Ek Jindagi - Do chahte - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 15

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-15

सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद के नेहरू नगर की अपनी विशाल कोठी के शानदार कमरे के आरामदायक बिस्तर पर लेटी तनु बेचैनी से करवटें बदल रही थी। कुछ देर पहले परम से हुई बातें कभी एक सपने जैसी प्रतीत होती थी तो कभी दिल में एक अजीब हलचल पैदा कर देतीं। ना कहेगी तो शायद परम को खो देगी। फिर उनके बीच कभी सामान्य रिश्ता नहीं रह पायेगा। और हाँ कह देगी तो।

तो वह फिर उम्र भर क्या बनकर रहेगी?

वह अपनी भावनाओं के प्रति पूरी तरह से ईमानदार और सच्ची है। हाँ, वह परम से प्यार करती है। उसी क्षण से जब से उसे पहली बार देखा था। लेकिन उन दोनों के प्यार के बीच एक बहुत ही कड़वी सच्चाई भी है।

पिछले महीनों में परम से बातें करते हुए तनु ने उसे जितना जाना है, पहचाना है, उससे उसे इतना तो पता ही है कि परम की भावनाएँ निष्कपट हैं। उसमें किसी तरह का कोई स्वार्थ नहीं है। अगर वह परम को मना कर देती है तो परम हमेशा के लिए टूट जायेगा। और वह कैसे उसे टूटने दे। इतने प्यारे से रिश्ते को खो जाने दे।

लेकिन हाँ कहने के बाद तनु का क्या होगा? साल, दो साल, तीन साल उसके बाद?

तनु ने सारे विचार झटक दिये। वह वर्तमान में रहने वाली लड़की थी। जो वर्तमान क्षण है वही सच है बस।

दो दिन तक परम का कोई फोन या मैसेज नहीं आया। तनु को पता था कि वह उसे सोचने के लिए दो दिन देगा तो बीच में उसके निर्णय में व्यवधान नहीं डालेगा। दो दिन परम के लिए दो युगों के समान बीते थे। हर पल वह उत्कंठा का शिकार रहा। इतना विचलित इतना बेकल!

तीसरे दिन जब तनु ऑफिस में बैठी आर्टिकल टाईप कर रही थी कि तभी परम का मैसेज आया।

''हाय गुड ऑफ्टरनून"

''आर यू बिजी"

''नो"

''आर यू फ्री"

''यस"

''केन आय कॉल यू?"

''शुअर।"

और तुरंत ही परम का फोन आया, वही सवाल लिए हुए।

''हाँ। तनु ने जवाब दिया।

''सच में?" परम के स्वर में आश्चर्य मिश्रित खुशी फूट रही थी।

''हाँ।" तनु ने फिर दोहराया।

''यकीन नहीं हो रहा है, जिदंगी में पहली बार ऐसा हुआ है कि जो चाहा, जो मांगा वो मिल गया।" परम के स्वर की आद्र्रता से तनु के अंदर भी कुछ पिघल गया।

परम की खुशी, उसकी हँसी, उसके अंदर का वो आनंद, तनु को लगा बस जिंदगी की यही हँसी, यही खुशी हमेशा का सच है।

''शादी करोगे मुझसे" तनु ने पूछने में सहज सा लगने वाला लेकिन अमल करने में असंभव सा प्रश्न पूछा अचानक।

''हाँ।" परम ने एक क्षण के सौवें हिस्से में ही जवाब दे दिया।

''मिलने कब आ रहे हैं?" तनु ने पूछा।

''जब तुम्हें फुरसत हो बता दो मैं चला आऊंगा" परम ने अपनी आवाज में ढेर सारा प्यार उड़ेलते हुए कहा ''बहुत मन हो रहा है तुम्हें देखने का।"

''एक तारीख को आ जाओ।"

''कहाँ पर मिलोगी?"

''सच्चे प्रेमियों के घर पर।" तनु ने जवाब दिया।

''क्या? ये कौन है?" परम कुछ समझ नहीं पाया।

''अरे राधा कृष्ण के घर पर। इस्कॉन मंदिर में।" तनु हँस दी

''ओहो। कहीं मेडम का सन्यासी बनने का ईरादा तो नहीं है ना।" परम ने हँसते हुए सवाल किया ''पर्सनली अकेले में पहली बार मिल रही हो और वो भी मंदिर में।"

''हम अपने बीच जो रिश्ता बनाने जा रहे हैं वो अपनेआप में बहुत ही प्यारा और पवित्र है। और सच्चा प्यार करने वालों में भला राधा कृष्ण से बढ़कर कौन है। हम सबसे पहले उनका ही आशिर्वाद लेंगे।" तनु का जवाब था।

''ठीक है जी जैसी मेडम की मर्जी। मैं एक तारीख की सुबह चाचा के घर पहुँच जाऊंगा। तुम मुझे बता देना कहा मिलोगी फिर तुम्हारे साथ ही मंदिर चलूँगा।" परम बोला।

''हाँ ठीक है।"

''क्या लेकर आऊँ तुम्हारे लिए?"

''सिंदूर की डिबिया। लाओगे ना?"

''क्यों नहीं। जरूर लाऊंगा।" परम ने कहा।

और एक तारीख की सुबह चार बजे परम अपने चाचा-चाची के घर पर था। वो उसे अचानक आया देखकर हैरान-परेशान थे। परम ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो बस एक जरूरी ऑफिशियल काम से वहाँ आया है। दिन भर काम करेगा और रात में वापस लौट जायेगा। महीनों कट गये लेकिन ये कुछ घण्टे काटे नहीं कट रहे थे। वह सोने के लिए पलंग पर गया लेकिन करवटें बदलता रह गया। एक-एक पल इतना लंबा लग रहा था कि बस। मन कर रहा था कि बस अभी ही तनु के घर चला जाए सीधे और उसे अपनी बाहों में भर ले। सीने में छुपा ले।

तनु मैगजीन फायनल करके अपनी सहेली के साथ फिल्म देखने का बोलकर घर से जल्दी निकल गयी थोड़ी देर ऑफिस में बैठने के बाद वह पैदल ही चलकर बिल्डिंग से आगे चली आयी। मोड़ पर टैक्सी में परम बैठा था। तनु पिछला दरवाजा खोलकर सीट पर बिना परम की ओर देखे बैठ गयी। परम ने ड्रायवर को इस्कॉन चलने को कहा। सालण चौकड़ी से इस्कॉन आधे घण्टे की दूरी पर था। जब टैक्सी तनु के ऑफीस से थोड़ी दूर निकल आयी तब तनु ने एक गहरी साँस ली और गरदन घुमा कर परम की ओर देखा। वह मुस्कुराकर उसे ही देख रहा था। तनु भी मुस्कुरा दी। दिल में अजीब सी धुकधुकी हो रही थी। फोन पर हुई बातें और अब प्रत्यक्ष में आमने-सामने। तब परम को हमेशा आर्मी की कॉम्बेट यूनिफॉर्म में ही देखा था। आज वेा जींस और टीशर्ट में कितना अलग सा लग रहा है।

और परम देख रहा था। तनु का रंग और निखर आया था। होंठों पर प्यारी सी लिपस्टिक लगी थी। हरे रंग के सूट में वह कितनी प्यारी लग रही है। परम ने हाथ आगे बढ़ाकर उसकी हथेली मजबूती से अपने हाथ में थाम ली और उसे अपने नजदीक खींच लिया। दोनों के कंधे एक दूसरे को छू रहे थे। कितना सुकून सा मिल रहा था एक दूसरे के साथ में, स्पर्श में। मंदिर पर जब टैक्सी वाले ने टैक्सी पार्क कर दी तो दोनों उतरकर मंदिर चले गये। आज राधाकृष्ण का शृंगार अनुपम था। धानी रंग के कपड़ों में सजे दोनों प्यार के खुशहाल रंगों में रंगे हुए थे।

''सिंदूर कहाँ है जी?" तनु ने पूछा।

''ओह ये रहा।" परम ने जेब में से सिंदूर की डिब्बी निकाली।

''सच में पक्का ना?" परम ने अपनी दो उंगलियों में चुटकी भर सिंदूर लेते हुए कहा।

''हाँ पक्का।" तनु ने पूरे विश्वास से कहा।

परम ने तनु के बालों के बीच माँग में सिंदूर भर दिया। कुछ क्षणों तक वह मुग्ध भाव से तनु को देखता रहा फिर बोला-

''तुम मेरी हो गयी। लीगली मेरी हो गयी। माय लीगल वाईफ।" परम का चेहरा खुशी से दमक रहा था। तनु ने मुस्कुराकर परम की ओर देखा। दोनों ने साथ में ईश्वर को प्रणाम किया। जैसा आपका प्यार श्वाश्वत है, परम सत्य है वैसा ही हमारा प्यार भी हो।

''कृष्णा मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं मांगा कभी जरूरत ही नहीं पड़ी तुमने हमेशा मुझे झोली भर कर दिया है। आज भी जो दिया वो तुम्हारी इच्छा और आशिर्वाद है। आगे भी तुम्हारा ही आधार है।" तनु ने मन ही मन कहा। मंदिर की प्रदक्षिणा करते हुए जैसे ही दोनों गर्भगृह के पीछे वाले गलियारे में गये परम ने तनु के कंधों पर हाथ रखकर उसे अपने सीने से लगा लिया, पति का प्यार भरा पहला स्पर्श।

मनचाहे साथी को अपने सीने से लगाने का अवर्णनीय सुख।

परम ने तनु का माथा चूम लिया और क्षण भर को अपने तपते होंठ तनु के होंठों पर रख दिये।

अपने पीछे किसी के कदमों की आहट सुनकर दोनों तपाक् से अलग हो गये और आगे बढ़ गये। गर्भगृह में दोनों मूर्ति के सामने बैठ गये।

''और बोलिए श्रीमती जी। खुश तो हो ना।" परम ने तनु की आँखों में झांकते हुए पूछा।

''हाँ जी बहुत खुश हूँ।" तनु ने उसके कंधे पर सिर रखकर कहा।

''हमेशा ऐसा ही प्यार करती रहोगी ना।" परम ने तनु के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए पूछा।

''हाँ।" उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर तनु ने उसे आश्वासन दिया।

थोड़ी देर बाद दोनों नवरंगपुरा आए और सुपरमॉल के पास होटल कम्फर्ट इन प्रेसिटेन्ट के रेस्टोरेन्ट में गये।

''लंच में क्या लेंगी मेडम जी।" परम ने पूछा।

''जो आपको पसंद हो।"

परम ने वेटर को बुलाकर ऑर्डर दिया। तनु की माँग में भरे सिंदूर की लाली उसके चेहरे पर भी छायी थी। दोनों ही एक दूसरे की आँॅखों में अपनी प्रेम कहानी पढ़ रहे थे।

और शायद अपने भविष्य को भी।

तनु हमेशा के लिए दुनिया से छुपकर परम की पत्नी बन कर नहीं रह सकती थी। जल्द ही परम को कठोर और अप्रिय निर्णय लेना ही होगा।

***