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आई तो आई कहाँ से - 5

बाल उपन्यास

आई तो आई कहाँ से

  • (5)
  • सबेरा कैसा होता है ?
  • आरुषि ने कहा - माँ, कहानी l

    ओफ्फो, आज ऐसे ही सो जाओ l

    न न, न्यू कहानी l

    कहाँ से लाऊँ न्यू कहानी ?

    अरे, दादी से ले लिया करो ना l

    अच्छा, छोटी सी कहानी सुनाती हूँ जो दादी से ही ली है, फिर सो जाना l

    ठीक है l

    एक बार एक उल्लू ने चमगादड़ से कहा - सबेरा कैसा होता है ?

    चमगादड़ ने आँखें मिचकाई, मुझे क्या पता ?

    अच्छा चलो, किसी और से पूछते हैं l तभी वहां जुगनू उड़ते हुए दिखाई दिया l

    जुगनू भाई, सबेरा कैसा होता है ?

    उसने अपनी रेडियम लाईट चमकाई, देखो सबेरा ऐसा होता है l

    हुँ, ऐसा नहीं होता, तुम मुझे बेवक़ूफ़ बना रहे हो l

    वहीँ पेड़ की कोटर में बैठा तोता सबकी बातें सुन रहा था l बोला -

    अरे निशाचरो, रात में जागते हो, सबेरा होते ही सो जाते हो और पूछते हो, सबेरा कैसा होता है l सुबह - सुबह सूरज आसमान में लाल गेंद के सामान दिखाई देता है, पंछी चहचहाते हैं, तालों में कमल खिल जाते हैं, फूलों पर तितली, भौंरे मंडराते हैं l सारे लोग अपने - अपने काम पर जाते हैं l सुबह का समय बहुत सुखदायी होता है l

    कभी सूरज निकलने के पहले जागो तो पता चले कि सबेरा कैसा होता है l जाओ रात हो गई है, सो जाओ, मुझे सोने दो l

    अच्छा, निशाचर यानि ?

    निशाचर यानि जो रात में जागते हैं, दिन में सोते हैं l उल्लू, चमगादड़, जुगनू सब रात में जागने वाले हैं l

    अरे तोता तो बहुत समझदार था l अच्छी कहानी है, एक कहानी और l

    अरे, अब नाटक नहीं, चुपचाप सोओ l कल सुबह सूर्यादय के पहले जागकर सबेरा देखना है, कैसा होता है l

    आरुषि खिलखिला गई - शुभ रात्रि मम्मा l

    आरुषि सचमुच सूर्यादय के पूर्व उठ गई l फ़ुटबाल के बराबर लाल - लाल सूरज आसमान पर अकेला ही खेल रहा था l उसके चारों तरफ सोने जैसी चमकदार किरणें चमचमा रही थीं l अरे, यह क्या, चिड़िया अपने बच्चों को नहला रही है, वह भी धूल में ?

    अभी एक तरफ चन्द्रमा का मद्धिम प्रकाश भी दिख रहा था और अगले ही क्षण वह डूब गया l सूरज आकाश में ऊपर चढ़ गया l पंछी पेड़ों से अपने घोंसलों से निकलकर दाना - पानी की तलाश में उड़ चले l आरुषि ने फटाफट पापा के मोबाईल से एक फोटो क्लिक की l उसे यह दृश्य इतना अच्छा लगा कि वह विद्यालय में सब बच्चों को बताना चाहती थी कि सुबह का सूरज कितना मनोरम होता है, हवा ठंडी और सुख देने वाली होती है साथ ही प्राणप्रद भी l

    माँ ने आवाज लगाईं - क्या ऊपर छत पर ही रहोगी, स्कूल नहीं जाना ?

    वह बहुत खुश थी, अब तो मैं रोज ही सूर्यादय के पहले उठूंगी l वह फटाफट फ्रेश होकर विद्यालय जाने के लिए तैयार होने लगी l दुर्गा तो अभी भी सोई थी l

    माँ, आज मैं विद्यालय में सुविचार बोलना चाहती हूँ l आप बताओ ना ?

    सबसे अच्छा सुविचार है -

    कर्म किये जा, फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान

    जैसा कर्म करोगे, वैसा फल देगा भगवान

    ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान

    आरुषि ने इसे पहले भी माँ से सुना था, उसे याद हो गया l

    विद्यालय की दूरी इतनी ही थी कि बच्चे साईकिल से ही स्कूल जाते थे, बस ऑटो रिक्शे से नहीं सारे बच्चे ग्रुप में निकलते तो मम्मी - पापा को भी छोड़ने जाने की झंझट नहीं थी l विद्यालय में प्रार्थना के बाद सुविचार के लिए आरुषि ने कहा, मैडम जी, आज का सुविचार मैं बोलना चाहती हूँ और जब उसने यह सुविचार बोला तो पूरा प्रार्थना प्रांगण गूंज उठा l सारे बच्चे उसे दोहरा रहे थे, ताली बजाकर गा रहे थे - ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान l सभी अपनी कक्षा में पहुंचे l आज पहला पीरियड ही कक्षा शिक्षक का था यानि हिंदी का l विद्यालय में एक नई मैडम भी आ गई थीं, साक्षी मैडम और उनका बेटा भी कक्षा पांचवीं में दाखिल हुआ था सक्षम l कक्षा शिक्षक ने कहा - अब से यह इसी कक्षा में पढ़ेगा, सब सक्षम का ताली बजाकर स्वागत करो l ओफ्फ, आरुषि ने प्रिंस की तरफ देखकर कहा -

    ‘ का कड़ी कदम्ब कड़ी, ‘ क्षी ‘ कड़ी मध्ये ......

    वह समझकर मुस्कुराया ‘ मीनाक्षी ‘, साक्षी ‘, ‘ सक्षम ‘ l

    ‘ क्ष ‘ की पुनरावृत्ति से आरुषि को मजा आ रहा था l अब मीनाक्षी के साथ सक्षम को भी आक्क्षी - आक्क्षी चिढ़ाएँगे ..... पर अब तो यह भी बैठेगा यहीं l आरुषि की सीट पर मीना हमेशा बैठती थी l उसने मीना से कहा - टीचर का बेटा है, बहुत होशियार होगा l

    देखने में तो कैसा गोल - मटोल आलूबंडा की तरह दिख रहा है, कहीं बुद्धि भी गोल - मटोल आलू की तरह हुई तो !

    स्स स्स .......

    ये तुम लोगों ने क्या गुटरगूं लगा रखी है ?

    आरुषि –‘ का कड़ी कदम्ब कड़ी ‘ आ ‘ कड़ी मध्ये, का कड़ी कदम्ब कड़ी ‘ लू ‘ कड़ी मध्ये .......

    पूरी कक्षा हंसने लगी l इस शरारत से बेचारा सक्षम सहम सा गया, नया - नया जो आया था l टीचर ने मुस्कुराते हुए आँख दिखाई - आरुषि ..... l

    आरुषि मुंह पर उंगली रखकर बैठ गई l

    टीचर ने पहला पाठ ‘ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ‘ लयबद्ध पढ़वाया l देश प्रेम, त्याग और बलिदान की कुछ गाथाएं भी सुनाईं और तिरंगे झंडे का महत्त्व बतलाया, कठिन शब्दों के शब्दार्थ बताये, प्रश्नोत्तर पूछे l सारे बच्चे देशप्रेम की भावना से भर गए l आज का दिन हर्षाल्लास भरा रहा l टीचर ने कहा - हो सकता है, कुछ बच्चों को दूसरे सेक्शन में जाना पड़े क्योंकि इस कक्षा में बच्चे ज्यादा हो रहे हैं l सभी डर गए, मालूम नहीं किसको दूसरे सेक्शन में भेज दिया जाय ?

    ***

    रीसिस के समय जब टीचर फ्री बैठी थीं तभी आरुषि ने राष्ट्रीय वन उद्यान की जानकारी लेनी चाही - मैडम, अगला पाठ राष्ट्रीय वन उद्यान का है, यह क्या होता है ?

    जहाँ जंगली जानवर स्वच्छंद होकर विचरण करते हैं शेर, भालू, हाथी, चीता आदि, उनका वहां कोई शिकार नहीं कर सकता l सरकार द्वारा उनकी सुख - सुविधाओं की पूरी व्यवस्था होती है और इन उद्यानों में हम भ्रमण करने के लिए भी जा सकते हैं l वहां इन जानवरों को हाथी या जीप में बैठकर देखा भी जा सकता है l

    क्या सच में मैडम जी, विद्यालय से ऐसा कोई टूर नहीं बनाया सकता जहाँ हम सब बच्चे आप लोगों के साथ भ्रमण कर सकें ?

    आरुषि, तुम कह तो ठीक रही हो किन्तु, इसके लिए प्रिंसपाल सर से चर्चा करना होगी l बड़ी प्लानिंग करना पड़ेगी l फिर भी, देखो सोचती हूँ l

    आरुषि खुश हो गई l वह शीघ्रता से मैदान में आई जहाँ सारे बच्चे गेंद - पिट्टू, बैडमिंटन खेल रहे थे l उसने आवाज लगाई - मीना, टीना, नीतू, मीनाक्षी, प्रिंस, पंकज, नीरज सब यहाँ आओ, खेलते ही रहोगे या मेरी बात भी सुनोगे l सब हाँफते हुए इकट्ठे हुए l प्रिंस कहने लगा, आरुषि का दिमाग स्पेशल चलता है, खेलने भी न देगी, अभी रीसिस पूरी हो जायेगी l

    बोलो जल्दी l

    अरे मूर्खो , मेरी बात ध्यान से सुनो, तुमने कभी राष्ट्रीय वन उद्यान देखा है ?

    ऊं हूँ .... ऊं हूँ .......

    ऊं हूँ के बच्चे , देखना है कि नहीं ?

    सबने कहा - देखना है l

    तो सुनो, कल मैडम यही पाठ पढ़ाने वाली हैं l तुम सब लोग एक साथ बोलना, हम सब लोग राष्ट्रीय वन उद्यान घूमना चाहते हैं l

    सबने क्लास कैप्टन आरुषि की बात पर हामी भर दी l

    दूसरे दिन सभी को हिंदी मैडम के पीरियड का बेसब्री से इन्तजार था l मैडम के पढ़ाने का अंदाज सबसे अलग था l उन्होंने मुस्कुराते हुए बच्चों का अभिवादन स्वीकार किया और कहा - आज तुम्हें पहले एक कविता सुनाते हैं -

    नये वर्ष के शुभागमन पर, शेर जी ने सभा बुलाई

    हिरण भेड़िये, गेंडे आए, चतुर लोमड़ी आई.....

    सदा चौकसी करना होगी, बोला शेर सुनो सब भाई

    दिन दिन कटते जाते जंगल, कठिन परीक्षा है अब आई

    शिकारियों से बचने की फिर, गेंडा जी ने जुगत बताई

    पर्यावरण बचाने खातिर, नागदेव ने फुसकार लगाई

    सब मित्रों की देख एकता, राजा शेर की आँख भर आई

    रहेंगे अटल हम और जंगल, धन्यवाद है सबका भाई l

    कविता सुनकर सब बच्चों ने तालियां बजाईं l

    अच्छा, ये बताओ, कितने बच्चों ने जंगली जानवर देखे हैं ?

    आदत के अनुसार सबने हाथ ऊपर कर दिये, फिर झेंपकर हँसते हुए हाथ नीचे कर लिए l

    मैडम ने हँसते हुए कहा - तुम लोगों के हाथ ऊपर देखकर तो मैं हैरान रह गई थी l ऐसा लगा कि ये जानवर तुम लोगों के घर में ही रहते हैं l

    सब हंसने लगे l

    ये जानवर कहाँ रहते हैं ?

    जंगल में l

    और जंगल तो हम लोग कभी गए ही नहीं l

    हाँ, तो आज ऐसे ही वन उद्यान के बारे में पढ़ेंगे l

    पाठ पढ़कर सभी बहुत प्रसन्न हुए और योजना के अनुसार बच्चों ने राष्ट्रीय वन उद्यान भ्रमण की बात कही l

    ठीक है, मैडम ने मुस्कुराते हुए आरुषि की तरफ देखा, वे जानती थीं, इसी की प्लानिंग है l

    मैडम के जाते ही सब एक दूसरे के हाथ में थपेड़ी देते हुए हुर्रे का शोर मचाने लगे - अब मजा आएगा l

    प्रतिदिन की भांति सोने से पूर्व आरुषि ने अपनी डायरी में आज की विशेष दिनचर्या को नोट किया l प्रातः देखे हुए सूर्यादय के दृश्य को भी ड्राइंग कॉपी में बनाने की कोशिश की l

    अर्धवार्षिक परीक्षाएं नजदीक थीं l विद्यालय में पढ़ाई का माहौल था l शिक्षक, विद्यार्थी अपने विषय की तैयारी में लगे हुए थे l अक्टूबर का महीना था l 2 अक्टूबर देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिन पर विद्यालय में भाषण, कविता, प्रहसन की तैयारी चल रही थी l हिंदी टीचर गुप्ता मैडम ने बताया कि 2 अक्टूबर को ही बालसाहित्य के भीष्म कहे जाने वाले डॉ. श्रीकृष्णचन्द्र तिवारी ‘ राष्ट्रबंधु ‘ का भी जन्म दिवस होता है जिन्होंने तुम बच्चों के लिए करीब सौ किताबें गीत, कहानी, नाटक, जीवनी इत्यादि का सृजन किया है l उनकी प्रसिद्ध कविता, ‘ चाईं माईं खेलो ..... ‘ यह कविता मैं तुम लोगों को बाद में सिखाऊँगी l समारोह के दिन आरुषि ने शानदार भाषण दिया तो प्रिंस, पंकज ने कविता, मीना ने राष्ट्रबंधु की कविता सुनाई -

    “ चाईं माईं खेलो चाईं माईं खेलो

    हाथों में हाथ हो, सबका ही साथ हो

    ख़ुशी ख़ुशी घूमें, मस्ती में झूमें

    दीदी को कह दो, पापड़ न बेलो

    चाईं माईं खेलो चाईं माईं खेलो “ l

    टीना ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी -

    हे देवी वरदान दीजिये

    खेल - कूद विज्ञान दीजिये

    सब मित्रों में प्रेम - प्रीत हो

    कक्षा में बस कथा गीत हो

    गणित प्रश्न आसान दीजिये

    भारी बस्ता हल्का कर दो

    सर न डांटें, उनको वर दो

    बच्चों को सम्मान दीजिये

    हम बच्चों की अजब है बस्ती

    करना चाहें हरदम मस्ती

    खाने को पकवान दीजिये

    जब शाला से हम घर आयें

    ट्यूशन को ना माँ भिजवायें

    मात - पिता को ज्ञान दीजिये l

    नीतू ने देशभक्ति के गीत और नृत्य प्रस्तुत किये l मीनाक्षी ने मोनोप्ले करके सबका मन जीत लिया l सभी शिक्षकों ने बच्चों की गतिविधियों की भूरि - भूरि प्रशंसा की l प्रिंसपाल सर ने पुरस्कार दिए l

    दूसरे दिन रविवार था l आरुषि ने अपने घर की छत से देखा कि उसके टीचर, मैडम सब विद्यालय की ओर जा रहे थे l उसे लगा, शायद कोई मीटिंग होगी, शायद भ्रमण पर जाने की योजना बन रही हो l वह अंदर चली गई l माँ ने आज इडली - सांभर, डोसा बनाने का प्रोग्राम बनाया था l आरुषि को पिछली पिकनिक याद आ गई और भविष्य की भ्रमण पिकनिक सताने लगी l वह अपनी स्कूल बुक लेकर पढ़ने लगी l उसने अपनी ड्राइंग बुक पर सूर्यादय का चित्र फाइनल किया और जाने कहाँ खो गई दुर्गा को देखते हुए l उसकी पेंसिल कॉपी पर बनाने लगी झाड़ियां, वो कुत्ते का पिल्ला और कचरे में पड़ी नन्हीं सी गुड़िया ......... फिर उसकी पेंसिल कांपने लगी l वह भय से घबरा गई, झट से उसने रबर से वह चित्र मिटाना शुरू कर दिया l उसकी आँखें नम हो गईं, उसने बैग बंद किया और दुर्गा के पास गुड़िया लेकर बैठ गई और उसके साथ खेलने लगी l छुट्टी का दिन यानि कुछ न कुछ विभिन्न व्यंजन बनाती है माँ l आज इडली - सांभर के साथ खीर बनाई थी माँ ने l पापा को भी यह बहुत पसंद है l आज आरुषि के पापा ने एक पत्रिका ‘ देवपुत्र ‘ और एक कविता की पुस्तक ‘ चाईं माईं खेलो ‘ लाकर दी है l आरुषि ‘ चाईं माईं ‘ शब्द से ही किलक उठी और उसकी कविता निकालकर पढ़ने लगी - चाईं माईं खेलो ........ दीदी से कह दो पापड़ न बेलो .....

    ***