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एक जिंदगी - दो चाहतें - 21

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-21

नहीं।

अनूप तनु का बहुत अच्छा और नजदीकी दोस्त है। बचपन से दोनों साथ पढ़े थे। जर्नेलिस्म और मास कम्यूनिकेशन का कोर्स भी दोनों ने साथ ही किया और एक साथ ही तनु के पिता के न्यूज चैनल में काम करने लगे। दोनों ने रात दिन मेहनत करके न्यूज चैनल और अखबार दोनों को ही नयी ऊंचाइयों पर पहुँचाया। अनूप बचपन से ही तनु को भली भांति जानता था। वह जानता था तनु का ध्यान अपनी पढ़ाई और काम के अलावा और कहीं नहीं था। तनु की सुंदरता पर स्कूल कॉलेज के न जाने कितने लड़के फिदा थे पर तनु ने कभी नजर उठा कर भी किसी की ओर देखा नहीं था।

उसी तनु के चेहरे पर परम को देखते ही जो भाव उभरे थे उन्हे अनूप ने पहचान लिया था। परम की कर्मठता से वह भी बहुत प्रभावित हुआ। और परम तनु की हिम्मत और सच्चाई पर फिदा था।

रात डेढ़ बजे तक तनु लगातार काम करती रही। आखीर उसके चेहरे पर थकान देखकर परम ने उसे जबरदस्ती काम करने से रोका, नहलाया, एक कप गरम कॉफी पिलाई और सुला दिया। उसके बालों को सहलाते परम की आँख भी झपक गयी सुबह के साढ़े चार बजे परम की नींद खुली। उसने तनु की ओर देखा वह गहरी नींद में सुस्त पड़ी थी। परम ने उठकर हाथ मुँह धोए और बाहर गैलरी में आकर एक सिगरेट सुलगाकर कुर्सि पर बैठ गया। परम इसीलिये तनु से इतना ज्यादा प्यार करता है जीवन में तनु ही वो पहली लड़की है जिसके साथ परम को पहली बार तन बांटने की उत्कट ईच्छा हुई थी। क्योंकि सिर्फ तनु ने ही परम को पहचाना था। उसके मन को जाना था। तभी मन से एक होने पर तन भी एक होने की एक प्राकृतिक और स्वाभाविक ईच्छा जीवन में बस तनु के लिये ही जागृत हुई थी।

वाणी के साथ भी उसने बहुत बार तन का रिश्ता निभाया था लेकिन बस वाणी के जबरदस्ती हंगामें करने से बचने के लिए उसे मन मार कर औपचारिकता निभानी पड़ती थी। वरना तो वह अक्सर रातों को इधर-उधर टाईम पास कर देर रात घर पहुँचता था ताकि वाणी सो जाए। लेकिन तनु...

तनु को छोडऩे का मन ही नहीं होता है परम को।

सुबह का उजाला होने ही वाला था। परम ने अपनी तीसरी सिगरेट बुझाई और एक गहरी साँस ली।

तनु के साथ गुजारा हुआ समय एक सुंदर सपने जैसा लगता है। ऐसा सपना जिसे देखते हुए नींद से जागने की और आँखें खोलने की ईच्छा नहीं होती। दिन भर की भागदौड़ के बाद चांदनी रात में किसी पेड़ के नीचे कलकल बहते झरने के किनारे हरी घास पर ठण्डी शीतल हवा में बैठ कर सितार की झंकार सुनने जैसा आरामदायक।

परम उठकर पंलग पर तनु के पास जा लेटा। उसके बालों में हाथ फेरते हुए वह तनु से लिपट गया। देह की परतों से गुजरते हुए मन में बहुत गहराई तक उतर चुकी थी तनु। ये प्यार था या जादू। परत दर परत परम देखता कि उसके सामने नित नये रहस्य खुलते जा रहे हैं। जितने रहस्य उजागर होते वह उतने ही गहरे आकर्षण में डूबता जा रहा था। स्त्री इतनी सारी रहस्यात्मकता, इतना तीव्र आकर्षण भी होती है, कि जितना डूबते जाओ उतने ही कीमती रत्न सामने आते रहते हैं।

परम जब उठकर बैठा तब तनु ने ऊनींदी आवाज में कहा 'मैं थोड़ी देर और सो जाऊँ।' और वह सो गयी। परम सिगरेट के लम्बे कश लेता हुआ उसे निहारता रहा।

दूसरे दिन शाम को अनूप खुद ही तनु और परम से मिलने चला आया। आते ही तनु ने उसे मीठा सा उलाहना दिया

''अब जाकर फुरसत मिली है जनाब को मुझसे मिलने की। ना फोन ना मैसेज।"

''क्या करूँ बॉस ने काम में ऐसा उलझाया इतना काम करवाया की पूरी जान निचोड़ ली। मरने तक की फुरसत नहीं मिली है दस दिन से।" अनूप ने जवाब दिया और घूमकर घर देखने लगा। घर देखकर अनूप बहुत खुश हुआ।

''ग्रेट एस्थेटिक सेन्स तनु। तुम्हे तो जर्नलिस्ट की बजाए इंटिरियर डिजायनर होना चाहिये था।" अनूप तनु की तारीफ करता हुआ बोला।

''मेरा ही नहीं इसे डेकोरेट करने में परम का भी पूरा सहयोग है।" तनु ने मुस्काराते हुए कहा। वह सबके लिये गरमा गरम चाय ले आयी।

''तो आप आर्मी से रिटायर होने के बाद इंटिरियर का काम शुरू कर देना। सच में आपने घर को बहुत खूबसूरती से सजाया।" अनूप परम से बोला।

''मेरे चाचा आर्टिस्ट हैं। बचपन से उन्हें देखता रहा हूँ काम करते हुए तो थोड़ा बहुत सीख गया।" परम ने जवाब दिया।

चाय पीकर परम कहीं जाने लगा। तनु को लगा वह सिगरेट लेने जा रहा है उसने परम को जाने से रोका कि अनूप के साथ बैठे। लेकिन परम जल्दी आने का कहकर कार से कहीं चला गया।

तनु अनूप से बातें करने लगी। अनूप बहुत थका हुआ लग रहा था। क्योंकि अब तनु के हिस्से का काम भी अनूप को ही करना पड़ रहा था। पहले दोनों मिलकर न्यूज पेपर और चैनल का काम संभालते थे। अब तनु के ना होने से काम का सारा बोझ अनूप पर अकेले पर पड़ गया है।

''बस कुछ दिन और फिर मैं आफिस आने लगूंगी और तुम्हे इतना परेशान नहीं होना पड़ेगा।" तनु ने कहा।

''कोई बात नहीं। अभी तुम्हारी नयी जिंदगी की शुरुआत हुई है। बहुत सारी परेशानियाँ उठानी पड़ी हैं तुम दोनों को। बहुत कुछ सहा है पिछले सालों में। अब जब तक परम की छुट्टी है तुम पूरा समय उसके साथ ही रहो। तुमसे ज्यादा संघर्ष तो उसे ही करना पड़ा है इस रिश्ते के लिये। "अनूप ने कहा" काम का क्या है वो तो चलता ही रहेगा।"

''तो ठीक है मैं ऑफिस नहीं आऊँगी लेकिन अगर कोई आर्टिकल बनना हो तो प्लीज मटेरियल भिजवा देना मैं बना दिया करूँगी।" तनु ने सुझाव दिया।

''ठीक है दो तीन जगह रिपोर्टर गये हुए हैं। जैसे ही न्यूज लेकर आएंगे मैं भिजवा दूंगा तुम आर्टिकल तैयार कर देना।"

''ओके" तनु खुश होकर बोली।

तभी परम वापस आ गया। उसके हाथ में कुछ सामान था। परम ने सामान तनु को पकड़ा दिया।

''ओ हो तो बंगाली बाबू रसगुल्ला लेने गये थे। मिष्ठी खाबे।" तनु हँसते हुए बोली।

एल्यूमिनियम फाईल में लपेटी हुई गरमागरम रूमाली रोटियाँ थीं और साथ में पनीर था। जब तक परम और अनूप बातें कर रहे थे तनु ने फटाफट आलू पनीर की सब्जी बना ली। रात का खाना अनूप ने भी वही खाया। दस दिन से दोनों घर में अकेले थे। आज अनूप के आने से दोनों को बहुत अच्छा लगा। लगा बहुत दिनों बाद कोई अपना, दोनों को समझने वाला साथ देने वाला मिला है। तीनों ही एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे। हँसी मस्ती में वक्त बीता। रात बारह बजे अनूप घर चला गया। दूसरे दिन सुबह की चाय लेकर परम और तनु बाहर बगीये में आकर बैठे तो तनु सुखद आश्चर्य से भर उठी। बरामदे की सामने वाली दीवार पर नेम प्लेट लगी हुई थी 'तनु परम गोस्वामी'।

''ये कब बनवाई आपने?" तनु खुशी से चहक उठी।

''बनवाने तो पहले ही दी हुई थी। कल शाम को यही लेने तो गया था। लाकर कार में ही रखी थी। सुबह चार बजे उठकर लगा दी।" परम ने बताया।

''ओह परम! आप कितने अच्छे हो। लव यू जी।" तनु भाव-विभोर होकर बोली।

अगले दो दिनों तक में घर का सारा काम पूरा करके परम और तनु ने राहत की साँस ली। अब परम की हार्दिक ईच्छा थी तनु के माता-पिता को घर पर बुलाने की।

''चलो तनु तुम्हारे पिताजी के यहाँ चलते हैं। कल शाम को अगर उन्हें समय होगा तो उन्हे खाने पर आमंत्रित करते हैं।" परम ने रात में तनु से कहा।

''माँ को फोन करके बता देती हूँ।" तनु बोली।

''पागल है क्या। माँ-बाप हैं आखीर। बड़ों का मान रखना चाहिये। तुम उनकी इकलौती बेटी हो और उनके नजरिये से सोचो तो उनकी बेटी का एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति से प्यार करना अपनी खुशी की खातिर उनकी प्रतिष्ठा को दाँव पर लगाना, उससे शादी का निर्णय लेना। कितना मुश्किल रहा होगा उनके लिये यह सब सहना। फिर भी तुम्हारे प्यार की खातिर उन्होने ये कड़वे घूंट भी पी लिये।" परम ने उसे समझाया।

''आप कड़वे घूंट नहीं हो जी मेरा प्यार हो।" तनु ने परम के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा।

''वो मैं जानता हूँ तनु। मगर अपने पिताजी के बारे में सोचो। उनकी लड़की अपनी जिंदगी में इतना अजीबोगरीब निर्णय ले रही थी फिर भी उन्होने कभी तुम्हारा विरोध नहीं किया। ना ही कभी मुझे कुछ भला बुरा कहा।" परम बोला।

''हाँ जी वो तो है। पापा सच में मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं। ठीक है कल शाम हम उनके घर चलेंगे। अब तो खुश हो।" तनु ने पूछा।

''दैट्स लाईक माय स्वीट वाईफ।" परम बोला।

दूसरे दिन तनु और परम भरत भाई देसाई के घर पहुँचे। कार उनके हजारों स्क्ेयर फिट में बने शानदार कोठीनुमा बंगले के आगे रूकी। परम ने नजर भर बंगले को देखा। वो पहले भी बहुत बार यहाँ आया है। रातों में रहा भी है। और हर बार उसे संकोच होता कि तनु इतनी बड़ी जायदाद की इकलौती वारीस है और परम के कारण उसे इस सारे ऐश्वर्य से वंचित रहना पड़ेगा। तनु के माता-पिता ने प्यार से उनका स्वागत किया और दामाद की खूब खातिरदारी की। उनके आग्रह पर परम और तनु ने रात का खाना वहीं खाया।

''मैं तो कब से इन्हे कह रही थी कि बच्चो से मिल आते हैं लेकिन ये हमेशा कहते कि नहीं वो अपना घर साथ मिलकर सजा रहे हैं उन्हे साथ रहने दो। बच्चों की प्रायवेसी में दखल मत दो।" तनु की माँ ने डायनिंग टेबल पर खाना परोसते हुए कहा तो परम बुरी तरह से झेंप गया।

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