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सब का दाता है भगवान  

सब का दाता है भगवान

जबलपुर शहर में एक धनाढ्य व्यापारी पोपटमल रहता था। वह कर्म प्रधान व्यक्तित्व का धनी था और गरीबों को दान धर्म, जरूरतमंदो को आर्थिक सहयोग, बच्चों को शिक्षा प्रदान करने हेतु उनकी फीस, किताबें इत्यादि के लिए आर्थिक मदद देता रहता था। उसके घर पर प्रतिदिन दोपहर के समय दो भिखारी भीख माँगने आते थे। जिन्हें उसके द्वारा प्रतिदिन भोजन प्रदान किया जाता था। उसमें से एक भिखारी भगवान के प्रति आभार व्यक्त करता और दूसरा भिखारी उस व्यापारी का गुणगान करता हुआ चला जाता था।

पोपटमल को ईश्वर के ऊपर कोई विश्वास नही था और वह मंदिर जाकर पूजा पाठ या भक्ति सेवा में किसी प्रकार का विश्वास नही रखता था। इस प्रकार कई वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन उसने सोचा कि जो भिखारी उसका गुणगान करता है। उसे आर्थिक समस्याओं से निजात दिलाने के लिए कुछ करना चाहिए। यह सोचकर वह अपनी मँहगी अँगूठी उसे भीख में दे देता है और कहता है कि इसकी बिक्री से तुम्हें इतना धन मिल जाएगा कि तुम अपना बाकी का जीवन बिना भीख माँगे काट सको। वह भिखारी उस अँगूठी को लेकर एक सुनार के पास जाता है। वह उसका आकलन करता है और असली होने पर भी उसे नकली बताकर कहता है कि इसकी कीमत पाँच सौ रूपये से ज्यादा नही है।

यह सुनकर भिखारी अवाक् रह जाता है तभी उसे दूसरा भिखारी जो व्यापारी के यहाँ प्रतिदिन आता था, उसके निकट आता दिखाई देता है। वह गुस्से और क्षोभ से वह अँगूठी सुनार से लेकर उस भिखारी को दे देता है और खुद पैर पटकता हुआ व्यापारी को मन ही मन में कोसता हुआ वहाँ से चला जाता है। वह सुनार अब दूसरे भिखारी जिसके पास अँगूठी रहती है उसको पाँच सौ रूपये देकर अँगूठी देने का निवेदन करता है। उसकी बात सुनकर भिखारी का माथा ठनकता है और वह उसे अँगूठी ना देकर गहनों की एक दूसरी दुकान में जाकर अँगूठी का मूल्यांकन करवाता है। यह जानकर वह भौचक्का रह जाता है कि उसका मूल्य दस लाख से ऊपर है।

दूसरे दिन वह अपने नियत समय पर पोपटमल के यहाँ भीख माँगने जाता है और उन्हें अँगूठी दिखाकर कहता है कि सबका दाता है भगवान और उसे वापस पोपटमल को देते हुए कहता है कि देखिए यह आपने दी किसी और को थी परंतु भगवान की कृपा से यह मेरे पास आ गयी। मेरा कहना सच है ना कि सबका दाता है भगवान। पोपटमल यह सुनकर हतप्रभ होकर चिंतन करने लगता है कि यह भिखारी होने के बाद भी मन से कितना ईमानदार है कि अँगूठी वापस करने आ गया। इसकी भक्ति और साधना में कितना समर्पण है और ईश्वर के प्रति कितना विश्वास है। यह सच प्रतीत होता है कि सबका दाता भगवान ही होता है।

इस घटना का पोपटमल के मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है और वह नास्तिक से आस्तिक हो जाता है। वह उस भिखारी को कहता है कि इस अँगूठी पर मेरा कोई अधिकार नही है। वह भिखारी उनसे अनुरोध करता है कि इसको बेचकर प्राप्त होने वाली धनराशि का सदुपयोग करना चाहिए। पोपटमल उस अँगूठी को बेचकर नर्मदा किनारे एक आश्रम का निर्माण करा देता है जिसमें नर्मदा परिक्रमा करने वालों के लिए विश्राम एवं भोजन की निःशुल्क व्यवस्था होती है और वह उस भिखारी के मार्गदर्शन में उस आश्रम को सौंप देता है।