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भोलू और शेरू

भोलू और शेरू

एक आठ साल का लड़का था | नाम था भोलू | वो गांव में अपने घर में रहता था और पढ़ने के लिए गांव से दस किलोमीटर दूर एक स्कूल में जाता था | उसके घर के आसपास चीड़ के पेड़ों का घना जंगल था जिसमे सभी प्रकार के जानवर बड़े सहज ढंग से रहते थे | भोलू जब जंगल में जाता तो दादाजी कहते "भोलू किसी जानवर को तंग मत करना, वो भी तुम्हारे मित्र बन सकते हैं | जब मैं तुम्हारी उम्र का था तब इस जंगल में एक ख़ास बात थी, यहां के शेर, भालू, बन्दर, मोर, हिरन, जंगली मुर्गा, खरगोश सब बहुत प्यार से रहते थे और यहां रहने वाले सब लोगों को नाम से और आवाज़ से पहचानते थे | कोई भी जानवर अकारण किसी जानवर को या मनुष्य को परेशान नही करता था | मैं चाहता हूँ तुम भी जंगल में फिर से वैसा वातावरण बनाने के लिए काम करो, और इसकी शुरुआत तुम अपने व्यवहार से कर सकते हो | "

"ठीक है दादा जी, "भोलू हंस कर कहता और फिर जंगल में गाये चराने चला जाता | उसके साथ जाते कालू, भूरा, चमको, झुंझुन| बस ये चार जंगली कुत्ते ही थे जिनको भोलू नाम से जानता था और जो उसके सच्चे साथी थे | बाक़ी जानवरों से भोलू दूर ही रहता था | इन चारों के साथ भोलू सुबह घर से सड़क तक और शाम को सड़क पर स्कूल बस से उतर कर घर तक की दो किलोमीटर की दूरी बड़े आराम से तय कर लेता था | अब पिछले एक साल से तो माँ को भी भोलू के इन चार रक्षकों पर विश्वास हो गया था और उन्होंने सड़क तक जाना छोड़ दिया था |

एक दिन भोलू को शाम घर आने में कुछ देर होगयी | माँ ने भोलू से ज्यादा उसके रक्षकों को गुस्सा किया और बेचारे कालू, चमकू, की टोली उस दिन बिना रोटी खाये ही चली गयी| भोलू भी बिना खाये सोगया | अगले दिन भी भोलू स्कूल से शाम को कुछ देर से आया | आज माँ ने किसी से कुछ नही कहा पर अगले दिन के लिए तय करलिया की वो शाम को सड़क पर भोलू को खुद स्कूल बस से उतार कर लाएगी |

पर अगले दिन तो जब माँ सड़क पर पहुंची तो स्कूल बस जा चुकी थी और भोलू के चारों साथी भी नदारद थे | माँ के मन में अनेक बुरे बुरे ख़याल आया.| वहां पास में एक परचून की दूकान थी जहां बस से उतर कर बच्चे अक्सर पेन, कॉपी, पेंसिल और टॉफ़ी खरीदते थे | भोलू की माँ ने उस दुकानदार से बस और भोलू के बारे में पूछा तो उसने कहा "आज तो भोलू उस बस से नही उतरा और उसकी वो चार मित्रों की टोली भी बस के आने से पहले ही आगे की सड़क पर चल पड़ी थी | "

माँ ने तो अब सरपट उस सड़क पर दौड़ ही लगा दी | माँ का दिल किसी अनहोनी के डर से जोर जोर से धड़क रहा था | कोई दो किलोमीटर की दूरी तक माँ को भोलू नही मिला पर उसकी वो मित्र मंडली का कालू वहां एक पगडंडी पर पूंछ हिला रहा था | माँ को समझते देर नहीं लगी कि भोलू कहीं आसपास ही होगा | वो बस बिना सोचे समझे कालू के साथ पहाड़ी की ओरे जा रही उस पगडंडी के पीछे चल पड़ी | कुछ दूरी पर उसे एक गुफा नुमा जगह दिखायी दी जिसके मुंह पर चमकू, झुंझुन और भूरा बड़ी मुस्तैदी से खड़े थे | उनको देखकर माँ की जान में जान आई | अब वो और भी तेज गति से कालू के पीछे पीछे उस अंधेरी सी गुफा के अंदर चलने गयी | कोई सौ कदम चलने पर उसे सामने से प्रकाश की किरण नज़र आयी और उसमे दिखाई दीं दो धुंधली सी आकृतियां |

बहुत आँखों पर जोर डालने पर पता लगा कि एक उसके भोलू से और दूसरी एक लकड़बग्घे से मिलरही है | उसने अपनी चाल और तेज़ कर दी और कालू को भी पीछे छोड़ दिया |

माँ ने जैसे ही अपने भोलू को गले लगाया 'उसे आवाज़ आयी "भोलू की माँ, डर मत, तेरा भोलू सुरक्षित है यहाँ "मैं शेरू लकड़बग्घा हूँ, भोलू के दादाजी से मेरा परिचय है | पहले मैं तुम्हारी पहाड़ी वाले जंगल में रहता था | तब वहां का माहौल बहुत अच्छा था | भोलू के दादा और उनके भाई सब जानवरों की भाषा समझते थे और सब जानवर भी उनको बहुत प्यार करते थे | "

"वो तो ठीक है, पर तुमने मेरे भोलू को यहां क्यों रखा है | "माँ ने गुस्साए स्वर में कहा |

“ऐसा नही है माँ, मैं अपनी खुशी से यहाँ आता हूँ | शेरू मुझे जानवरों के बारे में बताते हैं, पिछले कुछ दिनों से मैं स्कूल से यहाँ आरहा था | मैंने इनसे बहुत सी बातें सीखी हैं और अब अपने जंगल के जानवरों और मनुष्यों के रिश्ते को मैं फिर से वैसा ही बनाऊंगा जैसा दादाजी चाहते हैं | और ऐसा करने के लिए शेरू भी हमारे साथ जाने केलिए तैयार है | माँ बस तुम हाँ कह दो " भोलू ने माँ को मनाते हुए कहा | फिर मैं आपका सारा कहना मानूंगा और पढ़ाई भी मन लगाकर करूंगा | "

अपने भोले से भोलू की आँखों में जानवरों केलिए इतना प्यार देखकर माँ से रहा न आगया और उन्होंने हंस के हाँ कह दी \

उस रात दादाजी की आँखों में वही पुरानी चमक थी और शेरू भी अपने परिवार से मिलकर खूब ज़ोर से दहाड़ा |

शेरू की गूँज और दादा की हँसी ने फिर से पहाड़ के जंगल को खुशी से, सौहार्द से सरोबार कर दिया|

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