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शरद पूर्णिमा

कहानी~~शरदपूर्णिमा✒
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शाम का सुहाना मौसम बाग़ के सौन्दर्य को बढ़ा रहा था,तो दूसरी तरफ कृत्रिम झरनों से फूटती कलकल की ध्वनि के साथ-साथ पक्षियों की चह चहाहट वातावरण को सुमधुर बना रही थी ।राजकुमारी पूर्णिमा अपने स्वर्णिम केशों को बिखराती हुई और नुपूरों को छनकाती हुई बाग़ में चहलकदमी कर रही थी कि तभी मुद्रा ने उनका हाथ पकड़कर उसे झूले पर बैठाते हुए कहा ---"राजकुमारी जी ! आपने स्वयंवर के लिए मना कर दिया और सैकड़ों राजकुमारों की तस्वीरों में से दो राजकुमारों को चुना,जिनमें से एक के साथ आप विवाह करेंगी तब क्या मुझे नहीं बताएंगी आपने दोनों में से किसे चुना ।

मुद्रा की बात पर राजकुमारी पूर्णिमा मुस्करा दी,कोई जवाब नहीं दिया ।

मुद्रा ने कहा ---"हाँ आप मुझ दासी को भला क्यों बताएंगी"।

राजकुमारी पूर्णिमा ने रूठते हुए कहा---"हम इसी राजमहल में एकसाथ खेलकर बड़े हुए हैं ।हमने तुम्हें कभीं भी दासी नहीं समझा,हमेशा सखी समझा लेकिन आज तुम्हारी इस बात से हमारे हृदय को कितना आघात पहुँचा है यह तुम नहीं जानती" ।

मुद्रा ने क्षमायाचना के भाव से कहा ---" आपका हृदय जानते हैं राजकुमारी, केवल आपके साथ ठिठोली कर रहे थे" ।

"देखो सखी फिर कभी ऐसी ठिठोली न करना ।हम तो विवाह के पश्चात भी तुम्हें अपने साथ लेकर जाएंगे "--- कहते हुए राजकुमारी पूर्णिमा ने मुद्रा को गले लगा लिया ।

कुछ देर बाद राजकुमारी ने कहा ---"हमे स्वयं ही समझ नहीं आ रहा दोनों राजकुमारों में से किसे चुनें ।दोनों रंग-रुप,शिक्षा-दीक्षा और बल-शौर्य में एक-दूसरे से बढ़कर हैं" ।

मुद्रा ने कहा --"लेकिन चुनाव तो आपको ही करना होगा" ।

पूर्णिमा ने कुछ सोचते हुए कहा ---"दोनों राजकुमारों को संदेश भिजवा दिया जाए कि हम उनसे मिलना चाहते हैं। वह हमारे लिए तीन-तीन उपहार लेकर जल्द से जल्द राजमहल में उपस्थित हों" ।

मुद्रा ---"जो आदेश राजकुमारी" ।

पूर्णिमा ---"अब यह उपहार ही हमारी उलझन सुलझाएंगे कि किसका वरण करना है" ।

सप्ताहांत तक दोनों राजकुमार राजकुमारी के महल में उपस्थित हो गए ।

माघी नामक दासी ने पूर्णिमा को शयनकक्ष में यह संदेश दिया तो पूर्णिमा ने कहा---"दोनों राजकुमारों के सत्कार में कोई कमी न रहे" ।

माघी के जाने के कुछ समय पश्चात मुद्रा राजकुमार अभय और राजकुमार शरद द्वारा लाए गए उपहारों के साथ उपस्थित हुई ।

राजकुमारी पूर्णिमा ---"सखी ! तुम एक-एक कर हमें दोनों राजकुमारों के उपहार दिखाओं" ।

मुद्रा ने मुस्कराते हुए सबसे पहले राजकुमार अभय का उपहार राजकुमारी के समक्ष प्रस्तुत किया ---"यह देखिये राजकुमारी कोहिनूर से बढ़कर है यह हीरा" ।

उस हीरे की चमक से शयनकक्ष जगमगा उठा ।

पूर्णिमा ---"सत्य है बेहद लाजवाब" ।

मुद्रा ने राजकुमार शरद का उपहार प्रस्तुत किया एक गमला जिसमें फूल का पौधा लगा हुआ था ।

मुद्रा ने कहा ---"राजकुमार को ऐसा उपहार शोभा नहीं देता,वह भी आप के लिए" ।

पूर्णिमा ---"तुम निराश न हो सखी, यह उनकी स्वतंत्रता है वह मन और भावनानुसार कोई भी उपहार ला सकते हैं ।तुम और उपहार दिखलाओं" ।

मुद्रा ने राजकुमार अभय का दूसरा उपहार प्रस्तुत किया, कुछ दस्तावेज थे जिसमे उन्होनें राजकुमारी के नाम अपनी आधी सल्तनत कर दी थी ।

मुद्रा ने हर्षित होते हुए कहा---"राजकुमार अभय के उपहार अद्वितीय हैं" ।

पूर्णिमा ने उसके प्रत्युत्तर में कहा---"बिल्कुल" ।

मुद्रा ने राजकुमार शरद का दूसरा उपहार दिखाया जो राजकुमारी के लिए कहीं गई एक खूबसूरत नज़्म थी" ।

मुद्रा ---"बुरा न मानिए राजकुमारी ! राजकुमार शरद के उपहार तनिक भी आकर्षक नहीं हैं " ।

पूर्णिमा इस बात पर केवल मुस्करा दी ।

मुद्रा ने राजकुमार अभय का तीसरा और आखिरी उपहार प्रस्तुत किया, जो हीरे-मोती जड़ा शादी का जोड़ा था ।जिसकी सुन्दरता और छटा ही निराली थी ।

मुद्रा---"राजकुमारी जी ! अनुपम उपहार , यह जोड़ा तो आपकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देगा" ।

पूर्णिमा---"सच बेहद खूबसूरत है" ।

मुद्रा ने राजकुमार शरद का तीसरा और अंतिम उपहार प्रस्तुत किया जो एकमात्र कोरा काग़ज था ।

मुद्रा ने क्रोध में कहा---"कोरा कागज़ कौन देता है भला ।बहुत गुस्ताख़ हैं राजकुमार शरद" ।

पूर्णिमा ने कुछ नहीं कहा ।

मुद्रा---"राजकुमारी जी ! दोनों राजकुमार कल प्रस्थान करेंगे, आप उनसे भेट कर लिजिएगा और आराम से निर्णय ले लीजियेगा " ।

पूर्णिमा ने कहा---"हमने राजकुमार शरद के पक्ष में निर्णय ले लिया है" ।

मुद्रा ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा---"लेकिन उनके उपहार तनिक भी आकर्षक नहीं हैं, और न ही आपकी शान में पेश करने योग्य ही । फिर यह निर्णय किस आधार पर लिया आपने राजकुमारी" ।

पूर्णिमा ---"सखी ! उपहार भी किसी इंसान के हृदय का आईना होते हैं ।राजकुमार अभय के उपहार आकर्षण मात्र ही है जो कहीं न कहीं उनकी शानो-शौकत को तो दर्शा रहे हैं लेकिन उनके मन के भाव उनमे कहीं भी विद्यमान नहीं हैं । वो राजकुमार है तब यह सब वस्तुएँ उपहार स्वरुप किसी को देना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है ।यही सब उपहार राजकुमार शरद भी ला सकते थे लेकिन उन्होनें कोई दिखावा नहीं किया केवल अपने मन के भाव ही उपहार स्वरुप भेट किए हैं ।

वह जानते थे इतनी लम्बी यात्रा में उनके द्वारा लाए गए फूल मुरझा जाएंगे इसलिए वह फूल का पौधा ही हमारे लिए ले आए ।उनके इस उपहार में उनकी समझदारी ही नहीं वरन् उनका प्रकृति प्रेम भी झलक रहा है ।

और दूसरा उपहार हमारे लिए कहीं गई वह नज़्म, उसका एक-एक हर्फ़ कितनी गहराई से कहा गया है" ।

"यह तो ठीक है राजकुमारी लेकिन कोरे कागज़ का अर्थ तो हम तनिक भी नहीं समझे" ---- मुद्रा ने कहा ।

पूर्णिमा---"कोरे कागज़ का अर्थ उनके द्वारा दी गई हमें स्वतंत्रता है । हम उसमे कुछ भी लिख सकते हैं, कोई दबाव नहीं, जब्कि राजकुमार अभय का हमारे नाम अपनी सल्तनत करना एक तरह से हम पर दबाव बनाने का ही कृत्य है, जो हम उन्हें सादर लौटा देंगे और शादी का क़ीमती जोड़ा भी वह हमारे निर्णय से पहले ही ले आए ।इसमें भी उनका अति घमंड झलक रहा है" ।

मुद्रा---"आपने सत्य कहा राजकुमारी ! आपकी सूझबूझ और समझदारी के तो हम हमेशा से कायल थे और आज तो लोहा ही मान लिया" ।

राजकुमारी पूर्णिमा---"सखी ! हमने इसलिए राजकुमारों से एक नहीं बल्कि तीन-तीन उपहार लाने को कहा था कि उनकी समझदारी, मन के भाव के साथ-साथ उनके विचारों के भी हमें प्रत्यक्ष दर्शन हो जाएं"--- कहते हुए पूर्णिमा राजकुमार शरद से भेंट करने के लिए चल पड़ी ।

पुष्प सैनी 'पुष्प'