Bojhal mann in Hindi Short Stories by Pushp Saini books and stories PDF | बोझल मन

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बोझल मन

कहानी ( बोझल मन ✍🏻 )
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छः माह हुए भुवन को गाँव से शहर आए,साथ में पत्नी केसर और पाँच वर्षिय गोपाल भी था।किराये का एक छोटा-सा कमरा लेकर भुवन ने अपनी गृहस्थी जमा ली थी ।भुवन ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, वह शहर आकर रिक्शा चलाने का काम करने लगा लेकिन उसमें इतना ही हो पाता था कि वह अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला सके और घर का खर्चा चल सके ।वह चाहता था कि उसका बेटा खूब पढ़े और बड़ा आदमी बने ।
गर्मी के दिन तो निकल गए लेकिन अब ठिठुरता दिस्मबर आ गया था और उनके पास एक ही रज़ाई थी वह भी बहुत छोटी ।दोनों गोपाल को बीच में सुला लेते और खुद सारी रात रज़ाई के छोटे से किनारे पर निर्भर रहते ।हालांकि केसर दो माह पहले से ही कह रही थी कि एक रज़ाई और लानी पड़ेगी लेकिन वह अपनी थोड़ी-सी आमदनी में और इतनी महंगाई में रज़ाई के लिए बचत कर ही नहीं पाएँ ।

भुवन ने सोचा कि जनवरी से पहले एक रज़ाई का इन्तज़ाम और करना पड़ेगा ।गाँव में बूढ़े माता-पिता, भाई-भाभी और उनके चार बच्चें थे ।वह जानता था कि वहाँ भी अतिरिक्त रज़ाई नहीं है लेकिन उसने सोचा कि शायद बड़े भाई से कुछ रूपय मिल जाएँ तो सर्दी से बचने का उपाय हो जाएँ ।उसने इस संदर्भ में केसर से बात की तो उसने भी गाँव चलने की सहमती दे दी ।

वह अगले दिन केसर और गोपाल को साथ लेकर गाँव की राह चल पड़ा ।केसर ने जबरदस्ती भुवन को सूट (कोट) पहना दिया ।वह उसे एक अमीर बुजुर्ग आदमी ने दिया था ।हुआ यह कि एक दिन उस आदमी की गाड़ी खराब हो गयी और उसे भुवन के रिक्शे का सहारा लेना पड़ा ।वह आदमी अपना कुछ सामान भुवन के रिक्शे में ही भूल गया ।जब भुवन ने वह सामान उस आदमी को लौटाया तो उसने भुवन की ईमानदारी से खुश होकर वह कोट भुवन को दे दिया ।जिसे पाकर भुवन फुला नहीं समा रहा था क्योंकि उसने कभी कोट पहना ही नहीं था ।आज केसर ने यह कहते हुए भुवन को वह कोट पहना दिया कि हम इत्ते बड़े शहर से जा रहे है, थोड़ा तो गाँव वालों पर रौब पड़ना चाहिए कि नहीं ।

जब वह गाँव पहुँचे तो घर में हँसी-ख़ुशी का माहौल बन गया ।भुवन और केसर रूपय का ज़िक्र करने के लिए कोई मौका देख ही रहे थे कि बड़ी भाभी ने कहा --'क्या भुवन भैया, शहर जाके बाबू जी हो गये हो,' ।

बड़ा भाई बोला --'खूब जँच रहे हो सूट में ।हमारी आत्मा तो यही चाहती है कि खूब-खूब तरक्की करो,' ।

बड़ी भाभी ---'पर हमको मत भूल जाना ।थोड़ा-थोड़ा रूपय अभी से ही जमा करना होगा ,मुनिया का लगन नज़दीक है अब,' ।

बड़ा भाई ---'कैसी बात करती हो पुरबिया, भुवन सारा हाल जानता है ।अगली बार आओ तो भैया थोड़े रूपय लेते आना,' ।

भुवन और केसर बस मुस्कुरा दिये ।गाँव से लौटते वक्त भुवन को अपने काँधों पर उस कोट का वज़न अत्यधिक मालूम हो रहा था ।

पुष्प सैनी 'पुष्प'