तीज का सिंधारा (16) 631 3.2k 1 Listen "मम्मी बुआ मुझे देख कर इतनी खुश हुई ना कि मैं आपको बता नहीं सकता। बुआ को समझ ही नहीं आ रहा था ,मुझे क्या खिलाए ,कहां बिठाए । उन्होंने मेरे खाने पीने के लिए इतनी चीजें बना दी कि मैं आपको क्या बताऊं । यह तो पता था मुझे देख कर वह खुश होंगी लेकिन इतना, इसका मुझे अंदाजा नहीं था।"' मेरा 18 वर्षीय बेटा, जो आज अपनी बुआ के घर तीज का सिंधारा दे कर लौटा था खुश होते हुए बता रहा था।उसकी बातें सुन मैं सोचने लगी की हम बेटियां चाहे कितनी ही बड़ी हो जाएं लेकिन अपने मायके से हमारा मोह सदा ही बना रहता है। फिर यह सोच मेरा मन उदास हो गया की कल तीज है और इस बार मेरा सिधारा नहीं आया ।मेरे पति ने शायद मेरे चेहरे को पढ़ लिया और हंसते हुए बोले "क्या हुआ ! जो इस बार तुम्हारे मायके से सिंधारा नहीं आया तो! कौन सी तुम्हारी सास है यहां ,जो तुम्हें ताना मारेगी। अच्छा चलो तैयार हो जाओ बाजार चलते हैं वहां से मैं दिलवा ता हूं , तुम्हें सिंधारे का सारा सामान।""आपको तो हर वक्त मजाक सूझता है । सिंधारा सिर्फ दिखावे के लिए या मायके से आई चीजों की लालसा भर नहीं है अजीत, वह हम बेटियों का मान है ,मायके से जुड़ा मोह है हमारा । जो हमें एहसास दिलाता है कि हम भी उस घर का अंश रही हैं और अभी भी सब हमें याद करते हैं। हम लड़कियां सिंधारे की नहीं अपितु उसमें लिपटे मां बाप ,भाई भाभी के प्यार व सम्मान की भूखी होती हैं।" कहते हुए मेरी आवाज भर गई"अरे पगली, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था । तुम तो जानती हो, पापा के जाने के बाद वहां की माली हालत सही नहीं है।"" हां , ठीक कहते हो तुम।" मैंने खुद को संभालते हुए कहा । लेकिन मन के किसी कोने में अब भी आस थी कि नहीं मेरा भाई मुझे यूं नहीं भूल सकता। वह अपनी बहन का मान ज़रूर रखेगा। तभी बेटी फोन लेकर आई और बोली मम्मी मामी का फोन है। मैंने लपक कर फोन पकड़ा "कैसी है मीरा ।""मैं अच्छी हूं दीदी और थोड़ी शर्मिंदा भी । जो सिंघारे के लिए आपको इतनी बाट दिखा रही हूं। आपके भाई के काम का तो पता ही है ना आपको। नई नई प्राइवेट नौकरी लगी है और वह लोग जल्दी से छुट्टी भी नहीं देते । कहीं नौकरी छूट ना जाए इसलिए बीच में ना आ सके। कल इतवार है ना बस।" मेरी भाभी बोली ।"चल पगली! ऐसे क्यों कह रही है । तूने मुझे याद कर लिया समझ आ गया मेरा सिंधारा।"" ऐसे कैसे दीदी, आप हम सब का कितना ध्यान रखती हो । हर विपत्ति में हम सब के साथ खड़ी रहती हो तो हम अपना फ़र्ज़ कैसे भूल जाए।"" बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी है तू तो ।" यह सुन वह हंसने लगी । "अच्छा बताओ दीदी कौन सा घेवर बच्चों को पसंद है। क्या-क्या चीजें भेजूं ।" भाभी बोले जा रही थी और मैं खुशी और भावनाओं में इतनी बह गई थी कि मुझे कुछ सुन ही नहीं रहा था ।बस हां, ना , हां ना, बोले जा रही थी।सरोजस्वरचित व मौलिक Download Our App Rate & Review Send Review Vijay 1 year ago Arena 1 year ago Jaya Dubey 1 year ago Sejal Chauhan 1 year ago Tara Gupta 1 year ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Saroj Prajapati Follow Share You May Also Like माफ़ी by Saroj Prajapati गूंगी बहू by Saroj Prajapati आत्मसम्मान by Saroj Prajapati छोटी सी कोशिश by Saroj Prajapati मेरे उसूल, मेरी पहचान by Saroj Prajapati जनवरी की वो रात by Saroj Prajapati डायरी वाला लव by Saroj Prajapati ऐसी वाणी बोलिए… by Saroj Prajapati क्या यही प्यार है by Saroj Prajapati प्रेम दीवानी by Saroj Prajapati