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एक जिंदगी - दो चाहतें - 24

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-24

''एक बार पता नक्सलियों के पीछे हम पन्द्रह दिनों तक रात दिन जंगलों में घूमते रहे थे। हम दस लोग थे और हमारे पास दो जीपें थीं। साथ में लाया हुआ राशन खत्म हो गया था आखरी तीन दिन से तो हम लोग सिर्फ घूँट-घूँट पानी पीकर बंजर ईलाकों की खाक छान रहे थे। कई रातों से हम लोग सोए नहीं थे और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था।" परम पनीर के चौकोर टुकड़े करते हुए एक पुराना किस्सा याद करके सुनाने लगा।

आखरी वाक्य सुनते हुए तनु के आटा गूंधते हाथ काँप गये वह परम के मूूूंह की ओर देखने लगी।

''रात के ढाई-तीन बजे हम लोग एक बंजर और विरान सड़क से गुजर रहे थे। बहुत ही काली और अंधेरी रात थी। ऐसा लगता था जैसे कि हम धरती के ऊपर नहीं वरन किसी अनजान अंधेरी दुनिया में हो। धुप अंधेरा था। दूर-दूर तक रोशनी की एक किरण तक नहीं थी। यहाँ तक कि आसमान में तारे तक नहीं थे। अजीब भुतहा और बियावान था। थकान और नींद के मारे बुरा हाल था सबका। तभी जीप की हेडलाईट की रोशनी में हमें एक खेत दिखा। वह भुट्टे का खेत था। हम लोग तो उस विरान में भुट्टे देखकर इतने खुश हो गये कि जैसे किसी ने सोने की थाली में छप्पन पकवान परोस दिये हों।

कच्ची सड़क के किनारे खेतों की ओर दबाकर हमने जीपें रोक दीं और उतर कर खेतों मेें घुस गये और भुट्टे तोडऩे लगे। पता था कि ऐसे किसी के खेत से भुट्टे चोरी करना गलत काम है लेकिन जब भूख के मारे जान के लाले पड़े हों तब आदमी सही गलत सब भूल जाता है। उस समय सिवाए पेट भरने के और कुछ दिखाई नहीं देता। हमने भी भुट्टे तोड़कर जीप में रख लिये। अब समस्या थी कि इन्हे भूना कैसे जाये। हम लोग जीप लेकर आगे बढ़े कि जंगल में लकडिय़ाँ मिलेंगी तो आग जलाकर भुट्टे भून लेंगे। उस दिन शायद किस्मत को भी हम पर तरस आ गया था। थोड़ी ही दूर जाने पर हमने देखा कि एक जगह थोड़ी सी आग सुलग रही है। हम फटाफट जीप से उतरे और भुट्टे लेकर आग तक गये। देखा एक बड़ा सा चबूतरा था जिस पर आग सुलग रही थी। हमने भुट्टे छीले भूने और बिना नमक लगाए ही खा गये।

सच में उस दिन तो वो सादे भुट्टे भी दुनिया के अच्छे से अच्छे पकवान से भी ज्यादा स्वादिष्ट लग रहे थे।" परम जैसे मन ही मन यादों को जी रहा था।

तनु दिलचस्पी से सुन रही थी बोली ''फिर"

''फिर क्या भुट्टे खाते ही नींद आने लगी। थके हुए तो बुरी तरह से थे ही। कुछ लोग जीपों में सोए और कुछ लोग वहीं चबूतरे पर ही एक कोने में अपने-अपने हथियार लेकर सो गये उस समय थकान और नींद ने दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर दिया था।

खैर रात आराम से और बिना किसी खतरे के गुजर गयी। सुबह जब नींद खुली तो हैरानी से हमारी आँखें फटी की फटी रह गयीं....।" परम जोर से ठहका मारकर हँस दिया।

''क्यों जी ऐसा क्या हुआ था।" उसे हँसते देख कर तनु को भी उत्सुकता होने लगी।

''हुआ क्या था मायड़ा, सुबह हम लोगों की आँख खुली पता चला कि साला हम लोग तो शमशान में थे। रात में जिस चबूतरे पर आग पर भुट्टे सेंक कर खाए थे वो दरअसल किसी की चिता थी। देर शाम को किसी का अंतिम संस्कार हुआ होगा। वही चिता रात तक सुलग रही थी। और हमने अनजाने में उसी पर भुट्टे सेंक कर खा लिये। किसी के भी दिमाग में यह नहीं आया कि इस विराने में हमारे लिए आग जलाकर कौन गया होगा।" परम के मुँह पर दर्द और हँसी के मिलेजुले भाव थे।

तनु के जिस्म पर रोंगटे उठ गये। ओह... ईश्वर किसी पर भी ऐसी मजबूरी न लाए कभी।

''दस-पन्द्रह मिनट तो हम सब स्तब्ध से बैठे रह गये कि ये क्या हो गया। फिर उस पुण्यात्मा को मन ही मन प्रणाम किया कि उसकी बजह से हम सब तीन दिन बाद कुछ खा पाए थे। वह बेचारा जाते-जाते भी खुद जलकर हमें अन्न खिला गया।" परम बोला।

तनु कांप कर उसके सीने से लग गयी। हे भगवान! सेना के जवानों को भी कैसे-कैसे दिन देखने पड़ते हैं। किन-किन हालातों से गुजरना पड़ता है। 'उफ'!

''इसे कहते हैं "ब्लेसिंग इन डिसगाईज।" परम बोला और उसने तनु की कमर पर अपनी बाहें कस कर कहा" और दूसरा उपहार और ईश्वर का आशिर्वाद ये है मेरी बुच्ची जो मुझे उन पहाड़ों पर उतने बुरे हालातों में मिला था। गॉड्स ब्लेसिंग। भगवान का मुझे दिया हुआ जीवन का सबसे सुंदर उपहार।"

''क्या है जी मैं बुची कहाँ हूँ इतनी लम्बी नाक है मेरी।" तनु ठुनकते हुए बोली।

''भले ही हो मेरे लिये तो तू मेरी बुच्ची ही है।" परम लाड़ से उसकी नाक चूम कर बोला।

''चलो छोड़ो खाना बनाने दो। नहीं तो आज तो भुट्टे भी नहीं है भूनकर खाने के लिये।" तनु ने अपने आपको छुड़ाते हुए कहा। परम हँस दिया। वह सब्जी बनाने की तैयारी करने लगा। जब तक उसने सब्जी बनाई तनु ने रोटियाँ और रायता तैयार कर लिया।

''चल आज मैं तुझे कश्मिरी पुलाव बनाकर खिलाता हूँ।" परम ने सब्जी बनाने के बाद कहा।

''बताइये क्या-क्या तैयारियाँ करनी हैं।" तनु ने कहा। परम बताता गया और तनु तैयारी करती रही। दोनों ने साथ मिलकर खाना बनाया और फिर तनु किचन साफ करके बाहर आ गयी।

''चल जल्दि से नहाकर खाना खा लेते हैं फिर कोई फिल्म देखेंगे ऊपर टी.वी. लाऊँज में बैठकर।" परम बोला।

तनु ऊपर बेडरूम में चली आयी। वह नहाकर निकली। जब तक परम नहाकर आया तब तक तनु ने खाना गरम करके टेबल पर लगा दिया था। दोनों खाना खाने बैठ गये।

''आप कितना अच्छा खाना बना लेते हो।" तनु ने सब्जी का कौर मुँह में डालते हुए कहा।

''आदमी अगर खाना बनाये तो हमेशा औरत से अच्छा खाना बनाता है। होटलों के जितने भी शेफ होते हैं वो हमेशा आदमी ही होते हैं।" परम ने कहा।

''ये बात तो सच है।" तनु बोली।

''मैंने सोच रखा है फौज से रिटायर होने के बाद मैं एक रेस्टोरेन्ट ही खोलूँगा।" परम ने बताया।

''हाँ और उसमें माछेर झोल, रोसोगुल्ला, बेगून भाजा बनाना।" तनु ने चिढ़ाया।

''सिर्फ वही क्यों थेपला, ढोकला, फाफड़ा, खाखरा भी बनाएंगे ना।" परम ने कहा" आखीर रेस्टोरेन्ट चलाना तो गुजरात में ही है।"

''हाँ और उसमें कश्मिरी पुलाव भी रखना। बहुत ही अच्छा बना है। मैंने पहली बार खाया है। सच में आपके हाथों में जादू है।" तनु ने कहा।

खाना खाकर दोनों ऊपर टीवी लाऊँज में सोफे पर बैठ गये। परम ने एक डी.वी.डी. लगा दी और दोनों फिल्म देखने लगे।

परम अपने घर के एक-एक कोने को तनु के साथ जी लेना चाहता था अपनी छुट्टी खत्म होने के पहले।

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रात में तनु कॉफी बनाकर ऊपर कमरे में आयी तो देखा कि परम गैलरी में खड़े-खड़े किसी से फोन पर बातें कर रहा था। उसके चेहरे पर तनाव और दु:ख के चिह्न थे। तनु समझ गयी कि वह अपने घर पर पिताजी से बातें कर रहा होगा और एक बार फिर उसके पिता माँ के डर की वजह से उससे ठीक से बातें नहीं कर रहे होंगे। उसने कॉफी की ट्रे साईड स्टूल पर रख दी और परम का इंतजार करने लगी जानती थी कि बातें ज्यादा लम्बी नहीं होंगी। दो-एक मिनट में ही परम फोन रखकर कमरे में आ जायेगा।

दो-तीन मिनट बाद ही परम चेहरे पर ढेर सारा दु:ख लेकर अंदर आया और हाथ में पकड़ा मोबाईल साईड स्टूल पर रखकर पलंग के तकिये पर पीठ टिकाकर बैठ गया। तनु ने कॉफी का एक कप उठाकर उसे थमा दिया।

''पिताजी अगर शुरू से ही माँ की बातों का विरोध करने की हिम्मत कर लेते तो आज मेरी जिंदगी की कहानी कुछ और होती।" परम थके से स्वर में बोला। ''पिताजी हमेशा माँ से दबते रहे और माँ हमेशा अपनी मनमानी करती रही चाहे उनके लिये फेैसले सही थे या गलत। और छोटे भाई के सामने हमेशा मुझे नीचा दिखाती रहीं। उसे हमेशा होशियार समझाा और मुझे गुण्डा आवारा में चाहे कितने भी अच्छे नम्बरों से पास होता था लेकिन मिठाई घर और मोहल्ले में हमेशा उसका रिजल्ट आने के बाद ही बँटती थी।

मैं, स्पोटर््स में नेशनल लेवल पर खेल कर एक बार गोल्ड मेडल और एक बार सिल्वर मेडल जीत कर आया था ताईक्वाण्डों की स्टेट चैम्पियनशिप भी कई बार जीती थी मैेंने पर माँ की नजरों में उन मेडल और सर्टिफिकेट्स की कोई कीमत नहीं थी। मैंने माँ की हर बात मानी, हर आज्ञा का पालन सिर झुकाकर किया। कभी किसी बात के लिए जिद नहीं की लेकिन फिर भी मैं बदतमीज और उद्दण्ड रहा और छोटा भाई अपनी हर जिद मनवाने के बाद भी उनका आज्ञाकारी और लायक बेटा रहा। समझ नहीं आता कोई माँ अपने ही कोख मे पैदा हुए दोनों बेटों के बीच ऐसा भेदभाव कैसे कर सकती है।"

तनु ने धीरे से परम के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। देश का इतना बहादुर सिपाही और अंदर से इतना संवेदनशील, इतना नाजुक।

''भूल जाओ अब उस कड़वे अतीत को परम। हर इंसान एक जैसा नहीं होता। जैसे सबके चेहरे अलग-अलग होते हैं वैसे ही सबके स्वभाव भी भिन्न होते हैं। जिंदगी उस दौर को पीछे छोड़कर आगे निकल गयी है। अब आप भी उन कड़वाहटों को वहीं छोड़कर जिंदगी के साथ आगे बढ़ जाईये।" तनु ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

''भूलना तो मैं भी चाहता हूँ लेकिन क्या करूँ ये लोग भूलने नहीं देते। कितनी आसानी से ये लोग मुझे भुला बैठे हैं माँ-बाप होकर भी। बेटा जब माँ-बाप को भुला देता है तो सारा समाज उसे कोसता है लेकिन बेटे के साथ दुव्र्यवहार करने वाले माँ-बाप को कोई कुछ कहने क्यों नहीं आता तनु।" परम ने तनु की ओर देखते हुए कहा।

''उन्होंने आपको भुलाया नहीं है, बस उनका झूठा अहम उनके आड़े आ रहा है। थोड़ा सा धीरज रखिये।"

''इस पूरी दुनिया में बस एक तुम्ही तो हो जिस पर मेरा सारा विश्वास टिका हुआ है। और मेरा अपना कहने को है ही कौन।" परम एक गहरी साँस लेकर बोला।

''तो आपको मेरी कसम जो आज के बाद आप इन सब बातों को सोचकर दु:खी हुए।" तनु ने उसका हाथ अपने सर पर रखकर उसे कसम दी।

''ऐ पगली मेरी जान! कसम क्यों दे रही है। तूने बोल दिया बस मैंने मान लिया। आज के बाद मैं किसी के बारे में कुछ नहीं सोचूंगा। तुम से बढ़कर मेरे लिये और कुछ नहीं है।" परम ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

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