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बेवजह... भाग-७

इस कहानी का हेतु किसी भी भाषा, प्रजाति या प्रान्त को ठेस पोहचने के लिए नही है... यह पूरी तरह से एक कालपनित कथा है, इस कहानी का किसी भी जीवित या मृद व्यक्ति से कोई संबंध नही है, यह पूरी तरह से एक कालपनित कथा है जो कि जाति वाद, स्त्री भ्रूण हत्या, बलात्कार, जबरन और अवेद कब्ज़ा, आत्महत्या आधी के खिलाफ निंदा करते हुए यह कथा प्रदान की गई है.....

अब तक...

"तुम कहती हो कि तुम्हारी म्हणूसयत मुझे तेहस नेहस कर देगी, लेकिन मे तो पहले से ही तेहस नेहस हो चुका हूँ"..

"आखिर तुम मेरे बारे मे जानती ही क्या हो... तुम्हे क्या पता कि मै कितना बदनसीब हूँ, इस बंजर रण मै तुम्हारी माँ को मै किस हालात मै मिला, तुम कुछ नही जानती"...

"तुम नही जानती की इस बंजर रण मैं बेवजह आखिर किस वजह को ढूंढते हुए मै आ पोहचा हूँ"....

अब आगे...

"क्या हुआ ऐसा तुम्हारे साथ, कोन हो तुम".... जीविका

कियान ने एक नजर भर जीविका को देखा और कुछ कहे बिना ही मुह फेर लिया, कियान ने अपनी आँखें बंद की और फिर उसकी आँखों के सामने वही दृश्य दिखाई पड़ने लगा...

मां , मां चिल्लाते हुए कियान अपनी घर की और बढ़ रहा था, फिर वही दृश्य उसकी आँखों के सामने आने लगा... अपने हाथ में एक लकड़ी लिए अपनी ही मस्ती में गुनगुनाते हुए, कियान अपने घर की और बड़ रहा था... अपनी ही मस्ती मैं मगन, कियान को नही पता था की जिस राह पे बढ़कर वह अपने घर लौट रहा है... वहा पोहचते ही उसकी दुनिया बदल जाएगी... सपने मैं वह अपने घर पोहचा, तब उसने देखा कि....?? रोज की तरह आज भी चुला जल रहा था मगर चूले के पास मां नही बैठी थी, नाही चुले पर कुछ बन रहा था, रोज की तरह नल से पानी बेह रहा था, मगर आज वहा बहन काम नही कर रही थी, रोज की तरह ही लकड़ियों के ढेर के पास कुल्हाड़ी पड़ी थी मगर बाबा वहां आस पास नही थे... सबकुछ बहोत शांत था, इस शांत माहौल के कारण कियान घबरा रहा था... और कियान के मुह से एक ही आवाज़ निकली....

"माँ बाबा" , बहोत ही धीमे स्वर मै उसने कहा, सिसिकियों से भरी आवाज़ थी उसकी

जीविका कुछ समझ नही पाई, जीविका के मन मे कियान को लेकर पहले से ही बहोत सवाल थे, जीविका अक्सर रातों मे कियान जो कुछ नींद मे बडबडाता था वो सुना करती थी मगर उसने कभी कियान से कोई सवाल नही किया और सुबह होगयी ओस से भीगी हल्की रेत पर सूरज की किरणें चमक उठी

कियान ने जीविका से कहा अब हमें चलना चाहिए... और दोनों ही उठकर चलने लगे, जीविका के मन मे कियान को लेकर अब अजीब अजीब खयाल आने लगे, वो कोन है, उसके साथ क्या हुआ होगा, वो यहा कैसे पोहचा, उसका हरबार नींद मे बड़बड़ाना, माँ माँ चिलाना, जीविका ने कियान को कई बार नींद मैं अपनी माँ से माफी मांगते हुए भी सुना था, जीविका के मन मे ढेरो सवाल उठ रहे थे जिनके जवाब सिर्फ कियान दे सकता था...

कुछ दूर चलते ही रेल की पटरियां दिखाई देने लगी और कियान खुश होगया, उसने पीछे मुड़कर जीविका को एक मुस्कान के साथ देखा और उसका हाथ पकड़कर दौड़ने लगा... दोनों जब तक रेल के करीब आते तब तक वहां रेल गाड़ी आकर रुकी हुई थी...

कियान झट से गाड़ी मै चड गया, जीविका वही रुक गई और पीछे मुड़कर देखने लगी, कियान ने पीछे मुड़कर जीविका को पुकारा....

"जीविका चल क्या हुआ, रुक क्यों गई"....

मगर जीविका अपने ही खयालो मै खोई हुई थी....

जीविका को सामने अपनी माँ नजर आरही थी, और वो अपनी माँ को सामने देखकर भावुक होगई, कियान जोर जोर से जीविका को पुकार रहा था ....

"जीविका चल गाड़ी छूट जाएगी, क्या देख रही है जल्दी चल"....

मगर जीविका ने एक बार भी पीछे मुड़कर नही देखा...

रेल गाड़ी की घंटी बजी और गाड़ी धीरे धीरे चलने लगी, वहां कियान जीविका को अब भी पुकार रहा था

तभी जीविका ने देखा कि एक बड़ा सा हवा का झोंका आया और उसकी माँ की छबि उस हवा के झोंके के साथ ओझल होगई, जीविका तब होश में आई उसे तब कियान की आवाज़ सुनाई पड़ी उसने पीछे मुड़के देखा तो गाड़ी चल रही थी, कियान दरवाजे पर खड़ा था और जीविका को बुला रहा था...

"जीविका जल्दी कर भाग, चल जल्दी कर"... ऐसा कहते हुए कियान ने हाथ आगे बढ़ाया

जीविका ने तब फिर एक बार मुड़के देखा, तब उसने देखा कि उसकी माँ उसके सामने खड़ी है, और जीविका की माँ ने कहां

"मैने तेरा हाथ किसी गलत इंसान को हाथों में नही थामा है, वक़्त रहते सब ठीक होजावेगा लाडो, बस फिर कभी लौट के ना आना, दोबारा कभी मुड़के ना देखना"...

जीविका ने तब अपनी आँखें बंद की और दौड़ते हुए कियान का हाथ थामा और गाड़ी मे चड गई...

जैसे ही जीविका गाड़ी मे चडी, कियान ने जीविका को कस कर गले लगलिया

"क्या होगया था तुझे, पागल होगई है क्या"...

जीविका ने कोई जवाब नही दिया और कियान से नजरे चुराते हुए खिड़की की और आकार बेथ गई

कियान उसके पास जाकर बैठ गया, जीविका खिड़की के बाहर देख रही थी, कियान ने धीरे से कहा

"जीविका क्या हुआ"...

जीविका ने कोई जवाब नही दिया

कियान ने फिर एक बार जीविका से पुछा "क्या हुआ
जीविका, क्या सोच रही हो, माँ की याद आ रही है क्या"...

तब जीविका बहोत ही गुस्से से कहा तुमनेही अपने माँ बाप को मारा है ना...

ये सुनकर कियान डंग रह गया और जीविका से नजरे चुराने लगा...

"मैने अक्सर तुम्हे नींद मे बडबडाते हुए सुना है, तुम अक्सर कहते रहते हो माँ मुझे माफ़ करदो माँ , नही मैने नही मारा माँ को, मैने बाबा को नही, अक्सर माँ माँ चिल्लाते रहते हो"..... जीविका

जीविका की ऐसी बातों को सुनकर कियान बोखला उठा, उसने अपने कान बंद करलिये और जोर जोर से कहने लगा...

"हां सब मेरी वजह से हुआ है, मैने मेरे माँ बाप को मार दिया, मेने मारा है उन्हें"....

कियान यह कहकर रोने लगा, चीखने लगा मगर गाड़ी की तेज़ रफ़्तार की आवाज़ मे कियान की चीखें डब गई, जीविका के मनमे अब कियान को लेकर एक अलग ही छवि तयार होगई......
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..................................................................................To Be Continued.........................................................................................