udhde zakhm - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

उधड़े ज़ख़्म - 4

वंडर लैंड की तरफ जाते हुए रास्ते में मेने अपनी बाइक के कानो को मरोड़ना शुरू कर दिया,जिसकी वजह से वो चल कम रही थी और आवाज़ ज़्यादा करने लगी।

उन्होंने पूछा क्या हुआ अचानक से बाइक इतनी आवाज़ क्यों कर रही है, मेंने कहा इस बाइक की बड़ी तमन्ना थी कि इसके ऊपर इसके मालिक के साथ साथ एक खूबसूरत लड़की भी बैठे,अब जब तुम बैठ गयी हो तो ये जशन मना रही है,

उन्होंने कहा बस बस लेखक साहब इतनी बाते न बनाया करो,आप क्या हमें टोस्ट समझते हो? बटरिंग कि भी हद होती है।


मैंने कहा में कहा लेखक हूं यार,लेखक कोई मेरे जैसे होते है? सड़क छाप स्टोरी लिखने वाले,लेखक तो एक से एक शानदार मातृभारती पर हैं,सूरज प्रकाश मेरे फ़ेवरिट है,मर्द नही रोते पढ़ी है उनकी? इस पर सुम्मी कहती है हां पढ़ी है ना।

मैं - मस्त है ना यार .. 20 साल की उम्र में 72 साल के बूढ़े के किरदार में ले गए वो मुझे, सच में जो लिखने का हुनर अल्लाह ने मर्द को दिया है वो किसी को नही दिया,

इस पर सुम्मी एकदम से महिला पक्ष में उतरी ओर कहने लगी नासिरा शर्मा की दूसरा ताजमहल पढ़ी है आपने?

जो झूटी बाते बनाने और भूल जाने का हुनर अल्लाह ने मर्द को दिया है वो शुक्र है औरतो को नही दिया,और रही लिखने की बात तो "सायरा खान" की जिन्न की मोहब्बत. "अभिधा शर्मा " की केनवास पर बिखरे यादों के रंग. और "इरा टॉक" की फ्लिर्टिंग मेनिया. कमाल की हैं,जो कहीं से भी किसी पुरुष लेखक से कम नही।

मैं- फलां की कहानी है अच्छी फलां से।

मतलब फलां के ज़ख़्म है गहरे फलां से।


सुम्मी - जी, सही पकड़े हैं,और पता है इन सभी ज़ख्मी लोगो की फॉलोवर लिस्ट हज़ारो में है, और आप लेखक साहब अभी 300 पर ही पड़े हैं, मुझे अंदाज़ा भी नही था बुर्के में छिपी मासूम सी लगने वाली लड़की मेरी इतनी बुरी तरह से झंड कर सकती है,खेर अपनी झेंप को मिटाने के लिए कुछ तो कहना ही था।


बाइक को पार्क करते हुए मेंने कहा अरे तो हम कोनसा ज़ख्मी हैं अभी,फिर मेंने आँख मारते हुए कहा आपसे शादी हो जायेगी तो हमारी लेखनी में भी दर्द आ जायगा,सुम्मी ने अपनी कोहनी ज़ोर से मेरी कमर में मारी, में हसंते हुए बोला असल मे लड़के लोग सिर्फ लड़की का नाम देख कर ही फॉलो कर लेते है,आप खुद की प्रोफाइल ही देख लो,एक ग़ज़ल लिखी है आपने बस अभी और 150 फ़ॉलोवेर हैं,यहाँ 4 कहानियों के बाद भी रूखे सूखे पड़े है,और सबसे ज़्यादा गुस्सा पता है कब आता है,जब लड़कियों की बेकार सी स्टोरी को भी फाइव स्टार दे कर लड़के नाइस स्टोरी बोलते हैं और हम जैसे लड़को की अच्छी स्टोरी पर भी बिना कोई नुक्स निकाले वन स्टार देकर कहते है "सैड स्टोरी" .. अरे या तो स्टोरी में कमी बताओ या फिर रेटिंग अच्छी दो, आज मेरे दिल का दर्द सब बाहर आ रहा था।

अब सुम्मी थी कि हँसे ही जा रही थी,जब में दर्द निकाल कर चुप हो गया तो वो बोली अच्छा चलिये उन बड़े लोगो की बातें छोड़िये न,ठंड काफी है आइये रेस्तरॉ में चलकर कुछ गर्मा गर्म खाते हैं, में बोला चलिये।

मैंने उनके हाथ को थामा ओर जाकर एक टेबल पर बैठ गए,फिर मेंने उनके हाथ से ग्लव्स उतारे,खूबसूरत नाज़ुक नाज़ुक हाथ जो ग्लव्स के बावजूद ठंडे पड़े थे,मेंने कहा ग्लव्स में होने के बावजूद आपके हाथ ठंडे क्यों पड़े है ? नक़ाब में ही उन्होंने भवे ऊपर चढ़ाई ओर कंधे उचकाए.. मानो जैसे कह रही हो मुझे क्या पता,

मेंने उनके हाथ को अपने हाथ मे पकड़ कर दूसरे हाथ से जेब से अंघुटी निकाल कर उनकी उंगली में पहना दी,उन्हें वो रिंग बहुत पसंद आई, उन्होंने कहा में भी आपके लिए कुछ लायी हूं,और पर्स से इत्र की शीशी निकाल कर मेरे हाथों में थमा दी।


कुछ देर में ही कॉफी भी आ गई,उन्होंने अपना नक़ाब फिर भी नही हटाया, हाथ में कॉफी पकड़ हल्का सा हिजाब उठा कर कॉफी कप हिजाब के अंदर करती और सिप लेकर फर वापस रख देती, में जो इंतेज़ार में ख्वाब सजाए बैठा था के कॉफी के वक़्त तो हिजाब हटेगा सारे ख्वाब बिखरते नज़र आ रहे थे, जितना तेज़ अफेयर मेरी लव स्टोरीज़ में चलता था उतना ही हल्का रियल लाइफ में चल रहा था, इतने दिनों के बाद तो मेरो स्टोरी में लड़का लड़की लिप लॉक किस कर लिया करते हैं,और यहाँ में लिप्स सिर्फ देखने के लिए तरस रहा था,कॉफी के आखरी घूंट तक मेने दीदार का इंतज़ार किया,फिर झुंझला कर कहा यार तुम वही सुम्मी हो न जिसका फ़ोटो भेजा था तुमने ? कही ऐसा तो नही के नक़ाब के पीछे कोई और हो ? इसपर वो हंसने लगी,उनकी हंसी से मेरी झुंझलाहट ओर बढ़ गयी।


मैंने कहा यार मुझे आपको देखना है,आप हिजाब हटाओ..उन्होंने हल्का सा हिजाब उठाया, हिजाब क्या कहिये एक छोटी सी क़यामत उठा दी, पहली नज़र ठोडी पर पड़ी, फिर होंटो पर जिनपर हल्की सी मुस्कुराहट चस्पा थी, तीसरी उनकी खड़ी नाक पर ओर चौथी नज़र में उनका हिजाब फिर गिर चुका था।

वो जो यूं बे हिजाब हुए

इस दिल में न जाने क्या क्या फ़साद हुए।

हम अपना दिल पकड़ कर बैठ गएऔर कहने लगे एक ग़ज़ल पता नही किस शायर की है पर आपको देख लफ्ज़ ब लफ्ज़ याद आती है।


फिर आगे किस्सा शुरू हुआ

एक मूरत दिल में आ बैठी

नैन नशीले होंठ रसीले

चाल अजब मतवाली सी

रूप सुनहरा चाँद सा चेहरा

ज़ुल्फ़ें काली काली सी

हँसो तो पायल बज जाए

रोओ तो जल थल हो जाये

मिठास है ऐसी लहज़े में

के सुन ने वाला सो जाये

तुम चलो तो दुनिया साथ चले

जो रुको तो आलम थम जाए।


ग़ज़ल सुन कर वो बस मुस्काये जा रही थी,जिसको मेंने हिजाब में उनकी आधी बन्द होती शरारती आंखों से महसूस किया।


जब दिमाग पर खुमार ए दीदार ज़रा कुछ कम हुआ तो हमने उनसे फिर कहा।

ये आंखे बड़ी फसादी है
आपका नक़ाब है दुश्मन और नन्हा दिल जेहादी है।

इस पर वो हंस के बोलीं

आप चाहे फ़साद करो या जिहाद करो

मेहरबानी करके हमे न बेनक़ाब करो।

उनकी हाज़िर जवाबी का में हमेशा कायल रहा,गोया हमारा पूरा इरादा उनका दिल भर के दीदार करने का था,पर वो भी सब्र का इम्तेहान लेने का सोच के आयी थी।


खेर जब कुछ न मिला तो हमने कुछ वक्त यू ही शेरो शायरी की फिर अपने अपने घर लौट आये।



यूं कहने को तो जिस्म घर में ही था लेकिन दिल सुम्मी के ख्यालो में अटका था,बार बार उनका यूं होले से गोरे गोरे नाज़ुक हाथो से हिजाब हटाना याद आ रहा था, वो खूबसूरत होंठ याद आ रहे थे जिनपर नटखट सी मुस्कुराहट चस्पा थी,हिजाब से बाहर निकलते कुछ सुलझे कुछ उलझे से बाल।




मैंने अम्मी से कहा के अब्बा से मंगनी के लिये तो कह दें,शादी में अभी वक़्त है,कम से कम मंगनी ही हो जाये,न मामा से काना मामा अच्छा,

अम्मी ने कहा ठीक है मेरे लाल,अम्मी ने पापा से बात की और पापा ने सुम्मी के पापा से बात की, मंगनी 10 मई 2016 की तय हो गयी,वक़्त तैयारी में कैसे निकल गया पता ही नही लगा,आखिर कार 10 मई आयी,तय्यार होकर हम मैरिज हॉल पहुँचे,


आगे की कहानी अगले पार्ट में.