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पीताम्बरी - 4

पीताम्बरी

मीना पाठक

(4)

अचानक हँसने की आवाज से उसकी आँख खुल गई, वह चौंक कर सुनने लगी | पुकारा उसने रूपा को; पर रेडिओ की आवाज और उनके हँसने की आवाज में उसकी आवाज कहीं खो गई | वह चुप हो फिर से लेट गई, अपनी बेबसी पर उसकी आँखें से कुछ बूँदे छलक गईं |

थोड़ी देर बाद आशुतोष कमरे में आए और बैठ कर उसका माथा सहलाते हुए बोले,

“क्या हुआ ? चेहरे पर उदासी क्यूँ ?”

“कुछ नहीं |” आँखें बंद किए हुए ही बोली पीतो |

“कुछ तो है ? तुम उदास दिख रही हो |”

“बस चल फिर नहीं पा रही, कमरे में बंद हो कर रह गई हूँ, इस लिए अच्छा नहीं लग रहा कुछ |” पीतो दुखी मन से बोली |

“जल्दी ही ठीक हो जाओगी फिर खूब दौड़ लगाना |” कुछ ऐसे कहा आशुतोष ने कि हँस पड़ी पीतो |
वह उसका माथा चूम कर फिर दूसरे कमरे में जा रेडिओ पर समाचार सुनने लगे | पीतो सोचने लगी ‘बेवजह यूँ ही परेशान हो जाती हूँ मैं |’ आशुतोष का प्यार भरा स्पर्श पा कर उसकी सारी शंका दूर हो गई थी, मन से बोझ उतर गया था |

*

“दीदी सो गयीं ?”

“जी” पानी का जग रखते हुए बोली रूपा |

“रूपा !”

“जी”…

“अगर बुरा ना मानो तो मेरा सिर दबा दोगी जरा ?” अपना माथा अपनी उँगलियों से रगड़ते हुए बोले आशुतोष |

“क्या जीजा जी ! आप भी ना ! सीधे-सीधे कहिये ना कि मेरा सिर दबा दो, रुकिए अभी ठण्डा तेल लाती हूँ |”

रूपा ने अपनी गदेली में तेल भर कर आशुतोष के सिर पर थोप दिया और धीरे-धीरे अपनी उँगलियों से मालिश करने लगी |

जब आशुतोष सो गए तब उसने बल्ब का स्विच आफ किया और पीतो के पास आ कर लेट गई |
धीरे-धीरे समय बीत रहा था, रूपा और आशुतोष की नजदीकियाँ बढ़ रही थीं |

*

काले-भूरे बादलों ने आसमान में डेरा जमा लिया था | सूर्यास्त से पहले ही अन्धेरा हो गया, पंछी अपने-अपने नीड़ में लौट चले थे, हवा तेज हो गई थी, बादलों को चीरती हुयी बिजली कड़क रही थी | अचानक बादलों के गरजने की आवाज सुन कर पीतो की आँख खुल गई | दोपहर के खाने के बाद उसकी आँख लग गई थी |

“रूपा !”..

“हाँ दीदी |”..

“छत्त से कपड़े उतार ले और आँगन से सामान हटा दे...लगता है जोरों का तूफ़ान आने वाला है |”

“कपड़े उतार लाई हूँ दीदी..आँगन में भीगने जैसा कुछ भी नहीं हैं..जीजा जी के कपड़े स्त्री कर रही हूँ |”

देखते ही देखते झमाझम बारिश शुरू हो गई | पीतो सोच रही थी कि आज ‘ये’ भीग कर आएंगे | रूपा भी यही सोच रही थी | आशुतोष के आने का समय हो गया था, रूपा बार-बार दरवाजा खोल कर बाहर झाँक आती थी | थोड़ी देर बाद ही पानी से लतफत आशुतोष दरवाजे पर खड़े थे |

“आप कपड़े बदलिए मैं चाय बनाती हूँ |” रूपा ने जल्दी से तौलिया देते हुए कहा |

आशुतोष बाथरूम चले गए और रूपा चाय बनाने लगी | थोड़ी देर बाद रूपा चाय ले आई पीतो के कमरे में, क्यों कि आशुतोष वहीं बैठे थे |

चाय खत्म करने के बाद उन दोनों को आकेला छोड़ खाली कप ले कर रूपा किचन में आ गई और खाना बनाने की तैयारी में लग गई |

“आज मैं यहीं सो जाता हूँ..तुम्हारे पास |” शरारत से मुस्कुराते हुए बोले आशुतोष

“बिल्कुल नही...चुपचाप अपने बिस्तर पर जाइये..यहाँ रूपा सोती है |” पीतो दिखावटी गुस्से में बोली |

“आज रूपा को उधर सुला दो |” मनुहार करते हुए बोले आशुतोष |

“हे भगवान ! आप कितने बेशर्म हो गए हैं |” अभी कुछ और कहती पीतो तब तक रूपा खाना ले कर आ गई | दोनों ने एक साथ खाना खाया फिर आशुतोष आगे वाले कमरे में आ गए | रूपा अभी किचन मे काम समेट रही थी | घड़ी ने रात के दस बजा दिए, रूपा पानी का जग रख कर जाने को हुई कि आशुतोष ने उसे रोक लिया |

“आज नींद नहीं आ रही..थोड़ी देर बैठो यहीं..तुम्हारी दीदी तो दवा खा कर सो गई होंगी |”

“हाँ..दीदी सो गयीं हैं |”

“मुझे ठण्ड सी लग रही है..एक चादर और दे दो मुझे |”

रूपा दूसरे कमरे से चादर ले आई | बाहर रुक-रुक कर बारिश अब भी हो रही थी |

“जरा देखो तो मुझे बुखार है क्या ? अजीब सी तबियत हो रही है |”

रूपा ने आशुतोष का माथा छुआ “माथा तो गरम है आप का |”

मुझे चादर ओढा दो और जा कर सो जाओ, आखिर कब तक बैठोगी ? रूपा पीतो के कमरे में आ तो गई; पर उसका मन नहीं लग रहा था | थोड़ी देर बाद ही वह उठ कर आशुतोष के कमरे में आ गई | बिना बल्ब जलाए ही उसने आशुतोष के पास जा कर उनका माथा छुआ फिर गाल पर हाथ रखा |
ये क्या.!. उनका शरीर तो बुखार से तप रहा था | जैसे ही वह पीतो को बताने के लिए जाने को हुई आशुतोष ने उसका हाथ पकड़ लिया “नहीं इस समय अपनी दीदी को मत बताना, वह परेशान हो जायेगी, बैठो यहीं..मेरे पास |”

रूपा वहीं बैठ गई और अपनी उंगलियों से उनके सिर में हल्के-हल्के मालिश करने लगी | रात गहरी और काली होती गई | बाहर तूफ़ान और भी बढ़ गया था |

*

पीतो का पाँव भी अब कुछ-कुछ ठीक हो रहा था. बड़की अम्मा की चिठ्ठी में अब लिख कर आ रहा था कि ‘अगर अब तुम्हारा पाँव ठीक हो तो रूपा को भेज दो या उसे लिवाने के लिए वही किसी को भेजें |’

उसके ब्याह की बात भी अब चलने लगी थी कहीं कोई अच्छा रिश्ता मिलते ही उसका भी ब्याह करना था; पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था शायद |

*

अब धीरे-धीरे पीतो चलने फिरने लगी थी, रूपा उसके पाँव में हल्के हाथ से मालिश कर रही थी |

“रूपा ! अम्मा की कई चिठ्ठी आई है, तुम्हें वापस जाना होगा अब |” पीतो बोली |

सुन् कर रूपा की आँखे भीग गई उसका चेहरा उदास हो गया, पीतो भी उसे यूँ देख कर दुखी हो गई |

इधर रूपा कुछ कमजोर भी हो गई थी, शायद काम की वजह से, इसी लिए पीतो भी चाहती थी कि वह अब वापस चली जाय | धीरे-धीरे तीन महीने हो गए थे उसे आए हुए इरावती बुआ भी उसके लिए परेशान हो रही होंगीं |

जाने की टिकट हो गई थी आशुतोष ले कर जाने वाले थे रूपा को | बहुत दिन से वह भी अपने गाँव नहीं गए थे इस लिए पीतो ने कहा कि “आप ही ले कर जाइये, अम्मा जी से मिलना हो जायेगा और रूपा भी घर पहुँच जायेगी |”

रूपा उदास रहने लगी थी, पीतो उसके खान-पान का ध्यान रख रही थी कि गाँव जाने से पहले वह कुछ ठीक हो जाय, कोई ये ना कहे कि बहन के घर से कमजोर हो कर आई है |

अब सब पेशानियाँ खत्म हो चुकी थी जीवन एक बार फिर पटरी पर आ गया था, रूपा के सिर पर हाथ फेरते हुए पीतो सोच रही थी कि अगर रूपा ना आई होती तो क्या होता उसका ? रूपा सो गई थी पीतो भी सोने का प्रयास करने लगी थोड़ी देर बाद ही वह उठ बैठी | उसे लगा कोई सिसक रहा है, उसने आवाज की तरफ ध्यान दिया, वह रूपा थी, उसने अँधेरे में ही उसे टटोला वह रो रही थी, पीतो ने उसे अपने सीने से लगा लिया |

“पगली ! रोते नहीं, जब दिल करे चिठ्ठी लिख देना मैं बुला लूँगी तुझे |” उसे समझा बुझा कर दोनों बहने फिर सो गयीं | वह न जान सकी कि रूपा रो क्यूँ रही है |

*

बस् आते ही होंगे वो लोग यही सोच कर कभी बड़की अम्मा तो कभी इरावती दोगहा से झाँक कर देख आती थीं, बहुत दिनों बाद दामाद आ रहे थे घर में, सभी उन दोनों की राह देख रहे थे पर दिन सरकता जा रहा था, धीरे-धीरे शाम फिर रात हो गई कोई नहीं आया | अब कल ही चिठ्ठी लिखवाएँगीं यही सोच मायूस हो कर बड़की अम्मा सो गई | इरावती भी अनमनी सी थी, बेटी को देखे बहुत दिन हो गए थे |

अगले दिन बड़की अम्मा इरावती से चिठ्ठी लिखवा ही रही थी कि बाहर से एक लड़का अन्तर्देशीय पत्र बड़की अम्मा को थमा कर चला गया, बड़की अम्मा ने वह पत्र इरावती को पढ़ने को कहा | पत्र पढ़ते-पढ़ते पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई, पीतो के पाँव भारी थे इसी लिए रूपा को बच्चे के जन्म तक कलकत्ते में रहने देने की विनती की थी उसने बड़की अम्मा से और इरावती बुआ से |
बड़की अम्मा खुशी की अधिकता के कारण रो पड़ीं “आज ‘वो’ होते तो कितने खुश होते ये सुन कर |” बड़की अम्मा खुशी के आँसू अपने आँचल में समेट रही थी |

उधर आशुतोष के घर भी सब बहुत खुश थे, कलावती की खुशी का ठिकाना नहीं था | धीरे-धीरे सभी को खबर हो गई थी कि पीतो माँ बनने वाली है | कलावती ने आशुतोष को चिठ्ठी भेज कर आने की इच्छा जाहिर किया तो आशुतोष ने उन्हें उनकी तबीयत का हवाला दे कर रोक दिया था |

*

कलकत्ता की सड़क पर छन्न-छन्न की आवाज करता हुआ रिक्शा दौड़ा जा रहा था रूपा पीड़ा की अधिकता से जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी, पीतो उसे संभाले हुए बैठी थी, जैसे ही रिक्शा हस्पताल के पास रुका पीतो उसे सहारा दे कर भीतर ले गई आशुतोष भी पीछे से हस्पताल में दाखिल हो गए |

*

रूपा का ब्याह तय हो गया था पीतो का बेटा दो महीने का हो गया था, रूपा की तबीयत भी ठीक हो गई थी | सभी का टिकट हो गया था गाँव जाने का, रूपा को देने के लिए सामान भी खरीद लिया था पीतो ने |

*
दो महीने बाद ही रूपा का ब्याह हो गया, विदा के समय बहुत रोई थी पीतो के गले लग कर; पर पीतो का चेहरा सपाट था |

पीतो अपनी ससुराल आ गई और वहीं रहने लगी | आशुतोष कलकत्ता से पैसे भेजते रहते और पीतो फिर से अपने बेटे और सास के साथ रहने लगी थी | धीरे-धीरे समय बीतता रहा, इंदू की ससुराल थोड़ी दूर पर थी सो वह कभी-कभी आ जाती थी पीतो के घर | इंदू ने दो बेटियों को जन्म दिया था | रूपा अपनी गोद हरी होने की प्रतीक्षा कर रही थी | जब भी वो तीनों मायके आतीं रूपा पीतो के बेटे के साथ अपनी सूनी गोद भर लेती थी | पीतो की गंभीरता समय के साथ और भी बढ़ गई | इंदू ने कई बार जानना चाहा पीतो से उसके इस बदले स्वभाव के बारे में; पर पीतो ने हर बार बात को बहुत आसानी से टाल दिया |

*

समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदलने लगा था, बेटा बड़ा होने लगा पीतो के बालों में सफेदी आ गई, उसकी सास अपनी लम्बी बीमारी के चलते इस दुनिया से विदा हो गई, अब पीतो ही घर की मालकिन थी |

*

समय परिवर्तनशील होता है, हवाओं ने रुख बदला, ऋतुएँ बदलीं वातावरण बदला अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रह गया | गाँव में सड़कें बन गई, बिजली आ गई, रेडियो के स्थान पर टीवी, अन्तर्देशीय पत्रों की जगह मोबाइल फोन और मिट्टी के चूल्हे की जगह गैस के चूल्हे ने ले लिया था | गाँव के सभी आम लोगों के बच्चे भी स्कूल जाने लगे थे |

बड़की अम्मा एक दिन परनाली में बाँस हिला रहीं थीं तभी नाली में छुपे एक विषैले सर्प ने उन्हें डंस लिया था जिसके कारण वह स्वर्ग सिधार गयीं थीं | अब वहाँ भी कोई पंडोहा नहीं काछ्ता था | पंडोहा की जगह पक्का बाथरूम बन गया था अब कोई भी खुले में स्नान नहीं करता था | सभी छोटे, बड़े हो गए थे और घर की बहुएँ सास बन गई थीं | पीतो अब शादी ब्याह में ही मायके आ पाती थी |
आशुतोष भी रिटायर हो कर घर आ गए और खेती बाड़ी की देख रेख में लग गए | वैसे तो सभी काम मजदूर ही करते; पर सारी देख भाल और हिसाब किताब वही देखते थे | घर में दो ही प्राणी थे, पीतो और आशुतोष; पर दोनों अजनबी, अपनी अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे थे |

***