर लैंडगे, हिंदी टीचर गुप्ता मैडम, इंग्लिश टीचर नायडू, गणित टीचर कमला प्रसाद त्रिपाठी सारे शिक्षक एक साथ सावधान की मुद्रा में खड़े थे l मिडिल और प्रायमरी एक साथ ही लगती थी अतः मिडिल स्कूल के बच्चे ही प्रार्थना करवाते थे l राष्ट्रगान ‘ जनगणमन ........ प्रारम्भ हुआ और ‘ ईश विनय वह शक्ति हमें दो दयानिधि, कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं .......’ l सारे बच्चे आँख बंद कर हाथ जोड़कर विनय कर रहे थे किन्तु कुछ चुलबुले बच्चे एक आँख खोलकर बीच - बीच में देख लेते l लेकिन, लैंडगे सर की कड़क दृष्टि पड़ते ही जमकर आँख मींच लेते l ( यह दृश्य देखकर स्वयं ईश्वर भी मुस्कुराये बिना न रह सके होंगे ) l प्रतिदिन प्रार्थना के पश्चात् एक सुविचार की प्रस्तुति छात्रों द्वारा दी जाती -

    ‘ जो जस करहिं, सो तस फल चाखा ‘, जो जैसा करेगा, उसे वैसा ही प्रतिफल मिलता है l मिडिल स्कूल के एक बच्चे के द्वारा प्रस्तुति दी गई और फिर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सारे बच्चे कतारबद्ध अपनी - अपनी कक्षाओं की ओर चले गए l कक्षाओं में आते ही कौन कहाँ बैठेगा ? मीनाक्षी पीछे की सीट ढूंढ़ रही थी l आरुषि, टीना, मीना आगे की और प्रिंस, पंकज, नीरज तो हमेशा की तरह दूसरे नंबर की बेंच में ही बैठते थे l सारे विद्यार्थी बैठ गए नई उमंग, नई उछाह, नई किताबें, नया पाठ्यक्रम l बस टीचर सभी वही थे और बच्चे भी l वैसे हर वर्ष दो - चार नए बच्चे एडमिशन लेते थे किन्तु आज कोई नया नहीं दिख रहा था l आरुषि ने खड़े होकर पूरी क्लास का मुआयना किया l प्रिंस ने उसे चिढ़ाते हुए पंकज से कहा - होशियार लड़कियां पिन्नी बहुत होती हैं l पता है, इसकी गुड़िया मैंने फेंक दी तो इतना रोई, मुझे इसने पीटना शुरू कर दिया l जरा सी गिर गई साईकिल से तो फिस्स - फिस्स रोने बैठ गई l फिर दोनों हंसने लगे l आरुषि ने अपनी तरफ देखकर हँसते देखा तो घूरकर बोली - आने दो ‘ जमीन पर गए ‘ सर को फिर तुम लोगों की सारी हंसी भूल जायेगी l और इतने में सचमुच लैंडगे सर आ गए l प्रिंस की तो सिट्टी - पिट्टी गुम l यदि आरुषि ने शिकायत कर दी तो हालत ख़राब हो जायेगी l

    गुड़ मार्निग सर l

    गुड़ मार्निग, सिट डाउन l

    कैसे हो तुम सब ?

    सारे बच्चे मुस्कुराने लगे l

    सर ठीक है l

    छुट्टियों में पढाई - वढ़ाई तो की नहीं होगी ? सारे बच्चे अपनी होमवर्क कापियां जमा कर दें l

    सर पढाई के प्रति बेहद कड़क थे l उन्हें हंसी - मजाक का माहौल बिल्कुल पसंद न था इसलिए सारे बच्चे अपना प्रोजेक्ट ले आए थे l सभी ने जमा कर दिया और लेसन वन शुरू हो गया l दूसरा कालखंड इंग्लिश, फिर मैथ्स, फिर रीसिस और अब मजेदार कालखंड हिंदी का जिसका बच्चों को हमेशा इन्तजार रहता, गुप्ता मैडम का, वो कक्षा शिक्षक भी थीं l मैडम के आते ही सभी बच्चों ने हाथ जोड़कर ‘ सुप्रभात ‘ अभिवादन किया l

    बच्चो बैठो, क्या बात है, बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे हो ?

    अच्छा बताओ, छुट्टियां कैसी बीतीं ? कहीं बाहर गये घूमने या फिर घर पर ही थे ?

    कुछ बच्चों ने बताया - हम मामा के यहाँ गए थे लेकिन आरुषि की टीम तो उतावली थी बताने के लिए कि हम लोग तो पिकनिक पर गए थे l आरुषि, पंकज, प्रिंस, नीरज, टीना, मीना, मीनाक्षी सभी ने हाथ ऊपर किये l मैडम ने कहा -

    बताओ आरुषि, कहाँ गई थी ?

    मैडम, हम लोग पंकज, प्रिंस, नीरज, टीना, मीना, मीनाक्षी, मनीष सभी लोग रूपनाथ का मंदिर देखने गए थे l वह पिकनिक स्पॉट भी है l प्राकृतिक जलप्रपात है और हरे - भरे खेतों को देखना बहुत अच्छा लगा l फसलों की जानकारी हमें किसान चाचा ने वहां दी और बैलगाड़ी की सैर बेहद मजेदार थी l वाह ! ‘ मजा आ गया था ‘l

    साथ गए हुए सभी बच्चों ने एक साथ अपनी प्रसन्नता व्यक्त की l आज का पीरियड तो मैडम ने बस बच्चों के साथ एंज्वाय किया, अटेंडेंस ली और हिंदी की बुक से पहला पाठ पढ़कर आने को कहा l सारे बच्चे आनंदित हो गए फिर खेल का पीरियड और फिर छुट्टी ..l

    ***

    प्रथम दिवस हर्षाल्लास से बीत गया l आरुषि जब घर आई तो दुर्गा ने किलकारी के साथ उसका स्वागत किया l वह अब बोलने लग गई थी - दीदी l वह अपनी गुड़िया, खेल - खिलौने छोड़कर आरुषि का बैग लेने दौड़ पड़ी l माँ आरुषि का बैग लेकर रखने लगी l

    आरुषि खाना खाया कि नहीं, स्कूल में कैसा लगा ?

    उतावली होकर माँ पूछ रही थी l आरुषि खुश होकर बताये जा रही थी l

    माँ, भूख लगी है l

    चलो, तुम्हारी पसंद की सब्जी बनी है, आलू की सूखी सब्जी और तुम्हारी फेवरेट कढ़ी l

    अब तो मजा आ जाएगा कढ़ी - चांवल में, थेंक्यू मम्मी l

    दुर्गा दोहरा रही थी - कढ़ी - चाँवल l

    हाँ, चल तू भी खा ले l

    खाना खा - पीकर दोनों सो गईं l

    उठते ही आरुषि बोली - मैं साईकिल चलाऊंगी l

    अरे, होमवर्क कौन करेगा ?

    होमवर्क तो मिला ही नहीं l

    अरे, ऐसा कैसा स्कूल है ?

    आरुषि हंसी, अरे मम्मी पहला दिन था ना l

    दुर्गा आरुषि की फ्रॉक पकड़ कर खींचने लगी - मुझे भी जाना है l

    आरुषि ने माँ से कहा - इसे पकड़िए, कही बाहर जाने न लग जाए ?

    उसे डर था, दुर्गा कहीं बाहर गई तो कहीं फिर से कचरे के ढेर में न चली जाय ?

    यह बात दिमाग में आते ही वह दुर्गा को अपने पास खींच लेती, उसे प्यार करती, भय से वह भीतर तक काँप जाती l

    आरुषि माँ से कहती हुई कि मैं एक घंटे में आ जाऊँगी, साईकिल लेकर पैडल चलाते हुए मस्ती में घंटी बजाती हुई जा रही थी l रास्ते में ही प्रिंस मिल गया l प्रिंस ने छेड़ा -

    गुड़िया नहीं लाई क्या, तुम्हारी सचमुच की गुड़िया ?

    आरुषि ने साईकिल रोकी, वह बोली - प्रिंस, मुझे गुड़िया के लिए इस तरह हंसी - मजाक बिल्कुल पसंद नहीं है l तुम्हें क्या, तुम मेरी गुड़िया को कहीं फिर फेंक देते झाड़ियों के पास कचरे में और हँसते रहते l

    अच्छा, पानी लाई कि नहीं ? उस दिन जैसे गिर मत जाना, फिर फिस्स - फिस्स रोना .....

    रुको, मैं अभी तुम्हारे ऊपर साईकिल चढ़ाती हूँ l प्रिंस तेज साईकिल चला कर भागा, आरुषि उसके पीछे - पीछे ......l एक चबूतरे के पास दोनों आकर रुक गए l वहीँ पास में मंदिर भी था और मंदिर के पीछे ही वह झाड़ियां और कचरे का ढेर जहाँ आरुषि की सचमुच की गुड़िया उसे मिली थी l वह उस स्थान को भूलना भी नहीं चाहती थी और किसी को बताना भी नहीं चाहती थी l उसने अपने भीतर के भय को झटकार कर प्रिंस से कहा - तुमने पाठ पढ़ लिया हिंदी का ? प्रिंस ने चिढ़ाया - अभी कहाँ से पढ़ लिया, तुम्हारे जैसे पढ़ाकू नहीं हूँ, समझी ? तभी आरुषि ने देखा, मंदिर की घंटियां बजीं और सीढ़ियों से उतरकर मीना, टीना अपनी मम्मी के साथ उतरती चली आ रही थीं l

    आरुषि, तुम यहाँ क्या कर रही हो ?

    हम लोग साईकिल चलाते यहाँ निकल आये थे l

    तुम साईकिल नहीं चलाती ?

    मेरे पास साईकिल नहीं है l

    आओ, मेरे साथ बैठोगी ? मैं डबल चला लेती हूँ l

    माँ से पूछना पड़ेगा l

    ठीक है, मैं ही पूछ लेती हूँ l

    आंटी, मैं मीना को साईकिल पर बिठाकर घर छोड़ दूँ ? वहीँ से मैं अपने घर चली जाऊँगी l

    हाँ, ठीक है l

    चलो प्रिंस l

    हाँ, हाँ चलो l

    ट्रिन ट्रिन घंटी बजाते तीनों चले जा रहे थे तभी पंकज, मनीष भी साईकिलिंग करते हुए रास्ते में मिले l सभी गपशप करते हुए घर की ओर चले गए l

    आसमान में पंछियों के झुण्ड उड़ान भरते अपने बसेरों की ओर जा रहे थे l सूरज भी थका - हारा सा अब गया कि तब l आसमान में अद्भुत छटा बिखरी थी l आरुषि घर पहुंची, दुर्गा दीदी कहकर लिपट गई l मुंह - हाथ धोकर आरुषि अपना स्कूल बैग लेकर बैठ गई l हिंदी की बुक से पहला पाठ

    ‘ झंडा वंदन ‘, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा

    सदा शक्ति बरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला ....... पढ़ा l लेकिन उसकी किताब में दूसरा पाठ ‘ मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध राष्ट्रीय वन उद्यान बांधवगढ़ ‘ था lउसने अनुक्रमणिका से सारे पाठों को देखा, फिर सोचा, कल टीचर से पूछूँगी, राष्ट्रीय वन उद्यान क्या होता है ? तभी माँ ने खाना खाने के लिए आवाज लगाईं l दुर्गा और आरुषि ने खाना खाया और दोनों बहिनें बिस्तर पर खेलने लगीं l

    चल दुर्गा, आज मैं तुम्हें कहानी सुनाती हूँ l दुर्गा हूँ हूँ करती हुई कहानी सुनने लगी -

    एक चूहा था l उसने अपने सिर पर टोपी लगा ली और एक ढोलक अपने गले में टांग ली और बजाने लगा –

    ढम ढमा ढम ढम ...

    राजा की टोपी से मेरी टोपी अच्छी, ढम ढमा ढम ढम

    राजा की टोपी में नहीं ऐसी लच्छी, ढम ढमा ढम ढम

    दुर्गा ताली बजाकर खिलखिलाने लगी l

    दुर्गा आँखें मलने लगी तो आरुषि ने उसे लोरी सुनाई जो उसे दादी ने सिखाई थी -

    रानी बेटी सो जा, सपनों में खो जा

    लाल परी आएगी, तुझको ले जाएगी

    सपनों के गाँव में, तारों की छाँव में

    फूल सभी सो गए, तू भी सो जा .....

    और माँ के आने के पहिले ही दुर्गा सो गई l

    ***