Pitra Moksh Remedy books and stories free download online pdf in Hindi

इंदिरा एकादशी व्रत कथा 

हम और आप सभी अपने अपने धार्मिक परंपराओं के अनुसार हर कार्य को सोच समझ कर ही करते हैं ! हमारे भारत मे छह ऋतुए हैं

१. शरद ऋतु- इसे पतझड़ का मौसम भी कहते है। गर्मी कम हो जाती है और वातावरण में हल्की ठंड का अहसास होने लग जाता है।

दशहरा पर्व इसी मौसम में आता है। यह ऋतु अगस्त माह से अक्टूबर तक रहती है।

२. हेमंत ऋतु- इस ऋतु में ठंड बढ़ने लगती है। हेमन्त ऋतु के जाते जाते ठंड बहुत अधिक हो जाती है। यह ऋतु अक्टूबर माह से

दिसम्बर तक रहती है। दीवाली का त्योहार इसी ऋतु में आता है।

३. शीत ऋतु- इस मौसम में शरीर को कपकपा देने वाली सर्दी पड़ती है। दिसम्बर से शुरू हुई यह ऋतु फरवरी तक रहती है। मकर सक्रांति और

क्रिसमस का पर्व इसी ऋतु में आता है। हमारा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को शीत ऋतु में ही आता है।

४. वसंत ऋतु- मार्च से शुरू हुई यह ऋतु अप्रैल तक रहती है। इस मौसम में ना तो ज्यादा सर्दी होती है, ना ही गर्मी होती है और ना ही बारिश होती है।

वसंत ऋतु सुहावनी होती है। होली का त्यौहार इसी ऋतु में आता है।

५. ग्रीष्म ऋतु- यह गर्मियों का मौसम होता है। अप्रैल माह से जून माह तक यह ऋतु रहती है। इस महीने में दिन लम्बे और राते छोटी होती है।

बच्चो की छुट्टियां भी गर्मियों में ही लगती है।

६. वर्षा ऋतु- इस ऋतु में बारिश की बूंदे तपती धरती की प्यास बुझाती है। वर्षा ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है। यह ऋतु जून महीने से अगस्त

माह तक रहती है।

आज हम आप से शरद ऋतु मे आने वाले एक ऐसी धार्मिक परंपरा की बात को साझा करेंगे जिसे हिंदू धर्म मे एक अलग ही पहचान मिली हैं !

अपने पूर्वजो को याद करना और उनके स्वर्ग मे स्थान प्राप्ति के लिये श्राद्ध और दान करना आदि !

सतयुग मे माहिस्मती नगरी मे इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा था ! वह प्रजा का अपनी संतान कि तरह भरण- पोषण करता था !

उसके राज्य मे सभी सुखपूर्वक रह रहे थे ! इंद्रसेन भगवान विष्णू का भक्त था ! उसे किसी भी चीज कि कमी नही थी !

एक दिन नारद जी इंद्रसेन कि सभा मे पहुचे और उन्होने उसके पिता का संदेश इंद्रसेन को बताया ! उनके पिता जी ने नारद जी से कहा था,

कि पूर्व जन्म मे कोई विघ्न होने के कारण वह यमलोक मे हैं ! अतः उनका पुत्र अश्विन मास के कृष्ण पक्ष कि इंदिरा एकादशी का व्रत करे,

तो उनको स्वर्ग कि प्राप्ती होगी !

यह सुनकर इंद्रसेन ने नारद जी से इंदिरा एकादशी व्रत के बारे मे जानने कि इच्छा प्रकट की ! इस पर नारद जी ने कहा की एकादशी तिथि से पूर्व

दशमी को विधि विधान से पित्रो का श्राद्ध करें ! फिर एकादशी व्रत का संकल्प लें ! भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करके उनसे रक्षा का निवेदन करें

इसके बाद नियम से शाळिग्राम की मूर्ती के समक्ष विधिपूर्वक श्राद्ध करें और ब्राह्मणों को भोजन के बाद दान दे ! इसके बाद भगवान ऋषिकेश का

पूजन करें ! रात्री के समय जागरण करें !

द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराये और परिवार सहित स्वयं भोजन करें ! नारद जी ने इंद्रसेन से कहा कि इस तरह से

व्रत करोगे तो आपके पिता को स्वर्ग की प्राप्ति होगी !

नारद जी के बताये अनुसार इंद्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत किया और उसके परिणाम स्वरूप राजा के पिता बैकुण्ठ चले गये ! इंदिरा एकादशी व्रत के

प्रभाव से राजा इंद्रसेन भी मृत्यू के बाद स्वर्ग चले गये !