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पछतावा...

ऑर्डर...ऑर्डर ...
तमाम सबूतों एवं गवाहों के मद्दे नज़र रखते हुए अदालत यह नतीजे पर पहुंची हैं कि मुजरिम रामु को को चोरी करने एवं मासूम लोगों को डराने धमकाने के आरोपसर दफा ३९० तहत तीन साल जेल की सज़ा सुनाती हैं। नतीजा सुनते ही रामु विरोधी वकील प्रकाश के चरणों में गिरकर अदालत मैं फूट- फूटकर रोने लगा। और कहने लगा कि, " मुझे बचा ले प्रकाश, में तेरा कर्ज जिंदगी भर नहीं भूलूंगा। प्रकाश ने कहा कि, "अब बहुत देर हो चुकी है रामु, अब कुछ भी मुमकिन नहीं है।" प्रकाशने बातो पर जोर देते हुए कहा कि, "यह तेरे बचपन के कर्मो की ही सजा तु भुगत रहा है। "यदि बचपन में ही सही रास्ते पर चलने की गुरुजनों एवं मित्रों की बातो को माना होता तो आज ये दिन देखना न पड़ता ।" रामु के पास उसका कोई उत्तर नहीं होने से वह अदालत मैं शून्यमनस्क खड़ा था।

रामु और प्रकाश के भूतकाल के पन्ने पर नजर डाले तो बचपन में वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों साथ- साथ पाठशाला में जाते, एक साथ खेलते और मौज- मज़ा करते थे। प्रकाश पूरा मन लगाकर पढ़ाई करता था और रामु कुछ न कुछ शरारत करता रहता था । रामु अपने गुरुजनों कि आज्ञा भी नहीं मानता था। प्रकाश ने रामु को लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। रामु की दोस्ती धीरे धीरे दूसरे शरारती बच्चों से हो गई थी। वे मित्र व्यसनी थे, मित्रता के रंग में रामु को भी तंबाकू की लत लग गई थी । व्यसन करने के लिए पैसे तो चाहिए, पैसे पाने के लिए वह अपने घर में ही चोरी करने लगा। बाद में वह गांव के दूसरे असामाजिक तत्वों के साथ बैठने लगा। इस तरफ प्रकाश एल.एल.बी. की इम्तहान अच्छे अंको से उत्तीर्ण होकर वकालत कर रहा था । प्रकाश को अपने मित्र रामु के बारे में सारी बातें पता चली तो प्रकाशने एक बार फ़िर से रामु को समझाने की कोशिश की लेकिन रामु को समझाने की लाख कोशिश प्रकाश के लिए निष्फल रही। अब तो रामु की पहचान एक गुनेगार आदमी के रूप में आसपास के गांवों में हो गई थी। अब रामु सोचने लगा कि, "क्यों न एक बार बड़ी चोरी की जाय, जिससे पूरी जिंदगी आराम से गुजारा हो सके।" इस काम को अंजाम देने के लिए उसने पास के गांव के बैंक में चोरी करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार वह बैंक के केशियर को चाकू की नोंक पर डराकर पैसे थेले में भर रहा था। तब एक ग्राहक ने बैंक में से चुपके से निकलकर पुलिस को खबर कर दी। तुरंत पुलिसकर्मी का काफिला बैंक पहुंच गया। रामु पर मुक़दमा चला और अदालत में हाज़िर गवाहों की ज़ुबानी के आधार पर जज साहबने रामु को सज़ा सुनाई। सज़ा सुनते ही अदालत के कठहरे में खड़े रामु के मानसपट पर से मानों भूतकाल के एक के बाद एक पन्ने फिरने लगे और वह पछतावे की आग में जलने लगा। पर अब पछताने से क्या फायदा...? जब चिड़ियां चुग़ गई खेत...।

- "कल्पतरु"