Udhde Zakhm - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

उधड़े ज़ख़्म - 1

ये कहानी दो लेखकों की मोहब्बत पर आधारित है, जिसे लगभग 7 पार्ट में प्रकाशित किया जाएगा, लगातार अपडेट रहने के लिए फॉलो करें और अपने प्यार और दुआओं से नवाज़े, तो आइए शुरू करते हैं,


हैलो सर"
फेसबुक पर उसका मैसेज रिक्वेस्ट पड़ा हुआ था।

मैने भी हाय में जवाब दिया और पूछा आप कौन ?

उसने कहा, मैं आपकी मातृभार्ती फॉलोवर हुँ। मैं आपको एक साल से तलाश कर रही हूँ।आपकी चारो कहानियां मैने पढ़ रखी है।और आप बहुत अच्छा लिखते हैं। लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना था।

किसी नए लेखक के लिए तारीफ अमृत समान होती है। दिल मे बहुत खुशी हुई।लेकिन उस खुशी को दबाते हुए मैने कहा हां पूछिये ना।

उसने कहा ये सारी लव स्टोरीज़ आपकी हैं?

मैने कहा जी लिखी तो मैने हैं , पर मेरी खुद की ज़िंदगी पर नही हैं।

उसने कहा फिर किसकी ज़िंदगी पर है ?

मैने कहा
किस ने मुझसे इश्क़ किया कौन मेरा महबूब है।

मेरे सब अफ़साने झूठे हैं- सारे शेर ख्याली हैं।

जो आस पास के लोगो की ज़िंदगी मे चलता है उसी पर मेरी उंगलिया मोबाइल पर चलती हैं।।

फिर मैने उनसे पूछा आपको मेरा एकाउंट कहाँ से और कैसे मिला?

उसने बताया आपकी कहानी मातृभारती ने अपने फेसबुक पेज पर अपलोड की थी। वहां आपने काफी लोगो के कमेंट के रिप्लाई दिये थे। मैने वहीं से आपके अकाउंट पर मैसेज करा।

मैने कहा चलिये बढ़िया है,क्या आप भी कुछ लिखती हैं?

उसने कहा जी वक़्त गुज़ारी के लिए दिल के दर्द को लफ़्ज़ों में उतार देती हूं।

मैने कहा
दर्द से गुज़रे अरसा बीता
फिर से दर्द में जीना है।

उसने कहा रुकिए ,फिर आपको में अपनी ग़ज़ल का लिंक देती हूं "इश्क़ और दर्द"

जब मैने उसकी ग़ज़ल पढ़ी वो वाक़ई बहुत शानदार थी और खासकर आख़री मिसरा।

" कहानी यूं लिखी जाती है फिर
उसने हमको छोड़ दिया
लो हमने खुद को तोड़ दिया"

मैने पूछा, क्या आपका दिल टूटा है कभी ? या आपको किसी से मोहब्बत है ?

उन्होंने कहा, दर्द लिखने वाला हर शख्स आशिक़ नही होता।

मैं- अच्छा फिर ?

सुम्मी - हो सकता है उसे सुकून की तलाश हो,हो सकता है उसके अंदर ज़िन्दगी की चाह न हो,कोई खुद से थक गया हो,किसी से दुनिया की जीत बर्दाश्त न होती हो,कोई अपने एहसास का ग़ुलाम हो,कोई रातों की तन्हाई से घबराता हो।



मैं- खैर आपकी इस बात का तो मेरे पास कोई जवाब नही लेकिन आपकी ग़ज़ल पर एक छोटी ग़ज़ल मुझे भी याद आयी।

कब कौन किसी का होता है
सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बाते हैं
सब असली रूप छुपाते हैं
एहसास से खाली लोग यहाँ
लफ़्ज़ों के तीर चलाते हैं।

सुम्मी- तुम्हारी हर कहानी में लड़की बेवफा क्यों है?

मैं- सुनो ए मोम की गुड़िया,
इस दौर के अंदर
कोई लैला नही होती,
कदम दो साथ चलने से
उम्र पूरी नही होती।

सुम्मी -लरज़ जाती है तोहमत के डर से।

हर लड़की बेवफा नही होती।



मैं- यूं गलत तो नही आपका तस्व्वुर भी मगर

लोग वैसे भी नही, जैसे नज़र आते है।


सुम्मी- हर शख्स यहाँ परसाई की मिसाल निकला

दिल खुश हुआ है खुद को गुनहगार देख कर।



इतनी सारी बातों के बाद मैने उनसे कहा, ये फेसबुक अकाउंट आपके असली नाम से है?

उन्होंने कहा नहीं,हमारा असली नाम सुमय्या है और घर मे बाक़ी सब प्यार से सुम्मी कहते हैं।

हमने कहा चलिये हमारी कौन सा आपसे दुश्मनी है। हम भी आपको सुम्मी ही कहा करेंगे।

सुम्मी- जी जैसा आपको बेहतर लगे। वैसे आप मातृभारती पर कब से हैं ?

मैं- जी बस एक साल ही हुआ है मुझे। 2014 में मैंने मातृभारती पर एक कहानी पढ़ी थी,उसके बाद फिर तफरीह में एक कहानी लिखी (एक पुरानी बात) ।उसे लोगो ने पसंद किया तो दो तीन कहानियां ओर लिख दीं।

सुम्मी- हमें आपकी एक पुरानी बात ही सबसे ज़्यादा पसंद है।और उसी को पढ़ने के बाद से हम आपकी तलाश में थे। फिर अब आपको देखा तो आप महज़ 19 साल के हैं।शायद आप सबसे कम उम्र के लेखक हैं मातृभारती पर?

मैं- जी हो सकता है,कह नही सकता में कुछ।क्योंकि लेखकों पर इतना ग़ौर नही किया मैने।वैसे आपकी उम्र कितनी है ?

सुम्मी - हम आपके हमउम्र ही हैं।

मैं- चलिये बेहतर है,रात बहुत हो गयी है,इन्शा अल्लाह कल बात होगी।
अल्लाह हाफिज़...

सुम्मी- अल्लाह हाफिज़।